🟢 औद्योगिक क्रांति की शुरुआत
🔵 औद्योगीकरण का अर्थ
- औद्योगीकरण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें हस्तशिल्प उत्पादन से मशीन आधारित उत्पादन की ओर संक्रमण होता है।
- यह प्रक्रिया 18वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में शुरू हुई और फिर पूरे यूरोप और विश्व में फैल गई।
🔵 पूर्व-औद्योगिक विश्व
- औद्योगिक क्रांति से पहले का समय, जिसे पूर्व-औद्योगिक काल कहते हैं, उसमें उत्पादन छोटे पैमाने पर, कारीगरों द्वारा उनके घरों में किया जाता था।
- व्यापारी ग्रामीण कारीगरों को कच्चा माल देते और तैयार माल बाजार में बेचते थे।
- इस व्यवस्था को “प्रोटो-औद्योगिकरण (Proto-Industrialisation)” कहा जाता है।
🔵 प्रोटो-औद्योगीकरण की विशेषताएं
- उत्पाद घर पर बनाए जाते थे, न कि फैक्ट्रियों में।
- व्यापारियों और ग्रामीण कारीगरों के बीच सीधा संबंध होता था।
- बड़े-बड़े शहरी उद्योगों के पहले ही यह व्यवस्था शुरू हो चुकी थी।
🔵 कारखानों की शुरुआत
- पहली फैक्ट्री 18वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में स्थापित हुई।
- प्रारंभ में केवल कुछ ही उद्योग जैसे – कपड़ा उद्योग, लोहे का उद्योग, आदि विकसित हुए।
- जेम्स वाट द्वारा भाप इंजन का आविष्कार एक क्रांतिकारी परिवर्तन था।
🔵 उद्योगों में बदलाव
- 1840 के बाद उत्पादन में तेजी आई।
- भाप से चलने वाली मशीनें बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगीं।
- रेलवे और जहाजों के निर्माण से माल के परिवहन में तेजी आई।
🔵 ब्रिटेन में उद्योगों का विकास
- कपड़ा उद्योग सबसे प्रमुख और तेजी से विकसित होने वाला क्षेत्र था।
- कपास से सूती वस्त्र बनाने वाली मशीनों जैसे स्पिनिंग जेनी (Spinning Jenny) ने उत्पादन बढ़ाया।
- बिजली और स्टील उद्योग भी बाद में महत्वपूर्ण हुए।
🔵 औद्योगिक श्रमिकों की स्थिति
- मजदूरों को अस्थाई रोजगार मिलता था।
- कार्यस्थल की स्थिति खराब होती थी – अधिक घंटे काम और कम वेतन।
- श्रमिकों ने हड़तालें और आंदोलन शुरू किए।
🔵 मशीनों के खिलाफ विरोध
- शुरुआत में लोगों ने मशीनों का विरोध किया क्योंकि इससे हस्तशिल्पियों और श्रमिकों की रोज़गार छिन रही थी।
- लूडाइट आंदोलन इसका उदाहरण है, जिसमें लोगों ने मशीनें तोड़ दी थीं।
🔵 विज्ञान और तकनीक का योगदान
- विज्ञान और तकनीकी खोजों ने औद्योगीकरण को गति दी।
- भाप इंजन, बिजली, टेलीग्राफ जैसी खोजों ने उद्योगों की कार्यक्षमता बढ़ाई।
🟣 भारत में औद्योगीकरण का प्रभाव
🟡 भारत में पारंपरिक कारीगर व्यवस्था
- औद्योगिक क्रांति से पहले, भारत में कपड़ा, धातु, हाथ की कढ़ाई और लकड़ी के काम जैसे हस्तशिल्प उद्योग फले-फूले थे।
- बनारस, ढाका, मुरादाबाद जैसे शहर हस्तशिल्प के प्रमुख केंद्र थे।
- भारत का कपड़ा उद्योग वैश्विक व्यापार में प्रसिद्ध था।
🟡 औपनिवेशिक नीति और भारतीय उद्योग
- ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद भारत की स्थानीय कारीगरी पर नकारात्मक असर पड़ा।
- अंग्रेजों ने भारत को कच्चे माल के स्रोत और ब्रिटिश माल के बाजार में बदल दिया।
- भारतीय हस्तशिल्प उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने लगा।
🟡 भारतीय वस्त्रों की गिरती मांग
- ब्रिटेन में मशीन निर्मित वस्त्र बनने से भारतीय कपड़े की मांग कम हो गई।
- ब्रिटिश सरकार ने भारी कर लगाकर भारतीय वस्त्रों को अव्यवहारिक बना दिया।
- भारतीय कारीगर बेरोजगार होने लगे।
🟡 भारत में आधुनिक उद्योगों की शुरुआत
- 1854 में बॉम्बे में पहला कपास मिल शुरू हुआ।
- 1870 में कोलकाता में पहला जूट मिल शुरू हुई।
- स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आंदोलनों में उद्योगों की स्थापना का आह्वान किया गया।
🟡 स्वदेशी आंदोलन और उद्योग
- 1905 के स्वदेशी आंदोलन ने भारतीयों को स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग की प्रेरणा दी।
- कई लोगों ने स्थानीय उद्योगों की स्थापना की, जैसे – टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO), 1907 में स्थापित हुई।
- इस आंदोलन ने स्वनिर्भरता की भावना को जन्म दिया।
🟡 भारतीय व्यापारियों और पूंजीपतियों की भूमिका
- मरवाड़ी और पारसी व्यापारी वर्ग ने पूंजी लगाकर स्वदेशी उद्योगों की नींव रखी।
- टाटा, बिरला जैसे घरानों ने भारतीय उद्योगों को आगे बढ़ाया।
- उन्होंने रेलवे, जूट, कपड़ा, कोयला, और इस्पात उद्योगों में निवेश किया।
🟡 रेलवे और परिवहन का विकास
- रेलवे का निर्माण ब्रिटिशों द्वारा किया गया ताकि कच्चा माल बंदरगाहों तक लाया जा सके।
- इससे भारतीय व्यापार को गति मिली, लेकिन इसका लाभ ब्रिटिश कंपनियों को हुआ।
- रेलवे ने बाजारों को जोड़ा, लेकिन भारतीय उद्योगों को बहुत कम समर्थन मिला।
🟡 औद्योगीकरण और समाज में परिवर्तन
- शहरों में जनसंख्या बढ़ने लगी।
- नए श्रमिक वर्ग का जन्म हुआ।
- सामाजिक संरचना में बदलाव आया – जातीय सीमाएं कमजोर होने लगीं।
- महिलाओं और बच्चों को भी उद्योगों में काम करना पड़ा, जिससे शोषण बढ़ा।
🟡 श्रमिकों की स्थिति
- भारतीय श्रमिकों को कम वेतन, लंबे घंटे और खराब कार्यस्थल जैसी समस्याएं झेलनी पड़ीं।
- कोई सामाजिक सुरक्षा या मजदूर अधिकार नहीं थे।
- कुछ जगहों पर श्रमिक आंदोलन शुरू हुए, जैसे अहमदाबाद और बॉम्बे में।
🟡 औद्योगीकरण और स्वतंत्रता संग्राम
- भारतीय नेताओं ने आर्थिक स्वतंत्रता को राजनीतिक स्वतंत्रता के समान महत्वपूर्ण माना।
- गांधी जी ने चरखा और खादी के माध्यम से आत्मनिर्भरता पर बल दिया।
- औद्योगीकरण की नीति को आजादी के बाद की सरकारों ने आगे बढ़ाया।
🔵 निष्कर्ष (Conclusion)
🔸 औद्योगीकरण ने दुनिया को तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक रूप से बदल डाला।
🔸 भारत में इसका आगमन औपनिवेशिक शोषण के माध्यम से हुआ, जिससे स्थानीय उद्योगों को नुकसान पहुंचा।
🔸 स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देकर आर्थिक आत्मनिर्भरता की नींव रखी गई।
🔸 औद्योगीकरण का युग आज भी भारत के विकास और आधुनिकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।