मनी एंड बैंकिंग –Economics कक्षा 12 अध्ययन गाइड (अध्याय 3)

मनी एंड बैंकिंग – कक्षा 12 अध्ययन गाइड (अध्याय 3)

मनी एंड बैंकिंग – अध्ययन गाइड (अध्याय 3)

1. मनी (धन) के कार्य

  • मनी वह वस्तु या प्रतीक है जो वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान में सामान्यतः स्वीकार किया जाता है।
  • धन निम्नलिखित मुख्य कार्य करता है:
    • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange): मनी वस्तुओं-से-वस्तु विनिमय (बार्टर) की आवश्यकता को समाप्त करता है।
    • मूल्यांकन की इकाई (Unit of Account): सभी वस्तुओं के मूल्य मापने के लिए एक सामान्य माप प्रदान करता है।
    • मूल्य संचय का साधन (Store of Value): धन से वर्तमान क्रय-शक्ति को भविष्य में स्थानांतरित किया जा सकता है।
    • स्थगित भुगतान का मानक (Standard of Deferred Payment): भविष्य के लेन-देनों को निपटाने में उपयोग किया जाता है।
उदाहरण: 10 किलो चावल के बदले शर्ट देने के बजाय ₹500 देना सरल विनिमय का माध्यम बन जाता है।
कार्यधन की भूमिका
विनिमय का माध्यमबार्टर की कठिनाई समाप्त करता है
मूल्यांकन की इकाईमूल्य मापने का सामान्य मानक
मूल्य संचयभविष्य के लिए क्रय-शक्ति सुरक्षित
स्थगित भुगतान का मानकभविष्य के ऋण या भुगतान में उपयोग

2. धन की मांग और आपूर्ति

2.1 धन की मांग

धन की मांग से आशय उस मात्रा से है जिसे व्यक्ति या व्यवसाय नकद के रूप में रखना चाहते हैं, न कि अन्य परिसंपत्तियों में। इसके मुख्य उद्देश्य हैं:

  • लेन-देन की मांग: दैनिक वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए।
  • सावधानी की मांग: आकस्मिक या आपात स्थितियों में खर्च के लिए।
  • सट्टा मांग: भविष्य में ब्याज दरों या निवेश अवसरों के परिवर्तन का लाभ उठाने हेतु।

धन की मांग के निर्धारक:

  • मूल्य स्तर – मूल्य बढ़ने पर लेन-देन हेतु अधिक धन की आवश्यकता।
  • वास्तविक आय – आय बढ़ने पर धन की मांग भी बढ़ती है।
  • ब्याज दर – उच्च ब्याज दर होने पर नकद रखना कम लाभदायक, इसलिए मांग घटती है।
  • भविष्य की अपेक्षाएँ – अगर लोग मुद्रास्फीति की आशंका रखते हैं, तो धन रखने का व्यवहार बदलता है।
उदाहरण: यदि लोग अगले वर्ष महँगाई की आशंका रखते हैं, तो वे नकद कम और परिसंपत्तियाँ अधिक रखना पसंद करेंगे।

2.2 धन की आपूर्ति

धन की आपूर्ति (Money Supply) से आशय अर्थव्यवस्था में किसी समय उपलब्ध कुल धनराशि से है। यह मुख्यतः केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित की जाती है।

आपूर्ति को सामान्यतः M1, M2, M3 आदि रूपों में मापा जाता है।

उदाहरण: यदि आरबीआई नए नोट जारी करता है या बैंक ऋण बढ़ाते हैं तो धन की आपूर्ति बढ़ती है।
संकल्पनाविवरण
धन की मांग (Md)किसी ब्याज दर एवं आय स्तर पर लोग जितना नकद रखना चाहते हैं
धन की आपूर्ति (Ms)केंद्रीय बैंक व वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपलब्ध कुल धन

2.3 मनी मार्केट संतुलन

जब धन की मांग और आपूर्ति बराबर होती है तो संतुलन ब्याज दर और धन की मात्रा निर्धारित होती है।

आरेख: ऊर्ध्व Ms वक्र और नीचे ढलान Md वक्र के प्रतिच्छेद पर संतुलन ब्याज दर।

3. बैंकिंग प्रणाली द्वारा धन निर्माण

वाणिज्यिक बैंक आंशिक आरक्षित प्रणाली के अंतर्गत जमा स्वीकार कर और ऋण देकर नया धन सृजन करते हैं।

3.1 काल्पनिक बैंक की तुलन-पत्र

बैंक की तुलन-पत्र:
संपत्ति (Assets) | देयताएँ (Liabilities)
आरक्षित निधि (रिज़र्व) | जमाकर्ताओं की जमा
ऋण व अग्रिम | बैंक की पूँजी
  • बैंक जमा का एक भाग आरक्षित रखता है और शेष ऋण देता है।
  • यह ऋण किसी अन्य बैंक में जमा बन जाता है और प्रक्रिया दोहराई जाती है।

3.2 मनी मल्टीप्लायर (गुणक)

Money Multiplier = 1 / Reserve Ratio

या, जब मुद्रा-रखाव को ध्यान में रखें:

M = (1 / rr) × MB
उदाहरण: यदि आरक्षित अनुपात = 0.10, तो मल्टीप्लायर = 1/0.10 = 10 । यानी ₹1 की आधार मुद्रा ₹10 का कुल धन बना सकती है।

सीमाएँ:

  • यदि बैंक अतिरिक्त आरक्षित रखते हैं, तो मल्टीप्लायर घटता है।
  • यदि जनता अधिक नकद रखे और जमा कम करे, तो भी मल्टीप्लायर घटेगा।
  • केंद्रीय बैंक की उच्च-शक्ति वाली मुद्रा पर पूर्ण नियंत्रण आवश्यक है।

4. मनी सप्लाई नियंत्रण के नीति उपकरण

  • ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO): सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त से आरक्षित निधि और धन आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है।
  • कैश रिज़र्व रेशियो (CRR): बैंकों द्वारा जमा का वह प्रतिशत जो आरबीआई के पास रखना आवश्यक है।
  • बैंक रेट (Discount Rate): आरबीआई द्वारा बैंकों को दिए जाने वाले ऋण की ब्याज दर; इसे बढ़ाने-घटाने से ऋण प्रवाह प्रभावित होता है।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR): बैंकों को अपनी जमा का कुछ हिस्सा तरल संपत्तियों में रखना होता है।
  • ब्याज दर नीति: रेपो रेट या बैंक रेट बदलकर ऋण-लागत व धन आपूर्ति पर प्रभाव।
उदाहरण: यदि आरबीआई CRR बढ़ाता है तो बैंकों की ऋण देने की क्षमता घटती है → मनी सप्लाई घटती है।

5. धन की मांग और आपूर्ति का संयुक्त विश्लेषण

  • यदि केंद्रीय बैंक धन आपूर्ति बढ़ाता है → ब्याज दर घटती है → निवेश व उपभोग बढ़ता है → कुल मांग बढ़ती है।
  • यदि धन आपूर्ति घटाई जाए → ब्याज दर बढ़ती है → निवेश घटता है → कुल मांग घटती है।
धन आपूर्ति ↑ → ब्याज दर ↓ → निवेश ↑ → कुल मांग ↑
धन आपूर्ति ↓ → ब्याज दर ↑ → निवेश ↓ → कुल मांग ↓

6. धन आपूर्ति के विभिन्न मापदंड

मापदंडपरिभाषाविशेषता
M0प्रचलन में मुद्रा + बैंकों के आरबीआई में रिज़र्वआधार मुद्रा (High Powered Money)
M1प्रचलन में मुद्रा + मांग जमा + अन्य चालू खातेसबसे तरल मुद्रा
M2M1 + बचत जमा + लघु अवधि जमाविस्तृत मापदंड
M3/M4M2 + दीर्घ अवधि जमा + अन्य तरल परिसंपत्तियाँवृहद धन आपूर्ति

भारत में आरबीआई द्वारा M1 (संकीर्ण धन) और M3 (वृहद धन) प्रमुख रूप से उपयोग किए जाते हैं।

7. संकीर्ण और वृहद मनी की कानूनी परिभाषाएँ

  • संकीर्ण धन (Narrow Money): प्रचलन में मुद्रा व चालू जमा, जो सबसे तरल होती है।
  • वृहद धन (Broad Money): संकीर्ण धन + समय जमा + अन्य नकदी समान संपत्तियाँ।
  • इन विभाजनों से नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था की तरलता का आकलन करने में सुविधा होती है।

8. डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण)

विमुद्रीकरण का अर्थ है किसी मुद्रा के मूल्यवर्ग की वैधानिक मान्यता समाप्त करना। यह कदम आमतौर पर नकली नोटों, काले धन या अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने हेतु उठाया जाता है।

  • उच्च मूल्य के नोटों के विमुद्रीकरण से मुद्रा प्रवाह घटता है और बैंक जमाओं में वृद्धि हो सकती है।
  • विमुद्रीकरण के बाद कितनी राशि बैंकिंग प्रणाली में लौटती है, यह मनी सप्लाई पर निर्भर करता है।
  • भारत में 2016 में ₹500 और ₹1000 के नोटों का विमुद्रीकरण इसका प्रमुख उदाहरण है।

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