🟩 अध्याय 2 — एक दल के प्रभुत्व का दौर
🔹 प्रस्तावना (Introduction)
- स्वतंत्रता के बाद भारत में लोकतंत्र को स्थापित करना एक बड़ी चुनौती थी।
- ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के बाद देश को राजनीतिक रूप से एकजुट रखना, विकास करना और लोकतांत्रिक प्रणाली को स्थिर बनाना आवश्यक था।
- इस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) का प्रभाव पूरे देश में बहुत गहरा था।
- कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया था, इसलिए जनता का विश्वास स्वाभाविक रूप से कांग्रेस पर अधिक था।
- यह काल 1947 से लेकर लगभग 1967 तक “कांग्रेस का प्रभुत्व काल (Era of Congress Dominance)” कहलाता है।
🔹 एक दल के प्रभुत्व का दौर (The Era of One-Party Dominance)
- स्वतंत्रता के बाद प्रारंभिक दो दशकों में भारत की राजनीति में केवल एक ही दल का प्रभाव रहा — भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।
- देश के अधिकांश राज्यों और केंद्र में कांग्रेस की सरकारें बनीं।
- 1952, 1957 और 1962 के आम चुनावों में कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की।
- यह प्रभुत्व जबरदस्ती का नहीं था, बल्कि जनता की सहमति और समर्थन से प्राप्त हुआ।
- इस दौर में अन्य दल मौजूद थे, परंतु उनका प्रभाव सीमित रहा।
- कांग्रेस ने समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का कार्य किया — किसान, मजदूर, व्यापारी, शिक्षित वर्ग आदि सभी में इसकी जड़ें थीं।
🔹 लोकतंत्र स्थापित करने की चुनौती (Challenge of Establishing Democracy)
- नवगठित भारत में लोकतंत्र को सफल बनाना एक बड़ी चुनौती थी।
- भारत की सामाजिक संरचना अत्यंत विविधतापूर्ण थी — धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्र और संस्कृति में भिन्नता।
- ऐसे में सभी को लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति विश्वास दिलाना कठिन था।
- कांग्रेस ने इस विविधता को स्वीकार करते हुए लोकतंत्र को भारतीय परिप्रेक्ष्य में ढाला।
- पहले आम चुनाव (1952) का आयोजन स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से हुआ, जिससे लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई।
- जनता ने मतदान प्रक्रिया में उत्साह से भाग लिया, जिससे लोकतांत्रिक संस्कृति विकसित हुई।
🔹 पहले तीन चुनावों में कांग्रेस का प्रभाव (Impact of Congress in First Three Elections)
पहला आम चुनाव (1952)
- भारत का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ।
- कांग्रेस ने 364 में से 489 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया।
- जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने।
- यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा थी और जनता ने उसमें पूर्ण विश्वास दिखाया।
दूसरा आम चुनाव (1957)
- कांग्रेस ने एक बार फिर प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की।
- विपक्षी दलों का प्रभाव सीमित ही रहा।
- इस चुनाव में समाजवादी दल, भारतीय जनसंघ और कम्युनिस्ट पार्टी ने कुछ क्षेत्रों में प्रगति दिखाई।
तीसरा आम चुनाव (1962)
- कांग्रेस ने तीसरी बार सत्ता संभाली।
- नेहरू के नेतृत्व में देश ने औद्योगिक विकास और पंचवर्षीय योजनाओं को आगे बढ़ाया।
- हालांकि विपक्षी दलों का जनाधार धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
🔹 कांग्रेस के प्रभुत्व की प्रकृति (Nature of Congress Dominance)
- कांग्रेस का प्रभुत्व लोकतांत्रिक ढंग से प्राप्त हुआ, न कि अधिनायकवादी रूप से।
- कांग्रेस पार्टी एक “छत्र संगठन” (umbrella organisation) थी — जिसमें विभिन्न विचारधाराओं और समूहों को जगह मिली।
- इसमें समाजवादियों, उदारवादियों, गांधीवादियों, पूंजीपतियों, किसानों — सभी के विचारों का मिश्रण था।
- इस विविधता के कारण कांग्रेस विभिन्न सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व कर सकी।
- हालांकि इस विविधता ने बाद में अंदरूनी मतभेद भी पैदा किए।
🔹 कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) 1925 में स्थापित हुई थी।
- स्वतंत्रता के बाद CPI ने भारत की आर्थिक असमानताओं और वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया।
- इसने किसानों और मजदूरों के हितों के लिए संघर्ष किया।
- 1957 में CPI ने केरल में पहली बार लोकतांत्रिक रूप से सरकार बनाई — यह किसी भी साम्यवादी पार्टी की पहली लोकतांत्रिक जीत थी।
- CPI ने कई बार कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया, विशेषकर भूमि सुधार और औद्योगिकीकरण के मुद्दों पर।
- बाद में विचारधारा में मतभेद के कारण पार्टी दो भागों में बंट गई — CPI और CPI(M)।
🔹 भारतीय जनसंघ (BJS)
- भारतीय जनसंघ (Bharatiya Jana Sangh) की स्थापना 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी।
- जनसंघ का प्रमुख उद्देश्य भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना था।
- यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और एकता पर जोर देता था।
- जनसंघ ने धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक नीतियों की आलोचना की।
- इसकी राजनीति मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित रही, परंतु इसने बाद के वर्षों में भारतीय राजनीति को काफी प्रभावित किया।
- बाद में यही पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) में परिवर्तित हुई (1980)।
🔹 विरोधी पार्टियों का उदय (Rise of Opposition Parties)
- भारत में लोकतंत्र की मजबूती के लिए विपक्षी दलों की उपस्थिति आवश्यक थी।
- धीरे-धीरे कांग्रेस के खिलाफ जनसमर्थन अन्य दलों की ओर बढ़ने लगा।
- समाजवादी पार्टी, जनसंघ, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, अकाली दल जैसे दल उभरने लगे।
- इन दलों ने लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही को बढ़ावा दिया।
- राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा, जैसे — तमिलनाडु में DMK, पंजाब में अकाली दल आदि।
- 1967 के चुनावों में पहली बार कांग्रेस का प्रभुत्व कई राज्यों में चुनौती में आया।
🔹 1967 के बाद का दौर
- 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस को भारी झटका लगा।
- कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं — इसे “गठबंधन युग (Coalition Era)” की शुरुआत माना जाता है।
- कांग्रेस के भीतर नेतृत्व संकट और वैचारिक मतभेद बढ़ने लगे।
- नेहरू की मृत्यु (1964) के बाद लाल बहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी के समय में दल में विभाजन हुआ।
- 1969 में कांग्रेस दो भागों में बंट गई — कांग्रेस (O) और कांग्रेस (I)।
- इससे स्पष्ट हुआ कि भारत में लोकतंत्र परिपक्व हो रहा था और एकदलीय प्रभुत्व का युग समाप्ति की ओर था।
🔹 निष्कर्ष (Conclusion)
- भारत में एकदलीय प्रभुत्व का दौर लोकतंत्र की नींव मजबूत करने में सहायक रहा।
- कांग्रेस ने देश को राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक दिशा और सामाजिक एकता प्रदान की।
- विपक्षी दलों के उभार ने लोकतंत्र को प्रतिस्पर्धी और गतिशील बनाया।
- धीरे-धीरे भारत ने बहुदलीय लोकतंत्र (Multi-Party Democracy) का रूप ले लिया।
- इस दौर ने भारतीय राजनीति को स्थायित्व, विविधता और वैचारिक खुलापन प्रदान किया, जो आज भी हमारे लोकतंत्र की पहचान है।
