अध्याय 1 — द्विध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)
1. सोवियत प्रणाली क्या थी? (What was the Soviet System)
- सोवियत संघ (USSR) की स्थापना 1917 की रूसी क्रांति के बाद हुई, जिसे व्लादिमीर लेनिन ने नेतृत्व दिया।
- इसका लक्ष्य था – सामाजिक समानता, वर्गविहीन समाज और राज्य के स्वामित्व वाली अर्थव्यवस्था।
- सभी उत्पादन साधन जैसे भूमि, उद्योग, खदानें और बैंक – राज्य के नियंत्रण में थे।
- निजी संपत्ति की अनुमति नहीं थी; राज्य ही तय करता था कि क्या उत्पादित होगा और कैसे वितरित होगा।
- केंद्रीय नियोजन (Central Planning) के तहत पाँच वर्षीय योजनाएँ (Five-Year Plans) बनाई जाती थीं।
- इन योजनाओं का उद्देश्य था — औद्योगिकीकरण, शिक्षा का विस्तार, स्वास्थ्य सुविधाएँ, और रोजगार सृजन।
- सोवियत प्रणाली ने गरीबी घटाने और शिक्षा स्तर बढ़ाने में सफलता पाई।
- परंतु, यह प्रणाली राजनीतिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से वंचित थी।
- केवल कम्युनिस्ट पार्टी को राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे; विपक्षी पार्टियाँ प्रतिबंधित थीं।
- समय के साथ यह प्रणाली जड़ और अक्षम होती चली गई, क्योंकि नवाचार और प्रतिस्पर्धा का अभाव था।
2. गोर्बाचेव और विघटन (Gorbachev and the Disintegration)
- मिखाइल गोर्बाचेव 1985 में सोवियत संघ के नेता बने।
- उन्होंने यह महसूस किया कि देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है और जनता असंतुष्ट है।
- गोर्बाचेव ने दो प्रमुख सुधार शुरू किए —
- ग्लासनोस्त (Glasnost) — पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- पेरेस्त्रोइका (Perestroika) — आर्थिक पुनर्गठन और बाज़ार सुधार।
- इन सुधारों का उद्देश्य था – सोवियत प्रणाली को आधुनिक बनाना, न कि उसे समाप्त करना।
- लेकिन, इन सुधारों से राजनीतिक अस्थिरता और अलगाववाद बढ़ गया।
- बाल्टिक देशों (लिथुआनिया, लातविया, एस्तोनिया) और अन्य गणराज्यों ने स्वतंत्रता की माँग शुरू कर दी।
- 1989 में पूर्वी यूरोप के कई देश जैसे पोलैंड, हंगरी और जर्मनी में कम्युनिस्ट शासन गिर गए।
- 1991 में एक कू (Coup Attempt) हुआ, जिसे सेना के कुछ नेताओं ने गोर्बाचेव के खिलाफ चलाया।
- इस कू के असफल होने के बाद, बोरिस येल्तसिन ने रूस को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
- अंततः दिसंबर 1991 में सोवियत संघ का विघटन (Disintegration) हुआ और 15 नए देश अस्तित्व में आए।
3. सोवियत संघ क्यों टूटा? (Why Did the Soviet Union Disintegrate)
- राजनीतिक कारण:
- कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार और जनता की भागीदारी का अभाव।
- लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की कमी।
- आर्थिक कारण:
- केंद्रीय नियोजन व्यवस्था अप्रभावी साबित हुई।
- वस्तुओं की कमी और उत्पादन में गिरावट।
- रक्षा खर्च बहुत अधिक था, जिससे सामाजिक क्षेत्र की उपेक्षा हुई।
- सामाजिक कारण:
- विभिन्न गणराज्यों में राष्ट्रीयता की भावना बढ़ी।
- स्थानीय पहचान और स्वायत्तता की माँग तेज़ हुई।
- बाहरी कारण:
- अमेरिका के साथ शीत युद्ध (Cold War) में अधिक खर्च।
- पश्चिमी देशों से तकनीकी प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना।
- गोर्बाचेव के सुधारों का प्रभाव:
- सुधारों ने नियंत्रण कम किया, जिससे असंतोष खुलकर सामने आया।
- जनसमर्थन की कमी के कारण शासन कमजोर हुआ।
- इन सभी कारणों ने मिलकर USSR के पतन को अनिवार्य बना दिया।
4. झटका उपचार (Shock Therapy) – उत्तर-समाजवादी शासन में (In Post-Communist Regimes)
- ‘शॉक थेरपी’ का अर्थ है – समाजवादी प्रणाली से एक झटके में पूंजीवादी बाजार प्रणाली की ओर संक्रमण।
- रूस और अन्य पूर्व सोवियत गणराज्यों ने 1991 के बाद यह नीति अपनाई।
- इसके अंतर्गत —
- राज्य संपत्तियों का निजीकरण किया गया।
- विदेशी निवेश को आमंत्रित किया गया।
- मूल्य नियंत्रण हटाए गए।
- मुद्रा का अवमूल्यन किया गया।
- उद्देश्य था — आर्थिक दक्षता बढ़ाना और वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ना।
- परंतु परिणाम मिश्रित रहे।
- अल्पकालिक परिणाम:
- बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति में वृद्धि।
- उद्योगों का पतन और गरीबी बढ़ी।
- दीर्घकालिक प्रभाव:
- नई पूंजीपति वर्ग (Oligarchs) का उदय।
- सामाजिक असमानता और भ्रष्टाचार बढ़ा।
- राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी देखी गई।
- पश्चिमी देशों के समर्थन के बावजूद, रूस को 1990 के दशक में गंभीर आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा।
5. झटका उपचार के परिणाम (Consequences of Shock Therapy)
- आर्थिक प्रभाव:
- GDP में तेज़ गिरावट आई।
- मूल्य वृद्धि के कारण जनता की जीवन-स्तर पर असर पड़ा।
- सामाजिक प्रभाव:
- गरीबी और बेरोज़गारी बढ़ी।
- स्वास्थ्य और शिक्षा पर सरकारी खर्च घटा।
- राजनीतिक प्रभाव:
- लोकतांत्रिक संस्थाएँ कमजोर रहीं।
- कुछ देशों में तानाशाही प्रवृत्तियाँ लौट आईं।
- अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
- रूस का वैश्विक प्रभाव घटा, जबकि अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया।
- संयुक्त राष्ट्र, IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में पश्चिमी वर्चस्व बढ़ा।
- सुरक्षा प्रभाव:
- परमाणु हथियारों पर नियंत्रण एक बड़ा मुद्दा बना।
- नाटो (NATO) का विस्तार रूस की सीमाओं तक हुआ।
- इस प्रकार शॉक थेरपी ने लोकतंत्र और विकास दोनों को चुनौती दी।
6. तनाव और संघर्ष (Tensions and Conflicts)
- सोवियत संघ के टूटने के बाद, कई नए राष्ट्रों में सीमाई विवाद और जातीय संघर्ष शुरू हुए।
- चेचन्या, जॉर्जिया, यूक्रेन और बाल्कन क्षेत्र में हिंसा फैली।
- रूस ने अपने प्रभाव क्षेत्र को बनाए रखने की कोशिश की।
- कुछ देशों ने नाटो और यूरोपीय संघ (EU) में शामिल होकर पश्चिम का साथ दिया।
- रूस और पश्चिम के बीच विश्वास की कमी और भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
- परमाणु हथियारों और ऊर्जा संसाधनों पर नियंत्रण भी विवाद का कारण बना।
- आज भी यह क्षेत्र राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा संकट से जूझ रहा है।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
- द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Bipolar World Order), जो अमेरिका और सोवियत संघ के बीच थी, 1991 के बाद समाप्त हो गई।
- इसके स्थान पर एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Unipolar World Order) का उदय हुआ, जिसमें अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हुआ।
- रूस ने अपनी पहचान फिर से स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- शीत युद्ध का अंत विश्व राजनीति में नए अवसरों और जोखिमों दोनों का प्रतीक बना।
- लोकतंत्र, वैश्वीकरण और पूंजीवाद की नई लहर आई, परंतु असमानता और अस्थिरता भी बढ़ी।
- अंततः, “द्विध्रुवीयता का अंत” केवल एक युग का अंत नहीं था, बल्कि नए विश्व क्रम (New World Order) की शुरुआत थी।
🟢 विशेष बिंदु (Highlights):
- USSR = Union of Soviet Socialist Republics
- 1991 = विघटन का वर्ष
- गोर्बाचेव की नीतियाँ — ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका
- शॉक थेरपी = बाज़ार आधारित सुधारों का झटका
- परिणाम — आर्थिक असमानता, राजनीतिक अस्थिरता, वैश्विक शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
