📘 अध्याय 3 – एक शाही राजधानी : विजयनगर
(चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी तक)
कक्षा 12, इतिहास (Course B)
🪶 1. हम्पी की खोज (The Discovery of Hampi)
1.1 विजयनगर का पुनः अन्वेषण
- विजयनगर (वर्तमान हम्पी, कर्नाटक) के खंडहरों की खोज सन् 1800 ई. में कॉलिन मैकेंज़ी ने की थी।
- वे भारत के पहले सर्वेयर जनरल (Surveyor General) थे (1815–1821)।
- उन्होंने मानचित्र, चित्र, शिलालेख, स्थानीय कथाएँ व मौखिक साक्ष्य एकत्रित किए।
- उनके कार्य से दक्षिण भारत के व्यवस्थित पुरातात्त्विक अध्ययन की शुरुआत हुई।
1.2 स्रोत (Sources)
- पुरातात्त्विक साक्ष्य – मंदिर, महल, जलाशय, दुर्ग, मूर्तियाँ।
- साहित्यिक स्रोत – यात्रियों के वृत्तांत, शिलालेख, धार्मिक ग्रंथ।
- प्रमुख विदेशी यात्री:
- निकोलो दे कॉन्टी (इतालवी) – 15वीं सदी की शुरुआत में आया।
- अब्दुर रज़्ज़ाक़ (फ़ारस) – 1440 के दशक में विजयनगर आया।
- डॉमिंगो पायस और फर्नाओ नुनीज़ (पुर्तगाली) – 16वीं सदी में आए।
- अफानासी निकितिन (रूस) – संक्षिप्त यात्रा विवरण दिया।
- शिलालेखीय स्रोत – कन्नड़, तेलुगु, तमिल और संस्कृत भाषाओं में उपलब्ध हैं।
1.3 इतिहास पुनर्निर्माण की चुनौतियाँ
- 1565 ई. में तालिकोटा के युद्ध के बाद शहर नष्ट हो गया।
- कई धार्मिक व राजसी भवन बाद के शासकों ने पुनः उपयोग किए।
- खंडहरों की पहचान (कौन-सा मंदिर, बाजार, महल था) कठिन थी।
- इतिहासकारों ने वास्तुकला, अभिलेखों व ग्रंथों के आधार पर अनुमान लगाए।
🌆 2. विजयनगर – राजधानी और उसका परिवेश
2.1 साम्राज्य की स्थापना
- विजयनगर की स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का राय ने की थी।
- यह तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा था, चारों ओर पथरीली पहाड़ियाँ थीं।
- “विजयनगर” शब्द का अर्थ है – विजय का नगर।
- यह साम्राज्य दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली केंद्र बना।
2.2 राजनीतिक पृष्ठभूमि
- दिल्ली सल्तनत के दक्षिण पर नियंत्रण के कमजोर होने से नया राज्य उभरा।
- उद्देश्य: उत्तरी आक्रमणों का प्रतिरोध और दक्षिण भारत का एकीकरण।
- कृष्णदेव राय (1509–1529 ई.) के शासन में साम्राज्य अपनी चरम सीमा पर पहुँचा।
- इसका विस्तार ओडिशा से केरल तक फैला।
2.3 विजयनगर की वंशावलियाँ
- संगम वंश (1336–1485) – संस्थापक हरिहर और बुक्का राय।
- सलुव वंश (1485–1505) – सलुव नरसिंह द्वारा स्थापित।
- तुलुव वंश (1505–1570) – प्रसिद्ध राजा: कृष्णदेव राय।
- अरविदु वंश (1570–1646) – राजधानी के पतन के बाद जारी रहा।
2.4 भौगोलिक स्थिति का महत्व
- प्राकृतिक रक्षा: ग्रेनाइट की पहाड़ियाँ और तुंगभद्रा नदी।
- उपजाऊ मैदानों से कृषि को बल मिला।
- व्यापार हेतु तटीय बंदरगाहों (गोवा, कालीकट) से निकटता।
- तमिल, तेलुगु और कन्नड़ संस्कृतियों के बीच सेतु।
🛕 3. पवित्र क्षेत्र (The Sacred Centre)
3.1 पवित्र क्षेत्र का महत्व
- हम्पी का धार्मिक क्षेत्र तुंगभद्रा नदी के किनारे फैला है।
- इसमें अनेक मंदिर, देवालय, पवित्र कुंड हैं।
- धर्म और राजनीति का घनिष्ठ संबंध था।
3.2 प्रमुख मंदिर
- विरुपाक्ष मंदिर
- भगवान शिव को समर्पित।
- साम्राज्य से पूर्व का प्राचीन मंदिर, बाद में कृष्णदेव राय ने इसका विस्तार कराया।
- राज्याभिषेक एवं धार्मिक पर्वों का केंद्र।
- पंपा महोत्सव यहाँ प्रसिद्ध था।
- विट्ठल मंदिर
- भगवान विष्णु (विट्ठल) को समर्पित।
- पत्थर का रथ और संगीत बजाने वाले स्तंभ प्रसिद्ध हैं।
- विजयनगर की स्थापत्य उत्कृष्टता का प्रतीक।
- हजार राम मंदिर
- कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित।
- इसकी दीवारों पर रामायण के दृश्य उकेरे गए हैं।
3.3 धर्म और अनुष्ठान
- शासक मंदिरों का संरक्षण कर धार्मिक वैधता प्राप्त करते थे।
- मंदिरों को भूमि दान, कर छूट, वस्त्र, सोना आदि दिए जाते थे।
- मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं बल्कि आर्थिक केंद्र भी थे।
3.4 तीर्थ और पवित्र भौगोलिकता
- तुंगभद्रा क्षेत्र को देवी पंपा से जोड़ा गया।
- शैव, वैष्णव और स्थानीय परंपराओं का मेल दिखाई देता है।
- धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता की झलक।
👑 4. राजकीय केंद्र (The Royal Centre)
4.1 स्थान व संरचना
- पवित्र क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में स्थित।
- महल, सभा भवन, दुर्ग, प्राचीर व सैनिक परिसर शामिल थे।
- अधिकतर भवन पत्थर व चूने के गारे से बने थे।
4.2 राजा और दरबार
- राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था।
- राजदरबार शक्ति, वैभव और धर्म का केंद्र था।
- दरबार में मंत्री, सेनापति, कवि, विद्वान व संत उपस्थित रहते थे।
4.3 प्रमुख निर्माण
- महानवमी डिब्बा (Great Platform)
- कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित विशाल मंच।
- दुर्गा पूजा/दशहरा (महानवमी) उत्सव के लिए प्रयुक्त।
- दीवारों पर सैनिकों, नर्तकियों, हाथियों, घोड़ों की नक्काशी।
- कमल महल (Lotus Mahal)
- शाही महिलाओं या परामर्श कक्ष हेतु निर्मित।
- हिन्दु-मुस्लिम स्थापत्य शैली का सुंदर मिश्रण।
- हाथी शाला (Elephant Stables)
- विशाल गुंबदाकार ढाँचा – शाही हाथियों के लिए।
- स्थापत्य में इस्लामी मेहराब और द्रविड़ शैली का संगम।
- सभा भवन और महल
- राजनीतिक सभाएँ, सैन्य योजना और उत्सव के आयोजन के लिए।
4.4 शाही उत्सव
- सबसे प्रसिद्ध: महानवमी उत्सव (दशहरा)।
- विशाल शोभायात्राएँ, पूजा, दावतें, सैनिक परेड होती थीं।
- राजसत्ता की शक्ति और समृद्धि का प्रतीक।
🏗️ 5. महल, मंदिर और बाजारों की रूपरेखा
5.1 नगर नियोजन
- शहर को तीन मुख्य क्षेत्रों में बाँटा गया:
- पवित्र क्षेत्र – मंदिर और तीर्थ स्थल।
- राजकीय क्षेत्र – प्रशासनिक और महलीय भवन।
- शहरी क्षेत्र – आवासीय इलाक़े और बाज़ार।
- सड़कें चौड़ी और सुव्यवस्थित थीं।
- मंदिरों के पास बाज़ार विकसित हुए थे।
5.2 बाज़ार और अर्थव्यवस्था
- मंदिरों के पास हाट और बाजार लगते थे।
- मसाले, वस्त्र, फूल, आभूषण, घोड़े आदि बिकते थे।
- विदेशी यात्रियों ने इन बाज़ारों को “सोने-रत्नों से भरे” बताया।
- अरब, पुर्तगाली और चीनी व्यापारियों से संबंध।
5.3 जल प्रबंधन और कृषि
- कुएँ, नहरें, टैंक बनवाए गए (जैसे हिरिया नहर, कमलापुर टैंक)।
- प्रमुख फसलें: धान, गन्ना, सुपारी, दालें।
- कृषि अधिशेष से शहरी जीवन और व्यापार को बल मिला।
5.4 रक्षा व्यवस्था
- शहर के चारों ओर बहु-स्तरीय दुर्ग प्राचीरें।
- प्राकृतिक चट्टानों का उपयोग रक्षा में।
- द्वारों पर कर नियंत्रण और सुरक्षा प्रहरी।
5.5 आवास और सामाजिक व्यवस्था
- अमीरों के घर पत्थर के और सुशोभित,
आम जनता के घर मिट्टी और फूस के। - ब्राह्मणों के घर मंदिरों के पास,
कारीगर और व्यापारी बाजार के पास। - नगर का स्वरूप सामाजिक और धार्मिक पदक्रम को दर्शाता था।
📜 6. उत्तरों की खोज में प्रश्न
6.1 अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण किसका था?
- राज्य और मंदिर दोनों का नियंत्रण था।
- भूमि दान ब्राह्मणों व मंदिरों को दिए जाते थे।
- कर किसानों, व्यापारियों, कारीगरों से वसूला जाता था।
- व्यापारी गिल्ड (श्रेणियाँ) बनाकर व्यापार नियंत्रित करते थे।
6.2 धर्म और राज्य का संबंध
- शासक धार्मिक संरक्षण द्वारा अपनी सत्ता वैध बनाते थे।
- कृष्णदेव राय स्वयं को “विष्णु का प्रतिनिधि” कहते थे।
- मंदिरों से राजकीय वैधता और जन समर्थन मिलता था।
- शैव, वैष्णव, जैन मतों में प्रतिस्पर्धा थी, पर सहिष्णुता बनी रही।
6.3 साम्राज्य का पतन
- कृष्णदेव राय की मृत्यु (1529 ई.) के बाद आंतरिक संघर्ष शुरू हुए।
- 1565 ई. तालिकोटा युद्ध – बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा, बीदर की संयुक्त सेना ने विजयनगर को हराया।
- राजधानी लूटी गई और नष्ट कर दी गई।
- अरविदु वंश ने कुछ समय तक दक्षिण में शासन जारी रखा।
6.4 हम्पी का पश्चात जीवन
- युद्ध के बाद शहर उजड़ गया।
- केवल कुछ मंदिरों (जैसे विरुपाक्ष मंदिर) में पूजा जारी रही।
- 19वीं सदी में ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने इसे पुनः खोजा।
- आज हम्पी एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (1986) है।
🎨 7. सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत
7.1 कला और स्थापत्य
- द्रविड़ शैली में निर्मित मंदिर, साथ में इस्लामी प्रभाव।
- ऊँचे गोपुरम, सुंदर मंडप, पत्थर की मूर्तियाँ।
- लौकिक भवनों में गुंबद, मेहराब और कमल आकृतियाँ।
- मूर्तियों में पौराणिक, नृत्य और लोकजीवन के दृश्य।
7.2 साहित्य और भाषा
- संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, तमिल सभी भाषाओं का संरक्षण।
- कृष्णदेव राय की रचना – “आमुक्तमाल्यदा” (तेलुगु)।
- कवि: पेद्दन, तेनालीराम, अल्लसानी पेद्दन प्रसिद्ध।
- भक्ति साहित्य का उत्कर्ष काल।
7.3 संगीत और नृत्य
- मंदिरों में देवदासी परंपरा, संगीत और नृत्य का प्रसार।
- कर्नाटक संगीत परंपरा का विकास।
7.4 अर्थव्यवस्था और व्यापार
- निर्यात: मसाले, वस्त्र, रत्न, घोड़े।
- आयात: अरब घोड़े, चीनी रेशम, फ़ारसी सामान।
- गोवा, मंगळुरु, कालीकट बंदरगाहों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार।
🌏 8. विजयनगर – वैभव का नगर
8.1 विदेशी यात्रियों के वर्णन
- डॉमिंगो पायस – “रोम से भी बड़ा और समृद्ध नगर।”
- अब्दुर रज़्ज़ाक़ – मजबूत किलेबंदी और विशाल बाजारों की प्रशंसा की।
- फर्नाओ नुनीज़ – कृष्णदेव राय के अभियानों और वैभव का उल्लेख किया।
- सभी यात्रियों ने नगर की समृद्धि और धार्मिक सहिष्णुता का वर्णन किया।
8.2 सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन
- अनेक भाषाओं और धर्मों का संगम स्थल।
- महिलाओं की भागीदारी व्यापार और मंदिर सेवा में।
- कारीगर और व्यापारी श्रेणियाँ संगठित थीं।
- समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ग विद्यमान।
🧩 9. निष्कर्ष (Conclusion)
- विजयनगर केवल राजनीतिक राजधानी नहीं, बल्कि धर्म, कला, स्थापत्य और व्यापार का केंद्र था।
- इसने दक्षिण भारत की विविध सांस्कृतिक परंपराओं को एक सूत्र में बाँधा।
- कृष्णदेव राय के काल में यह साम्राज्य भारतीय सभ्यता का गौरवशाली प्रतीक था।
- यद्यपि 16वीं सदी में यह नष्ट हुआ, पर इसकी स्मृतियाँ आज भी हम्पी के खंडहरों में जीवित हैं।
- विजयनगर भारत की सांस्कृतिक दृढ़ता, स्थापत्य प्रतिभा और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक है।
