🏛️ अध्याय 2 – राजा, किसान और नगर : प्रारंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ (ईसा पूर्व 600 – ईस्वी 600)
भूमिका (Introduction)
- 600 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी के बीच भारत में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन में बड़े परिवर्तन हुए।
- इस काल में राज्यों, साम्राज्यों, नगरों और व्यापारिक नेटवर्क का विकास हुआ।
- इस युग के अध्ययन के लिए प्रमुख स्रोत हैं —
शिलालेख (Inscriptions), सिक्के (Coins), पुरातात्त्विक अवशेष तथा साहित्यिक ग्रंथ (जैसे बौद्ध, जैन, और संस्कृत ग्रंथ)।
1. प्रिन्सेप और पियदस्सी (Prinsep and Piyadassi)
जेम्स प्रिन्सेप (James Prinsep)
- ब्रिटिश विद्वान और प्राच्यविद् जिन्होंने 1830 के दशक में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की।
- वे एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल से जुड़े हुए थे।
- उनकी खोज ने प्राचीन भारत के इतिहास लेखन में नई दिशा प्रदान की।
पियदस्सी (Piyadassi)
- प्रिन्सेप द्वारा पढ़े गए कई शिलालेखों में ‘देवानंप्रिय पियदस्सी’ नाम का उल्लेख था।
- बाद में श्रीलंका के दीपवंश और महावंश ग्रंथों से पता चला कि यह नाम सम्राट अशोक का है।
- इससे स्पष्ट हुआ कि ये सभी शिलालेख मौर्य सम्राट अशोक द्वारा जारी किए गए थे।
महत्व
- ब्राह्मी लिपि के पढ़े जाने से इतिहासकारों को राजाओं, प्रशासन और समाज के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले।
- यह भारत के प्रारंभिक राजनीतिक इतिहास को समझने की दिशा में सबसे बड़ा कदम था।
2. प्रारंभिक राज्य (ईसा पूर्व 600 – 400)
पृष्ठभूमि
- वैदिक काल के अंत तक भारत में अनेक जनजातीय गणराज्य (जन, गण) थे।
- छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक ये विकसित होकर 16 महाजनपदों में परिवर्तित हो गए।
16 महाजनपद
- बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय के अनुसार –
अंग, मगध, काशी, कोशल, वज्जि, मल्ल, चेदी, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, शूरसेन, अस्सक, अवंती, गांधार, कम्बोज। - इनमें कुछ राजतंत्र (Monarchies) थे (जैसे – मगध, कोशल) और कुछ गणतंत्र (Republics) थे (जैसे – वज्जि, मल्ल)।
महाजनपदों की विशेषताएँ
- राजधानी शहरों के चारों ओर किलाबंदी (Fortification) की जाती थी।
- लोहे के औज़ारों से कृषि में सुधार हुआ जिससे अधिशेष उत्पादन बढ़ा।
- यह अधिशेष प्रशासन, सैनिकों और कारीगरों को पोषण देने में सहायक रहा।
- कई नगर जैसे राजगृह, श्रावस्ती, वैशाली, उज्जैन, तक्षशिला विकसित हुए।
मगध का उदय
- मगध (वर्तमान बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उभरा।
- सफलता के कारण –
- उपजाऊ गंगा घाटी और लोहे की खदानें।
- गंगा और सोन नदियों के संगम पर रणनीतिक स्थिति।
- शक्तिशाली शासक – बिंबिसार, अजातशत्रु, महापद्म नंद।
- मगध ने आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
3. प्रारंभिक साम्राज्य – मौर्य साम्राज्य (321–185 ईसा पूर्व)
स्थापना
- चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसा पूर्व में नंद वंश को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- बिंदुसार और अशोक के शासन में साम्राज्य का विस्तार चरम पर पहुँचा।
मुख्य स्रोत
- अर्थशास्त्र (कौटिल्य/चाणक्य द्वारा)।
- अशोक के शिलालेख और स्तंभलेख।
- यूनानी दूत मेगस्थनीज की इंडिका।
- बौद्ध ग्रंथ – अशोकावदान, दीपवंश।
प्रशासनिक व्यवस्था
- साम्राज्य को प्रांतों में बाँटा गया, प्रत्येक पर राजकुमार या गवर्नर शासन करता था।
- केंद्र में राजा सर्वोच्च सत्ता था।
- उसके अधीन मंत्रिपरिषद, अधिकारी, जासूस तंत्र और सेना।
- राजस्व का मुख्य स्रोत भूमि कर था।
अशोक का ‘धम्म’
- अशोक ने शासन को नैतिकता और मानवता से जोड़ दिया।
- उसके धम्म के मुख्य सिद्धांत –
- अहिंसा, सहनशीलता, दया, धार्मिक सहिष्णुता।
- सभी धर्मों के प्रति सम्मान।
- जनता के कल्याण के लिए कार्य।
- यह धर्म किसी धर्म-प्रचार के लिए नहीं बल्कि नैतिक शासन के लिए था।
पतन के कारण
- अशोक की मृत्यु के बाद –
- उत्तराधिकार के विवाद।
- प्रशासनिक विकेंद्रीकरण की कमी।
- आर्थिक भार।
- विदेशी आक्रमण (यूनानी-शक, इंडो-ग्रीक)।
- परिणामस्वरूप साम्राज्य 185 ईसा पूर्व तक समाप्त हो गया।
4. राजसत्ता की नई धारणाएँ (New Notions of Kingship)
मौर्योत्तर काल (200 ईसा पूर्व – 300 ईस्वी)
- मौर्य साम्राज्य के बाद भारत में क्षेत्रीय राजतंत्रों का उदय हुआ —
शुंग, सातवाहन, इंडो-ग्रीक, कुषाण, गुप्त आदि।
दैवीय राजत्व (Divine Kingship)
- कई शासकों ने अपने को ईश्वर का पुत्र या अवतार घोषित किया।
- जैसे – कुषाण शासक कनिष्क ने स्वयं को देवपुत्र कहा।
- सिक्कों और शिलालेखों में धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग बढ़ा।
धार्मिक संरक्षण (Patronage)
- शासकों ने ब्राह्मणों, बौद्ध और जैन संस्थाओं को भूमि दान दिया।
- इससे धर्म-संस्थाओं की समृद्धि और राजसत्ता की प्रतिष्ठा दोनों बढ़ी।
- उदाहरण: सातवाहन शासकों द्वारा विहारों और देवालयों को भूमि दान।
राजसूय और अश्वमेध यज्ञ
- राजसूय – राजा की सार्वभौमिक सत्ता का प्रतीक।
- अश्वमेध यज्ञ – राजाओं की साम्राज्यवादी आकांक्षा का प्रदर्शन।
- इन यज्ञों से राजनीतिक वैधता और ब्राह्मणीय समर्थन प्राप्त होता था।
5. बदलता हुआ ग्राम्य जीवन (A Changing Countryside)
कृषि विस्तार
- गंगा घाटी से लेकर दक्षिण भारत तक कृषि का प्रसार हुआ।
- कारण –
- लोहे के हल और औजारों का प्रयोग।
- कुएँ, नहरें, तालाबों से सिंचाई व्यवस्था।
- जंगलों की सफाई और नई भूमि का उपयोग।
भूमिदान प्रथा
- राजाओं ने ब्राह्मणों और धार्मिक संस्थानों को भूमि दान देना प्रारंभ किया।
- इन दानों को अग्रहार, देवदन, ब्रह्मदन कहा गया।
- परिणाम –
- राज्य की राजस्व आय में कमी।
- जमींदार वर्ग का उदय।
- किसानों की स्थिति में असमानता।
ग्रामीण समाज की संरचना
- गाँवों में विभिन्न वर्ग –
- गृहपति (भूमि स्वामी),
- दास और कर्मकार (मजदूर),
- कुम्हार, लोहार, बढ़ई, बुनकर आदि।
- कृषि अधिशेष से नगरों और व्यापार का विकास हुआ।
6. नगर और व्यापार (Towns and Trade)
शहरीकरण का पुनर्जागरण
- मौर्योत्तर काल में कई नगर जैसे – मथुरा, उज्जैन, अमरावती, तक्षशिला, पाटलिपुत्र पुनः विकसित हुए।
नगरों की विशेषताएँ
- नगरों में बाज़ार (पण्यशाला), सड़कों का जाल, और कारीगरों की बस्तियाँ थीं।
- कारीगर संघ (श्रेणी) – संगठित समूह जो उत्पादन और व्यापार का संचालन करते थे।
- हस्तशिल्प – धातु, कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, हाथी-दाँत की वस्तुएँ आदि।
श्रेणियाँ (Guilds)
- आर्थिक तथा सामाजिक संगठन, जो मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता का ध्यान रखते थे।
- प्रत्येक श्रेणी का प्रमुख श्रेठिन कहलाता था।
- श्रेणियाँ व्यापार में ऋण देने और निवेश करने का भी कार्य करती थीं।
दीर्घ दूरी व्यापार (Long-Distance Trade)
- समुद्री व्यापार का विस्तार अरब सागर और बंगाल की खाड़ी तक हुआ।
- प्रमुख बंदरगाह – भरुकच्छ, कावेरीपट्टनम, अरिकमेडु।
- भारत से मसाले, रेशम, रत्न, हाथीदाँत निर्यात किए जाते थे।
- रोमन सिक्कों की प्राप्ति से विदेशी व्यापार की पुष्टि होती है।
साहित्यिक प्रमाण
- संगम साहित्य (तमिल काव्य) में व्यापारी, जहाज और समुद्री बंदरगाहों का उल्लेख।
- पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी (1वीं सदी ईस्वी) में भारतीय व्यापारिक मार्गों का वर्णन।
7. मूल स्रोत और साक्ष्य (Back to Basics)
इतिहास के प्रमुख स्रोत
- शिलालेख (Inscriptions)
- सिक्के (Coins)
- पुरातात्त्विक अवशेष
- साहित्यिक ग्रंथ
शिलालेख
- पत्थर, धातु, या मिट्टी पर खुदे अभिलेख।
- इनमें दान, कर, आज्ञाएँ, राजाज्ञा और धर्मोपदेश अंकित होते थे।
- प्रारंभिक उदाहरण – अशोक के अभिलेख।
सिक्के
- सर्वप्रथम छापांकित (Punch-marked) सिक्के प्रचलित हुए।
- बाद में ढले और छपे हुए सिक्के आए जिन पर राजा की मूर्ति या चिन्ह अंकित रहते थे।
- ये आर्थिक विकास और व्यापार के सशक्त प्रमाण हैं।
8. शिलालेखों को कैसे पढ़ा गया (Decipherment of Inscriptions)
ब्राह्मी लिपि
- अधिकांश अशोक अभिलेख इसी लिपि में हैं।
- बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।
- जेम्स प्रिन्सेप ने 1830 में इसे पढ़ा।
खरोष्ठी लिपि
- उत्तर-पश्चिम भारत में प्रयुक्त।
- दाएँ से बाएँ लिखी जाती है।
- आरामी लिपि से उत्पन्न हुई।
पढ़ने की विधि
- शब्दों और चिन्हों की दोहराव (Repetition) का अध्ययन।
- ज्ञात भाषाओं (पाली, प्राकृत, संस्कृत) से तुलना।
- द्विभाषी अभिलेखों की सहायता से अर्थ निकालना।
परिणाम
- शासकों के नाम, क्षेत्रीय विस्तार, और प्रशासनिक ढाँचे का पुनर्निर्माण संभव हुआ।
9. शिलालेखीय साक्ष्यों की सीमाएँ (Limitations of Inscriptions)
- सभी शिलालेख संपूर्ण नहीं हैं – कई टूटे या घिस चुके हैं।
- अधिकांश अभिलेख राजाओं के दृष्टिकोण से लिखे गए, आम जनता की जानकारी कम।
- भाषाई और क्षेत्रीय भिन्नता से अर्थ निकालने में कठिनाई।
- कई बार राजनीतिक अतिशयोक्ति की गई है।
- फिर भी, ये हमारे लिए प्राथमिक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं।
10. निष्कर्ष (Conclusion)
- ईसा पूर्व 600 से ईस्वी 600 तक भारत गणों से राज्यों और साम्राज्यों की दिशा में विकसित हुआ।
- कृषि, व्यापार और नगरों के विकास से आर्थिक समृद्धि आई।
- राजसत्ता और धर्म का गहरा संबंध स्थापित हुआ।
- शिलालेखों और सिक्कों से हमें राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था की स्पष्ट झलक मिलती है।
- यद्यपि इनमें कुछ सीमाएँ हैं, फिर भी ये हमें उस युग की जीवंत और प्रामाणिक तस्वीर प्रदान करते हैं।
संक्षिप्त पुनरावृत्ति (Quick Recap)
- प्रिन्सेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि को पढ़कर पियदस्सी = अशोक सिद्ध किया।
- 16 महाजनपदों का उदय हुआ।
- मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बना।
- मौर्य साम्राज्य – चंद्रगुप्त, बिंदुसार, अशोक।
- अशोक का धम्म नैतिक शासन का उदाहरण।
- मौर्योत्तर काल में दैवीय राजसत्ता और धार्मिक संरक्षण।
- कृषि विस्तार, भूमि दान और सामाजिक परिवर्तन।
- नगरों का पुनर्जागरण और व्यापारिक नेटवर्क।
- श्रेणियों द्वारा कारीगर और व्यापारी संगठन।
- समुद्री व्यापार से अंतरराष्ट्रीय संबंध।
- शिलालेख और सिक्के प्रमुख स्रोत।
- लिपियों के पाठ ने इतिहास की दिशा बदल दी।
