phychology class 12 CBSE अध्याय 7


अध्याय 7 — सामाजिक प्रभाव और समूह प्रक्रियाएँ

(SOCIAL INFLUENCE AND GROUP PROCESSES)


1. प्रस्तावना (Introduction)

  • मनुष्य का व्यवहार केवल उसके आंतरिक कारकों—जैसे व्यक्तित्व, प्रेरणा, संज्ञान—से ही नियन्त्रित नहीं होता बल्कि सामाजिक परिवेश भी उसे गहराई से प्रभावित करता है।
  • व्यक्ति दूसरों की उपस्थिति में अलग तरीके से सोचता, महसूस करता और व्यवहार करता है।
  • सामाजिक प्रभाव (Social Influence) से आशय है—दूसरों की वास्तविक, कल्पित या संकेतित उपस्थिति के कारण व्यवहार में होने वाला परिवर्तन।
  • जीवन का अधिकांश व्यवहार समूहों के भीतर घटित होता है—परिवार, मित्र मंडली, कक्षा, कार्यस्थल, समाज, संगठन आदि।
  • इसलिए समूहों की प्रकृति, उनका गठन तथा समूह के भीतर चलने वाली प्रक्रियाओं को समझना अत्यंत आवश्यक है।
  • यह अध्याय उन सभी मनोवैज्ञानिक पहलुओं को स्पष्ट करता है जिनके माध्यम से समूह व्यक्ति के व्यवहार, पहचान, निर्णय, सहयोग, संघर्ष तथा कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं।

2. समूहों की प्रकृति और गठन

2.1 समूह क्या है? (What is a Group?)

  • समूह दो या अधिक व्यक्तियों का वह समुदाय है जिसमें परस्पर क्रिया, साझा पहचान, और समान उद्देश्य होते हैं।
  • समूह के सदस्य एक-दूसरे को “हम” या “हमारा” के रूप में देखते हैं।
  • मात्र लोगों का इकट्ठा होना समूह नहीं कहलाता; आपसी संपर्क, भूमिका, और मानदंडों का होना आवश्यक है।

समूह की मुख्य विशेषताएँ

  • समान उद्देश्य
  • सहअस्तित्व और पारस्परिक निर्भरता
  • साझा मानदंड (Norms)
  • भूमिकाओं का विभाजन (Roles)
  • संबद्धता या सामंजस्य (Cohesiveness)
  • संरचना और स्थिति क्रम (Status hierarchy)
  • सामूहिक पहचान

उदाहरण

  • परिवार, सहपाठी समूह, कार्य टीम, खेल टीम, समिति, मित्र मंडली आदि।

3. लोग समूहों में क्यों शामिल होते हैं? (Why Do People Join Groups?)

व्यक्ति अनेक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और व्यावहारिक कारणों से समूहों से जुड़ता है।

1. सुरक्षा (Security)

  • समूह अकेलेपन का भय कम करता है और सुरक्षा की भावना देता है।
  • उदाहरण: कर्मचारी यूनियन समूह बनाकर नौकरी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

2. सामाजिक पहचान (Social Identity)

  • समूह यह तय करने में मदद करता है—मैं कौन हूँ?
  • जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता और परिवार जैसी पहचानों का निर्माण समूहों से होता है।

3. संबंध और अपनापन (Affiliation Need)

  • मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है।
  • प्रेम, स्नेह, स्वीकार्यता जैसी भावनात्मक आवश्यकताएँ समूहों में पूरी होती हैं।

4. लक्ष्य प्राप्ति (Goal Achievement)

  • कई कार्य अकेले संभव नहीं; समूह संसाधन, कौशल और समय को एकत्र करता है।
  • टीमवर्क से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

5. शक्ति और नियंत्रण (Power and Control)

  • समूह का समर्थन व्यक्ति की सामूहिक शक्ति बढ़ाता है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रभाव भी बढ़ जाता है।

6. सूचना और ज्ञान (Information Sharing)

  • समूह आपसी सीख और अनुभव साझा करने का माध्यम है।
  • उदाहरण: अध्ययन समूह ज्ञान बढ़ाते हैं।

7. प्रतिष्ठा और सम्मान (Status)

  • प्रतिष्ठित समूह का सदस्य बनने से समाज में सम्मान बढ़ता है।

8. समान रुचियाँ (Similarity of Goals)

  • समान सोच और समान उद्देश्य वाले लोग स्वाभाविक रूप से समूह बनाते हैं।

4. समूह निर्माण की प्रक्रियाएँ (Group Formation)

समूह का निर्माण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों और सामाजिक प्रक्रियाओं के आधार पर होता है।


4.1 मनोवैज्ञानिक सिद्धांत

A. निकटता सिद्धांत (Propinquity Theory)

  • भौतिक निकटता बातचीत बढ़ाती है → पसंद बढ़ती है → समूह बनता है।
  • उदाहरण: साथ बैठने वाले छात्र मित्र-समूह बनाते हैं।

B. संतुलन सिद्धांत (Balance Theory – Heider)

  • लोग उन व्यक्तियों की ओर आकर्षित होते हैं जिनके विश्वास, दृष्टिकोण और विचार मिलते-जुलते हों।
  • समानता → मानसिक संतुलन → स्थायी समूह।

C. विनिमय सिद्धांत (Exchange Theory)

  • समूह में शामिल होना “लाभ–हानि विश्लेषण” पर आधारित होता है।
  • लाभ अधिक → समूह आकर्षक।
  • लाभ: समर्थन, मज़ा, सुरक्षा; हानि: समय, प्रयास।

4.2 सामाजिक प्रक्रियाएँ

1. मानदंड निर्माण (Development of Norms)

  • समूह अपने नियम बनाता है जिनसे सदस्य का व्यवहार नियंत्रित होता है।

2. भूमिकाओं का निर्धारण (Role Assignment)

  • प्रत्येक सदस्य को एक भूमिका दी जाती है—नेता, आयोजक, सहायक, निर्णयकर्ता आदि।

3. संरचना निर्माण (Structure Formation)

  • समूह के भीतर स्थिति, संचार मार्ग और अधिकार का क्रम विकसित होता है।

4. सामंजस्य निर्माण (Cohesiveness)

  • भावनात्मक जुड़ाव और एकता समय के साथ बढ़ती है।

4.3 टकमन के समूह विकास चरण (Tuckman’s Stages of Group Development)

1. Forming (निर्माण चरण)

  • नए सदस्य एक-दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं।
  • शिष्ट व्यवहार, अनिश्चितता, सावधानी।

2. Storming (संघर्ष चरण)

  • भूमिकाओं, शक्ति और विचारों को लेकर असहमति।
  • यह चरण समूह को स्पष्टता प्रदान करता है।

3. Norming (मानकीकरण)

  • नियम बनते हैं, सामंजस्य बढ़ता है, संबंध मजबूत होते हैं।

4. Performing (कार्य निष्पादन)

  • समूह लक्ष्य की ओर कुशलतापूर्वक कार्य करता है।
  • दक्षता, सहयोग और उत्पादकता बढ़ जाती है।

5. Adjourning (समापन चरण)

  • कार्य पूरा होने पर समूह समाप्त होता है।
  • संतोष, गर्व, कभी-कभी भावनात्मक उदासी।

5. समूहों के प्रकार (Types of Groups)


5.1 प्रथमिक और द्वितीयक समूह (Primary and Secondary Groups)

A. प्रथमिक समूह (Primary Groups)

  • छोटे, घनिष्ठ, भावनात्मक रूप से जुड़े हुए समूह।
  • उदाहरण: परिवार, करीबी मित्र, सहपाठी समूह।

विशेषताएँ

  • गहरा भावनात्मक संबंध
  • प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत संचार
  • अनौपचारिक नियंत्रण
  • दीर्घकालिक संबंध
  • सामूहिक पहचान

कार्य

  • समाजीकरण
  • भावनात्मक समर्थन
  • मूल्य एवं संस्कृति हस्तांतरण
  • व्यक्तित्व विकास

B. द्वितीयक समूह (Secondary Groups)

  • बड़े, औपचारिक और लक्ष्य-उन्मुख समूह।
  • संबंध कम व्यक्तिगत और सीमित होते हैं।
  • उदाहरण: विद्यालय, राजनीतिक दल, कार्यालय, संगठन।

विशेषताएँ

  • औपचारिक संरचना
  • भूमिका आधारित संबंध
  • कम भावनात्मक जुड़ाव
  • अल्पकालिक या कार्य आधारित
  • स्पष्ट उद्देश्यों वाला

कार्य

  • कार्य निष्पादन
  • संगठनात्मक व्यवस्था
  • सामाजिक नियंत्रण
  • पेशेवर नेटवर्किंग

5.2 औपचारिक और अनौपचारिक समूह (Formal and Informal Groups)

A. औपचारिक समूह (Formal Groups)

  • संगठन द्वारा योजनाबद्ध रूप से बनाए गए समूह।
  • स्पष्ट नियम, भूमिकाएँ और लक्ष्य।
  • उदाहरण: समिति, प्रबंधन दल, कार्य विभाग।

विशेषताएँ

  • संरचित संचार
  • निर्धारित जिम्मेदारी
  • नियम आधारित संचालन
  • लक्ष्य पर केंद्रित

B. अनौपचारिक समूह (Informal Groups)

  • स्वाभाविक रूप से बनने वाले समूह।
  • रुचि, मित्रता और समान सोच के आधार पर निर्माण।
  • उदाहरण: मित्र समूह, ऑफिस में चाय-समूह आदि।

विशेषताएँ

  • कोई औपचारिक संरचना नहीं
  • लचीला और स्वतःस्फूर्त
  • गहन भावनात्मक जुड़ाव
  • समूहिक समर्थन और विश्वास

फायदे

  • मनोबल बढ़ता है
  • तनाव कम होता है
  • सहयोग बढ़ता है
  • कार्यस्थल का माहौल बेहतर होता है

नुकसान

  • अफवाहें फैलाना
  • संगठनात्मक बदलाव का विरोध
  • गुटबाज़ी को बढ़ावा

5.3 अन्तर्ग्रुप और बहिर्ग्रुप (Ingroup and Outgroup)

A. Ingroup (हमारा समूह)

  • वह समूह जिसमें व्यक्ति शामिल होता है।
  • इसमें पहचान, वफादारी और सामंजस्य अधिक होता है।

विशेषताएँ

  • सकारात्मक दृष्टिकोण
  • भरोसा और सहयोग
  • मजबूत ‘हम’ भावना
  • समान मानदंड

B. Outgroup (दूसरा समूह)

  • वह समूह जिससे व्यक्ति संबंधित नहीं होता।
  • कभी-कभी इसे प्रतिद्वंद्वी या भिन्न के रूप में देखा जाता है।

विशेषताएँ

  • कम विश्वास
  • दूरी का भाव
  • नकारात्मक रूढ़ियाँ
  • प्रतियोगिता

अन्तर्ग्रुप–बहिर्ग्रुप भेद क्यों होता है?

  • सामाजिक पहचान की आवश्यकता
  • संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा
  • समानता और भिन्नता चेतना
  • मनोवैज्ञानिक श्रेणीकरण (Categorisation)

6. सामाजिक आलस्य (Social Loafing)

परिभाषा

  • जब व्यक्ति समूह में कार्य करते समय अकेले कार्य करने की तुलना में कम प्रयास लगाता है, इसे सामाजिक आलस्य कहते हैं।
  • इसे Latane, Williams और Harkins (1979) ने समझाया था।

सामाजिक आलस्य के कारण

1. जिम्मेदारी का प्रसार (Diffusion of Responsibility)

  • समूह में जिम्मेदारी सभी पर बँट जाती है, इसलिए व्यक्तिगत प्रयास कम हो जाता है।

2. पहचान की कमी (Lack of Identifiability)

  • समूह में यह पता नहीं चलता कि कौन कितना काम कर रहा है।

3. दूसरों पर निर्भरता

  • व्यक्ति सोचता है कि अन्य सदस्य कार्य संभाल लेंगे।

4. कार्य में रुचि की कमी

  • उबाऊ या महत्वहीन कार्यों में प्रयास कम हो जाता है।

5. समूह सामंजस्य की कमी

  • कमजोर भावनात्मक संबंधों से प्रयास घटता है।

6. असमान कार्य वितरण

  • अत्यधिक भार होने पर सदस्य प्रयास घटा देता है।

समूह प्रदर्शन पर प्रभाव

  • कार्यक्षमता कम हो जाती है
  • निर्णय क्षमता कमजोर पड़ती है
  • उत्पादकता में कमी
  • संघर्ष बढ़ता है
  • मनोबल टूटता है
  • समूह समन्वय बिगड़ता है

सामाजिक आलस्य को कैसे कम करें?

1. व्यक्तिगत जिम्मेदारी स्पष्ट करें

  • प्रत्येक सदस्य को विशिष्ट कार्य दें।

2. समूह सामंजस्य बढ़ाएँ

  • सहयोग, विश्वास और भावनात्मक संबंध बढ़ाएँ।

3. स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करें

  • लक्ष्य स्पष्ट होने से उत्तरदायित्व बढ़ता है।

4. कार्य को रोचक बनाएँ

  • प्रेरणा बढ़ती है और प्रयास बढ़ जाता है।

5. कार्य का न्यायसंगत वितरण

  • असमानता से बचाव।

6. प्रतिक्रिया और पुरस्कार दें

  • प्रशंसा से प्रयास बढ़ता है।

7. छोटे समूह बनाएँ

  • सदस्य अधिक दिखाई देते हैं, जिम्मेदारी बढ़ती है।

7. अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाएँ (संक्षेप में)

A. अनुरूपता (Conformity)

  • समूह के मानदंडों के अनुरूप आचरण बदलना।

B. अनुनय (Compliance)

  • किसी आग्रह के कारण व्यवहार बदलना।

C. आज्ञापालन (Obedience)

  • अधिकार रखने वाले व्यक्ति के निर्देश मानना।

D. सामाजिक सुगमता (Social Facilitation)

  • दूसरों की उपस्थिति में सरल कार्य बेहतर होना।

E. समूहसोच (Groupthink)

  • सामंजस्य के दबाव में गलत निर्णय लेना।

8. निष्कर्ष (Conclusion)

  • समूह व्यक्ति के व्यवहार, विचार, निर्णय और पहचान को गहराई से प्रभावित करते हैं।
  • लोग सामाजिक, भावनात्मक, व्यावहारिक और पहचान संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समूहों से जुड़ते हैं।
  • समूहों के प्रकार—प्रथमिक–द्वितीयक, औपचारिक–अनौपचारिक, अन्तर्ग्रुप–बहिर्ग्रुप—व्यक्ति के अनुभवों और व्यवहार को अलग ढंग से प्रभावित करते हैं।
  • समूह प्रक्रियाओं जैसे सामंजस्य, मानदंड, भूमिकाएँ, संचार और सामाजिक पहचान के कारण समूह प्रभावी बनते हैं।
  • सामाजिक आलस्य समूह कार्यों में आम समस्या है, जिसे उपयुक्त रणनीतियों से कम किया जा सकता है।
  • कुल मिलाकर समूह मानव जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं, और सामाजिक प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार को आकार देने वाली एक शक्तिशाली प्रक्रिया है।

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