political science CBSE class 11 chapter 1अध्याय : संविधान — क्यों और कैसे(भाग 2)


🏛️ अध्याय : संविधान — क्यों और कैसे (Constitution: Why and How)


⚙️ 1. संविधान बनाने की प्रक्रिया (Procedures)

🔹 प्रारंभिक पृष्ठभूमि

  1. संविधान निर्माण एक जटिल, गहन और बहु-स्तरीय प्रक्रिया थी।
  2. इसका उद्देश्य था – ऐसा संविधान तैयार करना जो भारत की विविधता और लोकतांत्रिक भावना को प्रतिबिंबित करे।
  3. संविधान निर्माण का कार्य संविधान सभा को सौंपा गया, जो 1946 में गठित हुई।
  4. यह प्रक्रिया पूरी तरह लोकतांत्रिक और पारदर्शी थी।

🔹 संविधान सभा की बैठकों की प्रक्रिया

  1. संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई।
  2. इसमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष चुने गए।
  3. कुल 11 सत्रों में संविधान पर विचार-विमर्श हुआ।
  4. प्रत्येक विषय पर चर्चा विस्तृत, तार्किक और सार्वजनिक रूप से की गई।
  5. प्रेस और जनता को बैठकों की जानकारी दी जाती थी।
  6. संविधान का मसौदा ड्राफ्टिंग कमेटी द्वारा तैयार किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने की।

🔹 संविधान मसौदा समिति (Drafting Committee)

  1. यह समिति 29 अगस्त 1947 को गठित हुई।
  2. इसके 7 सदस्य थे – डॉ. भीमराव अम्बेडकर, एन. गोपालस्वामी आयंगर, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, के.एम. मुंशी, मोहम्मद सादुल्ला, बी.एल. मित्तल, और डी.पी. खेतान।
  3. समिति ने अन्य देशों के संविधानों का अध्ययन किया — जैसे ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा आदि।
  4. लगभग 7 महीने तक मसौदा तैयार करने का कार्य चला।
  5. मसौदे पर 7000 से अधिक संशोधन प्रस्ताव रखे गए, जिन पर विचार किया गया।

🔹 विचार-विमर्श (Deliberation) की प्रक्रिया

  1. संविधान सभा में हर अनुच्छेद पर खुलकर चर्चा हुई।
  2. सभी सदस्यों को अपने विचार रखने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।
  3. बहुमत के बजाय सहमति (Consensus) से निर्णय लेने की परंपरा अपनाई गई।
  4. यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक मूल्यों और संवाद की संस्कृति पर आधारित थी।
  5. निर्णयों में विविधता, समानता और एकता का समन्वय दिखा।

🔹 संविधान की स्वीकृति और अंगीकरण

  1. संविधान का अंतिम मसौदा 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया।
  2. 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ — इस दिन भारत गणराज्य बना।
  3. यह तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि 1930 में इसी दिन पूर्ण स्वराज्य का संकल्प लिया गया था।
  4. संविधान को अंगीकार कर भारत ने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और समानता के आदर्शों को साकार किया।

🇮🇳 2. राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत (Inheritance of the Nationalist Movement)

🔹 स्वतंत्रता संग्राम और संविधान का संबंध

  1. भारतीय संविधान का निर्माण केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा का परिणाम था।
  2. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने लोकतांत्रिक मूल्य, समानता, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की नींव रखी।
  3. स्वतंत्रता सेनानियों का उद्देश्य था — “ऐसा संविधान जो जनता की आकांक्षाओं को दर्शाए।”

🔹 आंदोलन से मिली वैचारिक प्रेरणाएँ

  1. लोकतंत्र (Democracy): आंदोलन ने राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व का विचार दिया।
  2. स्वतंत्रता (Freedom): औपनिवेशिक शासन से मुक्ति का लक्ष्य संविधान की आत्मा बना।
  3. समानता (Equality): जाति, धर्म और लिंग के भेदभाव के खिलाफ संघर्ष संविधान के सिद्धांतों में दिखा।
  4. धर्मनिरपेक्षता (Secularism): कांग्रेस और अन्य दलों ने सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान की परंपरा अपनाई।
  5. सामाजिक न्याय (Social Justice): दलितों, महिलाओं, और पिछड़ों के अधिकारों की सुरक्षा को संविधान में स्थान मिला।

🔹 आंदोलन से निकले नेता और उनका योगदान

  1. महात्मा गांधी: अहिंसा, सत्य और ग्राम स्वराज के विचार संविधान के मूल में हैं।
  2. जवाहरलाल नेहरू: आधुनिक, वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष भारत की अवधारणा दी।
  3. सुभाष चंद्र बोस: आत्मसम्मान, स्वराज और राष्ट्रीय गौरव की भावना जगाई।
  4. डॉ. अम्बेडकर: सामाजिक समानता और दलित उत्थान के सिद्धांत लाए।
  5. सरदार पटेल: एकता और संघीय ढांचे के समर्थक रहे।

🔹 स्वतंत्रता संग्राम से संविधान की विशेषताएँ

  1. जनसत्ता (Popular Sovereignty) – संविधान जनता की इच्छा से बना।
  2. अधिकारों की सुरक्षा – नागरिक स्वतंत्रताओं को प्राथमिकता दी गई।
  3. लोकतांत्रिक संस्थाएँ – जनता द्वारा चुनी गई सरकार की व्यवस्था।
  4. सामाजिक समरसता – विभिन्न वर्गों के बीच एकता का भाव।
  5. संवाद और सहमति की संस्कृति – सभी विचारधाराओं को सम्मान।

🔹 भारतीय संविधान की आत्मा

  1. स्वतंत्रता संग्राम ने यह सिखाया कि राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ सामाजिक न्याय आवश्यक है।
  2. संविधान इस आंदोलन की राजनीतिक और नैतिक विरासत का प्रतिबिंब है।
  3. इसमें भारतीय परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल दिखाई देता है।

🧩 3. संस्थागत व्यवस्थाएँ (Institutional Arrangements)

🔹 लोकतंत्र की संस्थागत संरचना

  1. संविधान ने भारत को संसदीय लोकतंत्र प्रदान किया।
  2. शासन की तीन प्रमुख संस्थाएँ — विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका — स्पष्ट रूप से परिभाषित की गईं।
  3. सभी संस्थाएँ संविधान के अधीन हैं — कोई भी संस्था सर्वोच्च नहीं।

🔹 विधायिका (Legislature)

  1. कानून निर्माण का कार्य करती है।
  2. संसद में दो सदन हैं — लोकसभा और राज्यसभा
  3. संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है और सरकार को उत्तरदायी बनाती है।
  4. संसद को संविधान संशोधन और नीति निर्माण की शक्ति है।
  5. राज्यों में विधानसभाएँ राज्य स्तर पर कानून बनाती हैं।

🔹 कार्यपालिका (Executive)

  1. कानूनों को लागू करने का कार्य।
  2. इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, राज्यपाल और मुख्यमंत्री शामिल हैं।
  3. राष्ट्रपति संविधान का रक्षक और औपचारिक प्रमुख होता है।
  4. वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास होती है।
  5. राज्य स्तर पर यही प्रणाली लागू होती है।

🔹 न्यायपालिका (Judiciary)

  1. संविधान की व्याख्या और रक्षा का कार्य करती है।
  2. इसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, और अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं।
  3. न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष है।
  4. न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Review) के माध्यम से संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करती है।
  5. नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा न्यायपालिका का कर्तव्य है।

🔹 संघीय ढांचा (Federal Structure)

  1. संविधान ने भारत को संघीय लेकिन मजबूत केंद्र वाला देश बनाया।
  2. शक्तियाँ तीन सूचियों में बाँटी गई हैं —
    • संघ सूची (Union List)
    • राज्य सूची (State List)
    • समवर्ती सूची (Concurrent List)
  3. केंद्र और राज्य के बीच समन्वय और सहयोग की भावना संविधान में निहित है।
  4. सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) भारतीय संघ की विशेषता है।

🔹 चुनाव आयोग और प्रशासनिक संस्थाएँ

  1. भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission): स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों का संचालन करता है।
  2. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG): सरकारी व्यय का लेखा परीक्षण करता है।
  3. लोक सेवा आयोग (UPSC): योग्य अधिकारियों की नियुक्ति।
  4. वित्त आयोग: केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व वितरण की सिफारिशें।
  5. ये संस्थाएँ संविधान की उत्तरदायित्व और पारदर्शिता की भावना को बनाए रखती हैं।

🏁 4. निष्कर्ष (Conclusion)

  1. भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक आत्मा का प्रतीक है।
  2. यह संविधान स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों, सामाजिक न्याय, और राष्ट्रीय एकता की भावना से प्रेरित है।
  3. संविधान ने भारत को एक आधुनिक, समतामूलक और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया।
  4. संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है — लचीलापन और स्थायित्व का संतुलन।
  5. यह भारतीय समाज की विविधता में एकता, समानता, और सह-अस्तित्व की भावना को मजबूत करता है।
  6. समय-समय पर हुए संशोधनों ने इसे जीवंत दस्तावेज (Living Document) बनाया है।
  7. संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांत –
    • जनता सर्वोच्च है,
    • अधिकार और कर्तव्य समान रूप से आवश्यक हैं,
    • और न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता – इन आदर्शों से ही भारत का भविष्य निर्मित होता है।


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