कक्षा 9 दो बैलों की कथा – संपूर्ण सारांश

दो बैलों की कथा – संपूर्ण सारांश

प्रेमचंद की अमर रचनाओं में से एक है “दो बैलों की कथा”। यह कहानी केवल बैलों के जीवन पर आधारित नहीं है, बल्कि इसमें मनुष्य जीवन की गहरी सच्चाइयों, आत्मसम्मान, निष्ठा, मित्रता और स्वतंत्रता जैसे जीवन-मूल्यों का चित्रण किया गया है। लेखक ने दो बैलों – हीरा और मोती – के माध्यम से समाज को यह संदेश दिया है कि चाहे इंसान हो या पशु, हर प्राणी अपने सम्मान और स्वतंत्रता का हकदार है।

झूरी और उसके बैल

कहानी की शुरुआत झूरी नामक किसान से होती है। झूरी एक दयालु और कर्मठ किसान था। उसके पास दो बैल थे – हीरा और मोती। झूरी उनसे केवल काम नहीं लेता था, बल्कि उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानता था। बैलों के प्रति उसका स्नेह देखकर लगता था मानो वह अपने बच्चों से भी अधिक उन्हें प्यार करता हो।

हीरा और मोती का स्वभाव अलग-अलग था। हीरा गंभीर, कठोर और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाला था। वह अपमान सहन नहीं कर सकता था। वहीं मोती कोमल स्वभाव का, सहनशील और दयालु था। दोनों में गहरी मित्रता थी और वे अपने मालिक झूरी के प्रति पूरी तरह वफ़ादार थे।

बैलों का नया अनुभव

कहानी में मोड़ तब आता है जब झूरी की साली अपने मायके आती है। उसे खेती-बाड़ी के काम के लिए अच्छे बैलों की जरूरत थी। उसने झूरी से बैलों की मांग की और झूरी मजबूरी में हीरा और मोती को अपनी साली के घर भेज देता है।

बैल अपने असली मालिक से बहुत जुड़े हुए थे, इसलिए वे वहाँ जाना नहीं चाहते थे, लेकिन विवश होकर जाना पड़ा। वहाँ पहुँचकर उनका अनुभव बेहद कष्टकारी साबित हुआ। उनसे दिन-रात कठिन परिश्रम कराया गया, लेकिन उनके खाने-पीने और आराम की बिल्कुल परवाह नहीं की गई।

अन्याय के खिलाफ विद्रोह

शुरुआत में दोनों बैल सबकुछ सहते रहे। मोती तो अपने स्वभाव के कारण ज्यादा कुछ नहीं कहता था, लेकिन हीरा यह सब सहन नहीं कर पा रहा था। उसने मोती से कहा कि यह अपमान है और हमें इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए। मोती ने पहले तो हीरा को समझाने की कोशिश की कि धैर्य रखो, पर जब अन्याय और बढ़ा तो उसे भी महसूस हुआ कि चुप रहना गलत है।

एक दिन खेत जोतते समय दोनों ने काम करने से इंकार कर दिया। उन्होंने हल तोड़ डाला और वहीं खेत में बैठ गए। यह उनका विद्रोह था। वे यह जताना चाहते थे कि मेहनत करना उन्हें मंजूर है, लेकिन अपमान और अन्याय किसी भी हालत में स्वीकार नहीं।

घर लौटने की यात्रा

रात को उन्होंने अपने बंधन तोड़ दिए और अपने असली मालिक झूरी के पास लौटने का निश्चय किया। यह सफर आसान नहीं था। रास्ते में उन्हें भूख-प्यास से जूझना पड़ा। कई बार लोगों ने उन्हें पकड़कर गाड़ी खींचने या बेचने की कोशिश की। एक बार तो वे कांजीहौस (पशुशाला) में भी बंद कर दिए गए। वहाँ का माहौल बेहद कठोर था।

लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया। एक दयालु लड़की ने उनकी मदद की और वे वहाँ से निकल भागे। इस पूरी यात्रा में उनकी आपसी दोस्ती और निष्ठा ही उनकी ताकत बनी रही।

साहस और एकता की मिसाल

रास्ते में कई कठिनाइयाँ आईं। कभी वे थककर गिर जाते, तो एक-दूसरे का सहारा बनकर उठ खड़े होते। एक बार एक आक्रामक साँड ने उन पर हमला कर दिया। उस समय हीरा और मोती ने मिलकर अपनी शक्ति और साहस से उसका मुकाबला किया और उसे हरा दिया। यह घटना उनके साहस, एकता और आत्मसम्मान की मिसाल थी।

वापसी और सुखद अंत

आखिरकार, अनेक कठिनाइयों और संघर्षों से गुजरते हुए दोनों अपने असली मालिक झूरी के घर पहुँच गए। उन्हें देखते ही झूरी और उसका परिवार खुशी से भर उठा। झूरी ने उनके शरीर पर पड़े घाव देखकर दुख प्रकट किया और उन्हें प्यार से सहलाया। बैलों के चेहरे पर भी संतोष और शांति झलक रही थी कि वे आखिरकार अपने घर लौट आए हैं।

कहानी का संदेश

यह कहानी केवल दो बैलों की यात्रा नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहरे मूल्यों का प्रतीक है। यह बताती है कि :

  • मेहनत करना श्रेष्ठ है, लेकिन अपमान सहना कमजोरी है।
  • आत्मसम्मान हर जीव के लिए जरूरी है।
  • अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सही है।
  • मित्रता, निष्ठा और एकता से बड़ी से बड़ी कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।
  • चाहे पशु हों या मनुष्य, हर कोई स्वतंत्रता और सम्मान का हकदार है।

निष्कर्ष

“दो बैलों की कथा” प्रेमचंद की ऐसी कहानी है जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी लिखे जाने के समय थी। यह हमें सिखाती है कि वफ़ादारी और परिश्रम तभी सार्थक हैं जब उनमें आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का अधिकार जुड़ा हो। हीरा और मोती की यह यात्रा इस बात का प्रतीक है कि अंततः सच्चाई, निष्ठा और आत्मसम्मान की ही जीत होती है।


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