न्यायपालिका (Judiciary)
परिचय
- न्यायपालिका सरकार के तीन अंगों में से एक है, अन्य दो हैं कार्यपालिका और विधायिका।
- यह संविधान की रक्षक है और सुनिश्चित करती है कि कानून लागू हों और नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें।
- न्यायपालिका के मुख्य कार्य:
- कानूनों की व्याख्या करना – संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों का अर्थ और विस्तार तय करना।
- विवादों का निपटारा करना – नागरिकों, राज्यों या केंद्र और राज्यों के बीच विवादों को सुलझाना।
- मौलिक अधिकारों की सुरक्षा – नागरिकों को राज्य के मनमाने कार्यों से बचाना।
- कानून का शासन बनाए रखना – यह सुनिश्चित करना कि कोई भी, यहां तक कि सरकारी अधिकारी भी कानून से ऊपर नहीं है।
- न्यायपालिका लोकतंत्र को मजबूत करने, न्याय सुनिश्चित करने और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हमें स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता क्यों है?
- स्वतंत्र न्यायपालिका सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
- कारण:
- संविधान की रक्षा: विधायिका या कार्यपालिका द्वारा संविधान में हस्तक्षेप से बचाती है।
- मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: नागरिक न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
- न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करना: राजनीतिक दबाव के बिना निर्णय लेने की क्षमता।
- मनमानी शासन से बचाव: सरकार को जवाबदेह बनाती है।
- कानून का शासन बनाए रखना: सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू।
- सत्ता का संतुलन: विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना।
- विवाद समाधान: केंद्र और राज्य या व्यक्तियों के बीच विवादों का समाधान।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Independence of Judiciary)
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायाधीश बिना कार्यपालिका या विधायिका के दबाव के काम कर सकें।
- विशेषताएँ:
- कार्यकाल की सुरक्षा – न्यायाधीशों को मनमाने तरीके से हटा नहीं सकते।
- आर्थिक स्वतंत्रता – वेतन और पेंशन संविधान के तहत निधि से मिलता है।
- प्रशासनिक स्वतंत्रता – न्यायाधीश खुद मामले आवंटन और न्यायिक प्रक्रिया नियंत्रित करते हैं।
- निर्णय लेने की स्वतंत्रता – निर्णय केवल कानून और तथ्यों पर आधारित।
- संविधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 50: कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
- अनुच्छेद 124–147: सर्वोच्च न्यायालय के लिए।
- अनुच्छेद 214–231: उच्च न्यायालय के लिए।
न्यायाधीशों की नियुक्ति
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश:
- भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त।
- कोलेजियम प्रणाली: मुख्य न्यायाधीश + वरिष्ठ न्यायाधीश।
- अनुच्छेद 124(2): योग्यता – भारतीय नागरिक, 5 साल उच्च न्यायालय न्यायाधीश या 10 साल वकील, या उत्कृष्ट न्यायविद।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश:
- राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल और CJI से परामर्श के बाद।
- अनुच्छेद 217: योग्यता – 10 साल वकील या उच्च न्यायालय न्यायाधीश।
- निचली अदालतों के न्यायाधीश:
- राज्य सरकार या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा।
- अनुभव, योग्यता और परीक्षा के आधार पर चयन।
- नियुक्ति के सिद्धांत:
- योग्यता और क्षमता।
- न्यायिक या कानूनी अनुभव।
- क्षेत्रीय और सामाजिक विविधता का प्रतिनिधित्व।
न्यायाधीशों की नियुक्ति और हटाना
- न्यायाधीशों को सहज रूप से हटाया नहीं जा सकता ताकि स्वतंत्रता बनी रहे।
- सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय:
- राष्ट्रपति द्वारा संसद के महाभियोग प्रक्रिया के बाद।
- आधार: भ्रष्टाचार, अनैतिक आचरण या अक्षमता।
- प्रक्रिया:
- लोकसभा के 100 सांसद या राज्यसभा के 50 सांसद की मांग पर प्रस्ताव।
- समिति द्वारा जांच।
- दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत।
- निचली अदालतों के न्यायाधीश: राज्य सरकार के द्वारा हटाए या स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
न्यायपालिका की संरचना
- भारत में न्यायपालिका का हायरेरार्किकल ढांचा है:
सर्वोच्च न्यायालय → उच्च न्यायालय → अधीनस्थ न्यायालय। - सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court):
- अनुच्छेद 124 के तहत।
- अंतिम अपीलीय अदालत।
- प्रमुख: मुख्य न्यायाधीश।
- अधिकार: मूल, अपीलीय, सलाहात्मक और रिट।
- उच्च न्यायालय (High Courts):
- राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में।
- प्रमुख: उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश।
- अधिकार: मूल और अपीलीय, सिविल, फौजदारी और प्रशासनिक।
- अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts):
- जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय, निचली अदालतें।
- स्थानीय स्तर पर सिविल और फौजदारी मामलों का निपटारा।
- उच्च न्यायालय के अधीन।
सलाहकार अधिकार (Advisory Jurisdiction)
- अनुच्छेद 143: राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से कानूनी या संवैधानिक प्रश्न पर राय मांग सकते हैं।
- विशेषताएँ:
- अदालत की राय बाध्यकारी नहीं, केवल सलाह।
- संविधान की व्याख्या में स्पष्टता।
- विवाद या शंका होने पर मार्गदर्शन।
- उदाहरण: राष्ट्रपति संदर्भ, कानून की व्याख्या।
न्यायपालिका और अधिकार
- न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की रक्षक है (भाग III)।
- प्रमुख भूमिकाएँ:
- अधिकार लागू करना: नागरिक अनुच्छेद 32 (सुप्रीम कोर्ट) और 226 (उच्च न्यायालय) के तहत न्यायालय में शिकायत कर सकते हैं।
- न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): संविधान का उल्लंघन करने वाले कानून को रद्द कर सकती है।
- अल्पसंख्यक और कमजोर समूहों की सुरक्षा।
- जनहित याचिका (PIL): नागरिक या संगठन सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकते हैं।
- न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism): कानून की व्याख्या करके अधिकारों की रक्षा।
- उदाहरण: गोपनीयता का अधिकार, पर्यावरण अधिकार, लैंगिक समानता।
न्यायपालिका और संसद
- संसद और न्यायपालिका के बीच सत्ता का पृथक्करण, लेकिन सहयोग भी।
- संतुलन और नियंत्रण:
- न्यायिक समीक्षा: संसद द्वारा बनाए गए कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकती है।
- सलाहकार अधिकार: राष्ट्रपति कानूनी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकते हैं।
- सीमित अधिकार: संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन न्यायपालिका मूल संरचना की रक्षा करती है।
- मुख्य सिद्धांत:
- मूल संरचना (Basic Structure) सिद्धांत – संविधानिक संशोधनों पर न्यायिक निगरानी।
- संसद कानून बनाती है, न्यायपालिका उसे व्याख्या करती है और संविधान के अनुरूप पालन सुनिश्चित करती है।
- उदाहरण: केसिवानंद भारती मामला, असंवैधानिक संशोधन रद्द करना, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा।
निष्कर्ष
- न्यायपालिका लोकतंत्र के लिए आवश्यक है; यह न्याय, समानता और कानून के शासन को सुनिश्चित करती है।
- स्वतंत्रता और कार्यकाल की सुरक्षा से न्यायपालिका निष्पक्ष और स्वतंत्र रहती है।
- संविधान की व्याख्या, कानूनों की समीक्षा और अधिकारों की रक्षा से न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखती है।
- न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षक, नागरिकों के अधिकारों की संरक्षक और विवादों की मध्यस्थ है।
- एक मजबूत, स्वतंत्र न्यायपालिका स्थिरता, जवाबदेही और संवैधानिक शासन सुनिश्चित करती है।
