political science CBSE class 11 course A अध्याय 7 – संघवाद (FEDERALISM)


🏛️ अध्याय 7 – संघवाद (FEDERALISM)

(राजनीति विज्ञान – कक्षा 11, पाठ्यक्रम A)
शब्द संख्या: लगभग 4050
नो कॉपीराइट – केवल शैक्षणिक उपयोग हेतु


परिचय (INTRODUCTION)

  1. अर्थ:
    • संघवाद एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शक्ति का विभाजन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच संविधान द्वारा किया जाता है।
    • प्रत्येक स्तर की सरकार को स्वतंत्र अधिकार क्षेत्र प्राप्त होता है।
  2. उद्देश्य:
    • एकता और विविधता के बीच संतुलन बनाए रखना।
    • क्षेत्रीय पहचान की रक्षा करते हुए राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना।
    • शासन में शक्ति-साझेदारी (Power Sharing) को प्रोत्साहित करना।
  3. संघवाद की आवश्यकता क्यों:
    • विशाल और विविध देशों में प्रशासन को प्रभावी बनाने हेतु।
    • स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए जन भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु।
    • राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता बनाए रखने हेतु।
  4. संघीय देशों के उदाहरण:
    • अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड, भारत, जर्मनी, ब्राजील, रूस, नाइजीरिया आदि।
  5. एकात्मक और संघीय शासन में अंतर: एकात्मक (Unitary) संघीय (Federal) शक्ति केंद्र में केंद्रित शक्ति का विभाजन केंद्र और राज्यों में एक ही स्तर की सरकार दो स्तर की सरकार उदाहरण: ब्रिटेन, फ्रांस उदाहरण: भारत, अमेरिका

संघवाद क्या है? (WHAT IS FEDERALISM?)

  1. परिभाषा:
    • संघवाद एक राजनीतिक प्रणाली है जिसमें शक्ति का संवैधानिक विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच होता है।
  2. संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ:
    • दो स्तर की सरकार: केंद्र व राज्य।
    • संविधान द्वारा शक्ति विभाजन।
    • संविधान की सर्वोच्चता।
    • स्वतंत्र न्यायपालिका।
    • कठोर संविधान: ताकि शक्तियों का मनमाना परिवर्तन न हो सके।
    • द्विसदनीय विधानमंडल: राज्य प्रतिनिधित्व हेतु (जैसे – राज्यसभा)।
  3. संघवाद के उद्देश्य:
    • एकता में विविधता को बढ़ावा देना।
    • शक्ति के केंद्रीकरण को रोकना।
    • शासन में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • प्रभावी प्रशासन के लिए जिम्मेदारियाँ बाँटना।
  4. संघवाद के प्रकार:
    • Coming Together Federation: स्वतंत्र राज्य मिलकर संघ बनाते हैं (जैसे – अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड)।
    • Holding Together Federation: एक बड़ा देश शक्ति बाँटता है (जैसे – भारत, स्पेन, बेल्जियम)।
  5. लोकतंत्र से संबंध:
    • संघवाद शक्ति-साझेदारी और सहभागिता पर आधारित है।
    • यह लोकतंत्र को मजबूत करता है क्योंकि विविध समूहों को प्रतिनिधित्व मिलता है।

भारतीय संविधान में संघवाद (FEDERALISM IN THE INDIAN CONSTITUTION)

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • स्वतंत्रता से पूर्व भारत में प्रांत और देशी रियासतें थीं।
    • संविधान निर्माताओं ने एक मजबूत पर लचीला संघीय ढाँचा चुना।
  2. भारतीय संघवाद की प्रकृति:
    • अनुच्छेद 1 में भारत को कहा गया है — “राज्यों का संघ (Union of States)”
    • भारत का संघ संविधान से उत्पन्न हुआ, राज्यों की आपसी संधि से नहीं।
    • इसलिए भारत को “अर्ध-संघीय” (Quasi-Federal) कहा जाता है।
  3. संघीय विशेषताएँ:
    • लिखित संविधान।
    • द्विस्तरीय शासन व्यवस्था।
    • शक्ति का स्पष्ट विभाजन।
    • स्वतंत्र न्यायपालिका।
    • संविधान की सर्वोच्चता।
    • द्विसदनीय संसद (राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व)।
  4. एकात्मक विशेषताएँ:
    • मजबूत केंद्र सरकार।
    • एक ही संविधान (पूर्व में जम्मू-कश्मीर को छोड़कर)।
    • एकल नागरिकता।
    • आपातकालीन प्रावधान।
    • एकीकृत न्यायिक व्यवस्था।
    • ऑल इंडिया सर्विसेज (IAS, IPS) केंद्र व राज्यों में कार्यरत।
  5. अनुच्छेद 1 – “भारत, अर्थात भारतवर्ष, राज्यों का संघ होगा।”
    • इसका अर्थ – संघ अविनाशी है, पर राज्य बदल सकते हैं।
  6. संघीय और एकात्मक तत्वों में संतुलन:
    • भारत ने एकता और विविधता दोनों को ध्यान में रखकर शक्ति बाँटी।
    • केंद्र मजबूत है, पर राज्यों को भी पर्याप्त स्वायत्तता दी गई है।

शक्तियों का विभाजन (DIVISION OF POWERS)

  1. संवैधानिक आधार:
    • संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत शक्तियाँ तीन सूचियों में बाँटी गई हैं:
      1. संघ सूची (Union List) – 97 विषय
      2. राज्य सूची (State List) – 66 विषय
      3. समवर्ती सूची (Concurrent List) – 47 विषय
  2. संघ सूची:
    • राष्ट्रीय महत्व के विषय।
    • उदाहरण: रक्षा, विदेश नीति, रेल, डाक, बैंकिंग, मुद्रा, संचार।
  3. राज्य सूची:
    • क्षेत्रीय या स्थानीय विषय।
    • उदाहरण: पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, बाजार, स्थानीय शासन।
  4. समवर्ती सूची:
    • ऐसे विषय जिन पर केंद्र व राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
    • उदाहरण: शिक्षा, वन, विवाह, अपराध कानून, बिजली।
    • विवाद की स्थिति में केंद्रीय कानून को प्रधानता (अनुच्छेद 254)।
  5. शेष शक्तियाँ (Residuary Powers):
    • जो विषय किसी सूची में नहीं हैं, वे केंद्र के अधीन (अनुच्छेद 248)।
    • उदाहरण: परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान, साइबर कानून।
  6. वित्तीय संघवाद (Financial Federalism):
    • कर और राजस्व का विभाजन केंद्र व राज्यों में होता है।
    • वित्त आयोग (अनुच्छेद 280) इस वितरण की सिफारिश करता है।
    • केंद्र राज्यों को अनुदान (Grants-in-aid) भी देता है।
  7. अंतर-राज्य संबंध:
    • अंतर-राज्य परिषद (अनुच्छेद 263) सहयोग बढ़ाने हेतु।
    • क्षेत्रीय परिषदें (Zonal Councils) पारस्परिक सहयोग के लिए।
    • नदियों, सीमाओं और संसाधनों के विवाद न्यायालय या संसद सुलझाती है।

मजबूत केंद्र के साथ संघवाद (FEDERALISM WITH A STRONG CENTRAL GOVERNMENT)

  1. मजबूत केंद्र की आवश्यकता:
    • भारत की विविधता, विशालता और विभाजन के अनुभव के कारण केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया।
    • उद्देश्य – राष्ट्रीय एकता, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना।
  2. केंद्रीय प्रभुत्व के उदाहरण:
    • रक्षा, संचार, विदेश नीति, वित्त केंद्र के अधीन।
    • आपातकाल में केंद्र को राज्यों की शक्तियाँ मिल जाती हैं।
    • राज्यपाल व अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र के प्रभाव को सुनिश्चित करती हैं।
    • संसद राज्य सीमाएँ बदल सकती है (अनुच्छेद 3)।
  3. आलोचनाएँ:
    • राज्यों की स्वायत्तता सीमित।
    • संघीय संतुलन कई बार केंद्र के पक्ष में झुका हुआ।
    • राष्ट्रपति शासन का राजनीतिक दुरुपयोग।
  4. लाभ:
    • राष्ट्रीय एकता को मजबूती।
    • नीतियों में एकरूपता।
    • संकट प्रबंधन में दक्षता।
  5. संघवाद का व्यावहारिक रूप:
    • 1990 के बाद भारत सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की ओर बढ़ा।
    • गठबंधन सरकारों व क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ी।

राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन की भूमिका (ROLE OF GOVERNORS AND PRESIDENT’S RULE)

  1. राज्यपाल – केंद्र और राज्य के बीच सेतु:
    • अनुच्छेद 153 के अंतर्गत राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
    • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त
    • केंद्र सरकार का प्रतिनिधि
  2. राज्यपाल के कार्य:
    • कार्यपालिका: मुख्यमंत्री की नियुक्ति, मंत्रिपरिषद का गठन।
    • विधायी: विधानसभा बुलाना, भंग करना, विधेयकों पर हस्ताक्षर।
    • न्यायिक: क्षमा या दंड माफी का अधिकार (राज्य विषयों पर)।
    • विवेकाधीन शक्तियाँ:
      • जब कोई दल स्पष्ट बहुमत न पाए।
      • राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) की सिफारिश करना।
      • किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रखना
  3. राष्ट्रपति शासन (Article 356):
    • जब किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी विफल हो जाए।
    • राज्यपाल की रिपोर्ट पर लगाया जाता है।
    • राज्य सरकार और विधानसभा निलंबित
    • शासन राष्ट्रपति (राज्यपाल के माध्यम से) चलाते हैं।
  4. अवधि:
    • पहले 6 माह, संसद की अनुमति से अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  5. दुरुपयोग और सुधार:
    • 1994 के एस.आर. बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा – राष्ट्रपति शासन न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा।
    • इससे मनमाने प्रयोग पर रोक लगी।
  6. सुझाव:
    • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को सीमित करना।
    • सहयोग की भावना को बढ़ाना।

कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान (SPECIAL PROVISIONS)

  1. विशेष प्रावधान की आवश्यकता:
    • ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के कारण कुछ राज्यों को विशेष अधिकार दिए गए।
  2. अनुच्छेद 371 से 371J तक के विशेष प्रावधान:
    • महाराष्ट्र व गुजरात (371): पिछड़े क्षेत्रों के विकास बोर्ड।
    • नागालैंड (371A): नागा रीति-रिवाज व भूमि अधिकारों की रक्षा।
    • असम (371B): जनजातीय परिषदें।
    • मणिपुर (371C): पहाड़ी क्षेत्रों की विशेष समिति।
    • आंध्र प्रदेश व तेलंगाना (371D): शिक्षा व रोजगार में समान अवसर।
    • सिक्किम (371F): राज्य की विशिष्ट स्थिति और प्रतिनिधित्व।
    • गोवा (371I): भूमि अधिकार सुरक्षा।
    • कर्नाटक (371J): हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष लाभ।
  3. केंद्रशासित प्रदेश (Union Territories):
    • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक/लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा संचालित।
    • कुछ प्रदेशों (दिल्ली, पुडुचेरी, जम्मू-कश्मीर) में विधानसभा होती है।

जम्मू-कश्मीर (विशेष दर्जा और परिवर्तन)

  1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • जम्मू-कश्मीर ने 1947 में भारत में विलय किया।
    • अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था।
  2. अनुच्छेद 370 की प्रमुख बातें (2019 से पूर्व):
    • राज्य का स्वयं का संविधान और ध्वज था।
    • केंद्र सरकार को केवल रक्षा, विदेश और संचार पर अधिकार था।
    • अन्य कानून राज्य की सहमति से लागू होते थे।
  3. राज्य की स्वायत्तता:
    • निवास, संपत्ति और मौलिक अधिकारों पर विशेष नियम।
    • कई केंद्रीय कानून लागू नहीं होते थे।
  4. अनुच्छेद 370 का निरसन (2019):
    • अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति आदेश और संसद प्रस्ताव द्वारा अनुच्छेद 370 समाप्त किया।
    • राज्य का पुनर्गठन कर दो केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए –
      1. जम्मू और कश्मीर (विधानसभा सहित)
      2. लद्दाख (बिना विधानसभा)
  5. परिणाम:
    • भारतीय संविधान व कानून अब पूर्णतः लागू।
    • अलग संविधान और ध्वज समाप्त।
    • केंद्र का नियंत्रण बढ़ा।
    • उद्देश्य – एकीकरण और समान विकास
  6. संघवाद पर प्रभाव:
    • भारत का संघ और अधिक एकात्मक हुआ।
    • राज्य स्वायत्तता पर नई बहसें प्रारंभ हुईं।

सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद (COOPERATIVE AND COMPETITIVE FEDERALISM)

  1. सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism):
    • केंद्र और राज्य साझा लक्ष्यों हेतु साथ काम करते हैं।
    • उदाहरण: नीति आयोग, जीएसटी परिषद, केंद्रीय योजनाएँ।
  2. प्रतिस्पर्धी संघवाद (Competitive Federalism):
    • राज्य आपस में विकास, निवेश और शासन सुधार के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
    • इससे दक्षता और नवाचार बढ़ता है।
  3. भारत में प्रवृत्ति:
    • 1990 के बाद भारत में सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों के बीच संतुलन बना।
    • राज्य अब राष्ट्रीय नीतियों में सक्रिय भागीदार हैं।

निष्कर्ष (CONCLUSION)

  1. भारत का संघवाद विविधता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है।
  2. संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन स्थापित किया।
  3. भारत में संघवाद धीरे-धीरे सहकारी संघवाद की दिशा में विकसित हुआ है।
  4. संविधान की लचीलापन शक्ति भारत को बदलते समय के साथ ढालने में मदद करती है।
  5. सफलता की कुंजी –
    • संवैधानिक प्रावधानों का पालन।
    • केंद्र-राज्य सहयोग की भावना।
    • विकेंद्रीकृत शासन और जनभागीदारी।

मुख्य शब्दावली (KEY TERMS)

शब्दअर्थ
संघवादशक्ति का विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच
राज्यों का संघभारत की संवैधानिक परिभाषा
सातवीं अनुसूचीविषयों का विभाजन
अनुच्छेद 356राष्ट्रपति शासन का प्रावधान
अनुच्छेद 370जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (अब समाप्त)
वित्त आयोगकेंद्र-राज्य राजस्व वितरण संस्था
सहकारी संघवादकेंद्र और राज्य मिलकर विकास कार्य करते हैं

संक्षिप्त पुनरावृत्ति बिंदु (Exam Summary Points)

  1. भारत अर्ध-संघीय राज्य है।
  2. सातवीं अनुसूची में शक्तियों का विभाजन है।
  3. केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली है।
  4. राज्यपाल केंद्र और राज्य का सेतु है।
  5. अनुच्छेद 356 – राज्य में संवैधानिक विफलता पर राष्ट्रपति शासन।
  6. अनुच्छेद 371–371J – राज्यों के विशेष प्रावधान।
  7. अनुच्छेद 370 (2019 में समाप्त) – जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा।
  8. भारत में संघवाद अब सहकारी और प्रतिस्पर्धी दोनों रूपों में विकसित है।

Leave a Reply

Scroll to Top