🟢 भारत में राष्ट्रवाद की शुरुआत
🔵 राष्ट्रवाद का अर्थ
- राष्ट्रवाद वह भावना है, जिसमें लोग एकता, समान संस्कृति, इतिहास और स्वतंत्रता की चाह से जुड़े होते हैं।
- भारत में राष्ट्रवाद का अर्थ था – ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष और स्वराज (स्व-शासन) की प्राप्ति।
🔵 भारत में राष्ट्रवाद के कारण
- औपनिवेशिक शोषण: ब्रिटिशों ने भारत की अर्थव्यवस्था का शोषण किया, जिससे गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी।
- पश्चिमी शिक्षा: स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारे जैसे विचारों का प्रसार हुआ।
- प्रेस और साहित्य: अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों ने राष्ट्रवादी चेतना को फैलाया।
- संचार और परिवहन: रेलवे, टेलीग्राफ आदि ने लोगों को जोड़ने और आंदोलन संगठित करने में मदद की।
🔵 प्रथम विश्व युद्ध और राष्ट्रवाद
- प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918) के दौरान भारत में करों की बढ़ोतरी, जबरन भर्ती, महंगाई आदि ने जनता को दुखी किया।
- इससे लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश बढ़ा और स्वराज की मांग तेज हुई।
🔵 महात्मा गांधी का आगमन
- 1915 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे।
- उन्होंने सत्याग्रह (सत्य और अहिंसा के आधार पर आंदोलन) का सिद्धांत अपनाया।
- उनके नेतृत्व में आंदोलन सभी वर्गों और क्षेत्रों में फैलने लगे।
🔵 प्रारंभिक सत्याग्रह आंदोलन
- चंपारण सत्याग्रह (1917) – बिहार में नील किसानों के लिए।
- खेड़ा सत्याग्रह (1918) – गुजरात के किसानों के लिए, जो फसल खराब होने पर भी कर दे रहे थे।
- अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) – मजदूरों की वेतन वृद्धि के लिए।
🔵 रॉलेट एक्ट (1919) और विरोध
- यह कानून बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तारी और कैद की अनुमति देता था।
- गांधीजी ने इसके खिलाफ देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
- पूरे भारत में प्रदर्शन और असंतोष फैला।
🔵 जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919)
- 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर ने अमृतसर में शांतिपूर्ण सभा पर गोलियां चलवाईं।
- सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों घायल हुए।
- इसने लोगों का ब्रिटिश न्याय से विश्वास उठाया और आंदोलन तेज किया।
🟣 राष्ट्रवादी आंदोलनों और उनका प्रभाव
🟡 असहयोग आंदोलन (1920–22)
- खिलाफत आंदोलन और जलियांवाला बाग कांड के बाद गांधीजी ने इसे शुरू किया।
- लोगों से आग्रह किया गया कि वे ब्रिटिश स्कूल, अदालत, वस्त्र और पदवी का बहिष्कार करें।
- खादी और चरखे को बढ़ावा मिला।
- आंदोलन शहरों, गांवों और आदिवासी इलाकों में फैला।
🟡 खिलाफत आंदोलन
- शुरू किया अली भाइयों (शौकत अली और मोहम्मद अली) ने।
- उद्देश्य था तुर्की के खलीफा की रक्षा करना।
- यह आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना।
🟡 आंदोलन में भागीदारी
- शहरी मध्यम वर्ग – स्कूलों, अदालतों का बहिष्कार।
- किसान – अवध में बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में जमींदारों और कर के खिलाफ।
- आदिवासी – आंध्र में अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में वन कानूनों के विरोध में।
- मजदूर – कपड़ा मिलों और रेलवे में हड़तालें कीं।
🟡 चौरी-चौरा कांड और आंदोलन की वापसी
- 1922 में चौरी-चौरा (उत्तर प्रदेश) में आंदोलन हिंसक हो गया और पुलिस स्टेशन को आग लगा दी गई।
- गांधीजी ने हिंसा से दुखी होकर आंदोलन वापस ले लिया।
- उन्होंने लोगों से रचनात्मक कार्यों में जुड़ने का आग्रह किया।
🟡 स्वराज पार्टी (1923)
- गांधीजी की नीति से असहमत होकर मोतिलाल नेहरू और चितरंजन दास ने इस पार्टी की स्थापना की।
- उद्देश्य था विधान परिषदों में भाग लेकर अंग्रेजों की नीतियों का विरोध करना।
🟡 साइमन कमीशन (1928)
- ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रशासन में सुधार के लिए यह कमीशन भेजा, लेकिन इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था।
- भारत में इसका जोरदार विरोध हुआ – “साइमन वापस जाओ” के नारे लगे।
- लाला लाजपत राय घायल हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
🟡 पूर्ण स्वराज की घोषणा (1929)
- लाहौर अधिवेशन (1929) में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज (Complete Independence) की घोषणा की।
- 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
🟡 सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–34)
- इसकी शुरुआत दांडी यात्रा से हुई, जब 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने साबरमती से दांडी तक 240 किमी चलकर नमक कानून तोड़ा।
- लोगों ने नमक कानून, कर, विदेशी वस्त्रों का विरोध किया और सरकारी आदेशों की अवज्ञा की।
- देशभर में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी हुई।
🟡 आंदोलन में विभिन्न वर्गों की भागीदारी
- समृद्ध किसान – कर कम करने की मांग।
- गरीब किसान – कर्ज माफ करने की मांग लेकिन पर्याप्त समर्थन नहीं मिला।
- महिलाएं – बड़ी संख्या में पिकेटिंग, प्रदर्शन और खादी कातने में भाग लिया।
- दलित और मुस्लिम – कुछ हद तक शामिल हुए, परंतु आंतरिक मतभेदों के कारण सीमित सहभागिता रही।
🟡 सरकार की प्रतिक्रिया और गोलमेज सम्मेलन
- सरकार ने आंदोलन को दमन से कुचलने की कोशिश की।
- गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में भाग लिया, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका।
- आंदोलन पुनः शुरू हुआ लेकिन धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया।
🟡 पूना समझौता (1932)
- डॉ. भीमराव अंबेडकर दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल चाहते थे।
- गांधीजी ने इसके विरोध में आमरण अनशन किया।
- अंततः पूना समझौता हुआ – दलितों को आरक्षित सीटें मिलीं लेकिन वे सामान्य निर्वाचक मंडल में रहें।
🟡 राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक प्रतीक
- झंडा, गीत, भारत माता की छवि, लोककथाएं आदि ने लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ा।
- तिरंगा झंडा और चरखा स्वतंत्रता का प्रतीक बने।
- वंदे मातरम् गीत और भारत माता की तस्वीर ने देशभक्ति की भावना को उभारा।
🟡 राष्ट्रवाद का प्रभाव
- देशभर में लोगों में एकता की भावना बढ़ी।
- आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती दी।
- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं, किसानों, मजदूरों, छात्रों की भागीदारी से यह जन आंदोलन बना।
- इसने 1947 में भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी।
🔵 निष्कर्ष (Conclusion)
🔸 भारत में राष्ट्रवाद एक लंबी प्रक्रिया थी, जिसे विचारधारा, आंदोलन और सांस्कृतिक प्रतीकों ने मजबूत किया।
🔸 महात्मा गांधी ने इसे जन-आंदोलन का रूप दिया, जिसमें हर वर्ग और समुदाय ने भाग लिया।
🔸 यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था।
🔸 भारत का राष्ट्रवादी आंदोलन अंततः 1947 में स्वतंत्रता के रूप में सफल हुआ।