🏰 नमूना प्रश्न पत्र (CBSE बोर्ड पैटर्न)
कक्षा – 12 : इतिहास (Course B)
अध्याय – किसान, ज़मींदार और राज्य
समय : 3 घंटे | अधिकतम अंक : 80
(कॉपीराइट मुक्त – केवल शैक्षिक उपयोग के लिए)
🧾 सामान्य निर्देश :
- सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
- उत्तर शब्द सीमा के अनुसार लिखें।
- अपने उत्तरों को ऐतिहासिक तथ्यों और उदाहरणों से स्पष्ट करें।
खंड – A : अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 × 4 = 4 अंक)
(प्रत्येक प्रश्न के उत्तर 30–40 शब्दों में दें)
प्र1. आइने-अकबरी किसने लिखी और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है?
उत्तर:
- आइने-अकबरी का लेखन अबुल फ़ज़ल ने अकबर के शासनकाल में किया था।
- यह अकबरनामा का तीसरा भाग है और इसमें मुगल साम्राज्य के प्रशासन, राजस्व व्यवस्था, कृषि, समाज और अर्थव्यवस्था का विस्तृत विवरण मिलता है।
प्र2. ख़ुदकश्ता और पहिकश्ता किसानों में क्या अंतर था?
उत्तर:
- ख़ुदकश्ता: जो किसान अपने ही गाँव में स्थायी रूप से रहकर खेती करते थे।
- पहिकश्ता: जो किसान दूसरे गाँवों या क्षेत्रों में अस्थायी रूप से खेती करने जाते थे।
प्र3. मुगल काल में प्रमुख फसलें कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
- खाद्य फसलें: चावल, गेहूँ, जौ, बाजरा, और दालें।
- नगदी फसलें: कपास, गन्ना, नील, और अफीम।
- नई फसलें: तंबाकू, मक्का, और मिर्च 16वीं शताब्दी के बाद आईं।
प्र4. ज़मींदार कौन थे और मुगल प्रशासन में उनकी क्या भूमिका थी?
उत्तर:
- ज़मींदार स्थानीय भूमि धारक या मध्यस्थ होते थे जो किसानों से लगान वसूलकर राज्य को देते थे।
- वे कानून व्यवस्था बनाए रखते, सिंचाई कार्य करवाते और ग्रामीण जनजीवन के प्रतिनिधि होते थे।
खंड – B : लघु उत्तरीय प्रश्न (3 × 4 = 12 अंक)
(प्रत्येक प्रश्न के उत्तर 100–120 शब्दों में दें)
प्र5. मुगल काल में गाँव समुदाय की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- गाँव स्वायत्त इकाई थे जिनमें किसान, कारीगर और मज़दूर रहते थे।
- गाँव का प्रमुख अधिकारी मुखद्दम होता था और पटवारी भूमि का लेखा रखता था।
- पंचायत स्थानीय विवाद सुलझाती थी और कर वसूली में सहयोग करती थी।
- सामाजिक संरचना जाति पर आधारित थी; ऊँची जातियाँ गाँव प्रशासन पर प्रभाव रखती थीं।
- मंदिर और मस्जिद गाँव के सामाजिक जीवन के केंद्र थे।
प्र6. मुगल काल के कृषक समाज में स्त्रियों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- स्त्रियाँ खेती के सभी कार्यों में भाग लेती थीं — बीज बोना, कटाई, मवेशी चराना आदि।
- वे घर-आधारित कार्यों जैसे बुनाई, खाद्य प्रसंस्करण में भी योगदान देती थीं।
- कुछ क्षेत्रों में स्त्रियों को उत्तराधिकार में संपत्ति अधिकार भी मिलते थे।
- शरीयत कानून के अनुसार उन्हें संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए था, पर यह अक्सर लागू नहीं होता था।
- उनका श्रम समाज की रीढ़ था परंतु उसका उल्लेख ऐतिहासिक अभिलेखों में कम मिलता है।
प्र7. मुगल कृषि अर्थव्यवस्था में जंगलों और जनजातियों की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
- जंगलों से लकड़ी, शहद, फल और मोम जैसी वस्तुएँ मिलती थीं।
- भील, गोंड, संथाल जैसी जनजातियाँ झूम खेती (Shifting Cultivation) करती थीं।
- राज्य ने कृषि भूमि बढ़ाने के लिए जंगलों की कटाई को प्रोत्साहित किया।
- इससे जनजातियों और राज्य के बीच संघर्ष हुआ।
- कई जनजातीय सरदार बाद में ज़मींदार या सैनिक अधिकारी बन गए।
प्र8. मुगल अर्थव्यवस्था में चाँदी के प्रवाह का क्या महत्व था?
उत्तर:
- यूरोप और अमेरिका से भारत में चाँदी का भारी प्रवाह हुआ।
- यूरोपीय व्यापारी भारतीय वस्त्र, मसाले, नील आदि खरीदने के लिए चाँदी लाते थे।
- कर और मजदूरी नकद चाँदी के सिक्कों में दी जाने लगी।
- इससे अर्थव्यवस्था का मौद्रीकरण (Monetization) हुआ।
- भारत वैश्विक व्यापार प्रणाली का हिस्सा बन गया।
खंड – C : दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (6 × 3 = 18 अंक)
(प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 200–250 शब्दों में दें)
प्र9. अकबर के समय की राजस्व व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- भूमि मापन प्रणाली (दहसाला व्यवस्था): भूमि को बीघा में मापा गया।
- फसल वर्गीकरण: रबी, खरीफ और ज़ायद — तीनों मौसमों की औसत उपज का आकलन।
- कर निर्धारण: औसत उपज का एक-तिहाई भाग कर के रूप में लिया गया।
- राजा टोडरमल ने व्यवस्था को संगठित और निष्पक्ष बनाया।
- ज़ब्त प्रणाली: राजस्व दरें पूरे साम्राज्य में एकसमान रखी गईं।
- स्थानीय अधिकारी जैसे आमिल, कानूनगो आदि वसूली की निगरानी करते थे।
- यह व्यवस्था किसानों और राज्य दोनों के हितों का संतुलन बनाए रखती थी।
प्र10. मुगल काल में ज़मींदारों की भूमिका और स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- ज़मींदार राज्य और किसान के बीच मध्यस्थ थे।
- वे लगान वसूलकर उसका कुछ भाग राज्य को देते और कुछ हिस्सा अपने पास रखते थे।
- अपने क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखते और सैनिक बल रखते थे।
- मंदिर, तालाब और मस्जिद बनवाकर सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते थे।
- कई बार अत्यधिक कर वसूली से किसान विद्रोह भी करते थे।
- फिर भी वे मुगल शासन की स्थानीय आधारशिला बने रहे।
प्र11. आइने-अकबरी को मुगल कृषक समाज का ऐतिहासिक स्रोत मानते हुए इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- आइने-अकबरी अबुल फ़ज़ल द्वारा 1590 के दशक में लिखी गई।
- यह अकबरनामा का तीसरा भाग है।
- इसमें राजस्व दरें, फसलें, भूमि मापन, सिंचाई, और प्रशासनिक विवरण दिए गए हैं।
- सामाजिक रीति-रिवाज़, जातियाँ और त्योहारों का भी उल्लेख है।
- यह भारत का पहला सांख्यिकीय दस्तावेज़ (Statistical Record) था।
- यद्यपि इसमें राजदरबार का दृष्टिकोण झलकता है, फिर भी यह मुगल कृषि समाज का सबसे विश्वसनीय स्रोत है।
खंड – D : स्रोत-आधारित प्रश्न (5 अंक)
(नीचे दिए गए स्रोत को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें)
स्रोत: (आइने-अकबरी से)
“किसान मेहनती होते हैं और कर समय पर भरते हैं। कृषि पूरी तरह जल वितरण पर निर्भर करती है। नहरें और कुएँ गाँव वालों और अधिकारियों के संयुक्त प्रयास से बनाए जाते हैं। खेती बढ़ने से राज्य को अधिक लाभ होता है।”
प्र12 (i) यह उद्धरण मुगल कृषि की प्रकृति के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
यह बताता है कि मुगल काल की कृषि संगठित और उत्पादक थी तथा सिंचाई पर निर्भर थी।
प्र12 (ii) गाँवों में सिंचाई व्यवस्था कैसे की जाती थी?
उत्तर:
सिंचाई कार्य सामूहिक प्रयासों से किए जाते थे; गाँववाले और अधिकारी मिलकर नहरें और कुएँ बनवाते थे।
प्र12 (iii) कृषि राज्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर:
कृषि मुगल राज्य की आर्थिक रीढ़ थी; कर (माल) से ही सेना, प्रशासन और निर्माण कार्य चलते थे।
खंड – E : मानचित्र प्रश्न (5 अंक)
(भारत के रूपरेखा मानचित्र पर निम्नलिखित स्थान अंकित करें)
- आगरा – अकबर की राजधानी
- लाहौर – प्रमुख व्यापारिक केंद्र
- सूरत – प्रमुख बंदरगाह
- अहमदाबाद – वस्त्र उद्योग का केंद्र
- बंगाल – धान उत्पादन क्षेत्र
उत्तर कुंजी:
- आगरा – उत्तर प्रदेश
- लाहौर – पाकिस्तान
- सूरत – गुजरात तट
- अहमदाबाद – गुजरात
- बंगाल – पूर्वी भारत (वर्तमान पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश)
खंड – F : निबंध प्रकार प्रश्न (8 अंक)
(उत्तर 300–350 शब्दों में दें)
प्र13. “मुगल कृषि व्यवस्था राज्य नियंत्रण और स्थानीय स्वायत्तता के बीच संतुलन थी।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुगल कृषि व्यवस्था इस प्रकार बनाई गई थी कि राज्य को राजस्व प्राप्ति हो और गाँव समाज को स्वशासन की स्वतंत्रता मिले।
- राज्य नियंत्रण:
- भूमि का अंतिम स्वामी सम्राट था।
- अधिकारी जैसे आमिल, कानूनगो, करोड़ी कर वसूली की निगरानी करते थे।
- ज़ब्त व्यवस्था द्वारा पूरे साम्राज्य में समान राजस्व दरें लागू की गईं।
- स्थानीय स्वायत्तता:
- गाँवों की पंचायतें अपने मामलों में स्वतंत्र थीं।
- ज़मींदार स्थानीय विवाद सुलझाते और सिंचाई कार्य कराते थे।
- किसानों को खेती करने के वंशानुगत अधिकार प्राप्त थे।
- संतुलन और संघर्ष:
- जब राज्य ने अधिक कर लगाया, तो किसान पलायन या विद्रोह करने लगे।
- संतुलन तभी संभव था जब राज्य और ग्रामीण समाज में सहयोग रहा।
- परिणाम:
- इस व्यवस्था ने कृषि उत्पादन को स्थिर रखा और शहरी व्यापार को बल दिया।
- परंतु अत्यधिक कर और भ्रष्टाचार से यह व्यवस्था 18वीं शताब्दी में कमजोर पड़ी।
निष्कर्ष:
मुगल कृषि व्यवस्था वास्तव में राज्य शक्ति और स्थानीय स्वायत्तता के संतुलन का उदाहरण थी — जिसने उस युग की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित किया।
