Geography class 11 cbse course A अध्याय 4


भूगोल – कक्षा 11

अध्याय 4 : महासागरों और महाद्वीपों का वितरण


1. परिचय

  • पृथ्वी की सतह पर दो मुख्य घटक पाए जाते हैं—महाद्वीप और महासागर
  • आज जो महाद्वीप और महासागर दिखाई देते हैं, वे पृथ्वी पर शुरू से ऐसे नहीं थे।
  • करोड़ों वर्षों में पृथ्वी की आंतरिक गतियों, प्लेटों की हलचलों और भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं ने वर्तमान स्वरूप बनाया।
  • इस अध्याय में महाद्वीपों के खिसकने (ड्रिफ्ट), समुद्री तल के फैलाव, प्लेट विवर्तनिकी तथा भारतीय प्लेट की गति जैसे विषयों की व्याख्या की गई है।

2. महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

2.1 वर्तमान महाद्वीपीय स्वरूप

  • पृथ्वी पर 7 प्रमुख महाद्वीप हैं—एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, अंटार्कटिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया।
  • महाद्वीप असमान रूप से विभाजित हैं:
    • उत्तरी गोलार्ध में अधिक भूमि (यूरेशिया, उत्तरी अमेरिका)।
    • दक्षिणी गोलार्ध में अधिक महासागर।
  • एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप है; ऑस्ट्रेलिया सबसे छोटा।
  • महाद्वीपों की सीमा महासागरों, पर्वतों, रेगिस्तानों व प्लेट सीमाओं से निर्धारित होती है।

2.2 महासागरों का वितरण

  • पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग महासागरों से ढका हुआ है।
  • पाँच प्रमुख महासागर—प्रशांत, अटलांटिक, हिंद, आर्कटिक और दक्षिणी महासागर।
  • प्रशांत महासागर: सबसे बड़ा व सबसे गहरा; “रिंग ऑफ फायर” यहाँ स्थित है।
  • अटलांटिक महासागर: S-आकार का; यूरोप–अफ्रीका और अमेरिका के बीच।
  • हिंद महासागर: दक्षिणी गोलार्ध में प्रमुख; भारत इसके उत्तरी किनारे पर है।
  • आर्कटिक महासागर: सबसे छोटा और उथला।
  • दक्षिणी महासागर: अंटार्कटिका को घेरे हुए।

3. महाद्वीपीय विचलन (Continental Drift) के समर्थन में प्रमाण

3.1 वेगेनर का महाद्वीपीय विचलन सिद्धांत (1912)

  • अल्फ्रेड वेगेनर ने प्रस्तावित किया कि सभी महाद्वीप एक बार एक विशाल भूखंड पैंजिया के रूप में जुड़े हुए थे।
  • पैंजिया दो हिस्सों में बंटा:
    • लॉरेशिया (उत्तरी भाग)
    • गोंडवाना (दक्षिणी भाग)
  • समय के साथ ये भाग टूटकर वर्तमान महाद्वीप बने।

3.2 प्रमाणों की श्रेणियाँ

वेगेनर ने 4 प्रमुख प्रकार के प्रमाण दिए:

A. भूवैज्ञानिक प्रमाण

  • दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के तटों का “जिगसॉ फिट”।
  • पर्वत श्रृंखलाओं की समानता—
    • उत्तरी अमेरिका की एपलाचियन पर्वतमाला यूरोप की कैलिडोनियन श्रृंखला से मेल खाती है।
  • चट्टानों की आयु, संरचना और क्रम विभिन्न महाद्वीपों पर समान पाए जाते हैं।

B. जैविक प्रमाण

  • समान जीवाश्म अलग-अलग महाद्वीपों पर—
    • मेसोसॉरस के जीवाश्म दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका दोनों पर।
    • ग्लॉसॉप्टेरिस पौधे के जीवाश्म भारत, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और दक्षिणी अमेरिका में पाए जाते हैं।
  • इससे पता चलता है कि ये क्षेत्र कभी जुड़े हुए थे।

C. जलवायवीय प्रमाण

  • अंटार्कटिका में कोयले की परतें—यह दिखाती हैं कि यह क्षेत्र कभी गर्म था।
  • भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया में हिमानी (glacial) अवसाद—ये क्षेत्र पहले दक्षिणी ध्रुव के करीब थे।

D. भौगोलिक प्रमाण

  • महाद्वीपों का आकार-आकृति मानो एक-दूसरे में फिट होते हों।
  • तलछटी संरचनाओं का क्रम महाद्वीपों में समान।

3.3 सिद्धांत की सीमाएँ

  • वेगेनर महाद्वीपों को खिसकाने वाली शक्ति और तंत्र नहीं समझा सके।
  • इसलिए सिद्धांत को लंबे समय तक पूर्ण स्वीकृति नहीं मिली।

4. महाद्वीपीय विचलन के लिए प्रस्तावित बल

वेगेनर ने दो बल बताए, जो बाद में गलत सिद्ध हुए।

4.1 ध्रुव-प्रसरण बल (Pole-Fleeing Force)

  • पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न केन्द्रापसारक बल महाद्वीपों को ध्रुवों से दूर धकेलता है।
  • यह बल बहुत कमजोर था।

4.2 ज्वारीय बल (Tidal Force)

  • सूर्य और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण महाद्वीपों को पश्चिम दिशा में खिसकने वाला माना गया।
  • वैज्ञानिकों ने इसे अवास्तविक माना।

आधुनिक समझ

  • महाद्वीपों की गति का कारण ज्वारीय या घूर्णी बल नहीं, बल्कि मेंटल कन्वेक्शन, सी फ़्लोर स्प्रेडिंग और प्लेट विवर्तनिकी है।

5. ड्रिफ्ट सिद्धांत के बाद के अध्ययन

5.1 समुद्री तल का मानचित्रण

  • 20वीं सदी के मध्य में “इको-साउंडिंग” से पता चला कि समुद्री तल समतल नहीं है।
  • इसमें पाए जाते हैं:
    • मध्य-महासागरीय पर्वतमालाएँ
    • गहरे गर्त (ट्रेंच)
    • ऐबिसल मैदान
    • सी-माउंट और गायट

5.2 ऊष्मा प्रवाह अध्ययन

  • मध्य-महासागरीय रिज पर अधिक ऊष्मा प्रवाह।
  • गर्तों के पास कम ऊष्मा प्रवाह।
  • यह मेंटल के ऊपर उठने और नीचे धंसने का प्रमाण है।

5.3 पैलियोमैग्नेटिज्म

  • चट्टानों में पृथ्वी के पुराने चुंबकीय क्षेत्र का रिकॉर्ड मिलता है।
  • महाद्वीपों की पुरानी स्थितियों और उनकी गति के प्रमाण मिले।
  • चुंबकीय धारियों से समुद्री तल के फैलाव का सिद्धांत पुष्ट हुआ।

6. समुद्री तल का विन्यास (Ocean Floor Configuration)

6.1 मध्य-महासागरीय रिज

  • समुद्र के भीतर लंबी पर्वतमालाएँ।
  • उदाहरण: मिड-अटलांटिक रिज, ईस्ट पैसिफिक राइज़
  • यहाँ नया समुद्री क्रस्ट बनता है।

6.2 गहरे समुद्री गर्त (Trenches)

  • अत्यंत गहरे, संकरे अवसाद।
  • सबडक्शन क्षेत्रों में बनते हैं।
  • मारियाना ट्रेंच सबसे गहरी।

6.3 ऐबिसल मैदान

  • 4000–6000 मीटर गहरे, सपाट क्षेत्र।

6.4 सी-माउंट और गायट

  • सी-माउंट: जलमग्न ज्वालामुखीय पहाड़।
  • गायट: सपाट-चोटी वाले सी-माउंट।

6.5 महाद्वीपीय शेल्फ और ढाल

  • शेल्फ: महाद्वीप के पास उथला समुद्री क्षेत्र।
  • ढाल: शेल्फ से गहरे समुद्र की ओर तेज ढलान।

7. भूकंप और ज्वालामुखियों का वितरण

7.1 भूकंप

  • अधिकतर भूकंप प्लेट सीमाओं पर आते हैं:
    • मध्य-महासागरीय रिज
    • सबडक्शन ज़ोन
    • ट्रांसफॉर्म फॉल्ट (उदा.: सैन एंड्रियास फॉल्ट)

7.2 ज्वालामुखी

  • प्रशांत महासागर का रिंग ऑफ फायर दुनिया की सबसे सक्रिय ज्वालामुखीय पट्टी है।
  • ज्वालामुखी मुख्यतः—
    • डायवर्जेंट सीमा
    • कन्वर्जेंट सीमा
    • हॉटस्पॉट
      पर पाए जाते हैं।

7.3 महत्व

  • इनके वितरण से प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को मजबूती मिलती है।

8. समुद्री तल के फैलाव का सिद्धांत (Sea Floor Spreading)

हैरी हेस (1960s) द्वारा प्रस्तुत।

8.1 मुख्य विचार

  • मध्य-महासागरीय रिज से मैग्मा ऊपर आता है।
  • नया समुद्री क्रस्ट बनता है।
  • पुराना क्रस्ट किनारों की ओर खिसकता है।
  • अंत में क्रस्ट गर्तों में जाकर सबडक्ट हो जाता है।

8.2 प्रमाण

1. चुंबकीय धारियाँ

  • रिज के दोनों ओर चुंबकीय धारियाँ समान और सममित हैं।

2. समुद्री क्रस्ट की आयु

  • रिज पर सबसे नई चट्टानें।
  • किनारों पर पुरानी चट्टानें।

3. तलछट की मोटाई

  • रिज के पास पतली, महाद्वीपीय किनारों पर मोटी।

4. ऊष्मा प्रवाह

  • रिज पर अधिक, गर्तों पर कम।

8.3 महत्व

  • वेगेनर को न समझ आने वाला “गति का तंत्र” यहीं समझ आता है।
  • आधुनिक प्लेट विवर्तनिकी की नींव इसी पर आधारित है।

9. प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics)

9.1 मुख्य अवधारणा

  • पृथ्वी की ऊपरी कठोर परत लिथोस्फीयर कई प्लेटों में टूटी हुई है।
  • प्लेटें अस्थेनोस्फीयर पर तैरती हैं।
  • इन प्लेटों की गति मेंटल कन्वेक्शन, स्लैब पुल और रिज पुश जैसे बलों से होती है।

9.2 प्लेट सीमाओं के प्रकार

A. डायवर्जेंट सीमा (Divergent Boundary)

  • प्लेटें अलग होती हैं।
  • नया क्रस्ट बनता है।
  • उदाहरण: मिड-अटलांटिक रिज।

B. कन्वर्जेंट सीमा (Convergent Boundary)

  • प्लेटें टकराती हैं।
  • तीन प्रकारः
    • महासागरीय–महाद्वीपीय
    • महासागरीय–महासागरीय
    • महाद्वीपीय–महाद्वीपीय
  • हिमालय, जापान, एंडीज इसी के परिणाम।

C. ट्रांसफॉर्म सीमा (Transform Boundary)

  • प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर खिसकती हैं।
  • सैन एंड्रियास फॉल्ट इसका उदाहरण।

9.3 प्लेट गति की शक्तियाँ

  • मेंटल कन्वेक्शन
  • स्लैब पुल
  • रिज पुश

9.4 भूवैज्ञानिक प्रभाव

  • महाद्वीपों का निर्माण
  • ज्वालामुखीय द्वीप
  • पर्वत निर्माण
  • भूकंप
  • खनिज संसाधनों का गठन

10. भारतीय प्लेट की गति (Movement of the Indian Plate)

10.1 भारतीय प्लेट का स्वरूप

  • इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा आसपास का समुद्री भाग शामिल है।

10.2 गोंडवाना से अलगाव

  • लगभग 14 करोड़ वर्ष पहले भारतीय प्लेट गोंडवाना से अलग हुई।
  • यह लंबे समय तक तेजी से (15 सेमी/वर्ष) उत्तर की ओर बढ़ती रही।

10.3 यूरेशियन प्लेट से टक्कर

  • लगभग 4–5 करोड़ वर्ष पहले यह यूरेशियन प्लेट से टकराई।
  • हिमालय पर्वतमाला का निर्माण इसी टक्कर का परिणाम है।
  • आज भी यह टक्कर जारी है (5 सेमी/वर्ष की गति)।

10.4 प्रमुख भूवैज्ञानिक परिणाम

  • हिमालय और तिब्बती पठार की वृद्धि
  • हिंदकुश–कराकोरम क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि
  • हिंद महासागर तल का फैलाव
  • भारतीय उपमहाद्वीप की संरचनात्मक स्थिरता

11. निष्कर्ष

  • महाद्वीपों और महासागरों का वर्तमान स्वरूप बहुत लंबे समय में विकसित हुआ है।
  • वेगेनर ने इस प्रक्रिया की नींव रखी, यद्यपि उनका सिद्धांत अपूर्ण था।
  • समुद्री तल के फैलाव और पैलियोमैग्नेटिज्म ने महाद्वीपों की गति सिद्ध की।
  • प्लेट विवर्तनिकी ने पृथ्वी की गतिशील प्रकृति को वैज्ञानिक रूप से समझाया।
  • भारतीय प्लेट का अध्ययन यह दर्शाता है कि भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ आज भी जारी हैं।
  • इन अध्ययनों से प्राकृतिक आपदाओं, संसाधनों और पृथ्वी के विकास को समझने में मदद मिलती है।

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