political science CBSE class 11 course A अध्याय 9 : संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में


📘 अध्याय 9 : संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ के रूप में


परिचय (Introduction)

  • संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है।
  • यह शासन की रूपरेखा तय करता है और नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है।
  • भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ।
  • यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत संविधान है।
  • भारत जैसे विविधतापूर्ण और परिवर्तनशील समाज को मार्गदर्शन देने के लिए इसे बनाया गया।
  • लेकिन समाज स्थिर नहीं होता — समय के साथ मूल्य, तकनीक, अर्थव्यवस्था और राजनीति बदलती रहती है।
  • इसलिए संविधान को भी समयानुसार बदलने और अनुकूलित होने की आवश्यकता होती है।
  • ऐसा संविधान जो बदलते समय के अनुसार अपने प्रावधानों को ढाल सके, उसे “जीवंत दस्तावेज़ (Living Document)” कहा जाता है।
  • भारत का संविधान इसी कारण एक जीवंत दस्तावेज़ कहलाता है, क्योंकि यह निरंतर बदलती आवश्यकताओं के साथ विकसित होता रहा है।

क्या संविधान स्थिर होते हैं? (ARE CONSTITUTIONS STATIC?)

  • स्थिर संविधान वह होता है जिसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
  • लेकिन समाज हमेशा गतिशील रहता है, इसलिए संविधान को भी गतिशील होना चाहिए।
  • एक स्थिर संविधान आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता।

1. बदलता हुआ समाज

  • भारत में 1950 के बाद से बहुत परिवर्तन हुए हैं — सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक।
  • जैसे — पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं के अधिकार, डिजिटल निजता, वैश्वीकरण जैसे विषय तब प्रमुख नहीं थे।
  • इन नई चुनौतियों का सामना करने के लिए संविधान को नए अर्थों और संशोधनों की आवश्यकता हुई।

2. संविधान का उद्देश्य

  • संविधान शासन की मूल रूपरेखा तय करता है, हर स्थिति के लिए नियम नहीं बनाता।
  • इसलिए इसके सिद्धांतों की व्याख्या बदलते समय के अनुसार की जानी चाहिए।
  • संविधान निर्माताओं ने इसे इतना लचीला बनाया कि यह बदलते युग के साथ अनुकूल हो सके।

3. जानबूझकर रखी गई अस्पष्टता

  • संविधान में कई शब्द जैसे “युक्तिसंगत प्रतिबंध”, “कानून के समक्ष समानता”, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” — व्यापक और सामान्य रूप से लिखे गए हैं।
  • इसका उद्देश्य था कि आने वाली पीढ़ियाँ इन सिद्धांतों को अपने युग के अनुरूप व्याख्यायित कर सकें।

4. लोकतांत्रिक लचीलापन

  • लोकतंत्र तभी सशक्त रहता है जब संविधान में परिवर्तन की गुंजाइश हो।
  • भारतीय संविधान ने संशोधन की व्यवस्था और न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review) जैसी शक्तियाँ देकर इसे लचीला बनाया है।

5. स्थायित्व और परिवर्तन का संतुलन

  • संविधान में स्थायित्व और परिवर्तनशीलता दोनों आवश्यक हैं —
    • स्थायित्व से शासन में स्थिरता आती है,
    • परिवर्तनशीलता से संविधान प्रासंगिक बना रहता है।
  • भारतीय संविधान ने इन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखा है।

संविधान में संशोधन कैसे किया जाता है? (HOW TO AMEND THE CONSTITUTION)

  • संविधान के संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में वर्णित है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संविधान न तो बहुत कठोर हो और न ही बहुत लचीला।
  • संशोधन का कार्य संसद द्वारा किया जाता है, और कुछ मामलों में राज्यों की स्वीकृति भी आवश्यक होती है।

1. संशोधन का उद्देश्य

संविधान में संशोधन करने के मुख्य कारण हैं:

  • नई परिस्थितियों के अनुसार संविधान को अपडेट करना।
  • अस्पष्ट प्रावधानों को स्पष्ट करना।
  • सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करना।
  • प्रावधानों में असंगतियों को दूर करना।

2. भारत में संशोधन की तीन विधियाँ

भारतीय संविधान में तीन प्रकार के संशोधन का प्रावधान है —


(A) साधारण बहुमत से संशोधन (Simple Majority)

  • कुछ प्रावधानों में संशोधन संसद के सामान्य कानून की तरह साधारण बहुमत से किया जा सकता है।
  • यह संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आते।

उदाहरण:

  • नए राज्यों का निर्माण या सीमाओं में परिवर्तन (अनुच्छेद 3)
  • विधान परिषद का गठन या समाप्ति
  • पाँचवीं और छठी अनुसूचियों में परिवर्तन

(B) विशेष बहुमत से संशोधन (Special Majority – Article 368)

  • अधिकांश महत्वपूर्ण प्रावधानों में विशेष बहुमत से संशोधन आवश्यक है।
  • इसमें दो शर्तें होती हैं:
    1. उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत, और
    2. सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत

उदाहरण:

  • मौलिक अधिकार
  • राज्य नीति के निदेशक तत्व
  • राष्ट्रपति, संसद और न्यायपालिका की शक्तियाँ
  • केंद्र-राज्य संबंध

(C) विशेष बहुमत + राज्यों की पुष्टि (Special Majority with Ratification by States)

  • कुछ संशोधन ऐसे होते हैं जो केंद्र और राज्यों दोनों को प्रभावित करते हैं।
  • इसलिए इन्हें संसद में पारित करने के बाद कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है।

उदाहरण:

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन
  • केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण
  • संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व
  • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के संबंधी प्रावधान

3. संशोधन की वास्तविक प्रक्रिया

  • संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • आवश्यक बहुमत से पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर करने से इंकार नहीं कर सकते।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद यह संविधान का हिस्सा बन जाता है।

विशेष बहुमत (SPECIAL MAJORITY)

  • संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधानों में बदलाव के लिए विशेष बहुमत आवश्यक रखा गया है ताकि बदलाव आसानी से न हो।
  • यह संविधान की स्थिरता और लोकतांत्रिक सहमति दोनों सुनिश्चित करता है।
  • अधिकांश प्रमुख संशोधन जैसे मौलिक अधिकार या राज्य नीति के निदेशक तत्वों से संबंधित संशोधन इसी बहुमत से किए जाते हैं।

राज्यों की पुष्टि (RATIFICATION BY STATES)

  • संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ संशोधनों में राज्यों की स्वीकृति आवश्यक होती है।
  • कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन आवश्यक है।
  • यह भारत के संघीय चरित्र और सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) को सुदृढ़ करता है।

उदाहरण:

  • सातवाँ संशोधन (1956) — राज्यों का पुनर्गठन
  • बहत्तरवाँ और तिहत्तरवाँ संशोधन (1992) — पंचायत व नगरपालिकाएँ
  • बयालीसवाँ संशोधन (1976) — आपातकालीन संशोधन

इतने अधिक संशोधन क्यों हुए हैं? (WHY HAVE THERE BEEN SO MANY AMENDMENTS)

1950 से अब तक भारत के संविधान में 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं।
इसके पीछे कई कारण हैं —


1. परिवर्तनशील समाज

  • भारत एक तेज़ी से बदलने वाला समाज है।
  • सामाजिक न्याय, समानता, तकनीकी प्रगति जैसी नई चुनौतियों ने संविधान में परिवर्तन की मांग की।

2. प्रयोग और अनुकूलन

  • संविधान निर्माताओं ने परिवर्तन की संभावना को समझते हुए इसे लचीला बनाया था।
  • इसलिए समय-समय पर संशोधन करके इसे वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप बनाया गया।

3. राजनीतिक विकास

  • विभिन्न सरकारों ने अपनी नीतियों को लागू करने के लिए संशोधन किए।
  • जैसे 1970 के दशक में आपातकाल के दौरान कई संशोधन हुए जिन्होंने कार्यपालिका को मजबूत किया।

4. सामाजिक और आर्थिक सुधार

  • सामाजिक समानता और भूमि सुधारों के लिए कई संशोधन किए गए।
    • पहला संशोधन (1951) — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए।
    • 24वाँ और 25वाँ संशोधन — भूमि सुधारों के लिए मौलिक अधिकारों में बदलाव की अनुमति दी।

5. न्यायपालिका के निर्णय

  • कई बार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के बाद संसद ने संविधान में संशोधन करके स्पष्टता लाई या निर्णयों को पलटा।
    • जैसे गोलकनाथ मामला (1967) के बाद 24वाँ संशोधन किया गया।

6. राजनीतिक समझौते

  • भारत जैसे विविध देश में राजनीतिक और क्षेत्रीय मांगों को संतुलित करने के लिए संशोधन आवश्यक हुए।
    • उदाहरण: 73वाँ और 74वाँ संशोधन — पंचायत और नगरपालिका व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

7. संघीय समायोजन

  • केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को संतुलित बनाए रखने के लिए संशोधन आवश्यक रहे हैं।

8. वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण

  • बदलती आर्थिक नीतियों और वैश्विक परिस्थितियों के अनुसार भी संविधान में संशोधन किए गए।
    • उदाहरण: 101वाँ संशोधन (2016) — वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया गया।

मौलिक संरचना और संविधान का विकास (BASIC STRUCTURE AND EVOLUTION OF THE CONSTITUTION)


1. मौलिक संरचना का सिद्धांत क्या है?

  • यह सिद्धांत केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिया।
  • न्यायालय ने कहा — संसद संविधान में कोई भी संशोधन कर सकती है, परंतु उसकी मौलिक संरचना (Basic Structure) को नहीं बदल सकती।
  • इसका उद्देश्य संविधान की मुख्य आत्मा और सिद्धांतों की रक्षा करना है।

2. मौलिक संरचना के प्रमुख तत्व

सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मुख्य तत्व बताए, जैसे —

  • संविधान की सर्वोच्चता
  • भारत का लोकतांत्रिक, गणराज्य और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप
  • शक्तियों का पृथक्करण
  • संघीय ढांचा
  • न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
  • कानून का शासन (Rule of Law)
  • राष्ट्र की एकता और अखंडता
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता
  • संसदीय प्रणाली

3. न्यायिक व्याख्या से विकास

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों के माध्यम से संविधान के प्रावधानों का विस्तार और स्पष्टिकरण किया।

उदाहरण:

  • मेनेका गांधी मामला (1978) — अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का अर्थ व्यापक किया।
  • इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण (1975) — स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को संविधान की मौलिक संरचना बताया।
  • मिनर्वा मिल्स मामला (1980) — संसद की संशोधन शक्ति को सीमित किया।

4. लचीलापन और स्थायित्व का संतुलन

  • यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि संसद संविधान को बदल तो सकती है, लेकिन उसकी आत्मा नष्ट नहीं कर सकती।
  • इस प्रकार संविधान में स्थिरता और परिवर्तनशीलता दोनों का संतुलन बना रहता है।

न्यायपालिका का योगदान (CONTRIBUTION OF THE JUDICIARY)

  • सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक और व्याख्याता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संविधान में कोई भी संशोधन या कानून उसकी मूल भावना के विरुद्ध न जाए।

1. न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)

  • न्यायालय की शक्ति है कि वह यह देख सके कि संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानून संविधान के अनुरूप हैं या नहीं।
  • इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होती है और सत्ता का दुरुपयोग रोका जाता है।

2. मौलिक अधिकारों का विस्तार

  • सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों की उदार व्याख्या की है।
  • उदाहरण:
    • निजता का अधिकार (Right to Privacy)
    • शिक्षा का अधिकार (Right to Education)
    • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार (Right to Clean Environment)
    • सभी अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित किए गए।

3. मौलिक अधिकार और राज्य नीति के निदेशक तत्वों के बीच संतुलन

  • न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि मौलिक अधिकार और निदेशक तत्व एक-दूसरे के पूरक बने रहें, विरोधी नहीं।

4. संघीय ढाँचे की रक्षा

  • न्यायपालिका केंद्र और राज्यों दोनों के अधिकारों की संवैधानिक सीमाओं की रक्षा करती है।
  • यह सुनिश्चित करती है कि केंद्र राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण न करे।

राजनीतिक नेतृत्व की परिपक्वता (MATURITY OF THE POLITICAL LEADERSHIP)

  • भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने संविधान के सिद्धांतों का सम्मान और पालन किया है।
  • समय-समय पर आने वाली चुनौतियों के बावजूद लोकतांत्रिक संस्थाएँ सक्रिय और सशक्त बनी रहीं।

1. कानून के शासन का सम्मान

  • विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं ने संविधान और न्यायपालिका की सर्वोच्चता को स्वीकार किया है।

2. अनुभव से सीखना

  • जैसे आपातकाल (1975–77) के बाद नेताओं ने लोकतंत्र की अहमियत को समझा।
  • इसके बाद 44वाँ संशोधन करके कई शक्तियों को सीमित किया गया ताकि ऐसी स्थिति दोबारा न हो।

3. राजनीतिक सहमति

  • जीएसटी या पंचायत व्यवस्था जैसे बड़े संशोधनों पर सभी दलों के बीच सहमति बनी — यह राजनीतिक परिपक्वता का संकेत है।

4. लोकतांत्रिक निरंतरता

  • सत्ता परिवर्तन हमेशा शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक ढंग से हुआ है, जिससे संविधान के प्रति विश्वास मजबूत हुआ।

निष्कर्ष (CONCLUSION)

  • भारतीय संविधान वास्तव में एक जीवंत दस्तावेज़ है, जो समय के साथ बदलता और विकसित होता रहा है।
  • इसमें स्थिरता और लचीलापन, दोनों का सुंदर संतुलन है।
  • यह संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता, न्यायपालिका की व्याख्यात्मक भूमिका, और राजनीतिक नेतृत्व की परिपक्वता का परिणाम है।
  • इसने भारत को एकजुट, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राष्ट्र बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • बदलते समय की आवश्यकताओं के अनुसार संविधान की अनुकूलनशीलता ही इसे एक जीवंत, सशक्त और आधुनिक दस्तावेज़ बनाती है।
  • यही कारण है कि भारतीय संविधान आने वाली पीढ़ियों को भी न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता के आदर्शों की दिशा में मार्गदर्शन करता रहेगा।

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