अनंत चतुर्दशी – महत्व, कथा और उत्सव


🌟 परिचय

अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (अगस्त–सितंबर) को मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि इसे दो रूपों में मनाया जाता है –

  1. भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा व्रत।
  2. गणेश चतुर्थी के दस दिनों बाद भगवान गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन

इस प्रकार यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तीनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है।


🕉️ धार्मिक महत्व

‘अनंत’ का अर्थ है असीम, अनंत और ‘चतुर्दशी’ का अर्थ है चंद्र मास का चौदहवाँ दिन। इस दिन भगवान विष्णु की अनंत स्वरूप में पूजा की जाती है।

अनंत चतुर्दशी की कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत व्रत करने की सलाह दी। द्रौपदी ने अपने हाथ में अनंत सूत्र (गांठों वाला पवित्र धागा) बाँधा और व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडव अनेक कठिनाइयों से मुक्त हुए। तभी से यह व्रत लोक-परंपरा में प्रचलित है।


🙏 व्रत और परंपराएँ

  1. अनंत व्रत
    • भक्तजन इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
    • पूजन के समय 14 गांठों वाला एक पवित्र धागा जिसे अनंत सूत्र कहते हैं, हल्दी व कुमकुम से रंगकर पुरुष दाएँ हाथ में और महिलाएँ बाएँ हाथ में बाँधती हैं।
    • यह धागा भगवान विष्णु की अनंत कृपा और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
  2. गणेश विसर्जन
    • महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में अनंत चतुर्दशी का सबसे बड़ा आकर्षण होता है गणेश विसर्जन
    • दस दिनों तक पूजे गए गणपति बप्पा को धूमधाम से शोभायात्रा में ले जाकर जल में विसर्जित किया जाता है।
    • इस अवसर पर गूंजते हैं जयकारे – “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।”
  3. जैन धर्म में महत्व
    • जैन समाज में अनंत चतुर्दशी पर्युषण पर्व की समाप्ति का दिन है।
    • इस दिन अहिंसा, सत्य और क्षमा की भावना को विशेष महत्व दिया जाता है।

🎉 उत्सव का स्वरूप

  • उत्तर भारत (बिहार, उत्तर प्रदेश आदि) में लोग अनंत व्रत करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
  • पश्चिम और दक्षिण भारत (महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा) में यह दिन गणेश विसर्जन का होता है।
  • जैन समुदाय इसे आध्यात्मिक साधना और उपवास के साथ मनाता है।

🌟 महत्व

  1. आध्यात्मिक दृष्टि से – भगवान विष्णु की अनंत शक्ति और संरक्षण का स्मरण।
  2. सांस्कृतिक दृष्टि से – गणेशोत्सव का भव्य समापन।
  3. नैतिक दृष्टि से – धैर्य, आस्था और भक्ति का संदेश।
  4. सामाजिक दृष्टि से – विशाल शोभायात्राओं से सामूहिक एकता और उत्साह का प्रसार।

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