असगर वजाहत – और भेड़िया कौन : विस्तृत विश्लेषण
1. प्रस्तावना
हिंदी साहित्य में असगर वजाहत का नाम उस पीढ़ी के रचनाकारों में लिया जाता है, जिन्होंने समाज की असलियत को बिना लाग-लपेट प्रस्तुत किया। वजाहत की कहानियाँ केवल घटनाओं का विवरण नहीं होतीं, बल्कि वे पाठक को सोचने और प्रश्न करने के लिए विवश करती हैं। उनकी लेखनी का मूल स्वर व्यंग्य, कटाक्ष और यथार्थ है।
कहानी “और भेड़िया कौन” इसी परंपरा की एक सशक्त कड़ी है। सतही तौर पर यह कहानी एक गाँव और जंगल में रहने वाले भेड़िए के बारे में लगती है, लेकिन इसके भीतर असल मुद्दा है – इंसान की असली पहचान। असगर वजाहत इस कहानी में यह सवाल उठाते हैं कि असली भेड़िया कौन है – जंगल का जानवर या इंसान की भेड़िया जैसी प्रवृत्तियाँ?
2. लेखक परिचय और रचनात्मक पृष्ठभूमि
असगर वजाहत का जन्म 5 जुलाई 1946 को हुआ। वे हिंदी साहित्य में कथाकार, नाटककार और आलोचक के रूप में सक्रिय रहे। उनकी कहानियों और नाटकों में सामाजिक विसंगतियाँ, सांप्रदायिकता, सत्ता का दुरुपयोग और आम आदमी की पीड़ा मुखर रूप से सामने आती है।
उनकी चर्चित कृतियों में –
- सबसे सस्ता मांस,
- जहाँ अपनों को भी लोग मार डालते हैं,
- गाँधी और गोडसे,
- भूख और भेड़िए जैसी कहानियाँ और नाटक शामिल हैं।
“और भेड़िया कौन” उनकी उन कहानियों में है जो समाज की सच्चाई को प्रतीक और रूपक के सहारे सामने लाती हैं।
3. कथा-सार (विस्तृत रूप में)
कहानी की पृष्ठभूमि एक गाँव है, जिसके चारों ओर जंगल फैला हुआ है। गाँववाले लंबे समय से भेड़ियों के आतंक से परेशान हैं। अक्सर मवेशी और कभी-कभी इंसान भी भेड़िए का शिकार हो जाते हैं। गाँव में हर किसी की जुबान पर यही है – भेड़िया खतरनाक है, भेड़िया दुश्मन है, भेड़िए को खत्म करना होगा।
गाँव के नेता और दबंग भी इस मुद्दे को उठाते हैं। वे गाँववालों को चेतावनी देते हैं कि यदि भेड़िए से बचना है तो उनकी बात माननी होगी। धीरे-धीरे भेड़िए का डर गाँववालों के मन-मस्तिष्क पर छा जाता है।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकती। लेखक यह परत खोलते हैं कि –
- असली खतरा केवल जंगल का भेड़िया नहीं है।
- असली खतरा तो गाँव के भीतर मौजूद वे लोग हैं जो भेड़िए का नाम लेकर डर फैलाते हैं और जनता पर अपना वर्चस्व बनाए रखते हैं।
भेड़िया सिर्फ अपनी भूख मिटाने आता है, जबकि इंसानी भेड़िया स्वार्थ, सत्ता और लालच से प्रेरित होकर समाज को खोखला करता है।
अंत में कहानी यह प्रश्न छोड़ जाती है –
👉 भेड़िया कौन है? जंगल का वह जीव, या इंसान का वह चेहरा जो हर पल किसी न किसी को नोच रहा है?
4. पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
(क) गाँववाले
ये पात्र सामूहिक रूप से आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे हमेशा भय और असुरक्षा में जीते हैं। उनकी मानसिकता यह है कि जो भी सत्ता या दबंग उन्हें बताएगा, वे उसे मान लेंगे। उनके भीतर भेड़िए का डर इस कदर बैठा दिया गया है कि वे असली शोषक को पहचान ही नहीं पाते।
(ख) जंगल का भेड़िया
वह केवल अपनी भूख के लिए हमला करता है। उसके भीतर कोई छल, राजनीति या लालच नहीं है। वह प्रकृति की सहज प्रवृत्ति का प्रतीक है।
(ग) इंसानी भेड़िया
यह कहानी का सबसे अहम पात्र है, भले ही उसका नाम या चेहरा स्पष्ट नहीं है। यह वह वर्ग है जो भेड़िए के डर का उपयोग करके जनता को दबाता है, सत्ता में बना रहता है और आर्थिक-राजनीतिक लाभ उठाता है।
(घ) नेता / दबंग / प्रशासन
ये सब उस मानवीय भेड़िए के विभिन्न रूप हैं। नेता भेड़िए का डर दिखाकर राजनीति करता है, दबंग उससे सुरक्षा देने के नाम पर जनता पर नियंत्रण करता है, और प्रशासन केवल औपचारिक कार्रवाई करके असली मुद्दे से मुँह मोड़ लेता है।
5. सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ
(क) सत्ता और भय की राजनीति
कहानी स्पष्ट करती है कि कैसे सत्ता जनता पर राज करने के लिए डर का हथियार इस्तेमाल करती है। कभी भेड़िए का डर, कभी दुश्मन का डर, कभी आर्थिक संकट का डर – डर फैलाना ही असली राजनीति है।
(ख) सांप्रदायिकता और विभाजन
भेड़िए का रूपक यहाँ उन ताक़तों के लिए भी है जो समाज को बाँटकर नफ़रत फैलाती हैं। असगर वजाहत की रचनाओं में सांप्रदायिकता की आलोचना बार-बार सामने आती है।
(ग) गरीबी और शोषण
भेड़िए का शिकार गरीब जनता ही होती है। चाहे वह जंगल का जानवर हो या इंसानी भेड़िया, दोनों की मार सबसे पहले गरीब और वंचित झेलते हैं।
(घ) मीडिया और अफवाह
कहानी में परोक्ष रूप से यह भी संकेत है कि भेड़िए का डर जितना वास्तविक है, उतना ही उसे बढ़ा-चढ़ाकर फैलाया भी जाता है।
6. भेड़िए का प्रतीकात्मक अर्थ
✨ जंगल का भेड़िया – प्रकृति की भूख और प्रवृत्ति का प्रतीक।
✨ इंसानी भेड़िया – लालच, स्वार्थ, भ्रष्टाचार और हिंसा का प्रतीक।
✨ गाँव – समाज का रूपक।
✨ गाँववाले – आम आदमी का प्रतीक, जो हमेशा डर और असुरक्षा में जीता है।
इस तरह कहानी कहती है कि –
👉 असली भेड़िया जंगल में नहीं है, वह हमारे समाज में हमारे बीच ही रहता है।
7. असगर वजाहत की लेखन शैली
- सरल और धारदार भाषा – उनकी भाषा आम आदमी की बोलचाल के करीब है, लेकिन उसमें गहराई है।
- व्यंग्य और कटाक्ष – पूरी कहानी व्यंग्य के माध्यम से असली भेड़िए को पहचानने की चुनौती देती है।
- प्रतीक और रूपक – भेड़िए का इस्तेमाल उन्होंने द्विअर्थी रूपक के तौर पर किया है।
- संवाद और लय – कहानी की लय ऐसी है कि पाठक को लगातार सोचने पर मजबूर करती है।
8. आलोचनात्मक दृष्टि
आलोचक मानते हैं कि “और भेड़िया कौन” असगर वजाहत की सबसे मार्मिक कहानियों में है। यह न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक संदर्भों में भी बेहद प्रासंगिक है।
- यह कहानी सत्ता की विडंबना को उजागर करती है।
- यह जनता को चेताती है कि असली दुश्मन को पहचानो।
- यह यथार्थ और प्रतीक के अद्भुत मेल का उदाहरण है।
9. समकालीन प्रासंगिकता
आज भी जब हम अख़बार खोलते हैं या टीवी देखते हैं तो यही अनुभव होता है –
- जनता को कभी आतंकवाद, कभी सांप्रदायिकता, कभी विदेशी खतरे का डर दिखाया जाता है।
- असली समस्याएँ – गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य – पीछे छूट जाती हैं।
- असली भेड़िए आज भी सत्ता और समाज में सक्रिय हैं।
इस दृष्टि से यह कहानी आज भी उतनी ही जीवित और प्रासंगिक है।
10. निष्कर्ष
असगर वजाहत की कहानी “और भेड़िया कौन” हमें यह सिखाती है कि –
- असली भेड़िया जंगल में नहीं, इंसान के भीतर है।
- सत्ता, लालच और स्वार्थ ही सबसे खतरनाक भेड़िए हैं।
- जनता को अपनी आँखें खोलनी होंगी, वरना वह हमेशा डर के साये में जीती रहेगी।
यह कहानी केवल साहित्यिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह समाज को आईना दिखाने वाली रचना है। असगर वजाहत ने इसमें यथार्थ, व्यंग्य और प्रतीकात्मकता का जो मिश्रण किया है, वह हिंदी कथा-साहित्य को और भी समृद्ध बनाता है।
