📘 इतिहास – कक्षा 12 (पाठ्यक्रम A)
अध्याय 3 – संबंध, जाति और वर्ग: प्रारंभिक समाज (ई.पू. 600 से ई. 600 तक)
🔹 परिचय (Introduction)
- इस अध्याय में प्राचीन भारत के सामाजिक ढाँचे, रिश्तों के स्वरूप, जाति व्यवस्था, और आर्थिक-सामाजिक भेदों का अध्ययन किया गया है।
- स्रोत मुख्यतः महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथ हैं।
- समय अवधि लगभग 600 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी तक का है — जब महाजनपद, मौर्य और गुप्त कालीन समाज विकसित हुए।
🔹 महाभारत का समालोचित संस्करण (The Critical Edition of the Mahabharata)
- महाभारत भारतीय इतिहास का सबसे विशाल ग्रंथ है — लगभग 1,00,000 श्लोक।
- यह राजनीति, युद्ध, धर्म, नैतिकता, परिवार और समाज सभी पहलुओं को दर्शाता है।
- भाषा: संस्कृत; मुख्य कथाकार: वेदव्यास।
- समालोचित संस्करण (Critical Edition) – पुणे के भांडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा 1919–1966 के बीच प्रकाशित।
- इस संस्करण में विभिन्न पांडुलिपियों की तुलना करके प्रामाणिक श्लोक रखे गए।
- इतिहासकारों के लिए यह ग्रंथ सामाजिक मान्यताओं, जातीय व्यवस्था और पारिवारिक संरचना का महत्वपूर्ण स्रोत है।
🔹 संबंध और विवाह (Kinship and Marriage)
- संबंध (Kinship) से आशय है रक्त-संबंध या विवाह से जुड़ी पारिवारिक एकाइयाँ।
- परिवार (Family) और कुल (Lineage) समाज की मूल इकाई थे।
- पितृसत्तात्मक प्रणाली (Patriarchy) – पुरुषों का प्रभुत्व; संपत्ति, निर्णय, वंशानुक्रम पुरुषों से चलता था।
- विवाह के नियम:
- ग्राम्य विवाह (Endogamy): अपनी जाति या समूह में विवाह।
- बहिर्गामी विवाह (Exogamy): अपने गोत्र या परिवार के बाहर विवाह।
- गोत्र प्रणाली: समान गोत्र में विवाह निषिद्ध।
- अंतर्विवाह निषेध का उद्देश्य – रक्तसंबंधों की पवित्रता बनाए रखना।
- महाभारत में द्रौपदी का पांच पतियों से विवाह विशेष उदाहरण है, जो नियमों के बावजूद लचीलापन दर्शाता है।
🔹 अनेक नियम और विविध प्रथाएँ (Many Rules and Varied Practices)
- विवाह, उत्तराधिकार, स्त्री की भूमिका आदि में क्षेत्रीय और सामाजिक भिन्नताएँ थीं।
- उत्तरी भारत में कठोर जाति नियम; दक्षिण भारत में अपेक्षाकृत लचीलापन।
- स्त्रियों की भूमिका:
- प्रारंभिक वैदिक काल में सम्मानित स्थान।
- बाद के काल में धार्मिक और सामाजिक सीमाएँ बढ़ीं।
- विवाह में पिता की सहमति आवश्यक; विधवाओं के लिए पुनर्विवाह सीमित।
- धर्मशास्त्रों (मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति) ने इन प्रथाओं को नियमबद्ध किया।
🔹 सामाजिक भेद: जाति व्यवस्था के भीतर और परे (Social Differences: Within and Beyond Caste)
- जाति व्यवस्था (Varna System) चार प्रमुख वर्गों में विभाजित थी:
- ब्राह्मण: पुजारी, शिक्षक, ज्ञान के संरक्षक।
- क्षत्रिय: शासक और योद्धा।
- वैश्य: व्यापारी और कृषक।
- शूद्र: सेवक, श्रमिक, समाज का निम्नतम वर्ग।
- जाति जन्म से निर्धारित (Birth-based) मानी जाती थी।
- अस्पृश्यता (Untouchability) भी इसी काल में विकसित होने लगी।
- महाभारत और धर्मशास्त्रों में जाति के नियमों का उल्लेख है, परंतु व्यवहार में लचीलापन भी था।
- कुछ जातियाँ व्यवसाय बदलने या धर्म परिवर्तन से नई पहचान बनाती थीं।
🔹 जन्म से परे: संसाधन और स्थिति (Beyond Birth: Resources and Status)
- समाज में धन, भूमि और व्यापारिक संसाधन भी व्यक्ति की स्थिति तय करते थे।
- भूमि स्वामित्व ने एक नया वर्गीय विभाजन उत्पन्न किया।
- महाजन और व्यापारी वर्ग (श्रेणियाँ, गिल्ड्स) – आर्थिक शक्ति प्राप्त करने लगे।
- स्त्रियों को सामान्यतः संपत्ति उत्तराधिकार से वंचित रखा गया, पर कुछ धनवान स्त्रियाँ दान और पूजा में भाग लेती थीं।
- दान प्रणाली (Dana) सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने का साधन बनी।
🔹 सामाजिक भेदों की व्याख्या: एक सामाजिक अनुबंध (Explaining Social Differences – A Social Contract)
- धर्मशास्त्रों के अनुसार समाज एक नैतिक व्यवस्था पर आधारित था, जिसे धर्म कहा गया।
- लोगों के कर्तव्य (Dharma) उनके वर्ण और आश्रम पर निर्भर थे।
- समाज के नियमों को प्राकृतिक और दिव्य व्यवस्था माना गया — इससे असमानता को भी धार्मिक रूप से स्वीकार किया गया।
- परंतु कुछ विचारक (जैसे बुद्ध और जैन) ने कहा कि समाज मानव अनुबंध (Social Contract) पर आधारित है, न कि ईश्वरीय इच्छा पर।
- इससे समाज सुधार और समतावाद की भावना का विकास हुआ।
🔹 ग्रंथों के साथ व्यवहार (Handling Texts)
- महाभारत, धर्मशास्त्र, जातक कथाएँ आदि ग्रंथ सामाजिक संरचना के स्रोत हैं।
- इतिहासकार इन ग्रंथों का विश्लेषण करते हैं ताकि वास्तविक जीवन और आदर्श जीवन के बीच अंतर समझा जा सके।
- ये ग्रंथ मुख्यतः उच्च वर्ग की दृष्टि से लिखे गए हैं।
- इसलिए पुरातात्त्विक साक्ष्य (जैसे मिट्टी के बर्तन, सिक्के, अवशेष) का अध्ययन भी आवश्यक है।
🔹 इतिहासकार और महाभारत (Historians and the Mahabharata)
- इतिहासकारों ने महाभारत को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में देखा।
- इस ग्रंथ में समाज के आर्थिक, राजनीतिक और पारिवारिक ढांचे का प्रतिबिंब है।
- उदाहरण:
- भूमि विवाद, उत्तराधिकार, स्त्री की स्थिति, विवाह प्रणाली।
- युद्ध और शासन के नैतिक प्रश्न।
- महाभारत का विकास: यह ग्रंथ समय के साथ मौखिक परंपरा से लिखित रूप में आया।
- हर युग में इसमें नई कथाएँ और विचार जोड़े गए।
🔹 एक गतिशील ग्रंथ (A Dynamic Text)
- महाभारत एक सजीव और विकसित होता ग्रंथ है।
- इसमें वेदिक, उपनिषदिक, और पौराणिक काल की परतें हैं।
- यह समाज की निरंतर बदलती मानसिकता को दर्शाता है।
- “धर्म” की व्याख्या इस ग्रंथ में बहुस्तरीय है — व्यक्तिगत, पारिवारिक, और सामाजिक।
- यह ग्रंथ भारतीय समाज की जटिलता और विविधता का दर्पण है।
🔹 निष्कर्ष (Conclusion)
- प्राचीन भारतीय समाज जाति, वर्ग और लिंग पर आधारित असमानताओं से बना था।
- परंतु इन सीमाओं के भीतर भी विविधता और परिवर्तन संभव थे।
- महाभारत जैसे ग्रंथ इस परिवर्तनशील समाज की झलक देते हैं।
- इतिहासकारों के लिए यह काल सामाजिक संस्थाओं और मूल्य व्यवस्था को समझने की कुंजी है।
- इस काल में परिवार, धर्म और अर्थ तीनों ने मिलकर समाज की दिशा तय की।
🔸 मुख्य बिंदुओं का सारांश (Summary Points)
- महाभारत – भारतीय समाज का प्रतिबिंब।
- पितृसत्तात्मक परिवार प्रणाली।
- गोत्र और विवाह के नियम।
- जाति व्यवस्था और उसके भीतर असमानताएँ।
- आर्थिक स्थिति से सामाजिक प्रतिष्ठा का निर्धारण।
- दान और धर्म द्वारा समाज में ऊँच-नीच को न्यायोचित ठहराना।
- ग्रंथों का अध्ययन इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायक।
- महाभारत एक जीवंत ग्रंथ – समय के साथ विकसित।
- समाज स्थिर नहीं, बल्कि निरंतर बदलता रहा।
- यह काल भारतीय सामाजिक ढाँचे की नींव रखने वाला रहा।
