Lesson -7 संघवाद (Federalism) class 11 course A


🟩 संघवाद (Federalism)

🔹 भूमिका (Introduction)

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए सत्ता का एक स्थान पर केंद्रीकरण उचित नहीं माना गया। इसलिए संविधान निर्माताओं ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई जिसमें सत्ता का विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच किया गया। इस व्यवस्था को संघवाद (Federalism) कहा जाता है।
संघवाद वह शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता दो स्तरों में विभाजित होती है – एक राष्ट्रीय स्तर (केंद्र) पर और दूसरा प्रादेशिक स्तर (राज्य) पर। दोनों स्तर अपनी-अपनी सीमाओं में स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।

भारत का संविधान संघीय शासन प्रणाली को अपनाता है, लेकिन यह पूर्णतः संघीय न होकर एक संघीय ढांचे के साथ एकात्मक झुकाव (federal system with unitary bias) रखता है। इसका अर्थ है कि आपातकालीन परिस्थितियों में केंद्र सरकार को राज्यों पर अधिक अधिकार मिल जाते हैं।


🟦 संघवाद का स्वरूप (Nature of Federalism)

संघवाद की परिभाषा को समझने से पहले, यह जानना आवश्यक है कि यह विचार कैसे विकसित हुआ।

🔸 संघवाद की परिभाषा

संघवाद (Federalism) वह प्रणाली है जिसमें सरकार के अधिकारों को संविधान द्वारा दो या अधिक स्तरों के बीच विभाजित किया जाता है, ताकि प्रत्येक स्तर स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके।

सरल शब्दों में:
संघवाद का अर्थ है — “एक ऐसी शासन प्रणाली जिसमें केंद्र और राज्य दोनों को संविधान द्वारा अधिकार दिए गए हों और दोनों अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से काम करें।”

🔸 संघवाद की आवश्यकता

भारत जैसे बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक और विशाल देश में एकात्मक शासन प्रणाली से सभी राज्यों की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति संभव नहीं थी।
इसलिए संघीय व्यवस्था अपनाई गई ताकि –

  • स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन मिले,
  • विविधता में एकता बनी रहे,
  • और शक्ति का संतुलन बना रहे।

🔸 संघीय शासन के प्रमुख उद्देश्य

  1. सत्ता का विकेंद्रीकरण करना।
  2. क्षेत्रीय स्वायत्तता बनाए रखना।
  3. राष्ट्रीय एकता और अखंडता सुनिश्चित करना।
  4. विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच सहयोग बढ़ाना।

🟩 संघीय शासन की विशेषताएँ (Features of Federalism)

भारत का संघीय ढांचा कई महत्वपूर्ण विशेषताओं पर आधारित है:

1. दोहरी सरकार प्रणाली (Dual Government System)

भारत में दो स्तरों की सरकारें कार्य करती हैं:

  • केंद्र सरकार, जो पूरे देश के लिए कानून बनाती है,
  • राज्य सरकारें, जो अपने राज्यों के लिए कानून बनाती हैं।

2. संविधान में शक्तियों का विभाजन

भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन करता है। यह विभाजन सातवीं अनुसूची में दिया गया है, जिसमें तीन सूचियाँ हैं –
(1) संघ सूची, (2) राज्य सूची, और (3) समवर्ती सूची

3. लिखित संविधान (Written Constitution)

संघीय शासन के लिए लिखित संविधान आवश्यक होता है ताकि दोनों स्तरों की सरकारों के अधिकार स्पष्ट रूप से परिभाषित हों। भारत का संविधान विस्तृत और लिखित है।

4. संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of Constitution)

भारत में संविधान सर्वोच्च है। न केंद्र और न ही राज्य – कोई भी संविधान के विरुद्ध कार्य नहीं कर सकता।

5. संविधान की कठोरता (Rigidity of Constitution)

संविधान में संशोधन की प्रक्रिया कठिन है ताकि संघीय ढांचा स्थिर बना रहे। कुछ प्रावधानों के संशोधन के लिए संसद और आधे राज्यों की सहमति आवश्यक है।

6. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)

संघीय ढांचे के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका आवश्यक है जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों का निपटारा करे। भारत में सुप्रीम कोर्ट इस भूमिका को निभाता है।

7. राज्यों का समान प्रतिनिधित्व (Equal Representation in Upper House)

राज्यसभा में प्रत्येक राज्य को जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया गया है। यह संघीय भावना को दर्शाता है।


🟦 केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन (Distribution of Powers)

भारतीय संविधान ने शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित किया है (सातवीं अनुसूची के अनुसार):

🔹 1. संघ सूची (Union List) – 97 विषय

इन विषयों पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
उदाहरण – रक्षा, विदेश नीति, मुद्रा, डाक-तार, रेलवे, परमाणु ऊर्जा, नागरिकता, बैंकिंग आदि।

🔹 2. राज्य सूची (State List) – 66 विषय

इन विषयों पर केवल राज्य सरकार कानून बना सकती है।
उदाहरण – पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, शिक्षा (कुछ हद तक)।

🔹 3. समवर्ती सूची (Concurrent List) – 47 विषय

इन विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
उदाहरण – विवाह, तलाक, दंड संहिता, शिक्षा, वन, श्रम कल्याण आदि।
यदि दोनों के कानूनों में टकराव हो, तो केंद्र का कानून प्रभावी होगा।

🔹 शेष विषय (Residuary Powers)

जो विषय इन तीन सूचियों में नहीं आते, उन पर केंद्र सरकार का अधिकार होता है। जैसे — अंतरिक्ष अनुसंधान, साइबर अपराध आदि।


🟩 सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism)

🔸 अर्थ (Meaning)

सहकारी संघवाद का अर्थ है —
केंद्र और राज्य सरकारों का आपसी सहयोग, समन्वय और सहभागिता के साथ कार्य करना।
इसमें दोनों स्तर की सरकारें परस्पर विरोधी नहीं बल्कि साझेदार होती हैं।

🔸 मुख्य विशेषताएँ

  1. संविधानिक सहयोग – संविधान के अंतर्गत दोनों स्तरों के अधिकार स्पष्ट हैं।
  2. वित्तीय सहयोग – केंद्र राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  3. संयुक्त संस्थान – नीति आयोग, अंतरराज्यीय परिषद, वित्त आयोग आदि संस्थान सहकारी संघवाद को मजबूत बनाते हैं।
  4. साझी योजनाएँ – केंद्र और राज्य मिलकर योजनाएँ बनाते हैं, जैसे शिक्षा मिशन, स्वास्थ्य अभियान, डिजिटल इंडिया आदि।
  5. संवाद और परामर्श की भावना – किसी नीति या कानून पर दोनों स्तरों के बीच विचार-विमर्श किया जाता है।

🔸 भारत में सहकारी संघवाद के उदाहरण

  • नीति आयोग के माध्यम से राज्यों की भागीदारी।
  • जीएसटी परिषद (GST Council) में केंद्र और राज्य दोनों का प्रतिनिधित्व।
  • केंद्रीय योजनाओं में राज्यों की सहभागिता।

🟩 प्रतिस्पर्धी संघवाद (Competitive Federalism)

🔸 अर्थ (Meaning)

प्रतिस्पर्धी संघवाद का अर्थ है —
ऐसी व्यवस्था जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें विकास व सुधार में एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती हैं ताकि बेहतर शासन और सेवा दी जा सके।

🔸 मुख्य विशेषताएँ

  1. विकास की दौड़ – राज्य एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन अधिक निवेश, रोजगार और विकास लाता है।
  2. आर्थिक सुधार – राज्यों में उद्योग नीति, शिक्षा और स्वास्थ्य सुधारों में प्रतिस्पर्धा होती है।
  3. जनकल्याण पर ध्यान – जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकारें नवाचार करती हैं।
  4. केंद्र की प्रेरक भूमिका – केंद्र ऐसी नीतियाँ बनाता है जो प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दें, जैसे “Ease of Doing Business”।

🔸 भारत में प्रतिस्पर्धी संघवाद के उदाहरण

  • राज्यों में उद्योग और निवेश की प्रतिस्पर्धा (जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु)।
  • रैंकिंग आधारित योजनाएँ, जैसे स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी मिशन।
  • नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्य सूचकांक (SDG Index)

🟦 भारतीय संघवाद की विशेष प्रकृति (Indian Federalism – A Unique Model)

भारत का संघवाद पारंपरिक संघवाद से कुछ भिन्न है।
इसे “क्वासी-फेडरल” (Quasi-federal) कहा जाता है क्योंकि इसमें संघीय और एकात्मक दोनों तत्व पाए जाते हैं।

संघीय तत्वएकात्मक तत्व
शक्तियों का विभाजनकेंद्र को आपातकालीन अधिकार
स्वतंत्र न्यायपालिकाराज्यपाल की नियुक्ति केंद्र द्वारा
द्विसदनीय विधायिकाकेंद्र का वित्तीय वर्चस्व
संविधान की सर्वोच्चताराज्यपाल के माध्यम से केंद्र का नियंत्रण

🟩 संघवाद का महत्व (Importance of Federalism)

  1. विविधता में एकता को बनाए रखना।
  2. क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना।
  3. स्थानीय समस्याओं का समाधान।
  4. लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ाना।
  5. राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सशक्त करना।

🟦 निष्कर्ष (Conclusion)

संघवाद भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है। यह न केवल सत्ता का संतुलन बनाता है बल्कि देश के बहुस्तरीय शासन को भी सक्षम बनाता है।
भारत में संघवाद का स्वरूप स्थिर होने के साथ-साथ लचीला भी है, जिससे यह समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदल सकता है।

आज भारत में सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद दोनों समान रूप से कार्य कर रहे हैं, जिससे राज्यों और केंद्र के बीच स्वस्थ संबंध बने हुए हैं।
इस प्रकार, संघवाद भारतीय लोकतंत्र को सशक्त, स्थायी और गतिशील बनाता है।


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