आय और रोज़गार का निर्धारण –Economics कक्षा 12 अध्ययन गाइड (अध्याय 4)

आय और रोज़गार का निर्धारण – कक्षा 12 अध्ययन गाइड (अध्याय 4)

आय और रोज़गार का निर्धारण – अध्याय 4

1. समग्र माँग और इसके घटक

समग्र माँग (Aggregate Demand – AD) अर्थव्यवस्था में एक निश्चित मूल्य स्तर पर विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर किया गया कुल नियोजित व्यय है। एक बंद अर्थव्यवस्था में (जहाँ सरकार और विदेशी क्षेत्र नहीं हैं), समग्र माँग बराबर होती है:

AD = C + I
  • C = उपभोग व्यय (Consumption Expenditure)
  • I = निवेश व्यय (Investment Expenditure)

यदि सरकार और विदेशी क्षेत्र शामिल हों, तो AD = C + I + G + (X − M) होगा।

2. उपभोग (Consumption)

उपभोग (C) घरों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं पर किया गया कुल व्यय है। केन्स के अनुसार उपभोग दो भागों में विभाजित होता है — स्वायत्त उपभोग (Autonomous Consumption) और प्रेरित उपभोग (Induced Consumption)

C = C₀ + cY
  • C₀ = स्वायत्त उपभोग (आय पर निर्भर नहीं)
  • c = उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC)
  • Y = आय
उदाहरण: यदि C₀ = ₹500, c = 0.6 और Y = ₹5000, तो C = 500 + 0.6×5000 = ₹3500।

3. निवेश (Investment)

निवेश पूँजीगत वस्तुओं (जैसे मशीनरी, भवन आदि) पर किया गया व्यय है। यह प्रायः स्वायत्त निवेश (I₀) माना जाता है, जो आय पर निर्भर नहीं करता।

I = I₀
उदाहरण: यदि I₀ = ₹2000 है, तो AD में ₹2000 की वृद्धि से संतुलित आय बढ़ेगी।

4. द्विक्षेत्रीय मॉडल में आय का निर्धारण

जब अर्थव्यवस्था में केवल घर (Households) और फर्म (Firms) हों, तो:

AD = C + I

संतुलन आय तब प्राप्त होती है जब Y = AD

Y = C₀ + cY + I₀

अथवा,

Y(1 − c) = C₀ + I₀ → Y = (C₀ + I₀)/(1 − c)
उदाहरण: C₀ = 500, I₀ = 1500, c = 0.75
Y = (500 + 1500)/(1 − 0.75) = 2000/0.25 = ₹8000।

5. अल्पकाल में संतुलन आय का निर्धारण

मुख्य धारणा:

  1. मूल्य स्तर स्थिर रहता है।
  2. उत्पादन माँग के अनुसार समायोजित होता है।
  3. रोज़गार स्तर आय के साथ बदलता है।
45° रेखा पर: जहाँ उत्पादन = व्यय।
AE रेखा: AE = C₀ + cY + I₀।
दोनों का प्रतिच्छेदन → संतुलन आय (Y*)।

6. समग्र माँग में स्वायत्त परिवर्तन का प्रभाव

यदि C₀ या I₀ जैसे घटकों में परिवर्तन होता है, तो AD रेखा ऊपर या नीचे शिफ्ट होती है। इस परिवर्तन का प्रभाव गुणक (Multiplier) द्वारा कई गुना बढ़ जाता है।

ΔY = k × ΔA

जहाँ k = 1/(1 − c)

उदाहरण: यदि c = 0.8 और ΔI = ₹1000, तो k = 5 ⇒ ΔY = 5000।

7. गुणक की प्रक्रिया (Multiplier Mechanism)

  1. पहला चरण: निवेश में वृद्धि से उत्पाद बढ़ता है।
  2. दूसरा चरण: इससे लोगों की आय बढ़ती है।
  3. तीसरा चरण: लोग नई आय का एक भाग उपभोग में खर्च करते हैं।
  4. यह प्रक्रिया बार-बार चलती है, जब तक प्रभाव नगण्य न हो जाए।
ΔY = ΔA(1 + c + c² + c³ + …) = ΔA/(1 − c)

8. मितव्ययिता का विरोधाभास (Paradox of Thrift)

यदि सभी व्यक्ति अधिक बचत करने लगें (कम उपभोग), तो समग्र माँग घट जाती है। परिणामस्वरूप उत्पादन और आय घट जाती है, जिससे कुल बचत भी कम हो जाती है। यही मितव्ययिता का विरोधाभास है।

उदाहरण: यदि MPC 0.8 से घटकर 0.7 हो जाए, तो गुणक 5 से घटकर 3.33 हो जाएगा, और कुल आय घटेगी।

9. हल सहित प्रश्न

प्रश्न 1: C = 200 + 0.75Y, I = 800। संतुलन आय ज्ञात करें।
उत्तर: Y = 200 + 0.75Y + 800 ⇒ 0.25Y = 1000 ⇒ Y = 4000।
उपभोग = 200 + 0.75×4000 = 3200।
बचत = 4000 − 3200 = ₹800।
प्रश्न 2: MPC = 0.6 और सरकारी व्यय ₹2000 बढ़े तो ΔY क्या होगा?
उत्तर: k = 1/(1 − 0.6) = 2.5 ⇒ ΔY = 2.5×2000 = ₹5000।

10. सारांश (Summary)

अवधारणासूत्र / व्याख्या
उपभोग फलनC = C₀ + cY
संतुलन आयY = (C₀ + I₀)/(1 − c)
गुणकk = 1/(1 − c)
मितव्ययिता का विरोधाभासअधिक बचत से कुल आय घट सकती है

11. निष्कर्ष

केन्स के सिद्धांत के अनुसार, अल्पकाल में जब मूल्य स्तर स्थिर रहता है, तो समग्र माँग ही उत्पादन और रोज़गार को निर्धारित करती है। निवेश, उपभोग या सरकारी व्यय में छोटे परिवर्तन भी गुणक प्रभाव से आय और रोज़गार में बड़े परिवर्तन ला सकते हैं।

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