🏛️ इतिहास – कक्षा 12 (कोर्स B)
अध्याय 1: यात्रियों की नज़र से – समाज की धारणा (ई. 10वीं से 17वीं शताब्दी)
Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society
1. प्रस्तावना (Introduction)
- भारत प्राचीन समय से ही यात्रियों, विद्वानों और साहसी लोगों को आकर्षित करता रहा है।
- 10वीं से 17वीं शताब्दी के बीच कई विदेशी यात्री भारत आए और यहाँ की सभ्यता, संस्कृति तथा समाज का अध्ययन किया।
- इनमें अल-बिरूनी, इब्न बतूता और फ्राँस्वा बर्नियर प्रमुख हैं।
- इन यात्रियों ने भारत के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया।
- उनकी रचनाएँ इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन गईं।
- इन लेखों से पता चलता है कि विदेशी दृष्टि से भारतीय समाज को किस रूप में देखा गया था।
2. अल-बिरूनी और किताब-उल-हिन्द
(i) परिचय
- अल-बिरूनी (Abu Rayhan Al-Biruni) का जन्म 973 ई. में ख्वारिज्म (उज़्बेकिस्तान) में हुआ था।
- वे गणितज्ञ, दार्शनिक, खगोलशास्त्री, चिकित्सक और भाषाविद् थे।
- वे मह्मूद गज़नवी के साथ भारत आए और लगभग 13 वर्ष भारत में रहे।
- उन्होंने संस्कृत सीखी ताकि भारतीय ग्रंथों को समझ सकें।
(ii) किताब-उल-हिन्द
- उनकी प्रसिद्ध कृति “किताब-उल-हिन्द” (भारत का ग्रंथ) अरबी भाषा में लिखी गई।
- इसमें भारत की दर्शन, धर्म, विज्ञान, समाज और संस्कृति का विस्तृत वर्णन है।
- यह ग्रंथ संस्कृत ग्रंथों, अपने अनुभवों और भारतीय विद्वानों से हुई चर्चाओं पर आधारित था।
- उन्होंने भारतीय विचारों की तुलना यूनानी और इस्लामी विचारों से की।
(iii) उद्देश्य और दृष्टिकोण
- अल-बिरूनी का उद्देश्य भारतीय समाज का वैज्ञानिक और निष्पक्ष अध्ययन करना था।
- वे भारतीय संस्कृति को विदेशी (अरबी) पाठकों के सामने सही रूप में प्रस्तुत करना चाहते थे।
- उन्होंने तर्क और तुलनात्मक अध्ययन की पद्धति अपनाई।
- वे मानते थे कि किसी समाज को समझने के लिए सहानुभूति और विवेकपूर्ण दृष्टि आवश्यक है।
3. एक अपरिचित दुनिया को समझना – अल-बिरूनी और संस्कृत परंपरा
(i) भारतीय समाज का विश्लेषण
- अल-बिरूनी ने भारत को विविध परंपराओं और मान्यताओं वाला देश बताया।
- उन्होंने जाति व्यवस्था (वर्ण व्यवस्था) को भारतीय समाज की सबसे विशेष पहचान माना।
- उनके अनुसार ब्राह्मण समाज के सर्वोच्च वर्ग में थे, जो ज्ञान के रक्षक थे।
- उन्होंने चार वर्णों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख किया।
- उन्होंने सामाजिक गतिशीलता की कमी (rigidity) की आलोचना की।
(ii) धर्म और दर्शन पर विचार
- उन्होंने वेद, पुराण, भगवद्गीता और पतंजलि जैसे संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन किया।
- उन्हें भारतीय दर्शन की गहराई से प्रभावित हुए, परन्तु यह इस्लामी एकेश्वरवाद से भिन्न लगी।
- उन्होंने लिखा कि भारतीय विद्वान ज्ञानप्रिय हैं परंतु बाहरी दुनिया से संपर्क में कम रुचि रखते हैं।
(iii) वैज्ञानिक और सांस्कृतिक अवलोकन
- उन्होंने भारतीय गणित और खगोलशास्त्र की तुलना यूनानी उपलब्धियों से की।
- उन्होंने समय, त्योहार, और धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन किया।
- भारतीय चिकित्सा, तर्कशास्त्र और भाषाशास्त्र से वे अत्यंत प्रभावित थे।
(iv) अल-बिरूनी की कार्यविधि (Methodology)
- उन्होंने तथ्यों को वैज्ञानिक और तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखा।
- उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के लिए ग्रंथों और संवादों दोनों का सहारा लिया।
- हालांकि उन्हें भाषा और संस्कृति की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- फिर भी उनकी कृति मध्यकालीन भारतीय समाज की सबसे प्रामाणिक रचनाओं में से एक है।
4. इब्न बतूता की ‘रिहला’
(i) परिचय
- इब्न बतूता का जन्म 1304 ई. में तांजीर (मोरक्को) में हुआ था।
- वे एक काज़ी (इस्लामी न्यायाधीश) और विद्वान थे।
- उन्होंने अफ्रीका, अरब, ईरान, मध्य एशिया, भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन तक की यात्रा की।
- वे भारत आए मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में (14वीं शताब्दी)।
- उनकी यात्रा-वृत्त “रिहला” कहलाती है, जिसका अर्थ है “यात्रा-वृत्तांत”।
(ii) उद्देश्य और स्वरूप
- उन्हें मोरक्को के सुल्तान ने अपने अनुभवों का लेखा-जोखा रखने के लिए प्रेरित किया।
- रिहला में विभिन्न देशों की संस्कृति, भौगोलिक और सामाजिक विविधता का चित्रण है।
- यह तथ्य, वर्णन और रोचक कहानियों का मिश्रण है।
- भारत के नगरों, शासन और समाज का यह एक जीवंत विवरण प्रदान करता है।
5. अपरिचित का आकर्षण – इब्न बतूता की दृष्टि
(i) भारत की छवि
- उन्होंने भारत को धनवान, जनसंख्या से भरा और विविधताओं वाला देश बताया।
- उन्हें भारत का जलवायु, रीति-रिवाज और जनजीवन अत्यंत रोचक लगे।
- उन्होंने यहाँ के नगरों और बाज़ारों की चहल-पहल का वर्णन किया।
(ii) नगर जीवन और व्यापार
- उन्होंने दिल्ली, दौलताबाद, और कालीकट जैसे शहरों की समृद्धि की प्रशंसा की।
- भारत की भौगोलिक स्थिति ने इसे पूर्व और पश्चिम के व्यापार का केंद्र बना दिया था।
- व्यापारी वर्ग सम्पन्न था और बाजार विदेशी वस्तुओं से भरे थे।
(iii) प्रशासन और न्याय व्यवस्था
- उन्होंने दिल्ली सुल्तान के दरबार में काज़ी (न्यायाधीश) के रूप में कार्य किया।
- उन्होंने सुल्तान को कठोर किंतु कुशल शासक बताया।
- उन्होंने केंद्रीकृत शासन, जासूसी प्रणाली और डाक व्यवस्था का भी वर्णन किया।
(iv) सामाजिक और सांस्कृतिक झलकियाँ
- उन्होंने भारत में विभिन्न धर्मों और त्योहारों के उत्सव का उल्लेख किया।
- हिंदू मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों से वे आश्चर्यचकित हुए।
- उन्होंने महिलाओं की स्थिति पर लिखा कि कुछ क्षेत्रों में महिलाएँ स्वतंत्र और सक्रिय थीं।
- उन्होंने दास प्रथा का भी उल्लेख किया, जो घरेलू और बाज़ार दोनों स्तरों पर विद्यमान थी।
(v) भारत के बाद की यात्राएँ
- भारत छोड़ने के बाद वे मालदीव, श्रीलंका और चीन गए।
- उनकी यात्राएँ दिखाती हैं कि मध्यकालीन दुनिया व्यापार, धर्म और संस्कृति से आपस में जुड़ी हुई थी।
6. फ्राँस्वा बर्नियर – एक अलग दृष्टि वाला चिकित्सक
(i) परिचय
- फ्राँस्वा बर्नियर का जन्म 1620 ई. में फ्रांस में हुआ था।
- वे एक चिकित्सक और दार्शनिक थे।
- वे 1656 ई. में भारत आए और लगभग 12 वर्ष यहाँ रहे।
- उन्होंने मुग़ल दरबार में दानिशमंद ख़ान के निजी चिकित्सक के रूप में कार्य किया।
- वे दारा शिकोह के साथ भी यात्रा पर गए और कश्मीर, बंगाल आदि प्रदेशों का भ्रमण किया।
(ii) उनकी रचनाएँ
- उनकी यात्रा-वृत्त का नाम था “Travels in the Mughal Empire” (मुग़ल साम्राज्य में यात्राएँ)।
- यह रचना 1670 ई. में प्रकाशित हुई।
- इसमें उन्होंने भारत की तुलना समकालीन यूरोप से की।
- उनकी दृष्टि में भारत को समझने का उद्देश्य यूरोपीय समाज की श्रेष्ठता को दिखाना भी था।
7. बर्नियर और “पतनशील पूर्व” की धारणा
(i) यूरोपीय पृष्ठभूमि
- बर्नियर के समय में यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति और प्रबोधन युग आरंभ हो चुका था।
- यूरोपीय विद्वान स्वयं को उन्नत और तर्कसंगत मानते थे।
- वे एशियाई देशों को “पिछड़ा” और “अविकसित” समझते थे।
(ii) बर्नियर के अवलोकन
- उन्होंने मुग़ल दरबार की भव्यता की सराहना की परंतु भूमि व्यवस्था की आलोचना की।
- उनके अनुसार भारत में निजी संपत्ति का अधिकार नहीं था, जिससे गरीबों की दशा दयनीय थी।
- उन्होंने यूरोपीय सामंती व्यवस्था को बेहतर बताया, जहाँ ज़मींदार स्वतंत्र मालिक थे।
(iii) जाति और समाज पर दृष्टि
- उन्होंने जाति व्यवस्था को कठोर और अमानवीय बताया।
- इसके कारण समाज में सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक प्रगति नहीं हो सकी।
- उन्होंने किसानों और कारीगरों को करों के बोझ से पीड़ित बताया।
(iv) यूरोपीय पूर्वाग्रह
- उनकी दृष्टि यूरोकेन्द्रित (Eurocentric) थी।
- उन्होंने भारत को “स्थिर” और “पतनशील” सभ्यता के रूप में चित्रित किया।
- उनकी रचनाएँ बाद में औपनिवेशिक सोच और ‘ओरिएंटलिज़्म’ को प्रेरित करने लगीं।
8. महिलाएँ, दास, सती और मज़दूर वर्ग
(i) महिलाओं की स्थिति
- यात्रियों ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति का भिन्न-भिन्न चित्रण किया।
- इब्न बतूता ने दक्षिण भारत की महिलाओं को सामाजिक रूप से स्वतंत्र और आर्थिक रूप से सक्षम बताया।
- अल-बिरूनी ने लिखा कि धार्मिक परंपराएँ महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं।
(ii) सती प्रथा
- कई यात्रियों ने सती का उल्लेख किया – जब विधवा अपने पति की चिता पर स्वयं जल जाती थी।
- अल-बिरूनी और बर्नियर दोनों ने इस प्रथा की आलोचना की।
- उन्होंने लिखा कि यह प्रथा समाज में धार्मिक समर्पण और सम्मान के रूप में देखी जाती थी।
(iii) दास प्रथा (Slavery)
- भारत में दास प्रथा प्रचलित थी।
- दास घरेलू कार्यों, सैनिक सेवाओं और मनोरंजन में प्रयुक्त होते थे।
- इब्न बतूता ने भारत और इस्लामी देशों के दास बाज़ारों का उल्लेख किया।
- महिला दासियाँ घरों में नौकरानी, नर्तकी या उपपत्नी के रूप में रहती थीं।
(iv) मजदूर और कारीगर वर्ग
- यात्रियों ने किसानों और कारीगरों के कठिन जीवन का वर्णन किया।
- गरीबी के बावजूद भारतीय कारीगर कपड़ा, धातु और आभूषण निर्माण में कुशल थे।
- बर्नियर ने लिखा कि किसान अधिक करों के कारण निर्धनता में जीवन व्यतीत करते थे।
9. तीनों यात्रियों की तुलना
| पहलू | अल-बिरूनी | इब्न बतूता | फ्राँस्वा बर्नियर |
|---|---|---|---|
| मूल देश | मध्य एशिया (ख्वारिज्म) | मोरक्को | फ्रांस |
| काल | 11वीं शताब्दी | 14वीं शताब्दी | 17वीं शताब्दी |
| मुख्य कृति | किताब-उल-हिन्द | रिहला | ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर |
| मुख्य विषय | संस्कृति, धर्म और दर्शन | समाज, शासन, नगर जीवन | अर्थव्यवस्था और यूरोप से तुलना |
| दृष्टिकोण | वैज्ञानिक और निष्पक्ष | वर्णनात्मक और जिज्ञासापूर्ण | आलोचनात्मक और यूरोकेन्द्रित |
| पद्धति | तुलनात्मक अध्ययन | प्रत्यक्ष अनुभव | विश्लेषणात्मक, किंतु पक्षपाती |
10. उनके लेखों का ऐतिहासिक महत्व
- इन यात्रियों के लेख भारत की बाहरी दृष्टि से लिखे गए दस्तावेज़ हैं।
- इनसे भारतीय समाज, शासन और जीवनशैली का विस्तृत चित्र मिलता है।
- इनसे शहरीकरण, जाति, व्यापार और स्त्रियों की स्थिति की जानकारी मिलती है।
- ये भारत और बाहरी दुनिया के सांस्कृतिक संपर्कों को उजागर करते हैं।
- इतिहासकार इन लेखों को सावधानी और संदर्भ के साथ उपयोग करते हैं।
11. इतिहासकारों के लिए चुनौतियाँ
- यात्रियों के विचार उनके धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित थे।
- कई बार उन्होंने परंपराओं को गलत अर्थों में समझा।
- इसलिए इतिहासकारों को इनके विवरणों की तुलना पुरालेखीय (archaeological) और ग्रंथीय प्रमाणों से करनी पड़ती है।
- फिर भी ये लेख मध्यकालीन भारत के अध्ययन में अनमोल स्रोत हैं।
12. निष्कर्ष (Conclusion)
- अल-बिरूनी, इब्न बतूता और फ्राँस्वा बर्नियर की रचनाएँ भारत के विविध और समृद्ध समाज की झलक देती हैं।
- इनके माध्यम से हम भारत की आध्यात्मिक गहराई, आर्थिक संपन्नता और सांस्कृतिक जीवंतता को समझते हैं।
- अल-बिरूनी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण, इब्न बतूता का जीवंत वर्णन और बर्नियर की आलोचनात्मक दृष्टि — तीनों मिलकर भारत की एक बहुआयामी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।
- ये रचनाएँ केवल भारत का नहीं बल्कि यात्रियों के अपने समाज और मानसिकता का प्रतिबिंब भी हैं।
- इनके माध्यम से हम सीखते हैं कि इतिहास केवल राजाओं और युद्धों का नहीं, बल्कि लोगों, विचारों और संपर्कों की कहानी भी है।
