भारतीय अर्थव्यवस्था (1950–1990) — अध्ययन नोट्स chapter 2- class 11 Economics

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950–1990 – विस्तृत नोट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950–1990 – विस्तृत नोट्स

1. प्रस्तावना

  • स्वतंत्रता के बाद भारत ने एक ऐसी आर्थिक प्रणाली अपनाई जो समाजवाद और पूंजीवाद के सर्वोत्तम तत्वों को मिलाती थी।
  • इस मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल (Mixed Economy Model) के तहत सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों की भूमिका सुनिश्चित की गई।
  • इस समयावधि में अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ: कृषि प्रधान संरचना, बढ़ती औद्योगिक गतिविधियाँ, और आय के विभिन्न स्त्रोत।
  • भारत में आर्थिक योजना 5-वर्षीय योजनाओं (Five-Year Plans) के माध्यम से संचालित की गई।

2. आर्थिक प्रणालियों के प्रकार

  • परंपरागत अर्थव्यवस्था: उत्पादन और वितरण पारंपरिक रीति-रिवाजों पर आधारित।
  • आर्थिक स्वतंत्रता (Market Economy): उत्पादन, मूल्य निर्धारण और वितरण बाजार के बलों (मांग और आपूर्ति) द्वारा नियंत्रित।
  • केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था (Planned Economy): उत्पादन, निवेश और मूल्य केंद्रीय सरकार द्वारा नियंत्रित।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था: भारत ने स्वतंत्रता के बाद यही अपनाई; इसमें बाजार और सरकारी हस्तक्षेप दोनों शामिल।

3. पाँच वर्षीय योजनाओं के उद्देश्य

  • विकास (Growth): राष्ट्रीय उत्पादन और आय में वृद्धि।
  • आधुनिकीकरण (Modernisation): उद्योगों और कृषि में नई तकनीक और आधुनिक साधनों का उपयोग।
  • आत्मनिर्भरता (Self-Sufficiency): खाद्य और अन्य आवश्यक वस्तुओं में आत्मनिर्भरता।
  • समानता (Equity): समाज के सभी वर्गों को विकास का लाभ।

4. कृषि क्षेत्र

  • मुख्य नीतिगत पहलें: भूमि सुधार (Land Reforms) और हरित क्रांति (Green Revolution)।
  • हरित क्रांति के तहत उच्च उपज वाली फसलें, सिंचाई सुविधाएँ और उर्वरक का उपयोग बढ़ाया गया।
  • इन पहलों ने भारत को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में मदद की।
  • हालांकि, कृषि पर निर्भर जनसंख्या की अनुपात अपेक्षित रूप से कम नहीं हुआ।

5. उद्योग और व्यापार

  • औद्योगिक विकास में सरकारी और निजी क्षेत्रों दोनों की भूमिका।
  • 1956 की औद्योगिक नीति (Industrial Policy Resolution 1956) ने सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता दी, जबकि निजी क्षेत्र सीमित क्षेत्रों में संचालित हुआ।
  • उद्योगों के लिए आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution) नीति अपनाई गई, जिससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में कई इकाइयों की अक्षमता और घाटे ने राष्ट्रीय संसाधनों पर दबाव डाला।

6. मूल्य संकेतक (Prices as Signals)

  • मूल्य संकेतक के रूप में काम करते हैं, यह बताते हैं कि किन वस्तुओं की अधिक मांग है और किनकी कम।
  • कृषि और औद्योगिक उत्पादों के लिए सही मूल्य नीति सुनिश्चित करना आवश्यक था ताकि उत्पादन और वितरण संतुलित रहे।
  • मूल्य नीति की असंगति कभी-कभी आपूर्ति और मांग के बीच असंतुलन पैदा करती थी।

7. भारतीय औद्योगिक नीति और सार्वजनिक/निजी क्षेत्र

  • औद्योगिक नीति 1956 ने रणनीतिक उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन रखा।
  • निजी क्षेत्र को सीमित उपभोग और गैर-संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश की अनुमति दी गई।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख लाभ: बुनियादी ढांचे का विकास और बड़े पैमाने पर रोजगार।
  • मुख्य दोष: कई सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ घाटे में चली गईं और संसाधनों की बर्बादी हुई।

8. आयात प्रतिस्थापन और व्यापार नीति

  • उद्योगों में आयात प्रतिस्थापन नीति अपनाई गई, ताकि विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम हो।
  • घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कस्टम ड्यूटी और व्यापार प्रतिबंध लगाए गए।
  • इस नीति का परिणाम था: घरेलू उद्योगों में निवेश और उत्पादन का विस्तार।
  • हालांकि, इससे प्रतिस्पर्धा कम हुई और कुछ क्षेत्रों में उत्पादकता में कमी आई।

9. आर्थिक निष्कर्ष और पुनरावलोकन

  • स्वतंत्रता के बाद भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई।
  • सभी आर्थिक योजनाएँ पाँच वर्षीय योजनाओं के माध्यम से लागू की गईं।
  • पाँच वर्षीय योजनाओं के सामान्य उद्देश्य: विकास, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता।
  • कृषि क्षेत्र में प्रमुख पहलें: भूमि सुधार और हरित क्रांति।
  • औद्योगिक क्षेत्र में आयात प्रतिस्थापन नीति ने योगदान बढ़ाया, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमता एक बड़ी समस्या रही।
  • भारत ने 1950–1990 के बीच आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए मिश्रित नीति अपनाई।

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