political science CBSE class 11 course A अध्याय 4


🟩 अध्याय 4 — सामाजिक न्याय (Social Justice)


1. भूमिका (Introduction)

  1. “न्याय” (Justice) मानव समाज का सबसे महत्वपूर्ण नैतिक और राजनीतिक विचार है।
  2. हर युग और हर सभ्यता में यह प्रश्न उठता रहा है कि क्या न्यायसंगत है और क्या अन्यायपूर्ण।
  3. न्याय उस तरीके से संबंधित है जिससे समाज अपने संसाधनों, अवसरों, अधिकारों और कर्तव्यों का वितरण करता है।
  4. यह केवल कानून और दंड तक सीमित नहीं, बल्कि समानता, स्वतंत्रता और मानव गरिमा से जुड़ा विचार है।
  5. लोकतंत्र में न्याय का विशेष महत्व है क्योंकि लोकतंत्र समानता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
  6. जब समाज में हर व्यक्ति को समान अवसर मिलते हैं और किसी के साथ भेदभाव नहीं होता, तब हम कहते हैं कि समाज न्यायपूर्ण है।
  7. आधुनिक समय में सामाजिक न्याय का अर्थ है—संसाधनों और अवसरों का समान वितरण और सम्मान की गारंटी।
  8. सामाजिक न्याय का उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को उसके अधिकारों के अनुसार उचित अवसर और सम्मान मिले।

2. न्याय क्या है? (What is Justice?)

2.1 न्याय का अर्थ

  1. “न्याय” शब्द लैटिन शब्द jus से बना है, जिसका अर्थ है “अधिकार” या “कानून”।
  2. न्याय का सरल अर्थ है — हर व्यक्ति को उसका “हक़” देना।
  3. न्याय का मतलब है निष्पक्षता, समानता, स्वतंत्रता और नैतिकता का पालन।
  4. यह सुनिश्चित करता है कि किसी के साथ अन्याय या पक्षपात न हो।
  5. न्याय का उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता, आवश्यकता और अधिकारों के अनुसार अवसर मिले।
  6. राजनीतिक दृष्टि से, न्याय केवल व्यक्तिगत नैतिकता नहीं बल्कि राज्य, कानून और संस्थाओं का ढांचा भी है।

2.2 न्याय का महत्व

  1. न्याय कानून और शासन की आधारशिला है।
  2. बिना न्याय के राज्य दमनकारी या अन्यायी हो सकता है।
  3. न्याय समाज में संतुलन और सौहार्द बनाए रखता है।
  4. जब लोग न्याय महसूस करते हैं तो वे कानून का सम्मान करते हैं।
  5. न्याय से सामाजिक एकता और राजनीतिक स्थिरता बनी रहती है।

2.3 न्याय के आयाम (Dimensions of Justice)

  1. कानूनी न्याय (Legal Justice) — न्यायालयों के माध्यम से अधिकारों की रक्षा और कानून का पालन।
  2. राजनीतिक न्याय (Political Justice) — सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी का समान अधिकार।
  3. आर्थिक न्याय (Economic Justice) — धन, आय और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण।
  4. सामाजिक न्याय (Social Justice) — जाति, लिंग, धर्म या वर्ग पर आधारित भेदभाव का उन्मूलन।

2.4 न्याय और समानता का संबंध

  1. न्याय और समानता एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं।
  2. बिना समानता के न्याय संभव नहीं है।
  3. न्याय समान अवसरों की मांग करता है, परिणामों की पूर्ण समानता की नहीं।
  4. कुछ असमानताएँ स्वीकार्य हैं यदि वे समाज के सभी सदस्यों, विशेषकर पिछड़ों, के हित में हों।

2.5 भारतीय सन्दर्भ में न्याय

  1. भारत के संविधान की प्रस्तावना में “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय” का लक्ष्य स्पष्ट रूप से लिखा गया है।
  2. संविधान जाति, लिंग, धर्म और जन्म पर आधारित भेदभाव को समाप्त करने का निर्देश देता है।
  3. आरक्षण जैसी नीतियाँ सामाजिक न्याय प्राप्त करने का माध्यम हैं।
  4. उद्देश्य केवल कानून के सामने समानता नहीं, बल्कि अवसरों और परिस्थितियों की समानता भी है।

3. न्यायपूर्ण वितरण (Just Distribution)

3.1 वितरण की समस्या

  1. हर समाज में यह प्रश्न उठता है — संसाधनों, धन, शक्ति और अवसरों का बंटवारा कैसे किया जाए?
  2. क्या सबको समान भाग मिलना चाहिए या योग्यता, आवश्यकता या योगदान के आधार पर?
  3. यही समस्या “वितरणात्मक न्याय” (Distributive Justice) की है।

3.2 न्यायपूर्ण वितरण के आधार

  1. योग्यता आधारित (Merit-based) — अधिक मेहनत या प्रतिभा वाले व्यक्ति को अधिक लाभ।
    • उदाहरण: कुशल इंजीनियर को अधिक वेतन।
    • आलोचना: सामाजिक असमानता को नज़रअंदाज़ करता है।
  2. आवश्यकता आधारित (Need-based) — जिन्हें अधिक जरूरत है उन्हें प्राथमिकता।
    • उदाहरण: गरीबों के लिए मुफ्त भोजन योजना।
    • आलोचना: मेहनत का प्रोत्साहन कम करता है।
  3. समानता आधारित (Equality-based) — सभी को समान हिस्सा।
    • उदाहरण: मतदान का समान अधिकार।
    • आलोचना: प्रयास या जिम्मेदारी में अंतर को नहीं मानता।
  4. योगदान आधारित (Contribution-based) — जो समाज में अधिक योगदान देते हैं उन्हें अधिक लाभ।
    • उदाहरण: वैज्ञानिक या उद्यमी को अधिक पुरस्कार।
  5. सामाजिक उपयोगिता आधारित (Social Utility) — वह वितरण जो समाज के अधिकतम कल्याण को बढ़ाए।
    • उदाहरण: अमीरों से अधिक कर लेकर सार्वजनिक सुविधाएँ।

3.3 विभिन्न सिद्धांतों में संतुलन

  1. किसी एक सिद्धांत से पूर्ण न्याय नहीं हो सकता।
  2. समाज को योग्यता, आवश्यकता और समानता — तीनों का संतुलन बनाना चाहिए।
  3. उदाहरण: अवसरों की समानता के साथ पिछड़ों को विशेष सहायता।
  4. राज्य को सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रारंभिक असमानताएँ किसी के विकास में बाधा न बनें।

3.4 न्यायपूर्ण वितरण के उदाहरण

  1. शिक्षा: सभी वर्गों के लिए समान शैक्षणिक अवसर।
  2. रोज़गार: अनुसूचित जाति/जनजाति/ओबीसी के लिए आरक्षण।
  3. स्वास्थ्य: गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा।
  4. कर व्यवस्था: अमीरों पर अधिक कर, ताकि गरीबों को सहायता मिले।
  5. भूमि सुधार: भूमिहीन किसानों में भूमि का वितरण।

4. जॉन रॉल्स का न्याय का सिद्धांत (John Rawls’ Theory of Justice)

4.1 परिचय

  1. जॉन रॉल्स (1921–2002) एक प्रसिद्ध अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक थे।
  2. उनकी पुस्तक A Theory of Justice (1971) आधुनिक राजनीतिक दर्शन की सबसे प्रभावशाली कृति है।
  3. उन्होंने “न्याय को निष्पक्षता के रूप में” (Justice as Fairness) परिभाषित किया।
  4. उन्होंने एक काल्पनिक स्थिति “मूल अवस्था” (Original Position) का विचार प्रस्तुत किया।

4.2 मूल अवस्था और अज्ञान का आवरण (Veil of Ignorance)

  1. रॉल्स का मानना था कि यदि लोग अपने सामाजिक दर्जे, जाति, धन, प्रतिभा या धर्म को न जानते हों, तो वे न्यायपूर्ण नियम बनाएंगे।
  2. इस स्थिति को उन्होंने “अज्ञान का आवरण” कहा।
  3. इस आवरण के पीछे हर व्यक्ति समान होता है और स्वार्थ से मुक्त निर्णय लेता है।
  4. इस प्रकार चुने गए सिद्धांत न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होंगे।

4.3 रॉल्स के दो सिद्धांत (Two Principles of Justice)

(1) समान मूल स्वतंत्रताएँ (Principle of Equal Liberty)

  1. प्रत्येक व्यक्ति को समान बुनियादी स्वतंत्रताएँ प्राप्त हों।
  2. जैसे — विचार, भाषण, धर्म, संघ, और राजनीतिक भागीदारी की स्वतंत्रता।
  3. स्वतंत्रता को आर्थिक या सामाजिक लाभ के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता।

(2) अंतर सिद्धांत (Difference Principle)

  1. सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ तभी स्वीकार्य हैं जब वे सबसे कमजोर वर्ग के हित में हों।
  2. सभी पदों और अवसरों तक निष्पक्ष पहुँच (Fair Equality of Opportunity) सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  3. उदाहरण: यदि डॉक्टर को अधिक वेतन मिलता है, तो यह समाज की भलाई के लिए होना चाहिए।

4.4 रॉल्स के सिद्धांत की व्याख्या

  1. रॉल्स न तो पूँजीवादी असमानता का समर्थन करते हैं, न ही पूर्ण समानता का।
  2. वे एक कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की वकालत करते हैं जो स्वतंत्रता और समानता में संतुलन रखे।
  3. न्याय का अर्थ दया या दान नहीं, बल्कि निष्पक्ष नियम और परिणाम है।
  4. एक न्यायपूर्ण समाज वह है जहाँ असमानताएँ भी सभी के हित में काम करें।

4.5 रॉल्स के सिद्धांत की आलोचनाएँ

  1. अत्यधिक आदर्शवादी: “अज्ञान का आवरण” केवल कल्पना है, व्यवहार में कठिन।
  2. सामुदायिक दृष्टिकोण की उपेक्षा: समाज की परंपराएँ और संबंध इसमें नहीं झलकते।
  3. वैश्विक दायरे की कमी: यह केवल एक समाज तक सीमित है।
  4. अंतर सिद्धांत अस्पष्ट: यह तय करना कठिन है कि असमानता किस हद तक उचित है।

4.6 रॉल्स का प्रभाव

  1. रॉल्स ने 20वीं सदी में नैतिक और राजनीतिक सिद्धांत को नया जीवन दिया।
  2. उनके विचारों से कल्याणकारी राज्य, समान अवसर और आरक्षण नीति को दार्शनिक आधार मिला।
  3. उनकी सोच लोकतांत्रिक संविधान और सामाजिक नीतियों में झलकती है।

5. सामाजिक न्याय की प्राप्ति (Pursuing Social Justice)

5.1 सामाजिक न्याय का अर्थ

  1. सामाजिक न्याय का अर्थ है — ऐसा समाज बनाना जो समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे पर आधारित हो।
  2. इसका लक्ष्य है सामाजिक-आर्थिक विषमताओं और विशेषाधिकारों को समाप्त करना।
  3. हर व्यक्ति को गरिमा, अवसर और सम्मान प्रदान करना इसका उद्देश्य है।
  4. यह केवल कानून के सामने समानता नहीं, बल्कि अवसरों की समानता की भी बात करता है।

5.2 सामाजिक न्याय की विशेषताएँ

  1. अवसरों की समानता – हर व्यक्ति को अपनी क्षमता विकसित करने का समान अवसर।
  2. सामाजिक असमानताओं का उन्मूलन – जाति, वर्ग, लिंग के भेदभाव का अंत।
  3. कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा – कल्याणकारी योजनाएँ और आरक्षण नीति।
  4. आर्थिक न्याय – उचित मजदूरी और संसाधनों की समान पहुँच।
  5. राजनीतिक न्याय – सभी को शासन में भाग लेने का समान अधिकार।
  6. मानवीय गरिमा का सम्मान – प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान और आत्मसम्मान सुरक्षित रखना।

5.3 भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय

  1. संविधान की प्रस्तावना “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय” का वादा करती है।
  2. मौलिक अधिकार (Part III) – समानता, भेदभाव-निषेध, अस्पृश्यता-उन्मूलन।
  3. राज्य के नीति निदेशक तत्व (Part IV) – राज्य को समान अवसर, कल्याण और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए निर्देश।
  4. आरक्षण नीति – अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए।
  5. महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार और योजनाएँ।

5.4 सामाजिक न्याय के सामने चुनौतियाँ

  1. जातिगत भेदभाव – ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में असमानताएँ।
  2. लैंगिक असमानता – मजदूरी में भेद, हिंसा, कम राजनीतिक भागीदारी।
  3. आर्थिक विषमता – अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई।
  4. क्षेत्रीय असंतुलन – राज्यों के बीच विकास का असमान वितरण।
  5. साम्प्रदायिकता और असहिष्णुता – सामाजिक सौहार्द में बाधा।
  6. शिक्षा और स्वास्थ्य तक असमान पहुँच – अवसरों की कमी।

5.5 सामाजिक न्याय के उपाय

  1. संवैधानिक प्रावधान – अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से।
  2. सकारात्मक भेदभाव (Affirmative Action) – आरक्षण और विशेष योजनाएँ।
  3. भूमि सुधार – भूमिहीनों को भूमि वितरण।
  4. कल्याणकारी योजनाएँ – मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, छात्रवृत्तियाँ।
  5. कानूनी संरक्षण – जाति भेद, घरेलू हिंसा और बाल श्रम विरोधी कानून।
  6. शिक्षा और जनजागरण – सामाजिक सुधार और समानता के लिए।

5.6 सरकार की भूमिका

  1. राज्य सामाजिक न्याय प्राप्त करने का प्रमुख साधन है।
  2. उसे आर्थिक विकास के साथ सामाजिक समानता का संतुलन बनाना चाहिए।
  3. बाजार को नियंत्रित कर शोषण से बचाव करना चाहिए।
  4. सभी नागरिकों को स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसी मूल सेवाएँ उपलब्ध करानी चाहिए।
  5. लोकतंत्र में जनता की सक्रिय भागीदारी सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है।

5.7 नागरिक समाज की भूमिका

  1. गैर-सरकारी संगठन (NGOs), सामाजिक आंदोलन और मीडिया जागरूकता फैलाते हैं।
  2. महात्मा गांधी, डॉ. आंबेडकर, ज्योतिबा फुले जैसे समाज सुधारकों ने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया।
  3. नागरिक समाज सरकार को जवाबदेह बनाता है और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है।
  4. सामाजिक परिवर्तन के लिए सामूहिक प्रयास अनिवार्य हैं।

6. समकालीन दृष्टिकोण (Contemporary Debates on Justice)

  1. स्वतंत्रतावादी दृष्टिकोण (Libertarian): व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यूनतम राज्य का समर्थन (रॉबर्ट नोजिक)।
  2. मार्क्सवादी दृष्टिकोण: वर्गहीन समाज और शोषण-मुक्त व्यवस्था की मांग।
  3. नारीवादी दृष्टिकोण: लैंगिक समानता और महिलाओं के अदृश्य श्रम की पहचान।
  4. बहुसांस्कृतिक दृष्टिकोण: विभिन्न संस्कृतियों और पहचान का सम्मान।
  5. पर्यावरणीय न्याय: पर्यावरणीय संसाधनों का समान और जिम्मेदार उपयोग।

6.1 तुलनात्मक दृष्टि

दार्शनिक / विचारकप्रमुख सिद्धांतन्याय का आधारराज्य की भूमिका
अरस्तू (Aristotle)समान को समान व्यवहारयोग्यता और सद्गुणनैतिक उत्कृष्टता को बढ़ाना
उपयोगितावादी (Bentham, Mill)अधिकतम सुख का सिद्धांतउपयोगिता और कल्याणअधिकतम भलाई के लिए नीतियाँ
मार्क्सवर्गहीन समाजसमानता और शोषण का अंतक्रांतिकारी परिवर्तन
रॉल्सनिष्पक्षता के रूप में न्यायस्वतंत्रता और समानताकल्याणकारी लोकतांत्रिक राज्य
नोजिकअधिकार सिद्धांतसंपत्ति और स्वतंत्रतान्यूनतम राज्य
गांधीसर्वोदयाअहिंसा और मानव गरिमानैतिक आत्मशासन

7. सामाजिक न्याय और मानवाधिकार

  1. सामाजिक न्याय मानवाधिकारों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
  2. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान का अधिकार है।
  3. मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) न्याय के मूल सिद्धांतों पर आधारित है।
  4. सामाजिक न्याय का अर्थ है — इन अधिकारों को व्यावहारिक रूप में लागू करना।
  5. किसी भी समूह को जाति, धर्म या लिंग के आधार पर अधिकारों से वंचित रखना अन्याय है।

8. वैश्वीकरण और न्याय

  1. आज के वैश्वीकृत विश्व में न्याय की सीमाएँ राष्ट्रीय न होकर अंतरराष्ट्रीय हो गई हैं।
  2. विकसित और विकासशील देशों के बीच असमानता वैश्विक न्याय का मुद्दा है।
  3. निष्पक्ष व्यापार, ऋणमुक्ति और जलवायु न्याय आधुनिक चुनौतियाँ हैं।
  4. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को समान विकास और मानव गरिमा को बढ़ावा देना चाहिए।
  5. सामाजिक न्याय का अर्थ अब विश्व स्तर पर समान अवसर और सहयोग है।

9. निष्कर्ष (Conclusion)

  1. न्याय एक नैतिक और सामाजिक मूल्य है जो समाज को संतुलित और मानवीय बनाता है।
  2. सामाजिक न्याय के लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का संतुलन आवश्यक है।
  3. रॉल्स जैसे विचारक हमें निष्पक्षता और तर्कसंगत नीति निर्धारण का मार्ग दिखाते हैं।
  4. भारत में सामाजिक न्याय अभी भी एक सतत प्रक्रिया है — जिसका उद्देश्य केवल कानून में नहीं, व्यवहार में समानता लाना है।
  5. राज्य, नागरिक और समाज सभी को मिलकर भेदभाव, अन्याय और असमानता के खिलाफ काम करना चाहिए।
  6. सच्चा न्याय वही है जो हर व्यक्ति को सम्मान, स्वतंत्रता और अवसर प्रदान करे।

मुख्य शब्द (Key Terms)

  • न्याय (Justice): निष्पक्षता और समानता।
  • सामाजिक न्याय (Social Justice): सामाजिक असमानताओं का उन्मूलन और समान अवसर।

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