lesson – 8 स्थानीय सरकार (Local Government) class 11 course A


🌿 स्थानीय सरकार (Local Government)


🔶 भूमिका

भारत जैसे विशाल, विविधता-पूर्ण और जनसंख्या-बहुल देश में प्रशासन की जिम्मेदारी केवल केंद्र या राज्य सरकार पर नहीं छोड़ी जा सकती। लोकतंत्र की सफलता तभी संभव है जब शासन की शक्ति जनता के निकटतम स्तर तक पहुँचे।
इसी उद्देश्य से स्थानीय स्वशासन (Local Self-Government) की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में सीधे भाग लेने का अवसर देती है।


🌼 स्थानीय सरकार क्यों आवश्यक है? (Why Local Government?)

  1. जन भागीदारी का माध्यम:
    स्थानीय सरकार लोगों को अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान में सीधे भाग लेने का अवसर देती है।
    उदाहरण – गाँव में सड़कों, जलापूर्ति या विद्यालय की स्थिति सुधारने में ग्रामसभा की भूमिका।
  2. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति:
    प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग ज़रूरतें होती हैं — जैसे पहाड़ी, मरुस्थलीय या तटीय क्षेत्रों की समस्याएँ अलग होती हैं।
    स्थानीय संस्थाएँ इन समस्याओं को बेहतर समझती हैं और उसी अनुसार योजनाएँ बनाती हैं।
  3. लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करना:
    जब नागरिक स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं, तो लोकतांत्रिक संस्कार समाज में विकसित होते हैं।
  4. केंद्र और राज्य सरकारों का भार कम करना:
    केंद्र व राज्य सरकारें राष्ट्रीय या राज्य-स्तरीय नीतियों पर ध्यान केंद्रित कर पाती हैं, जबकि स्थानीय कार्यों का प्रबंधन स्थानीय संस्थाएँ करती हैं।
  5. विकेंद्रीकरण का वास्तविक रूप:
    संविधान के अनुसार भारत एक विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली (Decentralized Governance) वाला देश है।
    स्थानीय निकाय इस विकेंद्रीकरण के सबसे निचले स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

🏛️ भारत में स्थानीय स्वशासन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • प्राचीन भारत में गाँव स्तर पर “सभा” और “समिति” जैसे संस्थान स्वशासन का उदाहरण थे।
  • ब्रिटिश काल में भी कुछ हद तक स्थानीय निकायों का गठन हुआ, लेकिन वास्तविक शक्ति नहीं थी।
  • स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने इसे लोकतंत्र की बुनियाद माना।
  • 1992 में दो महत्वपूर्ण संशोधन पारित किए गए —
    73वाँ संशोधन (Panchayati Raj) और
    74वाँ संशोधन (Municipalities)

⚙️ 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Panchayati Raj System)


🏡 उद्देश्य

ग्राम स्तर पर शासन की शक्ति जनता के हाथ में देना और ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतंत्र को सशक्त बनाना।


📜 मुख्य विशेषताएँ

  1. संविधान में नया भाग (भाग IX) जोड़ा गया — अनुच्छेद 243 से 243-O तक।
  2. “ग्राम पंचायतों” की संवैधानिक मान्यता।
  3. ग्राम सभा (Village Assembly) को सबसे मूल इकाई के रूप में मान्यता।
  4. तीन-स्तरीय पंचायती राज संरचना:
    • ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर)
    • पंचायत समिति (खंड या मध्य स्तर)
    • जिला परिषद (जिला स्तर)

🧩 संरचना (Structure of Panchayati Raj)

  1. ग्राम पंचायत:
    गाँव के सभी वयस्क नागरिक ग्रामसभा के सदस्य होते हैं।
    ग्रामसभा द्वारा चुने गए प्रतिनिधि मिलकर ग्राम पंचायत का गठन करते हैं।
    पंचायत का प्रमुख “सरपंच” कहलाता है।
  2. पंचायत समिति (मध्य स्तर):
    यह तहसील या ब्लॉक स्तर की संस्था है।
    इसमें विभिन्न ग्राम पंचायतों के चुने हुए सदस्य होते हैं।
  3. जिला परिषद:
    जिले की सर्वोच्च पंचायत संस्था।
    इसके सदस्य पंचायत समितियों द्वारा चुने जाते हैं।
    इसका प्रमुख अध्यक्ष या सभापति कहलाता है।

💰 वित्तीय व्यवस्था (Finance of Panchayats)

  • पंचायतों को स्थानीय कर लगाने का अधिकार है।
  • राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त होता है।
  • वित्त आयोग द्वारा पंचायतों के वित्तीय संसाधनों पर अनुशंसा की जाती है।

👥 आरक्षण व्यवस्था

73वें संशोधन के अनुसार—

  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होंगी।
  • कुल सीटों का कम-से-कम 1/3 हिस्सा महिलाओं के लिए आरक्षित है।

📆 कार्यकाल

प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
अगर बीच में भंग हो जाए तो 6 महीने के भीतर पुनः चुनाव कराए जाने चाहिए।


🔍 राज्य चुनाव आयोग

  • प्रत्येक राज्य में राज्य निर्वाचन आयोग गठित किया गया है जो पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराता है।
  • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था होती है।

🧾 राज्य वित्त आयोग

  • प्रत्येक राज्य सरकार पाँच वर्षों में एक बार वित्त आयोग का गठन करती है।
  • यह पंचायतों और नगरपालिकाओं के वित्तीय संसाधनों का वितरण निर्धारित करता है।

🏙️ 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Municipalities)


🎯 उद्देश्य

शहरी क्षेत्रों में स्वशासन की व्यवस्था स्थापित करना, ताकि शहरी विकास की नीतियाँ स्थानीय नागरिकों की भागीदारी से तय की जा सकें।


🏗️ मुख्य प्रावधान

  1. संविधान में भाग IX-A जोड़ा गया — अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक।
  2. नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
  3. नगरपालिकाओं की तीन श्रेणियाँ निर्धारित की गईं —
    • नगर पंचायत (Nagar Panchayat): छोटे होते हुए विकसित नगरों के लिए।
    • नगर परिषद (Municipal Council): मध्यम आकार के नगरों के लिए।
    • नगर निगम (Municipal Corporation): बड़े महानगरों के लिए।

🏛️ संरचना (Structure of Municipalities)

  1. नगर निकाय के सदस्य:
    सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
    इनका कार्यकाल भी 5 वर्ष का होता है।
  2. महापौर या अध्यक्ष:
    नगर परिषद या निगम का प्रमुख होता है।
    इसका चयन नगर निकाय के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
  3. स्थायी समितियाँ:
    वित्त, स्वच्छता, निर्माण आदि कार्यों के लिए गठित।

💡 नगरपालिकाओं के प्रमुख कार्य

  • जल आपूर्ति, सड़क निर्माण, सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था।
  • सफाई, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन।
  • जनस्वास्थ्य एवं प्राथमिक शिक्षा।
  • शहर की योजना और विकास कार्य।
  • पर्यावरण संरक्षण और हरियाली।
  • स्थानीय कर वसूलना।

⚖️ नगरपालिकाओं की वित्तीय व्यवस्था

  • संपत्ति कर, जल कर, विज्ञापन कर आदि से आय।
  • राज्य सरकार से अनुदान।
  • केंद्र सरकार से योजनागत निधियाँ।

🧱 पंचायतों और नगरपालिकाओं की शक्तियाँ (Powers)

क्षेत्रपंचायतेंनगरपालिकाएँ
क्षेत्रीय सीमाग्रामीणशहरी
प्रशासनिक कार्यग्राम विकास, कृषि, जल, सड़कशहर नियोजन, स्वच्छता, निर्माण
वित्तीय अधिकारकर वसूलना, अनुदान लेनास्थानीय कर लगाना
निर्णय प्रक्रियाग्रामसभा आधारितनिर्वाचित परिषद आधारित
पर्यवेक्षणराज्य सरकारराज्य सरकार

⚠️ स्थानीय सरकारों की चुनौतियाँ (Challenges)

  1. वित्तीय संसाधनों की कमी:
    अधिकांश पंचायतें और नगरपालिकाएँ अपने कार्यों के लिए पर्याप्त धन जुटा नहीं पातीं।
  2. राज्य सरकार पर निर्भरता:
    कई निर्णयों में राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी होती है, जिससे स्वायत्तता सीमित होती है।
  3. राजनीतिक हस्तक्षेप:
    कई बार स्थानीय नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं।
  4. प्रशिक्षण और जागरूकता की कमी:
    प्रतिनिधियों को प्रशासनिक एवं वित्तीय ज्ञान की कमी होती है।
  5. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की समस्या:
    धन का दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी से जनता का विश्वास कम होता है।
  6. महिलाओं की भागीदारी में सामाजिक बाधाएँ:
    आरक्षण होने के बावजूद निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी सीमित रहती है।

🌱 स्थानीय सरकारों का महत्व

  • लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करती हैं।
  • प्रशासनिक कार्यों को स्थानीय स्तर पर कुशल बनाती हैं।
  • नागरिकों में जिम्मेदारी और स्वामित्व की भावना जगाती हैं।
  • ग्रामीण और शहरी विकास को संतुलित बनाती हैं।

🕊️ निष्कर्ष

स्थानीय सरकारें भारत के लोकतंत्र की नींव हैं।
इनके माध्यम से जनता अपने जीवन से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेने में भागीदार बनती है।
73वें और 74वें संशोधन ने भारत को “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन” का वास्तविक रूप प्रदान किया।

सशक्त पंचायतें और नगरपालिकाएँ ही भारत को “ग्राम से महानगर तक सशक्त लोकतंत्र” बना सकती हैं।


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