आर्थिक सुधार 1991 के बाद – उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण – class 11 Economics

आर्थिक सुधार 1991 के बाद – उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण

आर्थिक सुधार 1991 के बाद — उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण

परिचय (Introduction)

  • भारत ने 1991 में अपने आर्थिक तंत्र में व्यापक सुधारों की शुरुआत की।
  • इन सुधारों का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की प्रतिस्पर्धात्मक प्रणाली से जोड़ना था।
  • इन सुधारों को सामूहिक रूप से एल.पी.जी. नीति कहा जाता है — अर्थात् उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation), और वैश्वीकरण (Globalisation)
  • यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजित और नियंत्रित ढांचे से बाजार-उन्मुख प्रणाली की ओर परिवर्तन का संकेत था।

पृष्ठभूमि (Background)

  • 1990 के दशक की शुरुआत में भारत गंभीर भुगतान संतुलन संकट (Balance of Payments Crisis) से गुज़र रहा था।
  • देश के विदेशी मुद्रा भंडार केवल कुछ सप्ताह के आयात के लिए ही पर्याप्त थे।
  • सरकारी घाटा बढ़ गया था, और राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) 8% से अधिक हो चुका था।
  • विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण प्राप्त करने के लिए भारत को आर्थिक सुधार लागू करने पड़े।
  • प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंहा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इस सुधार प्रक्रिया की शुरुआत की।

उदारीकरण (Liberalisation)

  • उदारीकरण का अर्थ है सरकार द्वारा लगाए गए नियंत्रणों और प्रतिबंधों को कम करना
  • इसका उद्देश्य था निजी क्षेत्र को अधिक स्वतंत्रता देना और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
  • उदारीकरण के प्रमुख पहलू निम्नलिखित थे:
    • औद्योगिक नीति में सुधार: लाइसेंस राज समाप्त किया गया; केवल कुछ संवेदनशील उद्योगों में लाइसेंस आवश्यक रहा।
    • विदेशी निवेश नीति में परिवर्तन: 51% तक विदेशी इक्विटी की अनुमति दी गई, बाद में कई क्षेत्रों में 100% तक।
    • व्यापार नीति में सुधार: आयात शुल्क घटाए गए, कोटा हटाया गया और निर्यात को प्रोत्साहित किया गया।
    • वित्तीय क्षेत्र सुधार: बैंकों पर नियंत्रण घटाया गया, आरबीआई की भूमिका नियामक के रूप में सीमित की गई।
    • पूंजी बाजार सुधार: SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की स्थापना निवेशकों की सुरक्षा हेतु की गई।

निजीकरण (Privatisation)

  • निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में सरकारी स्वामित्व को घटाना और निजी क्षेत्र को भागीदारी का अवसर देना।
  • इसका उद्देश्य था उत्पादकता बढ़ाना, कार्यकुशलता में सुधार लाना और प्रतिस्पर्धा स्थापित करना।
  • निजीकरण के तरीके:
    • डिसइन्वेस्टमेंट (Disinvestment): सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी को धीरे-धीरे बेचना शुरू किया।
    • प्रबंधन नियंत्रण हस्तांतरण: कई सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को निजी प्रबंधन को सौंपा गया।
    • पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP): सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त उपक्रमों को बढ़ावा दिया गया।
  • इससे सरकारी बोझ कम हुआ और निजी निवेश को प्रोत्साहन मिला।

वैश्वीकरण (Globalisation)

  • वैश्वीकरण का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ना।
  • इसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, और तकनीक का अंतरराष्ट्रीय प्रवाह शामिल है।
  • मुख्य कदम:
    • विदेशी व्यापार और निवेश नीतियों को उदार बनाना।
    • विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य के रूप में भारत की सक्रिय भूमिका।
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) के निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • निर्यात क्षेत्र में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) की स्थापना।
  • परिणामस्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनी।

आर्थिक सुधारों के प्रभाव (Impact of Economic Reforms)

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
    • निजी निवेश और विदेशी निवेश में वृद्धि।
    • सेवा क्षेत्र विशेषकर आईटी और टेलीकॉम में तीव्र प्रगति।
    • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • गरीबी और असमानता में वृद्धि।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति धीमी रही।
    • विदेशी निवेश पर अत्यधिक निर्भरता।
    • लघु उद्योगों को प्रतिस्पर्धा में नुकसान।

भारत की अर्थव्यवस्था: सुधारों के दौरान मूल्यांकन (Indian Economy During Reforms)

  • भारत का GDP 1991 के बाद लगातार बढ़ा और सेवा क्षेत्र ने प्रमुख योगदान दिया।
  • औद्योगिक क्षेत्र में सुधार हुआ, परंतु कृषि क्षेत्र अपेक्षाकृत कमजोर रहा।
  • वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र अधिक कुशल बना।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • निर्यात विविधीकृत हुआ और तकनीकी उत्पादों में बढ़ोतरी हुई।

सीमाएँ और चुनौतियाँ (Limitations and Challenges)

  • रोज़गार सृजन अपेक्षानुसार नहीं हुआ।
  • असमान क्षेत्रीय विकास की समस्या बनी रही।
  • कृषि क्षेत्र में निवेश और नवाचार की कमी।
  • गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या में कमी की गति धीमी रही।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण कई घरेलू उद्योग बंद हो गए।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • 1991 के सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी।
  • भारत आज विश्व की पाँच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।
  • हालाँकि, विकास की गति के साथ सामाजिक समानता और स्थिरता सुनिश्चित करना अभी भी चुनौती है।
  • आवश्यक है कि भविष्य के सुधारों में समावेशी विकास (Inclusive Growth) पर विशेष ध्यान दिया जाए।

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