🟩 अध्याय 3 – योजना बद्ध विकास की राजनीति
🔹 प्रस्तावना (Introduction)
- 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत को राष्ट्रनिर्माण और आर्थिक विकास की बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- देश में गरीबी, अशिक्षा, असमानता, बेरोजगारी और अविकसित औद्योगिक आधार था।
- नेताओं जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि राजनीतिक लोकतंत्र के साथ आर्थिक लोकतंत्र भी जरूरी है।
- इसलिए भारत ने विकास की रणनीति के रूप में योजना को अपनाया।
- योजना का मतलब था सरकार द्वारा संसाधनों का कुशल उपयोग और संतुलित विकास को बढ़ावा देना।
- लक्ष्य था एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तैयार करना, जो सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करे।
🔹 योजना बद्ध विकास की आवश्यकता (Need for Planned Development)
- स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था असंतुलित और कमजोर थी।
- कृषि पिछड़ी हुई थी और उद्योग सीमित थे।
- बुनियादी ढांचा और औद्योगिक उत्पादन कमजोर थे।
- नेताओं ने गरीब और पिछड़े वर्गों के लिए तेजी से विकास आवश्यक समझा।
- लोकतंत्र और विकास को साथ-साथ बढ़ाने की आवश्यकता थी, ताकि स्वतंत्रता सभी के लिए अर्थपूर्ण हो।
- इसलिए राज्य ने अर्थव्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाने का निर्णय लिया।
- उद्देश्य था मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) विकसित करना, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों शामिल हों।
🔹 योजना आयोग की स्थापना (Planning Commission)
- 1950 में योजना आयोग की स्थापना की गई।
- इसे संविधान द्वारा नहीं बल्कि सरकारी संकल्प (Executive Resolution) द्वारा बनाया गया।
- अध्यक्ष: प्रधानमंत्री (नेहरू प्रथम अध्यक्ष थे)।
- उद्देश्य: पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण, संसाधनों का मूल्यांकन और कार्यान्वयन की निगरानी।
- यह संस्था भारत की राज्य-आधारित विकास रणनीति का केंद्र बन गई।
🔹 योजना के उद्देश्य (Objectives of Planned Development)
- आर्थिक विकास: राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
- आधुनिकता (Modernization): उत्पादन में नई तकनीक और वैज्ञानिक विधियों को अपनाना।
- आत्मनिर्भरता (Self-Reliance): आयात और विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करना।
- समानता और सामाजिक न्याय: आय और संपत्ति की असमानता कम करना।
- रोजगार सृजन: नौकरियाँ और जीवन स्तर में सुधार।
- क्षेत्रीय संतुलन: सभी क्षेत्रों में समान विकास।
🔹 पहला पंचवर्षीय योजना (1951–1956)
- मुख्य ध्यान कृषि, सिंचाई और ऊर्जा पर।
- आधारित Harrod-Domar मॉडल पर।
- उद्देश्य: विभाजन और स्वतंत्रता के बाद अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण।
- Community Development Programme (1952) ने ग्रामीण भागीदारी बढ़ाई।
- राष्ट्रीय आय 3.6% बढ़ी, लक्ष्य 2.1% से अधिक।
- इसने भविष्य की योजनाओं के लिए आधार तैयार किया।
🔹 दूसरा पंचवर्षीय योजना (1956–1961)
- मुख्य ध्यान औद्योगिकीकरण — विशेषकर भारी उद्योग।
- आधारित महलानोबिस मॉडल (P.C. Mahalanobis)।
- सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) को विकास का नेतृत्व दिया गया।
- भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर में स्टील प्लांट स्थापित।
- कृषि पर कम ध्यान देने के कारण खाद्य संकट और महंगाई।
- भारत ने कृषि अर्थव्यवस्था से औद्योगिक अर्थव्यवस्था में संक्रमण किया।
🔹 तीसरा पंचवर्षीय योजना (1961–1966)
- उद्देश्य: खाद्य आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भरता।
- कृषि और उद्योग पर एकसाथ ध्यान।
- चुनौतियाँ:
- 1962 का भारत–चीन युद्ध
- 1965 का भारत–पाक युद्ध
- 1965–66 की सूखा
- विदेशी मुद्रा संकट
- योजना विफल रही; 1966–69 में Plan Holiday, वार्षिक योजनाओं से विकास।
🔹 चौथा पंचवर्षीय योजना (1969–1974)
- उद्देश्य: विकास के साथ स्थिरता और आत्मनिर्भरता।
- कृषि और उद्योग दोनों पर ध्यान।
- हरित क्रांति (Green Revolution) लागू — HYV बीज, उर्वरक, सिंचाई।
- खाद्य उत्पादन बढ़ा, भारत खाद्य आत्मनिर्भर बना।
- असमानता और गरीबी जारी रही।
🔹 पाँचवा पंचवर्षीय योजना (1974–1979)
- उद्देश्य: गरीबी उन्मूलन (Garibi Hatao) और आत्मनिर्भरता।
- कल्याण योजनाएँ और रोजगार कार्यक्रम।
- ऊर्जा और सिंचाई पर जोर।
- राजनीतिक अस्थिरता (Emergency) के कारण योजना 1978 में समाप्त।
🔹 लोकतंत्र और विकास (Democratic Politics and Development)
- भारतीय विकास मॉडल लोकतांत्रिक समाजवाद (Democratic Socialism) पर आधारित।
- सरकार ने उद्योग, बैंकिंग, परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर नियंत्रण रखा।
- निजी क्षेत्र को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के तहत कार्य करने की अनुमति।
- उद्देश्य: पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों से बचना।
- मिश्रित अर्थव्यवस्था ने विकास और न्याय दोनों सुनिश्चित किए।
- योजना राजनीतिक उपकरण के रूप में भी इस्तेमाल हुई।
🔹 योजना को लेकर राजनीतिक विवाद (Political Conflicts)
- राज्य की भूमिका पर विवाद:
- कुछ नेताओं ने पूर्ण राज्य नियंत्रण की वकालत की।
- अन्य ने निजी पहल की आवश्यकता बताई।
- तनाव: राज्य समाजवाद बनाम बाजार उदारवाद।
- सार्वजनिक बनाम निजी क्षेत्र:
- सार्वजनिक क्षेत्र ने प्रमुख भूमिका निभाई।
- भ्रष्टाचार और नाकामी के कारण आलोचना।
- निजी क्षेत्र ने अधिक स्वतंत्रता की मांग की।
- केंद्र–राज्य संबंध:
- योजना आयोग के केंद्रीकरण से राज्यों में असंतोष।
- संसाधन और योजना में अधिक स्वायत्तता की मांग।
- गरीबी और असमानता:
- योजना के बावजूद गरीब ग्रामीण धीरे-धीरे लाभान्वित हुए।
- आलोचना: योजनाएँ अमीर और शहरी वर्गों को अधिक लाभ पहुंचाती हैं।
🔹 हरित क्रांति (Green Revolution)
- 1960 के दशक में लागू, M.S. Swaminathan का योगदान।
- खाद्य सुरक्षा और आयात पर निर्भरता घटाना लक्ष्य।
- HYV बीज, उर्वरक, सिंचाई से उत्पादन में वृद्धि।
- लाभार्थी: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी।
- भारत खाद्य आत्मनिर्भर बना।
हानियाँ:
- क्षेत्रीय असमानता
- बड़े किसानों को अधिक लाभ
- पर्यावरणीय समस्याएँ: मिट्टी का क्षरण, जल संकट
🔹 नीति आयोग (NITI Aayog) – 2015 के बाद
- योजना आयोग की जगह NITI Aayog।
- सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को बढ़ावा।
- केंद्र और राज्य के बीच नीति समन्वय।
- यह अधिक थिंक टैंक है, नियंत्रक नहीं।
- केंद्रीकृत योजना से सहभागी विकास की ओर बदलाव।
🔹 योजना की उपलब्धियाँ (Achievements)
- आर्थिक विकास: GDP में वृद्धि।
- औद्योगिकीकरण: भारी उद्योग, आधारभूत संरचना।
- कृषि: हरित क्रांति, खाद्य आत्मनिर्भरता।
- आत्मनिर्भरता: विदेशी सहायता पर निर्भरता कम।
- सामाजिक विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार।
- लोकतांत्रिक स्थिरता: समावेशी नीतियाँ।
🔹 योजना की सीमाएँ (Limitations)
- धीमी वृद्धि
- गरीबी का निरंतर रहना
- क्षेत्रीय असमानताएँ
- नौकरशाही की अक्षम्यता
- विदेशी तकनीक पर निर्भरता
- पर्यावरणीय नुकसान
🔹 विकास की बदलती दृष्टि
- 1980–90 के दशक में विकास रणनीति में बदलाव।
- राज्य नियंत्रण से अर्थव्यवस्था उदारीकरण।
- 1991 में सुधार: निजी क्षेत्र, वैश्वीकरण, प्रतिस्पर्धा।
- योजना का नया चरण: लचीला और सहभागी विकास।
🔹 राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
- केंद्रीय सरकार की भूमिका मजबूत हुई।
- नौकरशाही और तकनीशियनों का वर्ग बना।
- लोकतांत्रिक योजनाओं ने अन्य विकासशील देशों को प्रेरित किया।
- राजनीतिक बहसें: केंद्रीकरण, असमानता, आर्थिक स्वतंत्रता।
🔹 प्रमुख शब्द (Key Terms)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| योजना आयोग | पंचवर्षीय योजनाएँ बनाने वाला सरकारी निकाय |
| पंचवर्षीय योजना | पांच साल में आर्थिक विकास की योजना |
| मिश्रित अर्थव्यवस्था | सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का संयोजन |
| महलानोबिस मॉडल | दूसरा पंचवर्षीय योजना का औद्योगिक मॉडल |
| हरित क्रांति | आधुनिक कृषि तकनीक से उत्पादन वृद्धि |
| आत्मनिर्भरता | विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करना |
| लोकतांत्रिक समाजवाद | लोकतंत्र और सामाजिक न्याय का संतुलन |
🔹 निष्कर्ष (Conclusion)
- योजना बद्ध विकास ने भारत में राजनीतिक लोकतंत्र और आर्थिक विकास को जोड़ा।
- विकास की प्रक्रिया में सफलता: औद्योगिकीकरण, खाद्य आत्मनिर्भरता, लोकतांत्रिक स्थिरता।
- चुनौतियाँ: असमानता, गरीबी, नौकरशाही।
- समय के साथ भारत ने केंद्रीकृत योजना से सहभागी विकास की दिशा में कदम बढ़ाया।
- समावेशी और सतत विकास की भावना आज भी भारत की प्रगति को मार्गदर्शित करती है।
