political science CBSE class 11 course A अध्याय 8 – स्थानीय सरकारें (LOCAL GOVERNMENTS)


🏛️ अध्याय 8 – स्थानीय सरकारें (LOCAL GOVERNMENTS)


परिचय (Introduction)

  1. स्थानीय सरकार (Local Government) का अर्थ है गाँव, कस्बे और शहर के स्तर पर शासन की व्यवस्था।
  2. यह भारत की शासन व्यवस्था का तीसरा स्तर है — केंद्र और राज्य सरकारों के बाद।
  3. स्थानीय सरकार का उद्देश्य है शासन को जनता के अधिक निकट लाना और उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करना
  4. यह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation) के सिद्धांत पर आधारित है — अर्थात सत्ता को ऊपर से नीचे तक बाँटना।
  5. स्थानीय सरकारें स्थानीय आवश्यकताओं जैसे जलापूर्ति, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से जुड़े विषयों का संचालन करती हैं।
  6. यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को अधिक लचीला, व्यवहारिक और प्रभावी बनाती हैं।
  7. यह व्यवस्था समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं, अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और पिछड़े वर्गों (OBC) को प्रतिनिधित्व देती है।
  8. यह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज (Village Self-Rule) के विचार को साकार करती है।
  9. स्थानीय सरकारें नागरिकों को शासन से जोड़ती हैं और लोकतांत्रिक प्रशिक्षण का माध्यम बनती हैं।
  10. इससे केंद्र और राज्य सरकारों का कार्यभार भी कम होता है क्योंकि स्थानीय विषय स्थानीय स्तर पर ही निपटाए जाते हैं।

स्थानीय सरकारों की आवश्यकता (WHY LOCAL GOVERNMENTS?)

  1. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण:
    • स्थानीय सरकारें लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक पहुँचाती हैं।
    • नागरिक सीधे निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
  2. जनभागीदारी:
    • लोग अपने विकास योजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
    • इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
  3. प्रभावी प्रशासन:
    • स्थानीय समस्याओं को वही लोग बेहतर समझते हैं जो वहीं रहते हैं।
    • इससे योजनाओं का कार्यान्वयन अधिक प्रभावी होता है।
  4. उत्तरदायी शासन:
    • निर्णय स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार लिए जाते हैं।
  5. वंचित वर्गों का सशक्तिकरण:
    • आरक्षण के माध्यम से महिलाओं, SC, ST और OBC वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  6. विकास की आवश्यकताएँ:
    • जलापूर्ति, स्वच्छता, सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे स्थानीय कार्यों का संचालन।
  7. जवाबदेही में वृद्धि:
    • नागरिक अपने प्रतिनिधियों से सीधे प्रश्न पूछ सकते हैं।
  8. जमीनी लोकतंत्र:
    • लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाता है और नागरिकों में स्वामित्व की भावना जगाता है।
  9. नेतृत्व प्रशिक्षण:
    • यह नई राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व पीढ़ी तैयार करता है।
  10. उच्च स्तर की सरकारों का भार कम:
    • स्थानीय मुद्दों को स्थानीय स्तर पर ही सुलझाने से राज्य व केंद्र का बोझ घटता है।

भारत में स्थानीय सरकारों का विकास (GROWTH OF LOCAL GOVERNMENT IN INDIA)

1. प्राचीन और मध्यकालीन काल

  • ग्राम पंचायतें भारत में प्राचीन समय से मौजूद थीं।
  • वे विवाद निपटाने, व्यवस्था बनाए रखने और सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन का कार्य करती थीं।
  • मुगल काल में केंद्रीकरण बढ़ने से पंचायतों का महत्व घट गया।

2. ब्रिटिश काल में विकास

  1. अंग्रेजों ने स्थानीय निकायों को मुख्यतः प्रशासनिक सुविधा के लिए शुरू किया, लोकतंत्र के लिए नहीं।
  2. लॉर्ड रिपन (1882) को “भारतीय स्थानीय स्वशासन का जनक (Father of Local Self-Government in India)” कहा जाता है।
  3. उन्होंने 1882 का स्थानीय स्वशासन संकल्प (Resolution on Local Self-Government) जारी किया।
  4. नगरपालिकाएँ और स्थानीय बोर्ड स्वच्छता, शिक्षा व सड़कों के रखरखाव हेतु बनाए गए।
  5. भारतीय परिषद अधिनियम 1909 और 1919 में सीमित स्थानीय भागीदारी दी गई।
  6. परंतु सत्ता और वित्तीय नियंत्रण ब्रिटिश अधिकारियों के पास ही रहा।

3. स्वतंत्रता के बाद (1992 से पहले)

  1. स्वतंत्रता के बाद पंचायतें तो बनी रहीं पर उन्हें संवैधानिक दर्जा नहीं मिला
  2. सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) आरंभ की गईं।
  3. बलवंत राय मेहता समिति (1957) ने त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की सिफारिश की:
    • ग्राम पंचायत (Village level)
    • पंचायत समिति (Block level)
    • जिला परिषद (District level)
  4. इसका मूल सिद्धांत था लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation)
  5. पहली पंचायती राज व्यवस्था राजस्थान (1959) में लागू हुई।
  6. अशोक मेहता समिति (1978) ने द्वि-स्तरीय व्यवस्था और अधिक आर्थिक स्वायत्तता की बात कही।
  7. जी.वी.के. राव समिति (1985) और एल.एम. सिंहवी समिति (1986) ने पंचायतों को मजबूत बनाने पर बल दिया।
  8. परंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और राज्यों के बीच असमानता के कारण पंचायतें प्रभावी नहीं हो पाईं।

स्वतंत्र भारत में स्थानीय सरकारें (LOCAL GOVERNMENTS IN INDEPENDENT INDIA)

  1. 1992 से पहले पंचायतें राज्य सरकारों के अधीन थीं, संविधान का हिस्सा नहीं थीं।
  2. कई राज्यों में पंचायत चुनाव नियमित रूप से नहीं होते थे।
  3. स्थानीय निकायों के पास न तो पर्याप्त अधिकार, न वित्तीय संसाधन थे।
  4. राज्यों के बीच संरचना में असमानता थी।
  5. इस स्थिति को सुधारने के लिए 73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992) किया गया।
  6. इन संशोधनों ने पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया।
  7. इसके बाद भारत एक त्रि-स्तरीय संघीय प्रणाली बन गया:
    • केंद्र सरकार
    • राज्य सरकार
    • स्थानीय सरकार (ग्राम और नगर स्तर)

73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992)

पृष्ठभूमि

  1. 1992 में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक मान्यता देने हेतु 73वां और 74वां संशोधन पारित हुआ।
  2. 73वां संशोधन ग्रामीण स्थानीय सरकार (पंचायती राज) से संबंधित है।
  3. 74वां संशोधन शहरी स्थानीय सरकार (नगरपालिकाएँ) से संबंधित है।
  4. इन संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन को संविधानिक ढाँचे का अभिन्न अंग बना दिया।

73वां संविधान संशोधन – ग्रामीण स्थानीय सरकार (PANCHAYATI RAJ)

1. संवैधानिक प्रावधान

  1. संविधान में नया भाग IX (Part IX – The Panchayats) जोड़ा गया — अनुच्छेद 243 से 243O तक।
  2. ग्यारहवीं अनुसूची (Eleventh Schedule) जोड़ी गई जिसमें 29 विषय शामिल हैं।
  3. ग्राम सभा को पंचायत व्यवस्था की आधारशिला बनाया गया।

2. पंचायती राज की त्रि-स्तरीय संरचना

  • ग्राम पंचायत – गाँव स्तर पर
  • पंचायत समिति – ब्लॉक या मध्य स्तर पर
  • जिला परिषद – जिला स्तर पर

3. ग्राम सभा

  • इसमें गाँव के सभी वयस्क मतदाता सदस्य होते हैं।
  • यह पंचायत की योजनाओं, बजट और कार्यों की समीक्षा करती है।
  • यह ग्राम लोकतंत्र का मुख्य मंच है।

4. गठन और चुनाव

  • सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है।
  • पंचायत समिति व जिला परिषद के अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
  • कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
  • पंचायत के भंग होने पर 6 महीने के भीतर पुनः चुनाव आवश्यक हैं।

5. आरक्षण

  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित
  • राज्यों को OBC के लिए भी आरक्षण देने का अधिकार है।

6. राज्य निर्वाचन आयोग

  • पंचायत चुनावों का संचालन करता है।
  • राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य निर्वाचन आयुक्त इसका प्रमुख होता है।

7. राज्य वित्त आयोग

  • हर पाँच वर्ष में पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करता है।
  • राज्य और पंचायतों के बीच वित्तीय संसाधनों का बँटवारा सुझाता है।

8. पंचायतों के कार्य और शक्तियाँ

  • आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाएँ बनाना।
  • ग्यारहवीं अनुसूची के विषयों पर कार्यान्वयन — कृषि, सिंचाई, आवास, सड़कें, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।

9. पंचायतों के धन स्रोत

  • राज्य सरकार से अनुदान।
  • राज्य द्वारा सौंपे गए कर, शुल्क, टोल आदि।
  • स्थानीय कर जैसे घर-कर, बाजार शुल्क, जल-कर आदि।

10. महत्व

  • पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला।
  • नियमित चुनाव और लोकतांत्रिक संचालन सुनिश्चित हुआ।
  • महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी बढ़ी।
  • ग्रामीण शासन अधिक पारदर्शी और जवाबदेह हुआ।

74वां संविधान संशोधन – शहरी स्थानीय सरकार (MUNICIPALITIES)

1. संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान में नया भाग IXA (Part IXA – The Municipalities) जोड़ा गया — अनुच्छेद 243P से 243ZG तक।
  • बारहवीं अनुसूची (Twelfth Schedule) में 18 विषय शामिल किए गए।

2. शहरी निकायों के प्रकार

  1. नगर पंचायत (Nagar Panchayat) – ग्रामीण से शहरी बनने वाले क्षेत्र।
  2. नगर परिषद (Municipal Council) – छोटे शहरी क्षेत्र।
  3. नगर निगम (Municipal Corporation) – बड़े शहरी क्षेत्र।

3. गठन और चुनाव

  • सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा।
  • अध्यक्षों का चुनाव राज्य कानून के अनुसार।
  • कार्यकाल 5 वर्ष; विघटन पर 6 महीने के भीतर पुनः चुनाव

4. आरक्षण

  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित
  • OBC के लिए भी आरक्षण संभव।

5. महानगरीय क्षेत्र (Metropolitan Areas)

  • बड़े नगर समूहों के लिए महानगरीय नियोजन समितियाँ (Metropolitan Planning Committees) बनती हैं।
  • ये पूरे महानगरीय क्षेत्र के लिए विकास योजनाएँ तैयार करती हैं।

6. राज्य निर्वाचन आयोग और वित्त आयोग

  • पंचायतों की तरह ही नगरपालिकाओं के चुनाव और वित्तीय समीक्षा इन संस्थाओं द्वारा होती है।

7. नगरपालिकाओं के कार्य

  • शहरी नियोजन, भूमि उपयोग नियंत्रण, पेयजल, अपशिष्ट प्रबंधन, सड़कें, प्रकाश व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा आदि।
  • आवास, पर्यावरण संरक्षण और शहरी विकास से जुड़े कार्य।

8. महत्व

  • नगरपालिकाओं को स्वशासी संस्थानों (Self-Governing Institutions) का दर्जा मिला।
  • नागरिकों की शहर शासन में प्रत्यक्ष भागीदारी बढ़ी।
  • शहरी नियोजन और जवाबदेही में सुधार हुआ।

73वें और 74वें संशोधन का कार्यान्वयन (IMPLEMENTATION OF 73RD & 74TH AMENDMENTS)

1. उपलब्धियाँ

  1. संवैधानिक मान्यता:
    • पंचायतों और नगरपालिकाओं को संविधान में स्थान मिला।
  2. नियमित चुनाव:
    • लगभग सभी राज्यों में हर पाँच वर्ष में चुनाव हो रहे हैं।
  3. महिला सशक्तिकरण:
    • एक-तिहाई से अधिक सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित।
    • कई राज्यों में यह 50% तक किया गया है।
  4. वंचित वर्गों की भागीदारी:
    • SC, ST और OBC वर्गों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी।
  5. वित्तीय सहयोग:
    • राज्य और केंद्र वित्त आयोगों द्वारा धन आवंटन।
  6. जमीनी लोकतंत्र की मजबूती:
    • लोग सीधे शासन में भाग ले रहे हैं।

2. चुनौतियाँ

  1. वित्तीय स्वायत्तता की कमी:
    • पंचायतें और नगरपालिकाएँ राज्य सरकारों पर निर्भर हैं।
  2. ग्राम सभाओं की निष्क्रियता:
    • कई स्थानों पर ग्राम सभा की बैठकें नियमित नहीं होतीं।
  3. राज्य सरकार का हस्तक्षेप:
    • राज्य पंचायतों की शक्तियों को सीमित कर देती हैं।
  4. प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी:
    • योजनाओं के कार्यान्वयन में कठिनाई।
  5. राजनीतिक व नौकरशाही दखल:
    • स्थानीय निकायों में स्वतंत्र निर्णय लेने की कमी।
  6. विकास में असमानता:
    • कुछ क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन, कुछ में पिछड़ापन।
  7. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी:
    • वित्तीय अनुशासन और निगरानी की कमजोरियाँ।
  8. शहरी समस्याएँ:
    • जनसंख्या वृद्धि से नगरपालिकाओं पर अत्यधिक दबाव।

निष्कर्ष (Conclusion)

  1. 73वां और 74वां संविधान संशोधन भारतीय लोकतंत्र की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।
  2. इनसे स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा मिला और सत्ता का विकेंद्रीकरण संभव हुआ।
  3. पंचायतें और नगरपालिकाएँ अब ग्राम और नगर स्तर पर लोकतंत्र की प्रयोगशालाएँ हैं।
  4. हालांकि वित्तीय व प्रशासनिक चुनौतियाँ अब भी हैं, फिर भी इन संस्थाओं ने नागरिकों को सशक्त बनाया है।
  5. सफलता की कुंजी जनभागीदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति में निहित है।
  6. स्थानीय सरकारें वास्तव में “जनता को शक्ति” (Power to the People) के संवैधानिक आदर्श को मूर्त रूप देती हैं।


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