History class 12 CBSE course B अध्याय – 2


🕉️ अध्याय – 2 : भक्ति-सूफी परम्पराएँ


1. धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं का एक संगम (A Mosaic of Religious Beliefs and Practices)

1.1 भारत का धार्मिक परिदृश्य

  • ई. 8वीं से 18वीं शताब्दी के बीच भारत में विभिन्न धर्म और आस्थाएँ साथ-साथ विद्यमान थीं।
  • वैदिक ब्राह्मणवाद, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम और अनेक स्थानीय लोक आस्थाएँ साथ चलीं।
  • समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति से धर्म गहराई से जुड़ा था।
  • अनेक लोग एक साथ कई धार्मिक परम्पराओं में भाग लेते थे।

1.2 मंदिर और तीर्थस्थल

  • मंदिर केवल पूजा के स्थान नहीं थे, बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक केन्द्र भी थे।
  • प्रसिद्ध तीर्थस्थल: जगन्नाथ (पुरी), कांचीपुरम, तिरुपति, रामेश्वरम आदि।
  • तीर्थ यात्राओं ने सांस्कृतिक एकता और व्यापारिक संपर्क को बढ़ाया।
  • राजा-महाराजाओं ने मंदिरों का निर्माण राजकीय प्रतिष्ठा और धार्मिक भक्ति दोनों के रूप में किया।

1.3 मूर्तिपूजा और धार्मिक अनुष्ठान

  • मूर्तिपूजा ने भक्ति का एक मुख्य आधार बनाया।
  • पूजा में भोजन चढ़ाना, मंत्रोच्चार, भजन, आरती, पर्व-त्योहार सम्मिलित थे।
  • ब्राह्मण वर्ग पूजा-पाठ के माध्यम से देवता और भक्त के बीच सेतु के रूप में कार्य करता था।

1.4 धार्मिक ग्रन्थ और मौखिक परम्पराएँ

  • संस्कृत ग्रन्थ जैसे वेद, उपनिषद, पुराण, धर्मशास्त्र धार्मिक ज्ञान के स्रोत थे।
  • साथ ही लोककथाएँ, गीत, कथा और मौखिक परम्पराएँ ने धार्मिक विचारों को जन-जन तक पहुँचाया।
  • क्षेत्रीय भाषाओं में कथाएँ और भक्ति गीत सामान्य जनता के लिए सुलभ हुए।

1.5 सामान्य जनता की भूमिका

  • सामान्य जन ने लोक देवताओं और लोक रीति-रिवाजों से धर्म को अपने ढंग से अपनाया।
  • स्त्रियों, किसानों और कारीगरों ने लोक भक्ति परम्परा को विकसित किया।

2. प्रार्थना के गीत (Poems of Prayer)

2.1 भक्ति और सूफी कविताओं की भूमिका

  • भक्ति और सूफी कविताएँ ईश्वर से प्रेमपूर्ण संवाद का माध्यम बनीं।
  • कवियों ने स्थानीय भाषाओं (तमिल, कन्नड़, अवधी, ब्रज, पंजाबी, बांग्ला आदि) में रचनाएँ कीं।
  • उन्होंने संस्कृत और फ़ारसी की पांडित्यपूर्ण भाषा को त्याग कर सरल भाषा अपनाई।

2.2 कविताओं के मुख्य विषय

  • प्रेम और विरह के माध्यम से ईश्वर से एकत्व की भावना।
  • कर्मकाण्ड, जातिभेद और आडंबर की आलोचना।
  • आंतरिक शुद्धि, सादगी और सच्चे मन से भक्ति पर बल।

2.3 प्रभाव

  • कविता ने भक्ति और समानता का संदेश पूरे समाज में फैलाया।
  • भारत की सांस्कृतिक एकता और साहित्यिक परम्परा को सशक्त किया।
  • संगीत, नृत्य और लोककला पर गहरा प्रभाव पड़ा।

3. प्रारंभिक भक्ति परम्पराएँ (Early Traditions of Bhakti)

3.1 दक्षिण भारत में उद्भव

  • भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में हुआ (ई. 6वीं–9वीं शताब्दी)।
  • व्यक्तिगत देवता – विष्णु, शिव और देवी की उपासना पर बल।

3.2 आलवार और नायनार संत

  • आलवार (विष्णु भक्त) – इनकी रचनाएँ दिव्यप्रबंधम् नामक संग्रह में हैं।
  • नायनार (शिव भक्त) – इनकी रचनाएँ तेवरम् के नाम से प्रसिद्ध हैं।
  • दोनों ने प्रेम और व्यक्तिगत भक्ति (भक्ति भाव) को सर्वोपरि माना।
  • जाति आधारित भेदभाव और कर्मकाण्ड का विरोध किया।

3.3 मुख्य विचार

  • सभी के लिए ईश्वर सुलभ है – न जाति, न लिंग का भेद।
  • संगीत, नृत्य, गीत और प्रेम के माध्यम से भक्ति।
  • मंदिरों और भक्ति सभाओं के माध्यम से जन-संपर्क।

3.4 राजकीय संरक्षण

  • चोल, पांड्य और पल्लव राजाओं ने मंदिरों और भक्ति कवियों को संरक्षण दिया।
  • भक्ति एक सांस्कृतिक-सामाजिक आंदोलन के रूप में विकसित हुई।

4. वीरशैव परम्परा – कर्नाटक में (The Virashaiva Tradition in Karnataka)

4.1 उद्भव

  • बसवन्ना (12वीं शताब्दी) द्वारा कर्नाटक में प्रारंभ।
  • अनुयायी लिंगायत या वीरशैव कहलाए – शिव के भक्त।

4.2 प्रमुख सिद्धांत

  • शिवलिंग धारण करना भक्ति का प्रतीक।
  • जाति व्यवस्था और कर्मकाण्ड का विरोध।
  • ईमानदारी से कार्य करना ही पूजा है।
  • स्त्री-पुरुष समानता, विधवा विवाह, और अस्पृश्यता का विरोध

4.3 साहित्यिक योगदान

  • लिंगायतों ने वचन (Vachana) नामक छोटी-छोटी कन्नड़ रचनाएँ कीं।
  • प्रमुख कवि: बसवन्ना, अल्लमप्रभु, अक्का महादेवी

4.4 सामाजिक प्रभाव

  • समाज में समानता और सुधार की भावना फैली।
  • बाद में यह आंदोलन गैर-ब्राह्मण सुधार आंदोलनों की प्रेरणा बना।

5. सूफी परम्पराओं का विकास (The Growth of Sufism)

5.1 सूफीवाद का अर्थ

  • सूफीवाद इस्लाम की आध्यात्मिक या रहस्यवादी परम्परा है।
  • उद्देश्य – ईश्वर (अल्लाह) से आत्मिक एकता प्राप्त करना।

5.2 सूफी विचार

  • प्रेम, दया और सेवा के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति।
  • ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग भक्ति और आत्म-शुद्धि है, न कि कर्मकाण्ड।
  • संगीत, कविता और ध्यान (समा) द्वारा ईश्वर से मिलन की अनुभूति।
  • सभी मनुष्य समान हैं – धर्म या जाति से भेद नहीं।

5.3 खानकाह (सूफी केंद्र)

  • सूफी संतों ने खानकाह (आश्रम) स्थापित किए।
  • यहाँ शिक्षा, प्रार्थना, भोजन और जनसेवा होती थी।

5.4 सूफी सिलसिले (Orders)

  • सूफी संत अपने सिलसिलों (वंशावलियों) में संगठित थे।
  • प्रमुख सिलसिले:
    • चिश्ती – प्रेम, करुणा और सेवा पर बल।
    • सुहरवर्दी – समाज और राजनीति से जुड़ा।
    • कादिरी और नक्शबन्दी – बाद की प्रसिद्ध शाखाएँ।

5.5 भारत में सूफीवाद का प्रसार

  • सूफी विचार भारत में अरबी व्यापारियों, फ़ारसी मिशनरियों और तुर्क शासकों के साथ आए।
  • सूफियों ने भारतीय संस्कृति और भाषाओं को अपनाया।
  • उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया।

6. भारतीय उपमहाद्वीप में चिश्ती परम्परा (The Chishtis in the Subcontinent)

6.1 परिचय

  • चिश्ती सिलसिला भारत में सबसे प्रभावशाली रहा।
  • इसके संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) थे।

6.2 मुख्य शिक्षाएँ

  • प्रेम, दया, विनम्रता और मानव सेवा (खिदमत) पर बल।
  • राजनीति और विलासिता से दूरी
  • ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग मानवता की सेवा से।

6.3 प्रमुख संत

  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर)गरीब नवाज़ के नाम से प्रसिद्ध।
  • शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी (दिल्ली) – सरल जीवन के लिए प्रसिद्ध।
  • शेख निज़ामुद्दीन औलिया (दिल्ली) – सबसे प्रसिद्ध संत; सभी धर्मों के लोग उनसे प्रभावित हुए।
  • अमीर खुसरो – निज़ामुद्दीन के शिष्य; महान कवि और संगीतज्ञ।

6.4 प्रमुख प्रथाएँ

  • लंगर (सामूहिक भोजन) – सभी के लिए खुला।
  • समा (संगीत द्वारा ध्यान) – ईश्वर से मिलन का साधन।
  • हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों की समान भागीदारी

6.5 राजाओं से संबंध

  • चिश्ती संत राजनीतिक सत्ता से दूर रहे, परंतु राजाओं ने उनका सम्मान किया।
  • इल्तुतमिश, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक ने उन्हें आदर दिया।

6.6 दरगाहें

  • संतों की मृत्यु के बाद उनके समाधि स्थल दरगाह कहलाए।
  • प्रसिद्ध दरगाहें – अजमेर शरीफ, निज़ामुद्दीन औलिया (दिल्ली)

7. नई भक्ति परम्पराएँ (New Devotional Paths)

7.1 उत्तर भारत में प्रसार

  • 13वीं से 18वीं सदी के बीच भक्ति आंदोलन उत्तर भारत में फैला।
  • संतों ने स्थानीय भाषाओं में उपदेश दिए ताकि सामान्य जनता समझ सके।

7.2 भक्ति की दो धाराएँ

  1. सगुण भक्तिसाकार ईश्वर की उपासना (राम, कृष्ण, देवी)।
    • प्रमुख संत: तुलसीदास, मीराबाई, सूरदास, चैतन्य महाप्रभु
  2. निर्गुण भक्तिनिर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना।
    • प्रमुख संत: कबीर, गुरु नानक, रैदास, दादूदयाल

7.3 कबीर (15वीं सदी)

  • बनारस के पास जन्म; संभवतः जुलाहा समुदाय से थे।
  • दोहों (कविताओं) के माध्यम से उपदेश दिए।
  • ब्राह्मणवाद और इस्लामी रूढ़िवाद दोनों की आलोचना की।
  • एकेश्वरवाद और आत्मिक भक्ति पर बल दिया।
  • प्रसिद्ध दोहा:
    “जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहीं।”

7.4 गुरु नानक (1469–1539)

  • सिख धर्म के संस्थापक।
  • इक ओंकार” – एक निराकार ईश्वर में विश्वास।
  • अंधविश्वास, जातिभेद और कर्मकाण्ड का विरोध।
  • उपदेश: नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण) और किरत करो (ईमानदार जीवन)
  • उनके उपदेश गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।

7.5 मीराबाई (16वीं सदी)

  • मेवाड़ की राजकुमारी; कृष्ण भक्त
  • कृष्ण के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण
  • सामाजिक नियमों और राजसी जीवन का त्याग।
  • उनके भजन राजस्थानी, ब्रज और गुजराती में हैं।

7.6 तुलसीदास और सूरदास

  • तुलसीदासरामचरितमानस के रचयिता; राम को आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया।
  • सूरदाससूरसागर के कवि; कृष्ण के बाल-लीलाओं का वर्णन।
  • दोनों ने सगुण भक्ति को लोकप्रिय बनाया।

7.7 चैतन्य महाप्रभु (बंगाल)

  • कृष्ण भक्ति और कीर्तन परम्परा के प्रवर्तक।
  • प्रेम और भक्ति के माध्यम से धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार किया।

8. संवाद और विरोध (Dialogue and Dissent in Northern India)

8.1 धार्मिक संवाद

  • भक्ति संतों और सूफी संतों के बीच विचारों का आदान-प्रदान हुआ।
  • दोनों ने प्रेम, समानता और ईश्वर से आत्मिक संबंध पर बल दिया।

8.2 मिश्रित परम्पराएँ

  • दरगाहों, मेलों और पर्वों में दोनों समुदायों की भागीदारी।
  • धार्मिक भाषाओं और प्रतीकों का साझा प्रयोग
  • इसने सांस्कृतिक समन्वय (composite culture) को जन्म दिया।

8.3 विरोध और सुधार

  • भक्ति व सूफी आंदोलनों ने जाति व्यवस्था, रूढ़िवाद और पाखंड का विरोध किया।
  • पुजारियों और मौलवियों की सत्ता को चुनौती दी।
  • ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग प्रेम और भक्ति बताया।

8.4 महिला संतों की भूमिका

  • अक्का महादेवी, मीराबाई, लल्लेश्वरी (ललदेव) जैसी संत महिलाओं ने आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश दिया।
  • उन्होंने पितृसत्तात्मक परम्पराओं को चुनौती दी।

9. धार्मिक परम्पराओं के इतिहास का पुनर्निर्माण (Reconstructing Histories of Religious Traditions)

9.1 अध्ययन के स्रोत

  • हागियोग्राफी (संतों की जीवनी) – उनके जीवन और चमत्कारों का विवरण।
  • काव्य साहित्य – भजन, दोहे, वचन, कीर्तन आदि।
  • सूफी ग्रन्थमलफ़ूज़ात (विचार-संवाद), मकतूबात (पत्र), तज़किरा (जीवनी)।
  • स्थापत्य साक्ष्य – मंदिर, दरगाह, मठ आदि।

9.2 अध्ययन की कठिनाइयाँ

  • संतों की जीवनी में कथा और तथ्य मिश्रित होते हैं।
  • कई रचनाएँ मौखिक रूप से प्रसारित हुईं, जिससे भिन्न संस्करण बने।
  • इतिहासकार विभिन्न स्रोतों की तुलना करके सत्यापन करते हैं।

9.3 क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान

  • क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे ग्रन्थों ने स्थानीय सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित किया।

9.4 पुरातात्विक साक्ष्य

  • शिलालेख, सिक्के और स्मारक राजकीय संरक्षण और भक्त परम्पराओं की जानकारी देते हैं।
  • मंदिरों और दरगाहों की स्थापत्य शैली में सांस्कृतिक सम्मिश्रण झलकता है।

10. निष्कर्ष (Conclusion)

  • 8वीं से 18वीं सदी के बीच भारत में भक्ति और सूफी परम्पराएँ अत्यंत प्रभावशाली रहीं।
  • दोनों ने प्रेम, समानता, मानवता और ईश्वर से प्रत्यक्ष संबंध का संदेश दिया।
  • जातिभेद, कर्मकाण्ड और रूढ़िवाद का विरोध किया।
  • भक्ति-सूफी विचारधारा ने भारतीय सांस्कृतिक एकता और सह-अस्तित्व की नींव रखी।
  • इनकी कविताएँ, संगीत और शिक्षाएँ आज भी सहिष्णुता, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक हैं।


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