📘 अध्याय – 3
चुनाव और प्रतिनिधित्व (Elections and Representation)
🌿 प्रस्तावना
लोकतंत्र की सफलता का सबसे बड़ा आधार चुनाव प्रणाली (Electoral System) है।
लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च सत्ता होती है और वही यह तय करती है कि शासन कौन चलाएगा।
इसी प्रक्रिया को सुनिश्चित करने का माध्यम है — “चुनाव”।
भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में चुनाव केवल प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि
जनसत्ता (People’s Sovereignty) का प्रतीक हैं।
संविधान ने यह सुनिश्चित किया है कि हर नागरिक को समान मताधिकार मिले,
और चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी हों।
🗳️ 1. चुनाव और लोकतंत्र (Elections and Democracy)
🔹 लोकतंत्र का आधार – जनमत
लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि शासन जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता का होता है।
इस सिद्धांत को व्यावहारिक रूप से संभव बनाते हैं – नियमित चुनाव।
चुनाव के बिना लोकतंत्र केवल एक विचार मात्र रह जाएगा।
🔹 चुनाव का उद्देश्य
- जनप्रतिनिधियों का चयन करना।
- जनता को शासन में भागीदारी देना।
- सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना।
- राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना।
🔹 भारत में लोकतांत्रिक परंपरा
भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने की दिशा में कदम बढ़ाया।
1950 में संविधान लागू हुआ और 1951–52 में पहला आम चुनाव संपन्न हुआ।
तब से लेकर अब तक भारत में नियमित रूप से चुनाव हो रहे हैं,
जो इसकी लोकतांत्रिक मजबूती को दर्शाते हैं।
🏛️ 2. भारत की चुनाव प्रणाली (Election System in India)
भारत की चुनाव प्रणाली संवैधानिक व्यवस्था के तहत संचालित होती है।
संविधान के भाग XV (Part XV) में “Elections” से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं —
अनुच्छेद 324 से 329 तक।
🔹 1. सार्वभौम वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise)
भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया है कि —
“जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है, वह बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकता है।”
इस अधिकार को अनुच्छेद 326 के तहत मान्यता दी गई है।
यह सिद्धांत भारत को वास्तव में “लोकतांत्रिक गणराज्य” बनाता है।
🔹 2. प्रथम-प्रत्याशी-पार (FPTP – First Past The Post System)
भारत की संसद और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में यह प्रणाली अपनाई गई है।
इसे “बहुमत आधारित निर्वाचन प्रणाली” (Majoritarian System) भी कहते हैं।
🔸 कैसे काम करती है:
- देश को कई निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) में बाँटा जाता है।
- प्रत्येक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
- जो प्रत्याशी सबसे अधिक वोट प्राप्त करता है, वही विजयी घोषित होता है,
भले ही उसे कुल वोटों का 50% से कम ही क्यों न मिले।
🔸 उदाहरण:
अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में 3 उम्मीदवार हैं —
A को 40%, B को 35%, और C को 25% वोट मिले,
तो A विजेता घोषित होगा।
🔸 लाभ:
- सरल और समझने में आसान प्रणाली।
- स्थिर सरकार बनाने में मददगार।
- स्थानीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित।
🔸 हानियाँ:
- अल्पमत में भी उम्मीदवार जीत सकता है।
- छोटी पार्टियों को नुकसान।
- क्षेत्रीय असंतुलन की संभावना।
🔹 3. समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System – PR)
यह प्रणाली बहुदलीय व्यवस्था और समान प्रतिनिधित्व की भावना पर आधारित है।
इसका प्रयोग भारत में राज्यसभा (Council of States) और राष्ट्रपति चुनाव में होता है।
🔸 कैसे काम करती है:
- राजनीतिक दल जितने वोट प्राप्त करते हैं,
उन्हें उसी अनुपात में सीटें मिलती हैं। - उम्मीदवारों का चयन पार्टी की सूची (Party List) के अनुसार होता है।
🔸 लाभ:
- सभी दलों को प्रतिनिधित्व का अवसर।
- मतों की निष्पक्षता और समानता।
- अल्पसंख्यकों की भागीदारी सुनिश्चित।
🔸 हानियाँ:
- सरकार अस्थिर हो सकती है।
- गठबंधन राजनीति का खतरा।
- मतदाता और प्रतिनिधि का सीधा संबंध कमजोर।
🪷 3. निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण (Reservation of Constituencies)
भारत में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को
अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित किया गया है।
🔹 संवैधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 330 और 332 के अंतर्गत संसद और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण का प्रावधान है।
🔹 उद्देश्य:
- ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना।
- शासन में समान भागीदारी सुनिश्चित करना।
- सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को बढ़ावा देना।
🔹 पंचायत व नगर निकायों में आरक्षण:
73वें और 74वें संविधान संशोधन (1992) के तहत
पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं, SC, ST और OBC वर्गों के लिए
आरक्षण (Reservation) की व्यवस्था की गई है।
वर्तमान में पंचायतों में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं
(कई राज्यों में यह 50% तक बढ़ाया गया है)।
🗳️ 4. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free and Fair Elections)
लोकतंत्र तभी सार्थक है जब चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी हों।
इसके लिए संविधान ने एक स्वतंत्र संस्था का गठन किया —
भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India)।
⚖️ निर्वाचन आयोग (Election Commission of India)
अनुच्छेद 324 के अंतर्गत यह संस्था स्थापित की गई है।
🔹 संरचना:
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner)
- अन्य निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioners)
🔹 प्रमुख कार्य:
- संसद, राज्य विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव कराना।
- राजनीतिक दलों की मान्यता और चिन्ह आवंटन।
- मतदाता सूची का रखरखाव।
- आचार संहिता (Code of Conduct) लागू करना।
- चुनाव परिणामों की निगरानी और घोषणा।
🔹 विशेषताएँ:
- स्वायत्त और स्वतंत्र संस्था है।
- सरकार इसके निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
- भारत के चुनाव आयोग की निष्पक्षता विश्व स्तर पर प्रशंसनीय मानी जाती है।
🧾 5. चुनाव सुधार (Electoral Reforms)
भारत में समय-समय पर कई चुनाव सुधार (Reforms) किए गए हैं
ताकि लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे।
🔹 1. कानूनी सुधार
- मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष (1989) की गई।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग।
- NOTA (None of the Above) विकल्प की शुरुआत (2013)।
- राजनीतिक दलों की निधि पर निगरानी।
- आचार संहिता का कड़ाई से पालन।
🔹 2. न्यायिक सुधार
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं:
- उम्मीदवारों के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा अनिवार्य।
- संपत्ति और शिक्षा की जानकारी देना अनिवार्य।
- मतदाताओं का गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy) सुनिश्चित।
🔹 3. तकनीकी सुधार
- EVM और VVPAT मशीनों का प्रयोग।
- ऑनलाइन मतदाता सूची पंजीकरण।
- सोशल मीडिया निगरानी।
- डिजिटल चुनाव अभियान की पारदर्शिता।
🔹 4. सामाजिक और राजनीतिक सुधार
- चुनाव में धनबल और बाहुबल के उपयोग पर रोक।
- महिलाओं और युवाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना।
- मतदाताओं में राजनीतिक जागरूकता फैलाना।
- समान अवसर और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
🏛️ 6. चुनाव आयोग की भूमिका (Role of the Election Commission)
भारत निर्वाचन आयोग देश के लोकतंत्र का प्रहरी (Guardian of Democracy) है।
यह संस्था सुनिश्चित करती है कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और विश्वसनीय हो।
🔹 मुख्य जिम्मेदारियाँ:
- चुनाव तिथियों की घोषणा और कार्यक्रम तय करना।
- मतदान केंद्रों का निर्धारण।
- चुनाव कर्मचारियों की नियुक्ति।
- मतगणना और परिणाम घोषित करना।
- मतदान प्रक्रिया की निगरानी।
🔹 चुनौतियाँ:
- मतदाता सूची की शुद्धता
- धनबल और अपराधीकरण
- राजनीतिक दलों की पारदर्शिता
- सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार
🧠 7. चुनावी सुधारों की आवश्यकता (Need for Further Reforms)
यद्यपि भारत में चुनाव प्रणाली मजबूत है,
फिर भी कुछ सुधारों की आवश्यकता बनी हुई है:
- राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करना।
- राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना।
- अपराधी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को रोकना।
- महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में आरक्षण।
- एकसमान चुनाव (Simultaneous Elections) पर विचार।
📜 8. कुछ प्रमुख समितियाँ और आयोग
🔹 1. गोस्वामी समिति (1990)
- चुनाव सुधार के लिए विस्तृत सिफारिशें दीं।
- आचार संहिता के पालन पर बल दिया।
🔹 2. वेहर आयोग (1993)
- चुनावी खर्च पर नियंत्रण की सिफारिश की।
🔹 3. विधि आयोग की रिपोर्ट (2015)
- समान चुनाव प्रणाली और राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता पर सुझाव।
⚖️ 9. स्वतंत्र चुनाव के प्रतीक उदाहरण
भारत में कई बार निर्वाचन आयोग ने अपनी निष्पक्षता और शक्ति का परिचय दिया:
- टी.एन. शेषन (1990s) ने चुनाव सुधारों में क्रांति लाई।
- “कोई वोटर पीछे न रहे” अभियान से मतदान दर में वृद्धि हुई।
- VVPAT प्रणाली से पारदर्शिता बढ़ी।
🏁 निष्कर्ष (Conclusion)
चुनाव किसी भी लोकतंत्र की जीवंत आत्मा हैं।
इनसे नागरिकों को शासन में भागीदारी का अवसर मिलता है और सरकार को वैधता (Legitimacy) प्राप्त होती है।
भारत की चुनाव प्रणाली, अपनी व्यापकता और पारदर्शिता के कारण,
दुनिया के सबसे सफल लोकतांत्रिक प्रयोगों में से एक मानी जाती है।
परंतु, लोकतंत्र की सच्ची मजबूती तभी होगी जब —
चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और भ्रष्टाचार-मुक्त हो,
और हर नागरिक जिम्मेदारी के साथ मतदान करे।
🌸 पुनरावलोकन बिंदु (Quick Revision Points)
- चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं।
- भारतीय चुनाव प्रणाली — FPTP + PR का मिश्रण।
- सार्वभौम वयस्क मताधिकार – 18 वर्ष से अधिक सभी को।
- निर्वाचन आयोग – अनुच्छेद 324 के अंतर्गत स्वतंत्र संस्था।
- चुनाव सुधार – EVM, VVPAT, NOTA, पारदर्शिता।
- पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं को आरक्षण।
- समानुपातिक प्रतिनिधित्व – राज्यसभा और राष्ट्रपति चुनाव में।
- निष्पक्ष चुनाव – लोकतंत्र की विश्वसनीयता का प्रतीक।
