📘 न्यायपालिका (Judiciary) – कक्षा 11 राजनीति विज्ञान
🌟 न्यायपालिका क्या है? (What is Judiciary?)
न्यायपालिका (Judiciary) शासन का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण अंग है,
जिसका मुख्य कार्य कानून की व्याख्या करना, न्याय प्रदान करना, तथा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है।
👉 भारतीय संविधान के अनुसार –
न्यायपालिका एक स्वतंत्र संस्था है, जो विधायिका और कार्यपालिका से अलग कार्य करती है।
यह संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखती है और किसी भी असंवैधानिक कार्य को निरस्त करने की शक्ति रखती है।
⚖️ स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता (Need for Independent Judiciary)
भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक मानी गई है।
स्वतंत्र न्यायपालिका ही नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकती है और संविधान की मर्यादा बनाए रख सकती है।
🔹 स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता के प्रमुख कारण:
- संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखना:
न्यायपालिका संविधान की संरक्षक और व्याख्याता है। - नागरिक अधिकारों की सुरक्षा:
मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में नागरिक न्यायपालिका की शरण ले सकते हैं। - विधायिका व कार्यपालिका पर नियंत्रण:
न्यायपालिका इन दोनों अंगों के कार्यों की समीक्षा कर सकती है ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो। - निष्पक्ष न्याय:
न्यायाधीशों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना आवश्यक है ताकि वे न्यायपूर्ण निर्णय दे सकें। - लोकतंत्र की मजबूती:
स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव है।
🏛️ न्यायपालिका की संरचना (Structure of Judiciary)
भारतीय न्यायपालिका की संरचना एकीकृत एवं स्वतंत्र है।
संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के प्रावधान हैं।
🔹 तीन स्तर की न्यायपालिका
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) – राष्ट्रीय स्तर पर
- उच्च न्यायालय (High Courts) – राज्य स्तर पर
- अधीनस्थ न्यायालय (Subordinate Courts) – जिला एवं तालुका स्तर पर
👉 यह एकीकृत न्यायिक प्रणाली (Integrated Judicial System) कहलाती है क्योंकि एक ही प्रकार के कानून की व्याख्या पूरे देश में समान रूप से होती है।
👩⚖️ न्यायाधीशों की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया
(Appointment and Removal of Judges)
🔸 सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार —
भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- राष्ट्रपति नियुक्ति से पहले सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करता है।
- वर्तमान में यह प्रक्रिया कोलेजियम प्रणाली (Collegium System) के अंतर्गत होती है।
- कोलेजियम में मुख्य न्यायाधीश तथा चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
🔸 न्यायाधीशों की योग्यता (Qualifications)
- भारत का नागरिक होना।
- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश कम से कम 5 वर्ष तक रहा हो, या
- उच्च न्यायालय में 10 वर्ष तक वकालत की हो, या
- राष्ट्रपति के मत में वह न्यायिक रूप से उपयुक्त व्यक्ति हो।
🔸 न्यायाधीशों का कार्यकाल (Tenure)
- न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पद पर रहते हैं।
- वे अपने पद से स्वयं त्यागपत्र दे सकते हैं या महाभियोग (Impeachment) द्वारा हटाए जा सकते हैं।
🔸 न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया (Removal of Judges)
न्यायाधीशों को केवल महाभियोग (Impeachment) प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है —
- संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव लाया जाता है।
- प्रस्ताव को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद न्यायाधीश पद से हटा दिया जाता है।
यह प्रक्रिया बहुत कठिन है ताकि न्यायाधीशों की स्वतंत्रता बनी रहे।
⚖️ सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of Supreme Court)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 से 139-A तक सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का वर्णन किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार चार प्रमुख भागों में बाँटा गया है —
🔹 1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)
सर्वोच्च न्यायालय सीधे उन मामलों की सुनवाई कर सकता है जहाँ —
- भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद हो,
- दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद हो।
👉 इस क्षेत्राधिकार को अनुच्छेद 131 के तहत स्थापित किया गया है।
🔹 2. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)
सर्वोच्च न्यायालय देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है।
यह उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है।
तीन प्रकार की अपीलें:
- संवैधानिक मामलों में अपील,
- नागरिक मामलों में अपील,
- फौजदारी (Criminal) मामलों में अपील।
🔹 3. परामर्श क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction)
संविधान के अनुच्छेद 143 के अंतर्गत —
राष्ट्रपति किसी भी कानूनी या सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श (Advice) मांग सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की यह सलाह बाध्यकारी नहीं होती।
🔹 4. रिट क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction)
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए रिट (Writs) जारी कर सकता है।
पाँच प्रकार की रिटें हैं:
- हैबियस कॉर्पस (Habeas Corpus):
व्यक्ति की अवैध गिरफ्तारी को चुनौती देने हेतु। - मैंडमस (Mandamus):
किसी सार्वजनिक अधिकारी को उसका कर्तव्य निभाने का आदेश। - प्रोहिबिशन (Prohibition):
निचली अदालत को उसकी अधिकार सीमा से बाहर जाने से रोकना। - क्वो वारंटो (Quo Warranto):
यह जाँचने के लिए कि कोई व्यक्ति वैध रूप से पद पर है या नहीं। - सर्टियोरारी (Certiorari):
निचली अदालत के निर्णय को निरस्त करने हेतु।
👉 इसी कारण अनुच्छेद 32 को “संविधान की आत्मा और हृदय” कहा गया है (डॉ. अम्बेडकर)।
⚖️ न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)
न्यायपालिका को यह अधिकार है कि वह विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करे।
यदि कोई कानून या कार्य संविधान के विरुद्ध पाया जाता है, तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है।
यह सिद्धांत संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
⚡ न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)
🔹 अर्थ
न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) का अर्थ है —
जब न्यायालय संविधान की भावना और न्याय के सिद्धांतों की रक्षा हेतु सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करता है।
यह विशेष रूप से तब होता है जब —
सरकार या कार्यपालिका अपने दायित्वों का सही पालन नहीं करती।
🔹 विकास
1970 के दशक से भारत में न्यायिक सक्रियता का विकास हुआ।
जनहित याचिका (PIL – Public Interest Litigation) इसका प्रमुख माध्यम बनी।
इसके माध्यम से आम जनता भी समाजिक, पर्यावरणीय या प्रशासनिक अन्याय के खिलाफ न्याय की माँग कर सकती है।
🔹 न्यायिक सक्रियता का अधिकारों व संसद से संबंध
- अधिकारों की रक्षा:
न्यायिक सक्रियता ने मौलिक अधिकारों के दायरे को विस्तारित किया —
जैसे जीवन के अधिकार में स्वच्छ पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि को शामिल किया गया। - संसद पर नियंत्रण:
न्यायपालिका संसद के बनाए कानूनों की समीक्षा कर सकती है कि वे संविधान के अनुरूप हैं या नहीं। - संतुलन का सिद्धांत:
न्यायिक सक्रियता संसद की शक्ति को चुनौती नहीं देती, बल्कि उसे संवैधानिक मर्यादा में रखती है। - उदाहरण:
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – संविधान की मूल संरचना सिद्धांत।
- मनुहर लाल शर्मा केस, पर्यावरण मामले आदि।
⚖️ न्यायपालिका की विशेषताएँ (Features of Indian Judiciary)
- एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका।
- संविधान की सर्वोच्चता की संरक्षक।
- न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति।
- जनहित याचिका का प्रावधान।
- नागरिक अधिकारों की रक्षा।
🌍 निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय न्यायपालिका देश के लोकतांत्रिक ढाँचे की रीढ़ है।
यह संविधान की संरक्षक, व्याख्याता और प्रहरी है।
स्वतंत्र न्यायपालिका ने न केवल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की है,
बल्कि शासन के अन्य अंगों को भी संवैधानिक दायरे में रहने की प्रेरणा दी है।
👉 न्यायपालिका के बिना लोकतंत्र अधूरा है —
क्योंकि न्याय ही लोकतंत्र की आत्मा है।
