Geography कक्षा 12 CBSE course A chapter 1


📘 मानव भूगोल : स्वरूप एवं क्षेत्र (बिंदुवार, विस्तृत नोट्स)


1. मानव भूगोल का परिचय

  1. मानव भूगोल मनुष्य और उसके भौतिक वातावरण के पारस्परिक संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
  2. यह यह समझने की कोशिश करता है कि मनुष्य किस प्रकार प्रकृति को समझता है, उपयोग करता है और अपने अनुकूल बनाता है।
  3. मानव भूगोल मानव गतिविधियों के स्थानिक (spatial) संगठन का अध्ययन करता है—यानी कौन-सी गतिविधि कहाँ, क्यों और कैसे होती है।
  4. यह प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के बीच का सेतु है।
  5. मानव भूगोल एक गतिशील विषय है क्योंकि मानव गतिविधियाँ, प्रौद्योगिकी, जनसंख्या संरचना और समाज निरंतर बदलते रहते हैं।
  6. यह जनसंख्या, संसाधन, कृषि, उद्योग, परिवहन, बसावट, संस्कृति, राजनीति और अर्थव्यवस्था—सभी का स्थानिक विश्लेषण करता है।
  7. मानव भूगोल का उदय 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ, विशेषकर औद्योगिक क्रांति के बाद।
  8. यह स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक—तीनों स्तरों पर मानव गतिविधियों का अध्य्यन करता है।
  9. इसका मुख्य आधार है:
    “मानव पृथ्वी का निवासी है, और उसकी गतिविधियाँ पृथ्वी को अर्थ देती हैं।”

2. मानव भूगोल का स्वरूप

2.1 अर्थ एवं विशेषताएँ

  1. मानव भूगोल मानव द्वारा निर्मित विशेषताओं—जैसे बस्तियाँ, सड़कें, कृषि, उद्योग, व्यापार—का अध्ययन करता है।
  2. यह मानव गतिविधियों में पाई जाने वाली क्षेत्रीय विविधताओं का विश्लेषण करता है।
  3. यह मानव और प्रकृति के बीच कारण–कार्य संबंध को समझने का प्रयास करता है।
  4. मानव भूगोल गुणात्मक (संस्कृति, भाषा) और मात्रात्मक (जनसंख्या के आँकड़े, आर्थिक डेटा) दोनों प्रकार के तत्वों का अध्ययन करता है।
  5. वैश्वीकरण के युग में यह विश्व के विभिन्न भागों की परस्पर निर्भरता को उजागर करता है।
  6. यह एक समग्र (holistic) विषय है क्योंकि यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को जोड़ता है।
  7. यह संसाधनों के वितरण, उत्पादन और उपभोग के पैटर्न को समझने में सहायक है।
  8. मानव भूगोल समस्याओं को हल करने उन्मुख विषय है—जैसे जनसंख्या दबाव, पर्यावरणीय संकट, शहरी समस्याएँ आदि।
  9. यह भौतिक और अभौतिक—दोनों प्रकार के human expressions का अध्ययन करता है।
  10. इसे भूगोल की आत्मा भी कहा जाता है क्योंकि मानव गतिविधियाँ पृथ्वी को सांस्कृतिक परिदृश्य (cultural landscape) बनाती हैं।

2.2 मानव का प्रकृतिकरण (Naturalisation of Humans)

  1. प्रारंभिक मानव समाज प्रकृति पर पूर्णतः निर्भर थे।
  2. मनुष्य प्रकृति को एक शक्तिशाली सत्ता मानता था और उसकी गतिविधियाँ प्रकृति के नियमों पर आधारित थीं।
  3. मनुष्य के पास तकनीकी क्षमता कम होने के कारण वह प्रकृति के अनुरूप जीवन व्यतीत करता था—इसे मानव का प्रकृतिकरण कहते हैं।
  4. इस अवस्था में जीवन का आधार था—शिकार, संग्रहण, मछली पकड़ना, घुमंतू जीवन और मौसमी प्रवास
  5. मानवगत विभिन्न क्रियाएँ प्रकृति के चक्रों—मौसम, वर्षा, नदी, तापमान—के अनुसार होती थीं।
  6. विभिन्न क्षेत्रों में विविध आर्थिक गतिविधियाँ प्राकृतिक परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित थीं, जैसे:
    • तटीय क्षेत्रों में मछुआरे
    • घासभूमि में चरवाहे
    • नदी घाटियों में कृषि समुदाय
  7. मानव विकल्प सीमित थे और प्रकृति उसके जीवन का निर्धारण करती थी।
  8. विश्वास प्रणाली और धर्म प्राकृतिक तत्वों से प्रभावित थे—सूर्य, चंद्रमा, जल, पर्वत, वन आदि।
  9. मानव और प्रकृति का संबंध सरल, प्रत्यक्ष और प्राकृतिक था।
  10. यह विचारधारा पर्यावरण नियतिवाद (Environmental Determinism) से जुड़ी थी, जिसमें प्रकृति को सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता था।

2.3 प्रकृति का मानवकरण (Humanisation of Nature)

  1. समय के साथ तकनीक की प्रगति से मनुष्य ने प्रकृति को बदलने की क्षमता विकसित की।
  2. उपकरणों, अग्नि के प्रयोग, कृषि और पशुपालन ने मानव जीवन में क्रांति लाई।
  3. नवपाषाण क्रांति (Neolithic Revolution) ने मानव-प्रकृति संबंधों को बदल दिया—कृषि और स्थायी बस्तियाँ बनने लगीं।
  4. औद्योगिक क्रांति के बाद मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग करना शुरू किया।
  5. नदी, वन, पर्वत—सबको मानव ने अपने आर्थिक लाभ के लिए परिवर्तित करना शुरू किया।
  6. यह अवस्था मानवकरण कहलाती है—जहाँ मानव प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढालता है।
  7. प्राकृतिक प्रक्रियाओं का स्थान मानव-नियंत्रित प्रणालियों ने ले लिया—जैसे सिंचाई, परिवहन, निर्माण, औद्योगिक मशीनें।
  8. मानव भूगोल अब संभाव्यवाद (Possibilism) पर केंद्रित हुआ—प्रकृति अवसर देती है, पर मनुष्य चुनाव करता है।
  9. अब मनुष्य को एक सक्रिय एजेंट माना जाने लगा जो प्रकृति को बदल सकता है।
  10. किन्तु प्रकृति का अति-शोषण जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जंगलों की कटाई आदि जैसी समस्याएँ पैदा कर रहा है, इसलिए संतुलन आवश्यक है।

3. मानव भूगोल के क्षेत्र एवं उप-क्षेत्र

3.1 सामाजिक भूगोल

  1. सामाजिक संरचना, जाति, वर्ग, परिवार, धर्म, शिक्षा आदि का स्थानिक अध्ययन।
  2. सामाजिक असमानता, शहरी झुग्गियाँ, जातीय समूह, जनजातीय क्षेत्र आदि का विश्लेषण।

3.2 सांस्कृतिक भूगोल

  1. भाषा, धर्म, कला, रीति-रिवाज, परंपराएँ और सांस्कृतिक परिदृश्य का अध्ययन।
  2. सांस्कृतिक प्रसार, सांस्कृतिक संघर्ष और विविधता पर ध्यान।

3.3 आर्थिक भूगोल

  1. उत्पादन, वितरण और उपभोग के स्थानिक पैटर्न का अध्ययन।
  2. कृषि क्षेत्र, उद्योग, सेवा क्षेत्र, परिवहन और व्यापार के वितरण का विश्लेषण।
  3. आर्थिक गतिविधियों के स्थान-निर्धारण कारकों का अध्ययन।

3.4 ऐतिहासिक भूगोल

  1. मानव गतिविधियों के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन।
  2. समय के साथ बसावट, राजनीतिक सीमाओं और सांस्कृतिक क्षेत्रों का विस्तार।

3.5 राजनीतिक भूगोल

  1. राष्ट्र-राज्य, सीमाएँ, शक्ति संरचनाएँ और भू-राजनीति का अध्ययन।
  2. चुनावी भूगोल, सीमा विवाद, संघवाद आदि का विश्लेषण।

3.6 जनसंख्या भूगोल

  1. जनसंख्या की संख्या, घनत्व, वितरण, वृद्धि, संरचना, और प्रवास का अध्ययन।
  2. जनसांख्यिकीय संक्रमण, जन्म-मृत्यु दर, आयु-लिंग संरचना का विश्लेषण।

3.7 बसावट भूगोल

  1. ग्रामीण और शहरी बसावट के रूप, प्रकार, कार्य और वितरण का अध्ययन।
  2. घनी, बिखरी, पंक्तिबद्ध, और योजनाबद्ध बस्तियों का विश्लेषण।

3.8 शहरी भूगोल

  1. शहरों की उत्पत्ति, कार्य, आकार, भूमि उपयोग और शहरीकरण का अध्ययन।
  2. महानगर, मेगासिटी, स्मॉल टाउन, स्लम, शहरी समस्याएँ और नगर नियोजन का विश्लेषण।

3.9 ग्रामीण भूगोल

  1. ग्रामीण जीवन, कृषि प्रणाली, भूमि व्यवस्था और ग्रामीण विकास का अध्ययन।
  2. ग्रामीण रोजगार, गरीबी और विकास योजनाएँ।

3.10 पर्यावरणीय भूगोल

  1. मानव गतिविधियों का पर्यावरण पर प्रभाव।
  2. प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जंगल कटाई, संसाधन प्रबंधन और सतत विकास।

3.11 चिकित्सा भूगोल

  1. रोगों का भौगोलिक वितरण, स्वास्थ्य सेवाएँ और महामारी विज्ञान।
  2. स्वास्थ्य पर प्राकृतिक एवं सामाजिक कारकों का प्रभाव।

3.12 पर्यटन भूगोल

  1. पर्यटक स्थलों, उनकी आकर्षण क्षमता और पर्यटन के आर्थिक प्रभावों का अध्ययन।
  2. सतत पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत संरक्षण।

4. मानव भूगोल के विकास के प्रमुख चरण

4.1 पर्यावरण नियतिवाद (Environmental Determinism)

  1. मान्यता—प्रकृति मानव गतिविधियों को नियंत्रित करती है।
  2. जलवायु, स्थलरूप, संसाधन आदि जीवन के सभी पहलुओं को निर्धारित करते हैं।
  3. फ्रेडरिक रैट्ज़ेल, एलन सेम्पल इसके प्रमुख समर्थक थे।
  4. इसे कठोर और पक्षपाती दृष्टिकोण कहकर आलोचना की गई।

4.2 संभाव्यवाद (Possibilism)

  1. मान्यता—प्रकृति अवसर प्रदान करती है, पर मानव चुनता है कि क्या करना है।
  2. पौल वीडल–दे–ला–ब्लाश इसके प्रमुख प्रवर्तक थे।
  3. मानव की रचनात्मकता और तकनीक को महत्व दिया गया।
  4. मानव को सक्रिय, निर्णय लेने वाला माना गया।

4.3 नव-नियतिवाद (Neo-determinism / Stop and Go Determinism)

  1. ग्रिफिथ टेलर द्वारा प्रतिपादित।
  2. प्रकृति सीमाएँ निर्धारित करती है परंतु मानव सीमाओं के भीतर विकास कर सकता है।
  3. अस्थिर विकास और अति-शोषण के प्रति चेतावनी।

4.4 मात्रात्मक क्रांति (Quantitative Revolution)

  1. 1950–60 के दशक में भूगोल में गणितीय और सांख्यिकीय विधियों का प्रवेश।
  2. मानव भूगोल अधिक वैज्ञानिक, सटीक और विश्लेषणात्मक बना।
  3. मॉडल, सिद्धांत, स्थानिक विश्लेषण का विकास।

4.5 व्यवहारवादी एवं मानववादी भूगोल (1970s)

  1. मानव के भावनात्मक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर जोर।
  2. स्थान की धारणा, जीवन-अनुभव, और मानव निर्णय का अध्ययन।
  3. मनुष्य–स्थान संबंधों के व्यक्तिगत अर्थों का विश्लेषण।

4.6 उग्र/मार्क्सवादी भूगोल (Radical Geography)

  1. सामाजिक असमानता, गरीबी, वर्ग संघर्ष का अध्ययन।
  2. समाज में संसाधनों के असमान वितरण पर ध्यान।
  3. सामाजिक न्याय और अधिकार आधारित विकास की वकालत।

4.7 उत्तर-आधुनिक भूगोल (Post-modern Geography)

  1. विविधता, स्थानीय अनुभवों और बहु-दृष्टिकोणों पर जोर।
  2. सार्वभौमिक सिद्धांतों को चुनौती।
  3. पहचान, जेंडर, संस्कृति और जीवन अनुभव का विश्लेषण।

5. मानव भूगोल और सामाजिक विज्ञान की सह–विषय

5.1 समाजशास्त्र

  • सामाजिक समूह, समुदाय, जाति-व्यवस्था और सामाजिक व्यवहार।
  • सामाजिक भूगोल और समाजशास्त्र शहरीकरण, प्रवास और सामाजिक विभाजन में जुड़े हैं।

5.2 नृविज्ञान (Anthropology)

  • मानव संस्कृति, आदिवासी जीवन, परंपराएँ।
  • मानव भूगोल सांस्कृतिक परिदृश्य और समुदायों का अध्ययन करता है।

5.3 अर्थशास्त्र

  • कृषि, उद्योग, व्यापार और दैनिक आर्थिक गतिविधियाँ।
  • आर्थिक भूगोल स्थानिक वितरण और क्षेत्रीय विकास का अध्ययन करता है।

5.4 राजनीति विज्ञान

  • सीमाएँ, शक्ति, राज्य, अंतरराष्ट्रीय संबंध।
  • मानवीय बस्तियाँ और संसाधन राजनीति को प्रभावित करते हैं।

5.5 इतिहास

  • ऐतिहासिक प्रक्रियाएँ बसावटों, संस्कृतियों और राजनीतिक संरचनाओं को आकार देती हैं।

5.6 जनसांख्यिकी (Demography)

  • जनसंख्या आँकड़े और उनकी व्याख्या।
  • मानव भूगोल जनसंख्या घनत्व, प्रवास और वृद्धि को समझता है।

5.7 मनोविज्ञान

  • स्थान की धारणा, निर्णय-निर्धारण और मानव व्यवहार का अध्ययन।
  • व्यवहारवादी भूगोल से संबंधित।

5.8 पर्यावरण विज्ञान

  • मानव गतिविधियों का पर्यावरणीय प्रभाव, प्रदूषण, संसाधन संकट।
  • सतत विकास के लिए दोनों विषय आपस में जुड़े हैं।

6. मानव भूगोल का महत्व

  1. क्षेत्रीय और वैश्विक असमानताओं को समझने में मदद।
  2. आर्थिक विकास, उद्योग, कृषि और शहरीकरण की प्रक्रियाओं का विश्लेषण।
  3. योजना निर्माण—यातायात, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधन प्रबंधन।
  4. प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में सहायता।
  5. सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ।
  6. जनसंख्या वृद्धि, प्रवास और शहरी समस्याओं पर समाधान आधारित दृष्टिकोण।
  7. साझा वैश्विक चुनौतियों—जलवायु परिवर्तन, वैश्विक व्यापार, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष—को समझने में उपयोगी।
  8. सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका।

7. निष्कर्ष

  1. मानव भूगोल मनुष्य और पर्यावरण के बीच जटिल संबंधों का समग्र अध्ययन है।
  2. इसमें समय के साथ सिद्धांत और दृष्टिकोण विकसित हुए—नियतिवाद से संभाव्यवाद और फिर मानववादी भूगोल तक।
  3. इसकी विभिन्न शाखाएँ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय आयामों को जोड़ती हैं।
  4. मानव भूगोल प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के बीच पुल का कार्य करता है।
  5. वर्तमान विश्व की समस्याएँ—प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, असमानता, संसाधन संकट—मानव भूगोल की समझ से हल की जा सकती हैं।
  6. इसलिए मानव भूगोल मानव समाज के भविष्य के निर्माण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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