विद्यासागर नौटियाल – अहिल्या का धियान : एक विस्तृत विवेचन कक्षा 12

विद्यासागर नौटियाल – अहिल्या का धियान : एक विस्तृत विवेचन


1. प्रस्तावना

हिंदी साहित्य में क्षेत्रीय कथाकारों का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने न केवल अपने-अपने अंचल की बोली, संस्कृति और लोकजीवन को जीवित रखा, बल्कि उससे जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक संघर्षों को भी साहित्य में दर्ज किया। विद्यासागर नौटियाल उत्तराखंड (गढ़वाल) की पृष्ठभूमि से आए और उन्होंने पहाड़ के जीवन, उसकी समस्याओं और लोकमानस को अपनी कहानियों का केंद्र बनाया।

उनकी कहानी “अहिल्या का धियान” इसी परंपरा का सशक्त उदाहरण है। इसमें एक साधारण ग्रामीण स्त्री अहिल्या के जीवन और उसकी बेटी (धियान = बेटी) के माध्यम से स्त्री-जीवन की पीड़ा, समाज की रूढ़ियाँ, पुरुष प्रधान सोच और परिवारिक रिश्तों की जटिलता का चित्रण है।

यह कहानी पढ़ते हुए लगता है मानो हम पूरे पहाड़ी समाज की परंपराओं और संघर्षों से रूबरू हो रहे हैं।


2. लेखक-परिचय : विद्यासागर नौटियाल

विद्यासागर नौटियाल (1933–2011) हिंदी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथाकार रहे। वे गढ़वाल (उत्तराखंड) की धरती से जुड़े थे और वहीं की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों ने उनकी कहानियों को आकार दिया।

उनकी प्रमुख रचनाएँ :

  • कहानियाँ : अहिल्या का धियान, गंधर्वगाथा, सीढ़ियाँ, तबादला
  • उपन्यास : गुड़िया
  • नाटक और संस्मरण भी

उनकी विशेषता यह थी कि वे स्थानीय बोली और लोकजीवन को अपनी रचनाओं में जीवंत कर देते थे।


3. कथा-सार (विस्तृत रूप)

कहानी का केंद्र पात्र अहिल्या है – एक पहाड़ी स्त्री, जिसने जीवनभर त्याग, श्रम और संघर्ष किया है।

अहिल्या की एक बेटी है। पहाड़ी समाज में बेटियों के प्रति वह दृष्टिकोण अक्सर नकारात्मक रहा है, जहाँ बेटी को बोझ माना जाता है। लेकिन अहिल्या का दृष्टिकोण अलग है – वह अपनी बेटी को अपना “धियान” (आशा, सहारा, जीवन का केंद्र) मानती है।

कहानी में बेटी के विवाह, उसके भविष्य और समाज की रूढ़ियों के बीच अहिल्या का संघर्ष उभरता है।

  • बेटी की शिक्षा और भविष्य की चिंता,
  • विवाह की व्यवस्था,
  • समाज की परंपराओं और आर्थिक तंगी से जूझना,
  • पति और ससुराल पक्ष की उपेक्षा,

ये सब मिलकर कहानी को गहरे यथार्थ से भर देते हैं।

अंततः यह कहानी केवल अहिल्या और उसकी बेटी की कथा नहीं रहती, बल्कि यह पूरे स्त्री-जीवन की पीड़ा और संघर्ष का प्रतीक बन जाती है।


4. पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

(क) अहिल्या

अहिल्या इस कहानी की नायिका है। उसका जीवन कठिनाईयों से भरा हुआ है। पति और समाज से उपेक्षित होने के बावजूद उसका पूरा जीवन बेटी को सँवारने में बीतता है।

  • उसमें ममता है,
  • सहनशीलता है,
  • लेकिन साथ ही संघर्ष और आत्मसम्मान भी है।

अहिल्या का चरित्र यह बताता है कि स्त्री केवल परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं उठाती, बल्कि वह समाज के लिए भी प्रेरणा है।

(ख) बेटी (धियान)

धियान इस कहानी का केंद्रबिंदु है। वह नई पीढ़ी और नई उम्मीद का प्रतीक है। उसकी शिक्षा, विवाह और भविष्य ही कहानी की धुरी बन जाते हैं।

(ग) पति और समाज

अहिल्या का पति और ससुराल पक्ष समाज की उस मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहाँ बेटियों को महत्व नहीं दिया जाता। पति का उपेक्षित रवैया और समाज की तंगदिली अहिल्या के संघर्ष को और तीव्र बना देती है।


5. सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ

विद्यासागर नौटियाल ने इस कहानी में पहाड़ी समाज की वास्तविकता प्रस्तुत की है।

🌑 स्त्री की स्थिति – बेटी को अक्सर बोझ समझा जाता है। माँ पर उसकी जिम्मेदारी का बोझ सबसे ज्यादा होता है।

🌑 आर्थिक तंगी – गरीब परिवार विवाह और शिक्षा की व्यवस्था में टूट जाता है।

🌑 रूढ़ियाँ और परंपराएँ – समाज बेटियों को केवल विवाह तक सीमित कर देता है।

🌑 पारिवारिक रिश्ते – माँ-बेटी का रिश्ता इस कहानी में सबसे गहरा है।


6. प्रतीकात्मक अर्थ

अहिल्या – त्याग, संघर्ष और स्त्री-जीवन की करुणा का प्रतीक।
धियान (बेटी) – आशा, भविष्य और परिवर्तन का प्रतीक।
पति और समाज – परंपरागत सोच और रूढ़ियों का प्रतीक।
पहाड़ – कठिन जीवन और संघर्षपूर्ण परिस्थिति का प्रतीक।


7. लेखक की लेखन शैली

विद्यासागर नौटियाल की शैली बेहद मार्मिक और यथार्थपरक है।

  • स्थानीयता : पहाड़ी बोली और लोकजीवन का सहज चित्रण।
  • सरल भाषा : बिना आडंबर, सीधी-सादी भाषा।
  • संवेदनशीलता : पात्रों के भीतर की पीड़ा और भावनाओं को गहराई से पकड़ना।
  • यथार्थवाद : कहानी किसी काल्पनिक दुनिया की नहीं, बल्कि वास्तविक समाज की है।

8. आलोचनात्मक दृष्टि

“अहिल्या का धियान” को आलोचक स्त्री-विमर्श की दृष्टि से देखते हैं।

  • यह कहानी स्त्री के संघर्ष और आत्मबल को सामने लाती है।
  • यह स्त्री को केवल परिवार की परिधि में नहीं बाँधती, बल्कि उसे समाज का केंद्रीय पात्र बनाती है।
  • इसमें स्त्री की अस्मिता और पहचान का प्रश्न भी है।

9. समकालीन प्रासंगिकता

आज भी भारतीय समाज में बेटियों को लेकर वही द्वंद्व मौजूद है –

  • बेटी की शिक्षा,
  • विवाह में आर्थिक बोझ,
  • समाज की रूढ़ियाँ,
  • स्त्रियों के साथ भेदभाव।

इसलिए यह कहानी केवल अतीत का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि वर्तमान का भी आईना है।


10. निष्कर्ष

विद्यासागर नौटियाल की कहानी “अहिल्या का धियान” स्त्री जीवन के संघर्षों का गहन चित्रण है। अहिल्या केवल एक पात्र नहीं है, बल्कि वह हर माँ का रूप है, जो अपनी बेटी के लिए हर कठिनाई सह लेती है।

यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि –

  • स्त्री को बोझ नहीं, सहारा समझना चाहिए।
  • समाज की रूढ़ियों को बदलना होगा।
  • माँ-बेटी का रिश्ता सबसे पवित्र और मजबूत बंधन है।

इस तरह यह कहानी हिंदी साहित्य में स्त्री-विमर्श, लोकजीवन और यथार्थपरक संवेदनशीलता की अनूठी मिसाल है।


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