History class 12 CBSE course A अध्याय 1 — ईंटें, मनके और अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता


🏺 अध्याय 1 — ईंटें, मनके और अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता


1. प्रस्तावना : हड़प्पा सभ्यता का परिचय

  • हड़प्पा सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यता मानी जाती है।
  • इसे सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) भी कहा जाता है, क्योंकि इसके अधिकांश स्थल सिंधु नदी की घाटी में स्थित हैं।
  • यह सभ्यता लगभग 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. के बीच फली-फूली।
  • प्रमुख नगर: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी, चन्हूदड़ो
  • इसका क्षेत्र वर्तमान पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिम भारत तक फैला था।
  • 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा और 1922 में आर.डी. बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की।
  • यह सभ्यता संगठित नगरीय जीवन, पक्की ईंटों के घर, जलनिकासी व्यवस्था और व्यापारिक जाल के लिए प्रसिद्ध थी।
  • हड़प्पा की लिपि, मुद्रा और कलात्मक वस्तुएँ इस बात का प्रमाण हैं कि यह समाज सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत विकसित था।

2. सभ्यता की शुरुआत

  • शहरीकरण से पहले यहाँ प्रारंभिक कृषि बस्तियाँ (पूर्व-हड़प्पा काल, लगभग 3200–2600 ई.पू.) थीं।
  • धीरे-धीरे इन गाँवों ने कृषि अधिशेष के कारण व्यापार और शिल्प पर आधारित नगरों का रूप ले लिया।
  • परिपक्व हड़प्पा काल (2600–1900 ई.पू.) में नगर पूरी तरह विकसित हुए।
  • नगरों में आम तौर पर दुर्ग क्षेत्र (ऊपरी भाग) और निचला नगर होता था।
  • उत्तरकालीन हड़प्पा काल (1900–1300 ई.पू.) में नगर जीवन समाप्त होकर ग्रामीण संस्कृति का रूप लेने लगा।
  • सभ्यता का विकास सिंध और बलूचिस्तान के छोटे सांस्कृतिक समूहों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापारिक संपर्क से हुआ।

3. आजीविका की रणनीतियाँ (Subsistence Strategies)

(क) कृषि

  • मुख्य फसलें: गेहूँ, जौ, मसूर, तिल, मटर, खजूर
  • सूती वस्त्र का प्रयोग सर्वप्रथम यहीं से मिलता है — विश्व की सबसे प्राचीन कपास उपयोग की सभ्यता।
  • हल (plough) और सिंचाई नालियाँ उपयोग में लाई जाती थीं।
  • सिंधु की बाढ़ से मिट्टी उपजाऊ बनी रहती थी।
  • फसल चक्र (Crop rotation) का प्रयोग संभवतः किया जाता था।

(ख) पशुपालन

  • पाले जाने वाले पशु: गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर
  • ऊँट, गधा और हाथी का प्रयोग बोझ ढोने में होता था।
  • कुबड़ वाला बैल (जाब्रु) प्रमुख पालतू पशु था।
  • कुत्ते और बिल्ली भी पालतू जानवरों में थे।

(ग) मछली पकड़ना और शिकार

  • लोथल और मोहनजोदड़ो से मछलियों की हड्डियाँ मिली हैं।
  • शिकार में हिरण, गैंडा और पक्षियों का उल्लेख मिलता है।

(घ) व्यापार और विनिमय

  • नगरों और गाँवों में स्थानीय व्यापार चलता था।
  • मेसोपोटामिया, ओमान, बहरीन, ईरान जैसे देशों से विदेशी व्यापार के प्रमाण मिले हैं।
  • व्यापारिक वस्तुएँ: धातुएँ (ताँबा, कांसा, सोना, चाँदी), मनके, वस्त्र, अनाज, हाथीदांत

4. मोहनजोदड़ो : योजनाबद्ध नगर केंद्र

  • मोहनजोदड़ो वर्तमान सिंध (पाकिस्तान) में सिंधु नदी के किनारे स्थित था।
  • यह सभ्यता के सबसे विकसित और संरक्षित नगरों में से एक था।

(क) नगर योजना

  • नगर दो भागों में बँटा था —
    1. दुर्ग क्षेत्र (ऊपरी भाग) : ऊँचे प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक इमारतें।
    2. निचला नगर : सामान्य निवास स्थान।
  • दुर्ग क्षेत्र में भंडार गृह (granary), महान स्नानागार (Great Bath), सभा भवन थे।

(ख) जल निकासी व्यवस्था

  • प्रत्येक घर से नाली जुड़ी हुई थी, जो मुख्य नालियों से मिलती थी।
  • नालियाँ पक्की ईंटों से बनी और ढकी हुई थीं।
  • सफाई के लिए निरीक्षण छिद्र (manholes) रखे गए थे।
  • स्वच्छता और संगठन के प्रति लोगों की सजगता दर्शाती है।

(ग) वास्तुकला

  • घरों में पक्की ईंटें (अनुपात 1:2:4) प्रयोग में थीं।
  • अधिकतर मकान एक या दो मंज़िला थे जिनमें आँगन और कुएँ थे।
  • सड़कें ग्रिड पैटर्न में एक-दूसरे को काटती थीं।
  • सार्वजनिक कुएँ और स्नान स्थल नगर में प्रचुर मात्रा में थे।

(घ) महान स्नानागार (Great Bath)

  • दुर्ग क्षेत्र में स्थित, ईंटों, जिप्सम मोर्टार और बिटुमिन से जलरोधक बनाया गया था।
  • दोनों ओर सीढ़ियाँ और निकासी मार्ग थे।
  • संभवतः यह धार्मिक या अनुष्ठानिक स्नान के लिए प्रयुक्त होता था।

5. सामाजिक असमानताएँ और भिन्नताएँ (Tracking Social Differences)

(क) समानता और संगठन

  • ईंटों का समान आकार और नगरों का समान ढाँचा सामूहिक नियंत्रण या मानकीकरण का प्रमाण है।

(ख) समाधियाँ और सामाजिक स्तर

  • अधिकांश समाधियाँ साधारण थीं — मृतक को उत्तर दिशा में लिटाकर मिट्टी के बर्तनों के साथ दफनाया गया।
  • कुछ कब्रों में अधिक आभूषण या वस्तुएँ मिलीं, जो सामाजिक असमानता का संकेत देती हैं।
  • बड़े मकानों और विशेष वस्तुओं से धन और पद के अंतर का पता चलता है।

(ग) कलात्मक वस्तुएँ और प्रतिष्ठा

  • सोने के आभूषण, फैयेंस मनके, पत्थर की मुद्राएँ केवल कुछ ही लोगों को प्राप्त थीं।
  • यह वर्गीय भेदभाव या उच्च वर्ग के अस्तित्व का संकेत देता है।

6. शिल्प उत्पादन की जानकारी (Craft Production)

(क) शिल्पों की विविधता

  • प्रमुख शिल्प: मिट्टी के बर्तन, मनके, मुद्रा, बंगलें, ताँबा-काँसे के औज़ार
  • कार्यशालाएँ — लोथल, चन्हूदड़ो, हड़प्पा में पाई गईं।
  • प्रयोग की गई वस्तुएँ: सोपस्टोन, टेराकोटा, सीपी, कार्नेलियन, ताँबा, फैयेंस

(ख) औज़ार और तकनीक

  • कारीगरों ने छेनी, ड्रिल, भट्ठी, सांचा (mould) आदि का प्रयोग किया।
  • मनके बनाने की कला अत्यंत विकसित थी।

(ग) प्रमुख शिल्प केंद्र

  • चन्हूदड़ो – मनके निर्माण केंद्र।
  • लोथल – बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र।
  • नागेश्वर, बालाकोट – शंख-शिल्प केंद्र।
  • हड़प्पा – धातु और पत्थर का कार्य।

(घ) श्रम का संगठन

  • श्रम विभाजन और कौशल आधारित कार्य विभाजन था।
  • संभवतः शिल्पियों को व्यापारी वर्ग या प्रशासनिक संगठन नियंत्रित करते थे।

7. कच्चे माल की प्राप्ति की रणनीतियाँ (Procurement of Materials)

  • हड़प्पा निवासियों ने आवश्यक संसाधन स्थानीय स्रोतों और व्यापारिक मार्गों से प्राप्त किए।

(क) स्थानीय वस्तुएँ

  • मिट्टी, पत्थर, खाद्यान्न, मछलियाँ स्थानीय रूप से उपलब्ध थीं।

(ख) बाहरी स्रोत

  • ताँबा – राजस्थान और ओमान से।
  • टिन – अफगानिस्तान और ईरान से।
  • सोना – दक्षिण भारत (कर्नाटक) से।
  • लाजवर्द (लैपिस लाजुली) – बदख़्शां (अफगानिस्तान) से।
  • कार्नेलियन – गुजरात से।
  • शंख – समुद्र तटीय क्षेत्रों से।

(ग) परिवहन और व्यापारिक माध्यम

  • बैलगाड़ी, नावें, नदी मार्ग व्यापार के प्रमुख साधन थे।
  • लोथल का गोदी स्थल (dockyard) समुद्री व्यापार का प्रमाण है।
  • मानकीकृत भार और मुद्राएँ व्यापार नियंत्रण का आधार थीं।

8. मुद्राएँ, लिपि और भार (Seals, Script, Weights)

(क) मुद्राएँ

  • प्रमुख रूप से सोपस्टोन (steatite) से निर्मित।
  • इन पर जानवरों के चित्र (एक-सींग वाला पशु, बैल, हाथी, गैंडा) और लिपि चिह्न अंकित होते थे।
  • उपयोग — वस्तुओं की पहचान, व्यापारिक मुहर या धार्मिक प्रतीक के रूप में।

(ख) लिपि

  • अब तक अवाचनीय (undeciphered) है।
  • लगभग 400 चिन्ह, दाएँ से बाएँ लिखने की परंपरा।
  • मिट्टी की वस्तुओं, धातु की तख्तियों और मुद्राओं पर अंकित।
  • संभवतः यह नाम, पद या स्वामित्व दर्शाती थी।

(ग) भार और माप

  • द्विआधारी प्रणाली (1, 2, 4, 8, 16, 32…) पर आधारित।
  • चर्ट पत्थर के घनाकार टुकड़े प्रयोग किए जाते थे।
  • पूरे क्षेत्र में समान मानक का प्रयोग प्रशासनिक एकरूपता का प्रमाण है।

9. प्राचीन शासन या प्राधिकरण (Ancient Authority)

  • हड़प्पा सभ्यता में राजमहल या राजा के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले।
  • परंतु मानकीकरण, नगर योजना और शिल्प नियंत्रण किसी संगठित प्राधिकरण का संकेत देता है।
  • संभावित शासन स्वरूप:
    1. पुरोहित वर्ग – धार्मिक और सामाजिक नियंत्रण।
    2. व्यापारी या प्रशासनिक समूह – आर्थिक व संगठनात्मक नियंत्रण।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार शासन सामूहिक या नगर परिषद् जैसा था।
  • दुर्ग क्षेत्र और महान स्नानागार से अनुष्ठानिक या राजनीतिक शक्ति केंद्र का संकेत मिलता है।

10. सभ्यता का पतन (The End of the Civilization)

(क) पतन का समय

  • लगभग 1900 ई.पू. के बाद नगर जीवन समाप्त होने लगा।
  • व्यापार और शिल्प में गिरावट आई, लिपि का प्रयोग बंद हो गया।

(ख) संभावित कारण

  1. पर्यावरणीय परिवर्तन — नदियों का सूखना (जैसे सरस्वती), या बाढ़।
  2. भूकंप या भौगोलिक परिवर्तन — नदी मार्ग बदल गए।
  3. वर्षा की कमी — कृषि प्रभावित हुई।
  4. संसाधनों का अत्यधिक दोहन — पर्यावरणीय असंतुलन।
  5. आक्रमण या जन प्रव्रजन (migration) — कुछ विद्वानों द्वारा माना गया।
  6. आर्थिक अव्यवस्था — विदेशी व्यापार घटने से।

(ग) सांस्कृतिक निरंतरता

  • पतन के बाद भी मिट्टी के बर्तन, मनके, ग्राम व्यवस्था जैसी परंपराएँ बनी रहीं।
  • कुछ उत्तरकालीन हड़प्पा स्थल (राखीगढ़ी, रंगपुर, लोथल) 1300 ई.पू. तक जीवित रहे।

11. हड़प्पा सभ्यता की खोज (Discovery of the Harappan Civilization)

(क) प्रारंभिक खोजें

  • 1826 ई. में चार्ल्स मैसन ने हड़प्पा के खंडहरों का उल्लेख किया।
  • 1870 के दशक में अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इसे ऐतिहासिक स्थल माना।
  • 1920–22 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने दयाराम साहनी और आर.डी. बनर्जी के नेतृत्व में खुदाई की।
  • जॉन मार्शल ने 1924 में इसे “एक खोई हुई सभ्यता” घोषित किया।

(ख) स्वतंत्रता के बाद की खोजें

  • कालीबंगा (राजस्थान), लोथल (गुजरात), धोलावीरा (कच्छ), राखीगढ़ी (हरियाणा) जैसे नए स्थल मिले।
  • इससे सभ्यता की भौगोलिक व्यापकता और क्षेत्रीय विविधता स्पष्ट हुई।

(ग) आधुनिक तकनीक का उपयोग

  • कार्बन डेटिंग, उपग्रह चित्रण, रासायनिक विश्लेषण, ग्राउंड पेनेट्रेशन रडार जैसी तकनीकों का प्रयोग हुआ।
  • इनसे नदी मार्गों, व्यापारिक संपर्कों और शहरी ढाँचों का अध्ययन हुआ।

12. अतीत को जोड़ने की कठिनाइयाँ (Problems of Piecing Together the Past)

  • पुरातात्त्विक साक्ष्य खंडित और अधूरे हैं।
  • लिपि अपठनीय होने से लिखित साक्ष्य अनुपलब्ध हैं।
  • शासन, धर्म, भाषा आदि के विषय में स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं।
  • इतिहासकारों में विवाद —
    • क्या शासन राजशाही था या सामूहिक?
    • क्या धर्म प्रमुख भूमिका में था?
    • पतन के वास्तविक कारण क्या थे?
  • वस्तुओं का अर्थ निकालना कठिन है; एक ही वस्तु धार्मिक, प्रशासनिक या आर्थिक उद्देश्य से जुड़ी हो सकती है।
  • अध्ययन तुलनात्मक विश्लेषण और अनुमान पर आधारित है।

13. उपसंहार (Conclusion)

  • हड़प्पा सभ्यता प्राचीन विश्व की अत्यंत उन्नत शहरी संस्कृति का उदाहरण है।
  • इसकी नगर योजना, स्वच्छता व्यवस्था, शिल्पकला और व्यापारिक प्रणाली अत्यंत संगठित थी।
  • पतन के बावजूद इस सभ्यता की कई परंपराएँ आगे की भारतीय संस्कृति में जारी रहीं।
  • आधुनिक पुरातत्व अनुसंधान लगातार नए प्रमाण दे रहा है कि हड़प्पा समाज सृजनशील, अनुशासित और दूरदर्शी था।

🧱 सारणी में सारांश

विषयमुख्य विशेषताएँ
समय काल2600–1900 ई.पू.
क्षेत्रीय विस्तारपाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम व पश्चिम भारत
मुख्य नगरहड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, लोथल
अर्थव्यवस्थाकृषि, शिल्प, व्यापार
मुख्य शिल्पमनके, मिट्टी के बर्तन, धातु-कला
लिपिअपठनीय चित्रलिपि
धार्मिक मान्यताएँउर्वरता प्रतीक, पशु पूजन
राजनीतिक स्वरूपसंभवतः सामूहिक या व्यापारी वर्ग आधारित
पतन के कारणपर्यावरण, अर्थव्यवस्था, प्रव्रजन
सांस्कृतिक विरासततकनीकी व कलात्मक निरंतरता

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