political science CBSE class 12th course A अध्याय 2


🧭 अध्याय 2 – समकालीन शक्ति केंद्र (Contemporary Centres of Power)


🔹 परिचय

  1. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में केवल एक ही महाशक्ति — संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A) रह गया।
  2. लेकिन समय के साथ-साथ नई क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियाँ उभरने लगीं जिन्होंने अमेरिका के प्रभुत्व को संतुलित किया।
  3. इन नई शक्तियों में प्रमुख हैं — यूरोपीय संघ (EU), दक्षिण–पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN), चीन, और भारत
  4. इन सभी ने अपनी आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति से विश्व राजनीति को प्रभावित किया।
  5. इसी कारण आज की दुनिया को बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World) कहा जाता है।

🟩 1. यूरोपीय संघ (European Union – EU)

🌍 गठन और पृष्ठभूमि

  1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में शांति और आर्थिक स्थिरता लाने के उद्देश्य से यूरोपीय एकता की शुरुआत हुई।
  2. 1957 में रोम संधि (Treaty of Rome) के तहत यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) का गठन किया गया।
  3. 1992 में मास्ट्रिख संधि (Maastricht Treaty) के बाद इसे यूरोपीय संघ (EU) का नाम दिया गया।
  4. इस संघ का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण स्थापित करना था।
  5. इसके प्रमुख संस्थान हैं — यूरोपीय संसद, यूरोपीय आयोग, यूरोपीय परिषद, और न्यायालय (Court of Justice)

⚙️ मुख्य उद्देश्य

  1. यूरोप में शांति, एकता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना।
  2. एकल बाजार (Single Market) की स्थापना, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और व्यक्तियों की स्वतंत्र आवाजाही हो।
  3. समान विदेश नीति और सुरक्षा नीति विकसित करना।
  4. पर्यावरण, न्याय और सामाजिक मामलों में सहयोग को बढ़ावा देना।
  5. एक समान मुद्रा (Euro) का प्रचलन और आर्थिक नीतियों का समन्वय।

💶 यूरोजोन और आर्थिक एकीकरण

  1. 1999 में यूरो (€) को 11 देशों में सामान्य मुद्रा के रूप में लागू किया गया।
  2. इससे व्यापार आसान हुआ और मुद्रा विनिमय की समस्या समाप्त हुई।
  3. आज 19 से अधिक देश यूरो का उपयोग करते हैं — इसे यूरोजोन (Eurozone) कहा जाता है।
  4. EU आज विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
  5. जर्मनी, फ्रांस और इटली इसकी प्रमुख आर्थिक शक्तियाँ हैं।

🛡️ सैन्य और राजनीतिक प्रभाव

  1. EU की अपनी साझा विदेश और सुरक्षा नीति (CFSP) है।
  2. यह नाटो (NATO) के सहयोग से रक्षा कार्यों में शामिल रहता है।
  3. लिस्बन संधि (2007) के तहत EU के ढांचे को और मज़बूत किया गया।
  4. यह संगठन लोकतंत्र, मानवाधिकार और कानून के शासन को बढ़ावा देता है।
  5. इसकी ताकत सॉफ्ट पावर (Soft Power) — अर्थात् आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव में निहित है।

💡 EU का महत्व

  1. यह विश्व का प्रमुख आर्थिक शक्ति केंद्र है।
  2. EU देशों का सम्मिलित GDP, अमेरिका से भी अधिक है।
  3. यह सहयोग और एकता का सफल उदाहरण है।
  4. EU वैश्विक व्यापार और पर्यावरण नीतियों में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  5. यह सामाजिक कल्याण, समानता और पर्यावरणीय नीतियों के लिए प्रसिद्ध है।

⚖️ EU के समक्ष चुनौतियाँ

  1. उत्तरी और दक्षिणी यूरोप के बीच आर्थिक असमानता।
  2. ब्रेक्सिट (2020) — ब्रिटेन के बाहर निकलने से इसकी एकता पर प्रभाव पड़ा।
  3. शरणार्थी संकट और आप्रवासन समस्या
  4. कुछ देशों में राष्ट्रवाद का बढ़ना
  5. अमेरिका के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना।

🧭 EU का निष्कर्ष

  1. यूरोपीय संघ विश्व का सफल क्षेत्रीय संगठन है।
  2. यह शांति, स्थिरता और आर्थिक एकता का प्रतीक है।
  3. चुनौतियों के बावजूद, EU आज एक प्रमुख गैर-सैन्य महाशक्ति है।

🟩 2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN)

🌏 गठन और पृष्ठभूमि

  1. ASEAN की स्थापना 8 अगस्त 1967 को हुई।
  2. इसके संस्थापक सदस्य थे — इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड।
  3. बाद में ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया भी शामिल हुए।
  4. इसका मुख्यालय जकार्ता (इंडोनेशिया) में है।
  5. आज ASEAN क्षेत्र में लगभग 65 करोड़ जनसंख्या और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।

⚙️ मुख्य उद्देश्य

  1. क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना।
  2. क्षेत्र को शांति, स्वतंत्रता और तटस्थता का क्षेत्र बनाना।
  3. आपसी सहयोग से गरीबी उन्मूलन और विकास को प्रोत्साहित करना।
  4. व्यापार, विज्ञान, शिक्षा और संस्कृति में सहयोग।
  5. अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करना।

💰 आर्थिक सहयोग

  1. 1992 में ASEAN मुक्त व्यापार क्षेत्र (AFTA) की शुरुआत हुई।
  2. सदस्य देशों के बीच टैरिफ कम किए गए ताकि व्यापार बढ़ सके।
  3. ASEAN ने चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ समझौते किए।
  4. ASEAN अब विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  5. यह विदेशी निवेश के लिए आकर्षक क्षेत्र बन चुका है।

🕊️ राजनीतिक और सुरक्षा भूमिका

  1. ASEAN देशों ने असहमति नहीं, बल्कि सहमति से निर्णय लेने की परंपरा अपनाई।
  2. 1994 में ASEAN क्षेत्रीय मंच (ARF) की स्थापना की गई ताकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग हो।
  3. दक्षिण चीन सागर विवाद में ASEAN ने शांति बनाए रखने की कोशिश की।
  4. यह “ASEAN Way” कहलाता है — जो कूटनीति, धैर्य और आपसी सम्मान पर आधारित है।
  5. ASEAN ने क्षेत्रीय स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

⚖️ चुनौतियाँ

  1. सदस्य देशों में आर्थिक असमानता।
  2. कुछ देशों (जैसे म्यांमार) में राजनीतिक अस्थिरता।
  3. निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया।
  4. बाहरी शक्तियों (चीन, अमेरिका) पर निर्भरता।
  5. क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर मतभेद।

🧭 निष्कर्ष

  1. ASEAN ने एशिया में क्षेत्रीय सहयोग का सफल उदाहरण प्रस्तुत किया।
  2. इसकी सफलता का रहस्य आपसी सम्मान और चरणबद्ध एकीकरण में है।
  3. आज यह एशिया–प्रशांत क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र बन चुका है।

🟩 3. चीन की आर्थिक उन्नति

🇨🇳 पृष्ठभूमि

  1. 1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित हुआ।
  2. 1978 में डेंग शियाओपिंग ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की।
  3. इन्हें “चार आधुनिकीकरण” कहा गया — कृषि, उद्योग, रक्षा, और विज्ञान-प्रौद्योगिकी।
  4. चीन ने “खुला द्वार नीति” अपनाई, जिससे विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिला।
  5. इन सुधारों ने चीन को बंद अर्थव्यवस्था से एक वैश्विक शक्ति में बदल दिया।

💹 आर्थिक परिवर्तन

  1. चीन ने योजना आधारित अर्थव्यवस्था से बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया।
  2. विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) बनाए गए।
  3. विदेशी निवेश और निजी उद्योगों को बढ़ावा दिया गया।
  4. चीन “विश्व की फैक्ट्री (World’s Factory)” बन गया।
  5. आज यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

📈 सामाजिक विकास

  1. लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया।
  2. शिक्षा और स्वास्थ्य में तेज़ सुधार हुआ।
  3. शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का व्यापक विकास हुआ।
  4. चीन ने विज्ञान, अंतरिक्ष और तकनीकी क्षेत्रों में सफलता पाई।
  5. हुवावे, अलीबाबा, टेनसेंट जैसी कंपनियाँ विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हुईं।

🛡️ सैन्य शक्ति

  1. चीन ने अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को आधुनिक बनाया।
  2. परमाणु हथियार और मिसाइल क्षमता विकसित की।
  3. दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व जताया।
  4. संयुक्त राष्ट्र, BRICS, और WTO में सक्रिय भूमिका निभाई।
  5. इसका बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) वैश्विक व्यापार को जोड़ता है।

⚖️ चुनौतियाँ

  1. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आय असमानता।
  2. पर्यावरण प्रदूषण।
  3. मानवाधिकारों पर आलोचना।
  4. वृद्ध होती जनसंख्या।
  5. अमेरिका और पड़ोसी देशों से तनावपूर्ण संबंध।

🧭 निष्कर्ष

  1. चीन का उत्थान वैश्विक शक्ति संतुलन में सबसे बड़ा परिवर्तन है।
  2. इसने राज्य नियंत्रण और बाजार सुधारों का अनूठा मिश्रण अपनाया।
  3. चीन आज विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों में निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

🟩 4. भारत–चीन संबंध

🇮🇳🤝🇨🇳 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  1. भारत और चीन दोनों प्राचीन सभ्यताएँ हैं और बौद्ध धर्म ने इन्हें जोड़ा।
  2. 1950 में दोनों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
  3. “हिंदी-चीनी भाई-भाई” का नारा लोकप्रिय हुआ।
  4. 1962 के युद्ध ने संबंधों को बिगाड़ा।
  5. आज भी अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश विवादित क्षेत्र हैं।

⚙️ सहयोग के क्षेत्र

  1. व्यापार: दोनों देशों के बीच 100 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार।
  2. बहुपक्षीय संगठन: BRICS, SCO, और G20 में सहयोग।
  3. संस्कृति: छात्र और पर्यटन आदान-प्रदान बढ़ा।
  4. क्षेत्रीय स्थिरता: दोनों एशिया में शांति के लिए महत्वपूर्ण हैं।

⚔️ संघर्ष के क्षेत्र

  1. सीमा विवाद और LAC पर झड़पें (जैसे गलवान घाटी, 2020)।
  2. तिब्बत और दलाई लामा का मुद्दा।
  3. व्यापार असंतुलन — चीन से आयात अधिक, निर्यात कम।
  4. रणनीतिक प्रतिस्पर्धा — चीन–पाकिस्तान संबंध और BRI।
  5. हिंद–प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव की होड़।

🧭 वर्तमान स्थिति

  1. दोनों देश संवाद बनाए हुए हैं।
  2. आर्थिक संबंध जारी हैं, पर राजनीतिक विश्वास की कमी है।
  3. भारत आत्मनिर्भर भारत की नीति अपना रहा है।
  4. भविष्य सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों पर निर्भर करेगा।

🟩 5. निष्कर्ष

  1. आज की दुनिया बहुध्रुवीय विश्व बन चुकी है।
  2. यूरोपीय संघ, ASEAN, चीन और भारत — ये चारों आधुनिक शक्ति केंद्र हैं।
  3. ये सभी विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक मॉडल प्रस्तुत करते हैं।
  4. अब विश्व राजनीति केवल सैन्य ताकत पर नहीं, बल्कि सहयोग, कूटनीति और विकास पर आधारित है।
  5. 21वीं सदी की शक्ति संतुलन प्रणाली संवाद और साझेदारी पर टिकेगी।


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