History class 12 CBSE course B अध्याय 4

🌾 अध्याय 4 — कृषक, जमींदार और राज्य : मुगल साम्राज्य में कृषि समाज (16वीं–17वीं शताब्दी)


🌾 1. परिचय : मुगल भारत में कृषि जीवन

  • मुगल काल (16वीं–17वीं शताब्दी) का भारत मुख्यतः कृषि प्रधान समाज था।
  • लगभग 85% जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी और कृषि पर निर्भर थी।
  • भूमि ही राजस्व, शक्ति और प्रतिष्ठा का मुख्य स्रोत थी।
  • राज्य, जमींदार और कृषक—इन तीनों के बीच संबंधों पर ही मुगल प्रशासन टिका था।
  • अकबर के शासनकाल (1556–1605) में अबुल फ़ज़ल ने ‘आईन-ए-अकबरी’ में कृषि जीवन का सबसे विस्तृत विवरण दिया।

🌾 2. कृषक और कृषि उत्पादन

(क) किसानों के प्रकार

  • ख़ुद-कश्ता (Khud-Kashta): अपने गाँव में बसकर अपनी भूमि जोतने वाले किसान।
  • पहि-कश्ता (Pahi-Kashta): दूसरे गाँवों या क्षेत्रों से आकर अस्थायी रूप से खेती करने वाले।
  • बटाईदार / हिस्सेदार किसान: फसल या नकद के रूप में जमींदार को हिस्सा देते थे।

(ख) कृषि तकनीक

  • लोहे के हल, बैलों द्वारा चलने वाले फारसी पहिए (Persian Wheel) तथा नहरों का प्रयोग।
  • प्रमुख फसलें: गेहूँ, जौ, धान, बाजरा, दालें, गन्ना, कपास, नील।
  • कुछ उपजाऊ क्षेत्रों में दोहरी खेती (Double Cropping) प्रचलित थी।
  • यूरोपियों के आगमन से तंबाकू, मक्का, मिर्च जैसी नई फसलें आईं।

(ग) सिंचाई और जल प्रबंधन

  • वर्षा, कुओं, तालाबों और नहरों पर निर्भरता।
  • राज्य और स्थानीय समुदाय मिलकर सिंचाई प्रणाली का रख-रखाव करते थे।

(घ) भूमि स्वामित्व और कर व्यवस्था

  • भूमि पर सम्राट का सर्वोच्च अधिकार था, किंतु किसानों के पास जोतने का वंशानुगत अधिकार होता था।
  • किसानों से भूमि कर (माल) लिया जाता था, जो आमिल और क़ानूंगो जैसे अधिकारी वसूलते थे।
  • कर की दर भूमि की माप (जाब्त प्रणाली) और उपज के आधार पर तय होती थी।

(ङ) किसानों का प्रतिरोध

  • अत्यधिक कर के कारण किसान गाँव छोड़ देते, हड़ताल करते या विद्रोह करते थे।
  • जैसे — जाट, सतनामी और देवगिरी के विद्रोह
  • यह राज्य के प्रति असंतोष और शोषण के विरुद्ध संघर्ष था।

🌾 3. ग्राम समुदाय

(क) ग्राम संरचना

  • गाँव आत्मनिर्भर इकाइयाँ थीं — कृषक, कारीगर, सेवक वर्ग आदि।
  • प्रत्येक गाँव में पंचायत और सामुदायिक धार्मिक स्थल (मंदिर या मस्जिद) होते थे।
  • भूमि का विभाजन: खेती योग्य, परती, चरागाह और वनभूमि।

(ख) ग्राम अधिकारी

  • मुखिया (मुखद्दम): खेती और कर वसूली का संचालन।
  • पटवारी: भूमि रजिस्टर और अभिलेख रखता था।
  • क़ानूंगो: कर निर्धारण का सत्यापन करता था।
  • जमींदार: राज्य और किसानों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता था।

(ग) पंचायत की भूमिका

  • विवाद निपटाना, सामाजिक अनुशासन बनाए रखना, सार्वजनिक कार्यों का संचालन।
  • धार्मिक उत्सवों और रक्षात्मक कार्यों हेतु धन एकत्र करना।
  • ग्राम का राज्य प्रशासन से प्रतिनिधित्व करना।

(घ) जाति और सामाजिक संरचना

  • गाँवों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि जाति-आधारित वर्ग बने रहते थे।
  • उच्च जातियों के पास अधिक भूमि, जबकि निचले वर्ग खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे।
  • पंजाब, बंगाल जैसे क्षेत्रों में जातिगत कठोरता अपेक्षाकृत कम थी।

(ङ) ग्रामीण बाज़ार

  • हाट (साप्ताहिक बाजार) में अनाज, कपड़ा, पशु, नमक की अदला-बदली होती थी।
  • मेला (वार्षिक उत्सव) व्यापार और धार्मिक आयोजन दोनों का केंद्र था।

🌾 4. कृषि समाज में महिलाएँ

(क) उत्पादन में भूमिका

  • महिलाएँ बुवाई, निराई, झाड़ाई, अनाज साफ करने, कपड़ा बुनने आदि में सहयोग करती थीं।
  • उनका श्रम परिवार की अर्थव्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा था, परंतु सामाजिक मान्यता कम।

(ख) संपत्ति अधिकार

  • रीतियों और प्रथाओं के अनुसार कुछ क्षेत्रों में महिलाओं को भूमि का हिस्सा मिलता था।
  • इस्लामी कानून (शरीअत) में बेटियों और पत्नियों को हिस्सा निर्धारित था, पर व्यवहार में कम।

(ग) विवाह और दहेज

  • विवाह जाति और वर्ग के भीतर; दहेज का चलन ऊँची जातियों में।
  • गरीब वर्गों में कन्या मूल्य (Bride Price) भी प्रचलित था।

(घ) नैतिक अनुशासन

  • पंचायतें स्त्रियों के आचरण पर नियंत्रण रखती थीं।
  • विधवाओं को कठोर सामाजिक प्रतिबंध झेलने पड़ते थे।
  • कुछ क्षेत्रों में सती प्रथा भी देखी जाती थी, यद्यपि सीमित और प्रतिष्ठा-आधारित थी।

🌾 5. वन और जनजातियाँ

(क) भौगोलिक वितरण

  • मध्य भारत, असम, बंगाल, दक्कन और हिमालयी क्षेत्रों में विशाल वन थे जहाँ जनजातियाँ रहती थीं।

(ख) जनजातीय अर्थव्यवस्था

  • शिकार, झूम खेती (स्थानांतरणीय कृषि), लकड़ी, शहद, मोम, फल-संग्रह मुख्य व्यवसाय थे।
  • कृषि समाज से विनिमय (बार्टर) के रूप में संबंध – अनाज के बदले जंगल उत्पाद।

(ग) जनजातीय सरदार

  • सरदार या राजा अपने क्षेत्र पर नियंत्रण रखते और कर वसूलते थे।
  • धीरे-धीरे कई जनजातियाँ खेती या सैनिक सेवा में शामिल होकर मुख्यधारा समाज में समाहित हुईं।

(घ) राज्य का वन नियंत्रण

  • मुगल राज्य ने वनों को कृषि योग्य बनाने का प्रयास किया।
  • वनों की सफाई अभियान से खेती का क्षेत्र बढ़ा, पर जनजातियाँ विस्थापित हुईं।
  • भील, गोंड, संथाल जैसे जनजातीय समूहों ने कई बार विरोध किया।

(ङ) सांस्कृतिक समन्वय

  • जनजातीय देवी-देवताओं को हिंदू धर्म में समाहित किया गया।
  • सूफी संतों ने भी जनजातीय समाज को प्रभावित किया।

🌾 6. जमींदार : राज्य और किसानों के मध्यस्थ

(क) जमींदार कौन थे?

  • वे स्थानीय भू-स्वामी या सामंती सरदार थे जो राज्य के लिए राजस्व वसूली करते थे।
  • कुछ वंशानुगत (स्वायत्त) तो कुछ राज्य द्वारा नियुक्त।

(ख) जमींदारों के प्रकार

  • स्वायत्त जमींदार: बड़े भू-भाग के स्वामी, अपने सैनिक रखते थे।
  • मध्यस्थ जमींदार: मुगल अधिकारियों के अधीन छोटे क्षेत्रों के प्रबंधक।

(ग) मुख्य कार्य

  • भूमि कर वसूलना और शाही ख़ज़ाने में जमा करना।
  • क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखना।
  • धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों (मंदिर, मस्जिद, तालाब) का संरक्षण।

(घ) विशेषाधिकार

  • नंकर (कर-मुक्त भूमि) का अधिकार और राजस्व का हिस्सा (लगभग 10%)।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा, सैन्य शक्ति और आर्थिक प्रभुत्व।

(ङ) संघर्ष

  • कुछ जमींदार किसानों पर अतिरिक्त कर लगाते थे।
  • कई बार राज्य अधिकारियों से टकराव हुआ।
  • जाट विद्रोह (1669–1672) जैसे आंदोलन इन्हीं तनावों का परिणाम थे।

🌾 7. चाँदी का प्रवाह और मौद्रिक अर्थव्यवस्था

(क) चाँदी का आगमन

  • 16वीं–17वीं शताब्दी में यूरोप, जापान और नई दुनिया से चाँदी की भारी मात्रा भारत आई।
  • पुर्तगाली, डच और अंग्रेज व्यापारी भारत से वस्त्र, मसाले, नील खरीदने हेतु चाँदी लाए।

(ख) अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • मुद्रा का प्रचलन बढ़ा; लेन-देन नकद रूप में होने लगे।
  • राजस्व भुगतान भी चाँदी में होने लगा।
  • आगरा, लाहौर, अहमदाबाद, मछलीपट्टनम जैसे नगर व्यापार केंद्र बने।

(ग) वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ाव

  • भारत विश्व व्यापार नेटवर्क का हिस्सा बना; निर्यात वस्त्र, नील, सल्फर आदि का।
  • अमेरिका से आई चाँदी अप्रत्यक्ष रूप से मुगल अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी।

(घ) चुनौतियाँ

  • अलग-अलग क्षेत्रों में सिक्कों की शुद्धता भिन्न होने से कठिनाइयाँ।
  • कीमतों में वृद्धि से छोटे किसान प्रभावित हुए।

🌾 8. अबुल फ़ज़ल का आईन-ए-अकबरी

(क) ग्रंथ का स्वरूप

  • आईन-ए-अकबरी फारसी भाषा में लिखा गया एक विस्तृत प्रशासनिक दस्तावेज़ (1590 के दशक)।
  • यह ‘अकबरनामा’ का तीसरा भाग है, जिसे अबुल फ़ज़ल ने लिखा।

(ख) संरचना

  • पहला भाग: शाही दरबार और प्रशासन का विवरण।
  • दूसरा भाग: सेना, वेतन और अधिकारियों की सूची।
  • तीसरा भाग (आईन-ए-अकबरी): संपूर्ण साम्राज्य का सांख्यिक विवरण — जिलों की उपज, कर, मूल्य, जाति प्रथाएँ आदि।

(ग) कृषि संबंधी जानकारी

  • विभिन्न क्षेत्रों की फसलें, सिंचाई प्रणाली और कर दरें।
  • भूमि की उपजाऊपन के अनुसार वर्गीकरण — पोलज, परौती, चाचर, बंजर
  • रबी, खरीफ, जायद फसलों का विवरण।

(घ) महत्त्व

  • भारत का पहला विस्तृत आर्थिक सर्वेक्षण
  • राज्य द्वारा राजस्व व्यवस्था को वैज्ञानिक बनाने का प्रयास।
  • मुगल काल के कृषि जीवन को समझने का प्रमुख स्रोत।

(ङ) सीमाएँ

  • यह मुख्यतः राजकीय दृष्टिकोण से लिखा गया था।
  • किसानों की कठिनाइयों और स्थानीय विविधताओं का सीमित वर्णन।

🌾 9. मुगल राज्य और कृषि संबंध

(क) अकबर की राजस्व व्यवस्था

  • टोडरमल की बंदोबस्त प्रणाली (1580): भूमि की माप और फसल आधारित कर निर्धारण।
  • जाब्त प्रणाली – औसत उपज का एक-तिहाई भाग राज्य को।
  • नकद या अन्न दोनों रूपों में कर वसूला जाता था।

(ख) मुख्य अधिकारी

  • आमिल-गुज़ार: ज़िले का राजस्व अधिकारी।
  • क़ानूंगो: रजिस्टर रखता और जानकारी सत्यापित करता।
  • करोरी: राजस्व की जाँच-पड़ताल करता।

(ग) मंसबदारी और जागीरदारी प्रणाली

  • मंसबदार: सम्राट द्वारा नियुक्त रैंक-धारी अधिकारी।
  • इन्हें वेतन के रूप में जागीर (राजस्व क्षेत्र) दी जाती थी।
  • जागीरों का समय-समय पर स्थानांतरण ताकि स्वायत्तता न बढ़े।

(घ) राज्य और स्थानीय शक्ति का संतुलन

  • राज्य, जमींदार और किसानों के सहयोग पर निर्भर था।
  • अत्यधिक कर से उत्पादन घट जाता, इसलिए न्याय और दया (अदल) पर बल दिया गया।

🌾 10. इतिहासकारों के प्रश्न

  • क्या राजस्व अभिलेख विश्वसनीय हैं?
    → ये प्रशासनिक आदर्श दिखाते हैं, वास्तविकता नहीं।
  • क्या किसान निष्क्रिय थे?
    → नहीं, वे पलायन, सौदेबाज़ी और विद्रोह के माध्यम से सक्रिय थे।
  • क्या मुगल कृषि व्यवस्था स्थिर थी?
    → नहीं, यह गतिशील थी — जलवायु, बाज़ार और राजनीतिक बदलावों के अनुसार।
  • क्या 17वीं सदी के बाद पतन हुआ?
    → हाँ, क्षेत्रीय विखंडन, कर बोझ और चाँदी प्रवाह घटने से गिरावट आई।

🌾 11. निष्कर्ष

  • मुगल कृषि व्यवस्था किसानों, जमींदारों और राज्य के जटिल संबंधों पर आधारित थी।
  • किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे; जमींदार राज्य और जनता के बीच सेतु।
  • अकबर के समय में संगठित और न्यायसंगत राजस्व प्रणाली ने स्थायित्व दिया।
  • परंतु सामाजिक विषमता, अधिक कर और पारिस्थितिक सीमाएँ तनाव का कारण बनीं।
  • इसके बावजूद मुगल भारत उस समय की सबसे समृद्ध कृषि-व्यापारिक अर्थव्यवस्था था।


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