🏛️ अध्याय 8 – स्थानीय सरकारें (LOCAL GOVERNMENTS)
परिचय (Introduction)
- स्थानीय सरकार (Local Government) का अर्थ है गाँव, कस्बे और शहर के स्तर पर शासन की व्यवस्था।
- यह भारत की शासन व्यवस्था का तीसरा स्तर है — केंद्र और राज्य सरकारों के बाद।
- स्थानीय सरकार का उद्देश्य है शासन को जनता के अधिक निकट लाना और उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करना।
- यह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation) के सिद्धांत पर आधारित है — अर्थात सत्ता को ऊपर से नीचे तक बाँटना।
- स्थानीय सरकारें स्थानीय आवश्यकताओं जैसे जलापूर्ति, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से जुड़े विषयों का संचालन करती हैं।
- यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को अधिक लचीला, व्यवहारिक और प्रभावी बनाती हैं।
- यह व्यवस्था समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं, अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और पिछड़े वर्गों (OBC) को प्रतिनिधित्व देती है।
- यह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज (Village Self-Rule) के विचार को साकार करती है।
- स्थानीय सरकारें नागरिकों को शासन से जोड़ती हैं और लोकतांत्रिक प्रशिक्षण का माध्यम बनती हैं।
- इससे केंद्र और राज्य सरकारों का कार्यभार भी कम होता है क्योंकि स्थानीय विषय स्थानीय स्तर पर ही निपटाए जाते हैं।
स्थानीय सरकारों की आवश्यकता (WHY LOCAL GOVERNMENTS?)
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:
- स्थानीय सरकारें लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक पहुँचाती हैं।
- नागरिक सीधे निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
- जनभागीदारी:
- लोग अपने विकास योजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
- इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
- प्रभावी प्रशासन:
- स्थानीय समस्याओं को वही लोग बेहतर समझते हैं जो वहीं रहते हैं।
- इससे योजनाओं का कार्यान्वयन अधिक प्रभावी होता है।
- उत्तरदायी शासन:
- निर्णय स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार लिए जाते हैं।
- वंचित वर्गों का सशक्तिकरण:
- आरक्षण के माध्यम से महिलाओं, SC, ST और OBC वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित होती है।
- विकास की आवश्यकताएँ:
- जलापूर्ति, स्वच्छता, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे स्थानीय कार्यों का संचालन।
- जवाबदेही में वृद्धि:
- नागरिक अपने प्रतिनिधियों से सीधे प्रश्न पूछ सकते हैं।
- जमीनी लोकतंत्र:
- लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाता है और नागरिकों में स्वामित्व की भावना जगाता है।
- नेतृत्व प्रशिक्षण:
- यह नई राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व पीढ़ी तैयार करता है।
- उच्च स्तर की सरकारों का भार कम:
- स्थानीय मुद्दों को स्थानीय स्तर पर ही सुलझाने से राज्य व केंद्र का बोझ घटता है।
भारत में स्थानीय सरकारों का विकास (GROWTH OF LOCAL GOVERNMENT IN INDIA)
1. प्राचीन और मध्यकालीन काल
- ग्राम पंचायतें भारत में प्राचीन समय से मौजूद थीं।
- वे विवाद निपटाने, व्यवस्था बनाए रखने और सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन का कार्य करती थीं।
- मुगल काल में केंद्रीकरण बढ़ने से पंचायतों का महत्व घट गया।
2. ब्रिटिश काल में विकास
- अंग्रेजों ने स्थानीय निकायों को मुख्यतः प्रशासनिक सुविधा के लिए शुरू किया, लोकतंत्र के लिए नहीं।
- लॉर्ड रिपन (1882) को “भारतीय स्थानीय स्वशासन का जनक (Father of Local Self-Government in India)” कहा जाता है।
- उन्होंने 1882 का स्थानीय स्वशासन संकल्प (Resolution on Local Self-Government) जारी किया।
- नगरपालिकाएँ और स्थानीय बोर्ड स्वच्छता, शिक्षा व सड़कों के रखरखाव हेतु बनाए गए।
- भारतीय परिषद अधिनियम 1909 और 1919 में सीमित स्थानीय भागीदारी दी गई।
- परंतु सत्ता और वित्तीय नियंत्रण ब्रिटिश अधिकारियों के पास ही रहा।
3. स्वतंत्रता के बाद (1992 से पहले)
- स्वतंत्रता के बाद पंचायतें तो बनी रहीं पर उन्हें संवैधानिक दर्जा नहीं मिला।
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) आरंभ की गईं।
- बलवंत राय मेहता समिति (1957) ने त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की सिफारिश की:
- ग्राम पंचायत (Village level)
- पंचायत समिति (Block level)
- जिला परिषद (District level)
- इसका मूल सिद्धांत था लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation)।
- पहली पंचायती राज व्यवस्था राजस्थान (1959) में लागू हुई।
- अशोक मेहता समिति (1978) ने द्वि-स्तरीय व्यवस्था और अधिक आर्थिक स्वायत्तता की बात कही।
- जी.वी.के. राव समिति (1985) और एल.एम. सिंहवी समिति (1986) ने पंचायतों को मजबूत बनाने पर बल दिया।
- परंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और राज्यों के बीच असमानता के कारण पंचायतें प्रभावी नहीं हो पाईं।
स्वतंत्र भारत में स्थानीय सरकारें (LOCAL GOVERNMENTS IN INDEPENDENT INDIA)
- 1992 से पहले पंचायतें राज्य सरकारों के अधीन थीं, संविधान का हिस्सा नहीं थीं।
- कई राज्यों में पंचायत चुनाव नियमित रूप से नहीं होते थे।
- स्थानीय निकायों के पास न तो पर्याप्त अधिकार, न वित्तीय संसाधन थे।
- राज्यों के बीच संरचना में असमानता थी।
- इस स्थिति को सुधारने के लिए 73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992) किया गया।
- इन संशोधनों ने पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया।
- इसके बाद भारत एक त्रि-स्तरीय संघीय प्रणाली बन गया:
- केंद्र सरकार
- राज्य सरकार
- स्थानीय सरकार (ग्राम और नगर स्तर)
73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992)
पृष्ठभूमि
- 1992 में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक मान्यता देने हेतु 73वां और 74वां संशोधन पारित हुआ।
- 73वां संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकार (पंचायती राज) से संबंधित है।
- 74वां संशोधन शहरी स्थानीय सरकार (नगरपालिकाएँ) से संबंधित है।
- इन संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन को संविधानिक ढाँचे का अभिन्न अंग बना दिया।
73वां संविधान संशोधन – ग्रामीण स्थानीय सरकार (PANCHAYATI RAJ)
1. संवैधानिक प्रावधान
- संविधान में नया भाग IX (Part IX – The Panchayats) जोड़ा गया — अनुच्छेद 243 से 243O तक।
- ग्यारहवीं अनुसूची (Eleventh Schedule) जोड़ी गई जिसमें 29 विषय शामिल हैं।
- ग्राम सभा को पंचायत व्यवस्था की आधारशिला बनाया गया।
2. पंचायती राज की त्रि-स्तरीय संरचना
- ग्राम पंचायत – गाँव स्तर पर
- पंचायत समिति – ब्लॉक या मध्य स्तर पर
- जिला परिषद – जिला स्तर पर
3. ग्राम सभा
- इसमें गाँव के सभी वयस्क मतदाता सदस्य होते हैं।
- यह पंचायत की योजनाओं, बजट और कार्यों की समीक्षा करती है।
- यह ग्राम लोकतंत्र का मुख्य मंच है।
4. गठन और चुनाव
- सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है।
- पंचायत समिति व जिला परिषद के अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
- कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- पंचायत के भंग होने पर 6 महीने के भीतर पुनः चुनाव आवश्यक हैं।
5. आरक्षण
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।
- राज्यों को OBC के लिए भी आरक्षण देने का अधिकार है।
6. राज्य निर्वाचन आयोग
- पंचायत चुनावों का संचालन करता है।
- राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य निर्वाचन आयुक्त इसका प्रमुख होता है।
7. राज्य वित्त आयोग
- हर पाँच वर्ष में पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करता है।
- राज्य और पंचायतों के बीच वित्तीय संसाधनों का बँटवारा सुझाता है।
8. पंचायतों के कार्य और शक्तियाँ
- आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाएँ बनाना।
- ग्यारहवीं अनुसूची के विषयों पर कार्यान्वयन — कृषि, सिंचाई, आवास, सड़कें, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
9. पंचायतों के धन स्रोत
- राज्य सरकार से अनुदान।
- राज्य द्वारा सौंपे गए कर, शुल्क, टोल आदि।
- स्थानीय कर जैसे घर-कर, बाजार शुल्क, जल-कर आदि।
10. महत्व
- पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला।
- नियमित चुनाव और लोकतांत्रिक संचालन सुनिश्चित हुआ।
- महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी बढ़ी।
- ग्रामीण शासन अधिक पारदर्शी और जवाबदेह हुआ।
74वां संविधान संशोधन – शहरी स्थानीय सरकार (MUNICIPALITIES)
1. संवैधानिक प्रावधान
- संविधान में नया भाग IXA (Part IXA – The Municipalities) जोड़ा गया — अनुच्छेद 243P से 243ZG तक।
- बारहवीं अनुसूची (Twelfth Schedule) में 18 विषय शामिल किए गए।
2. शहरी निकायों के प्रकार
- नगर पंचायत (Nagar Panchayat) – ग्रामीण से शहरी बनने वाले क्षेत्र।
- नगर परिषद (Municipal Council) – छोटे शहरी क्षेत्र।
- नगर निगम (Municipal Corporation) – बड़े शहरी क्षेत्र।
3. गठन और चुनाव
- सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा।
- अध्यक्षों का चुनाव राज्य कानून के अनुसार।
- कार्यकाल 5 वर्ष; विघटन पर 6 महीने के भीतर पुनः चुनाव।
4. आरक्षण
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।
- OBC के लिए भी आरक्षण संभव।
5. महानगरीय क्षेत्र (Metropolitan Areas)
- बड़े नगर समूहों के लिए महानगरीय नियोजन समितियाँ (Metropolitan Planning Committees) बनती हैं।
- ये पूरे महानगरीय क्षेत्र के लिए विकास योजनाएँ तैयार करती हैं।
6. राज्य निर्वाचन आयोग और वित्त आयोग
- पंचायतों की तरह ही नगरपालिकाओं के चुनाव और वित्तीय समीक्षा इन संस्थाओं द्वारा होती है।
7. नगरपालिकाओं के कार्य
- शहरी नियोजन, भूमि उपयोग नियंत्रण, पेयजल, अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कें, प्रकाश व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा आदि।
- आवास, पर्यावरण संरक्षण और शहरी विकास से जुड़े कार्य।
8. महत्व
- नगरपालिकाओं को स्वशासी संस्थानों (Self-Governing Institutions) का दर्जा मिला।
- नागरिकों की शहर शासन में प्रत्यक्ष भागीदारी बढ़ी।
- शहरी नियोजन और जवाबदेही में सुधार हुआ।
73वें और 74वें संशोधन का कार्यान्वयन (IMPLEMENTATION OF 73RD & 74TH AMENDMENTS)
1. उपलब्धियाँ
- संवैधानिक मान्यता:
- पंचायतों और नगरपालिकाओं को संविधान में स्थान मिला।
- नियमित चुनाव:
- लगभग सभी राज्यों में हर पाँच वर्ष में चुनाव हो रहे हैं।
- महिला सशक्तिकरण:
- एक-तिहाई से अधिक सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।
- कई राज्यों में यह 50% तक किया गया है।
- वंचित वर्गों की भागीदारी:
- SC, ST और OBC वर्गों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी।
- वित्तीय सहयोग:
- राज्य और केंद्र वित्त आयोगों द्वारा धन आवंटन।
- जमीनी लोकतंत्र की मजबूती:
- लोग सीधे शासन में भाग ले रहे हैं।
2. चुनौतियाँ
- वित्तीय स्वायत्तता की कमी:
- पंचायतें और नगरपालिकाएँ राज्य सरकारों पर निर्भर हैं।
- ग्राम सभाओं की निष्क्रियता:
- कई स्थानों पर ग्राम सभा की बैठकें नियमित नहीं होतीं।
- राज्य सरकार का हस्तक्षेप:
- राज्य पंचायतों की शक्तियों को सीमित कर देती हैं।
- प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी:
- योजनाओं के कार्यान्वयन में कठिनाई।
- राजनीतिक व नौकरशाही दखल:
- स्थानीय निकायों में स्वतंत्र निर्णय लेने की कमी।
- विकास में असमानता:
- कुछ क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन, कुछ में पिछड़ापन।
- भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी:
- वित्तीय अनुशासन और निगरानी की कमजोरियाँ।
- शहरी समस्याएँ:
- जनसंख्या वृद्धि से नगरपालिकाओं पर अत्यधिक दबाव।
निष्कर्ष (Conclusion)
- 73वां और 74वां संविधान संशोधन भारतीय लोकतंत्र की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
- इनसे स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा मिला और सत्ता का विकेंद्रीकरण संभव हुआ।
- पंचायतें और नगरपालिकाएँ अब ग्राम और नगर स्तर पर लोकतंत्र की प्रयोगशालाएँ हैं।
- हालांकि वित्तीय व प्रशासनिक चुनौतियाँ अब भी हैं, फिर भी इन संस्थाओं ने नागरिकों को सशक्त बनाया है।
- सफलता की कुंजी जनभागीदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति में निहित है।
- स्थानीय सरकारें वास्तव में “जनता को शक्ति” (Power to the People) के संवैधानिक आदर्श को मूर्त रूप देती हैं।
