अध्याय 1 — परिचय (कक्षा 11 अर्थशास्त्र)
1. अध्याय का अवलोकन
- यह अध्याय अर्थशास्त्र का परिचय देता है और बताता है कि आर्थिक समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं और वे किस प्रकार हल की जाती हैं।
- अर्थशास्त्र का उद्देश्य संसाधनों का संचय, उपयोग और विभाजन समझना है ताकि समाज की आवश्यकताओं को संतुलित किया जा सके।
- हम सरल अर्थव्यवस्था से शुरू करेंगे, फिर केंद्रीय समस्याओं, बाजार व्यवस्था और नियोजित व्यवस्था के बीच अंतर, सकारात्मक व माननीय अर्थशास्त्र और सूक्ष्म व समष्टि अर्थशास्त्र पर चर्चा करेंगे।
2. सरल अर्थव्यवस्था (A Simple Economy)
- सरल अर्थव्यवस्था वह मॉडल है जिसमें व्यवहार को समझने के लिए केवल कुछ आर्थिक एजेंट — उपभोक्ता, उत्पादक और कभी-कभी सरकार — को लिया जाता है।
- इसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, विनिमय और उपभोग बहुधा स्पष्ट और सीधा माना जाता है।
- सरल अर्थव्यवस्था का लाभ: जटिल वास्तविक दुनिया की स्थितियों को सरलीकृत करके मूल सिद्धांतों को स्पष्ट करना।
- यह मॉडल यह दिखाने के लिए उपयोगी है कि कैसे सीमित संसाधन और इच्छाएँ मिलकर आर्थिक निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
- मूल विचार: संसाधन सीमित हैं पर मानव आवश्यकताएँ अनंत — इस असमानता से आर्थिक समस्याएँ बनती हैं।
3. अर्थव्यवस्था के केंद्रीय (मुख्य) प्रश्न
प्रत्येक समाज को तीन मौलिक प्रश्नों का उत्तर देना होता है — कौन सी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित की जाएँ, उन्हें किस मात्रा में उत्पादित किया जाए और उन्हें किसके लिए (किसके द्वारा) उत्पादित किया जाएँ। इन्हें विस्तार से देखें:
- 1. क्या (What) उत्पादित किया जाए?
- संसाधनों की सीमा के कारण समाज को इस पर निर्णय लेना होता है कि कौन-सी वस्तुएँ और सेवाएँ प्राथमिकता पायें — उदाहरण: अन्न, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, मनोरंजन आदि।
- विकल्पों का निर्धारण मांग, सामाजिक प्राथमिकताओं और तकनीकी संभावनाओं पर निर्भर करता है।
- 2. कितना (How much) उत्पादित किया जाए?
- उत्पादन की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि संसाधन किस प्रकार और किस सीमा में उपयोग किए जाएँ — तकनीकी विकल्प, उत्पादन लागत और पर्यावरण/नीति सीमाएँ मायने रखती हैं।
- उदाहरण: यदि संसाधन सीमित हैं, तो समाज किस हद तक आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को बढ़ावा दे और निजी उपभोग को सीमित करे।
- 3. किसके लिए (For whom) उत्पादित किया जाए?
- उत्पादन का वितरण — जिन लोगों को वस्तुएँ और सेवाएँ पहुँचनी चाहिए — पर निर्णय अपेक्षाकृत राजनीतिक और सामाजिक होता है।
- वितरण की विधियाँ: बाजार ऋणानुशासन (जहाँ खरीद-शक्ति मालिकों को माल देती है), सरकारी वितरण, या मिक्स्ड मैकेनिज्म।
नोट: इन तीन प्रश्नों के उत्तर किसी भी अर्थव्यवस्था के संगठन-ढांचे (market, planned, mixed) पर निर्भर करते हैं। अलग-अलग प्रणालियाँ इन प्रश्नों का भिन्न उत्तर देती हैं।
4. उत्पादन, विनिमय और उपभोग (Production, Exchange & Consumption)
- उत्पादन: संसाधनों (भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यमिता) का उपयोग करके वस्तुओं और सेवाओं का सृजन।
- विनिमय (Exchange): उत्पादित वस्तुओं का वह चरण जहाँ निर्माता अपने माल को उपभोक्ता तक पहुँचाते हैं — बाजार व लेन-देन इसके केंद्र में हैं।
- उपभोग (Consumption): लोग और संस्थाएँ वस्तुओं व सेवाओं का उपयोग कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
- इन तीनों प्रक्रियाओं के बीच सम्बन्ध: उत्पादन → विनिमय → उपभोग। समन्वय के माध्यम से सामाजिक संपन्नता और जीवन-स्तर निर्धारित होते हैं।
- उत्पादन के निर्णयों में तकनीकी सम्भाव्यता, लागत, आयात-निर्यात स्थितियाँ और नीति निर्देश शामिल हैं।
5. बाजार अर्थव्यवस्था (The Market Economy)
- बाजार अर्थव्यवस्था वह व्यवस्था है जिसमें उत्पादन और वितरण के निर्णय मुख्यतः बाजार की कीमतों, निजी मालिकाना और व्यक्तिगत निर्णयों से निर्धारित होते हैं।
- मुख्य विशेषताएँ:
- निजी संपत्ति और व्यक्तियों/फर्मों का निर्णय-स्वतंत्रता।
- मांग और आपूर्ति के आधार पर मूल्य का निर्धारण।
- प्रेरणा — लाभ कमाने की इच्छा (profit motive)।
- उत्पादन हेतु संसाधन बाज़ार में उपलब्ध कराए जाते हैं और कीमतें संसाधन आवंटन में भूमिका निभाती हैं।
- बाजार की खूबियाँ: उत्पादकता को बढ़ावा, नवाचार और उपभोक्ता विकल्प।
- सीमाएँ: असमानता, बाह्य प्रभाव (externalities), सार्वजनिक वस्तुओं की अपर्याप्त आपूर्ति और बाजार विफलता के अन्य रूप।
6. केन्द्रिय नियोजित अर्थव्यवस्था (In contrast to a centrally planned economy)
- केंद्रिय नियोजित या नियोजन-आधारित व्यवस्था में उत्पादन और वितरण के निर्णयों पर सरकार या केंद्रीय प्राधिकरण का नियंत्रण होता है।
- विशेषताएँ:
- उत्पादन-योजनाएँ (planned targets) और केंद्रीय निर्देश।
- निजी मालिकाना कम या सीमित; अधिकांश संसाधन सार्वजनिक/राज्य के नियंत्रण में।
- कीमत-निर्धारण में सरकार की भूमिका, बाजार की कीमतों का सीमित महत्त्व।
- लाभ: समान वितरण के लक्ष्य, बुनियादी सेवाओं का सबको पहुँचना, रणनीतिक उद्योगों पर नियंत्रण।
- सीमाएँ: प्रेरणा की कमी, कुशलता की कमी, नवाचार में कमी और सूचना-समस्या — क्या उत्पादन करना है, कितनी मात्रा में, और किस गुणवत्ता का — का गलत अनुमान हो सकता है।
- वास्तविक दुनिया में अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ इन दोनों छोरों के बीच रहती हैं (मिश्रित व्यवस्था)।
7. सकारात्मक और मान्यत्मक अर्थशास्त्र (Positive and Normative Economics)
- सकारात्मक अर्थशास्त्र (Positive Economics): वास्तविक तथ्यों, कारण-परिणाम संबंधों और ‘क्या है’ प्रश्नों का अध्ययन करता है। यह वैधानिक/विवरणात्मक है — उदाहरण: “मांग घटने पर कीमत में क्या परिवर्तन होगा?”
- मान्यत्मक/नॉर्मेटिव अर्थशास्त्र (Normative Economics): नैतिकता, मूल्य और ‘क्या होना चाहिए’ वाले प्रश्नों से जुड़ा है। यह नीतिगत सिफारिशें देता है — उदाहरण: “सरकार को गरीबी कम करने के लिए कितना खर्च करना चाहिए?”
- दोनों भिन्न क्षेत्रों का उपयोग नीति-निर्माण में होता है: सकारात्मक विश्लेषण समस्या की व्याख्या करता है, जबकि मान्यत्मक मूल्य-आधारित विकल्प प्रस्तुत करता है।
- अच्छा अभ्यास: स्पष्ट करे कि जब आप कोई कथन दे रहे हों तो वह सकारात्मक है या मान्यत्मक — इससे विवाद कम और बहस अधिक तार्किक होती है।
