इतिहास कक्षा 11 – पाठ 2
1. परिचय (Introduction)
- यह अध्याय मुख्य रूप से रोमन साम्राज्य और ईरान (पारस) के व्यापक क्षेत्र में स्थापित राजनीतिक–सामाजिक संरचनाओं, आर्थिक परिवर्तनों और सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन करता है।
- लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व से सातवीं शताब्दी ईस्वी तक फैले इस विशाल साम्राज्य ने पश्चिमी व दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया पर शासन किया।
- इस साम्राज्य की विशेषता इसकी प्रशासनिक व्यवस्था, सड़कों का तंत्र, शहरीकरण, विधि-व्यवस्था तथा व्यापारिक जाल था।
- यह अध्याय राजनीतिक संकट, सामाजिक असमानता, दासता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और साम्राज्य के परिवर्तनशील स्वभाव को समझने में मदद करता है।
2. प्रारम्भिक साम्राज्य (The Early Empire)
2.1 भौगोलिक विस्तार
- रोमन साम्राज्य तीन महाद्वीपों में फैला:
- यूरोप – इटली, स्पेन, गॉल (फ्रांस), जर्मनी के कुछ क्षेत्र, ब्रिटेन
- एशिया – सीरिया, पलेस्टाइन, एशिया माइनर
- अफ्रीका – मिस्र, उत्तरी अफ्रीकी तट
- इसे भूमध्यसागर साम्राज्य (Mediterranean Empire) भी कहा जाता है क्योंकि इसका केन्द्र समुद्र के चारों तरफ था।
2.2 राजनीतिक संरचना
- शासन का केंद्र सम्राट (Emperor) था, जिसे राज्य का सर्वोच्च पद माना जाता था।
- सम्राट सेना, करव्यवस्था, कानून, व्यापार सभी का सर्वोच्च नियंत्रक था।
- सम्राट की सहायता सीनेट, अफसरशाही, प्रांतीय गवर्नर, सेना प्रमुखों द्वारा की जाती थी।
2.3 प्रशासनिक विशेषताएँ
- रोमन प्रशासन का आधार दो महत्वपूर्ण तत्व थे:
- कानून (Roman Law)
- सैनिक शक्ति (Army)
- पूरे साम्राज्य को कई प्रांतों (Provinces) में बाँटा गया था।
- प्रत्येक प्रांत का प्रमुख एक गवर्नर होता था जो कर एकत्रित करता, न्याय व्यवस्था चलाता और शांति बनाए रखता।
2.4 आर्थिक और सामाजिक आधार
- अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी—मुख्य फसलों में गेहूँ, जौ, जैतून, अंगूर प्रमुख थे।
- राज्य के उपभोग के लिए भारी मात्रा में अनाज मिस्र और उत्तर अफ्रीका से रोम लाया जाता था।
- समाज में नागरिक, गैर-नागरिक, दास, जमींदार, सैनिक, व्यापारी जैसी श्रेणियाँ थीं।
3. तीसरी शताब्दी का संकट (The Third Century Crisis)
3.1 संकट के कारण
- तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य अनेक प्रकार के संकटों से घिर गया:
- सम्राटों की तीव्र हत्या और लगातार परिवर्तन
- सेना के बीच सत्ता संघर्ष
- आर्थिक गिरावट और मुद्रास्फीति
- जर्मनिक जनजातियों और सासानी साम्राज्य के लगातार आक्रमण
- व्यापार मार्गों का अस्थिर होना
3.2 राजनीतिक अव्यवस्था
- लगभग 50 वर्षों में 25 से अधिक सम्राट बने और मारे गए।
- सेना ने कई बार अपने मनपसंद जनरल को सम्राट घोषित किया, जिससे गृहयुद्ध की स्थिति बनी।
3.3 आर्थिक संकट
- करों में बढ़ोतरी
- मुद्रा का मूल्य गिरना → आर्थिक असंतुलन
- कृषि उत्पादन में कमी
- व्यापार धीमा पड़ना
3.4 सामाजिक प्रभाव
- शहरों की आर्थिक शक्ति कमजोर पड़ना
- ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन बढ़ा
- दासों की कमी होने लगी क्योंकि युद्धों में कैदी कम मिल रहे थे
3.5 समाधानों का प्रयास
- सम्राट डायोक्लेशियन और कॉन्स्टेंटाइन ने प्रशासनिक सुधार किए:
- सेना पुनर्गठित
- करवाद बढ़ाया
- प्रशासन को दो हिस्सों में बाँटा
- राजधानी को रोम से कॉनस्टेंटिनोपल स्थानांतरित किया
4. लिंग, साक्षरता और संस्कृति (Gender, Literacy, Culture)
4.1 पारिवारिक जीवन और स्त्रियाँ
- परिवार पितृसत्तात्मक था; पिता का अधिकार सर्वोच्च था।
- स्त्रियाँ संपत्ति रख सकती थीं, व्यापार कर सकती थीं, परंतु राजनीतिक अधिकार सीमित थे।
- कुलीन स्त्रियाँ शिक्षित होती थीं और सामाजिक आयोजनों में भाग लेती थीं।
4.2 शिक्षा और साक्षरता
- शिक्षा मुख्य रूप से धनी परिवारों तक सीमित थी।
- पढ़ने-लिखने की क्षमता रोमन समाज में सम्मान का विषय थी।
- पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं, इसलिए महंगी थीं।
4.3 भाषा और साहित्य
- प्रमुख भाषा: लैटिन
- साम्राज्य के पूर्वी हिस्से में: यूनानी (Greek)
- रोम में इतिहास, दर्शन, काव्य, वक्तृत्व कला अत्यंत विकसित थी।
4.4 धार्मिक संस्कृति
- बहुदेववाद; देवताओं में — जूपिटर, मार्स, अपोलो, डायना, वीनस
- बाद में ईसाई धर्म तेजी से फैला और चौथी शताब्दी से राज्य का धर्म बन गया।
5. आर्थिक विस्तार (Economic Expansion)
5.1 कृषि उन्नति
- कृषि रोमन अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी।
- बड़े-बड़े खेतों और कृषि भूमि पर दास या भूमिहीन मजदूर काम करते थे।
- नई तकनीकों, सिंचाई और हल के प्रयोग से उत्पादन बढ़ा।
5.2 व्यापार और वाणिज्य
- विशाल साम्राज्य में सड़कें और समुद्री मार्गों का जाल बिछा था।
- वस्तुओं का आदान-प्रदान:
- पूर्व से – रेशम, मसाले, कीमती धातुएँ
- अफ्रीका से – हाथीदाँत, अनाज
- यूरोप से – लोहा, लकड़ी, अंगूर
5.3 मुद्रा और बैंकिंग
- धातुओं की मुद्रा प्रचलित थी।
- बड़े व्यापारियों और राज्य के बीच वित्तीय लेन-देन के लिए कई प्रकार के साखपत्र और अकाउंटिंग पद्धतियाँ थीं।
5.4 उद्योग और कारीगरी
- मिट्टी के बर्तन, कांच, शस्त्र, वस्त्र, शराब, जैतून का तेल—ये सभी निर्यात-योग्य वस्तुएँ थीं।
6. श्रमिकों पर नियंत्रण (Controlling Workers)
6.1 दास प्रथा
- दास रोमन अर्थव्यवस्था का केंद्रीय हिस्सा थे।
- दास मुख्यतः युद्धों से लाए गए कैदी होते थे।
- वे कृषि, खदानों, निर्माण कार्य, और घरेलू कामों में लगे रहते थे।
6.2 मजदूरों और किसान मजदूरी
- कई प्रांतों में दासों की संख्या कम होने लगी, तो भूमिहीन किसानों का प्रयोग बढ़ा।
- किसानों और मजदूरों पर अनुशासन बनाए रखने के लिए कठोर नियम थे।
6.3 राज्य का नियंत्रण
- राज्य कर, मजदूरी, काम के घंटे और अनुशासन पर नियंत्रण रखता था।
- रोम के बड़े निर्माण प्रोजेक्ट जैसे सड़कों, पुलों, स्मारकों के निर्माण में हजारों श्रमिक लगाए जाते थे।
7. सामाजिक पदानुक्रम (Social Hierarchy)
7.1 रोमन समाज की श्रेणियाँ
- समाज कई स्तरों में विभाजित था:
- सेनेटर वर्ग – सबसे उच्च, धनी, राजनीतिक शक्ति
- अश्वारोही वर्ग (Equites) – व्यापारी और सामंत
- साधारण नागरिक (Plebeians)
- मुक्त दास (Freedmen)
- दास (Slaves) – सबसे नीचे
7.2 नागरिकता
- नागरिकता प्राप्त करने से विशेष अधिकार मिलते थे—करों में छूट, संपत्ति अधिकार, न्यायिक सुरक्षा।
- गैर-नागरिक बहुत सीमित अधिकार रखते।
- बाद में सम्राट कैराकला ने 212 ईस्वी में सभी मुक्त व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की।
7.3 शहरी और ग्रामीण सामाजिक अंतर
- शहरों में धनी जमींदार, व्यापारी और अधिकारी रहते थे।
- ग्रामीण भागों में किसान और मजदूर सामाजिक रूप से पिछड़े।
8. उत्तर प्राचीनकाल (Late Antiquity)
8.1 परिवर्तन का काल
- चौथी से सातवीं शताब्दी तक साम्राज्य में गहरे परिवर्तन हुए।
- प्रशासनिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे बदलने लगे।
8.2 ईसाई धर्म का उदय
- चौथी शताब्दी में कॉन्स्टेंटाइन ने ईसाई धर्म स्वीकार किया।
- पाँचवीं शताब्दी में चर्च राजनीतिक व सामाजिक संस्थान बन गया।
- चर्च ने शिक्षा, दान, कानून और सामाजिक जीवन पर नियंत्रण स्थापित किया।
8.3 आर्थिक बदलाव
- शहरों की आर्थिक शक्ति कम होने लगी।
- व्यापारिक मार्ग सिकुड़ गए।
- ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था उभरने लगी।
8.4 साम्राज्य का विभाजन
- पश्चिमी रोमन साम्राज्य पर जर्मनिक जनजातियों का आक्रमण हुआ और 476 ईस्वी में इसका अंत हो गया।
- पूर्वी रोमन साम्राज्य (Byzantine Empire) जारी रहा और अगले हजार वर्ष तक अस्तित्व में रहा।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
- रोमन साम्राज्य विश्व इतिहास के सबसे प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था।
- इसकी प्रशासनिक क्षमता, सैनिक शक्ति, विधिक परंपरा, सड़क नेटवर्क, व्यापारिक विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने आधुनिक विश्व को गहराई से प्रभावित किया।
- तीसरी शताब्दी का संकट साम्राज्य की सीमाएँ दर्शाता है, परंतु सुधारों ने उसे लंबे समय तक टिकाए रखा।
- समाज में कठोर असमानता, दास प्रथा और सत्ता संघर्ष इसके अंत के मुख्य कारण बने।
- इसके बावजूद रोमन प्रशासन, कानून और सांस्कृतिक धरोहर आज भी विश्व के विभिन्न देशों की राजनीतिक और कानूनी संरचनाओं में दिखाई देती है।
