🟩 अध्याय 8 – भारत में राजनीतिक विकास
🔹 प्रस्तावना
- 1980 के दशक के अंत से भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।
- 1990 के दशक में एकल पार्टी प्रभुत्व से गठबंधन राजनीति की ओर बदलाव देखा गया।
- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों ने पार्टी सिस्टम, शासन और जनता की भागीदारी को प्रभावित किया।
🔹 1990 के दशक का संदर्भ
- कांग्रेस का प्रभुत्व समाप्त होना: लोकसभा में किसी एक पार्टी की पूर्ण बहुमत की स्थिति कम हो गई।
- आर्थिक उदारीकरण: 1991 के सुधारों ने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोला।
- क्षेत्रीय पार्टियों का उदय: राज्य राजनीति और राष्ट्रीय गठबंधनों में अधिक प्रभाव।
- जाति और समुदाय आधारित राजनीति: मंडल आयोग (OBC आरक्षण) ने पहचान आधारित राजनीति को बढ़ावा दिया।
- साम्प्रदायिक तनाव: बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) और साम्प्रदायिक राजनीति का उभार।
🔹 गठबंधन का युग
- गठबंधन युग (1989 के बाद): कोई भी पार्टी लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी।
- मुख्य गठबंधन:
- नेशनल फ्रंट (1989–1991): वी.पी. सिंह नेतृत्व।
- यूनाइटेड फ्रंट (1996–1998): कांग्रेस द्वारा बाहरी समर्थन।
- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (1998–2004): भाजपा नेतृत्व।
- संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (2004–2014): कांग्रेस नेतृत्व।
- भाजपा नेतृत्व वाला NDA (2014–वर्तमान): 2014 से स्थिर बहुमत।
- गठबंधन राजनीति की चुनौतियाँ:
- सरकार में बार-बार बदलाव।
- क्षेत्रीय सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिए नीतिगत समझौते।
- दीर्घकालिक योजना और शासन में कठिनाइयाँ।
🔹 1989 के बाद के केंद्रीय सरकारें
- वी.पी. सिंह (1989–1990): मंडल आयोग लागू किया, सामाजिक न्याय पर जोर।
- चंद्रशेखर (1990–1991): अल्पकालीन सरकार, सीमित जनादेश।
- पी.वी. नरसिंह राव (1991–1996): आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण और सुधार।
- एच.डी. देवगौड़ा / आई.के. गुजराल (1996–1998): यूनाइटेड फ्रंट सरकारें, गठबंधन प्रबंधन।
- अटल बिहारी वाजपेयी (1998–2004): NDA गठबंधन, आर्थिक विकास, परमाणु परीक्षण।
- मनमोहन सिंह (2004–2014): UPA गठबंधन, सामाजिक कल्याण योजनाएँ (MGNREGA, सूचना का अधिकार)।
- नरेंद्र मोदी (2014–वर्तमान): भाजपा नेतृत्व वाला NDA, मजबूत केंद्रीय नेतृत्व, विकास, राष्ट्रवाद और प्रशासनिक सुधार।
🔹 साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र
- साम्प्रदायिकता: धर्म, जाति या समुदाय आधारित राजनीति, जो अक्सर विभाजन पैदा करती है।
- धर्मनिरपेक्षता: संविधान का सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और राज्य की निष्पक्षता।
- लोकतंत्र: गठबंधन राजनीति, साम्प्रदायिक तनाव और पहचान आधारित राजनीति के बावजूद भारतीय लोकतंत्र मजबूती से कायम है।
- संबंध: साम्प्रदायिकता धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देती है; लोकतंत्र सहनशीलता, संवाद और राजनीतिक समझौतों पर आधारित है।
🔹 नए राजनीतिक सहमति का उदय
- नई राजनीतिक सहमति:
- क्षेत्रीय पार्टियों और गठबंधन राजनीति को स्वीकार किया गया।
- समावेशी विकास और सामाजिक न्याय पर जोर।
- प्रमुख पार्टियों द्वारा आर्थिक सुधारों को स्वीकार।
- विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन पर ध्यान।
- लोकतांत्रिक नियमों, धर्मनिरपेक्षता और विकास प्राथमिकताओं पर व्यापक सहमति।
- मुख्य विशेषताएँ:
- राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच सहयोग।
- नीति ध्यान विचारधारा की बहस से व्यावहारिक शासन की ओर।
- जनता की जवाबदेही और पारदर्शिता की अपेक्षा बढ़ी।
🔹 17वीं लोकसभा में पार्टी स्थिति (2019–वर्तमान)
- भाजपा नेतृत्व वाला NDA: 353 सीटें (543 में से), स्पष्ट बहुमत।
- कांग्रेस नेतृत्व वाला UPA: 92 सीटें, मुख्य विपक्ष।
- क्षेत्रीय पार्टियाँ:
- तृणमूल कांग्रेस (TMC), DMK, YSR कांग्रेस, AIADMK आदि राज्य नीति और गठबंधन पर असर।
- पर्यवेक्षण:
- राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का प्रभुत्व।
- क्षेत्रीय पार्टियां राज्य नीतियों में प्रभावी और आवश्यक होने पर गठबंधन में भागीदार।
- बहु-पार्टी प्रणाली और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व लोकतंत्र को मजबूत करती है।
🔹 निष्कर्ष
- 1990 के बाद से भारतीय राजनीति ने एकल पार्टी प्रभुत्व से बहु-पार्टी और गठबंधन राजनीति की ओर बदलाव देखा।
- आर्थिक उदारीकरण, पहचान आधारित राजनीति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने राष्ट्रीय बहस को आकार दिया।
- गठबंधन सरकारों, साम्प्रदायिकता और क्षेत्रवाद की चुनौतियों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र जीवित और अनुकूलित रहा।
- नई राजनीतिक सहमति समावेशी विकास, सामाजिक न्याय और मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आधारित है।
- बहु-पार्टी प्रणाली और गठबंधन राजनीति ने प्रतिनिधित्व और क्षेत्रीय आवाज़ को मजबूत किया, साथ ही राष्ट्रीय एकता बनाए रखी।
